UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 मित्रता (गद्य खंड)
कक्षा- 10 ( हिंदी )
पाठ-1 = मित्रता (अचार रामचंद्र शुक्ल)
बहुविकल्पी प्रश्न-
1-आचार्य रामचंद्र शुक्ल
जी का जन्म कब हुआ था|
(क)1884
(ख) 1836
(ग) 1890
(घ) 1830
उत्तर- 1884
2- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिता का नाम था|
(क) श्री रघुनाथ सहाय
(ख) श्री रवि सिंह
(ग) चंद्रबली शुक्ल
(घ) उमराव बक्शी
उत्तर- चंद्रबली शुक्ल
3- अचार रामचंद्र शुक्ल जी
की रचना है!
(क) इरावती
(ख) मेरी आत्मकथा
(ग) मेरी यूरोप यात्रा
(घ) चिंतामणि
उत्तर -चिंतामणि
(2) लेखक संबंधी प्रश्न
1- आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय देते
हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए|
2-अचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय देते
हुए उनकी कृतियों और भाषा शैली पर प्रकाश डालिए॥
3- आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय दीजिए|[2011, 12, 13, 14, 15, 17, 18]
उत्तर- (जीवन परिचय) - हिंदी के प्रतिभा संपन्न मधून समीक्षक एवं
युग प्रवर्तक साहित्यकार अचार रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन 1884 ई० में बस्ती जिले के
अगोना नामक ग्राम की एक संभ्रांत परिवार में हुआ था इनके पिता चंद्रबली शुक्ल मिर्जापुर
में कानूनगो थे! इनकी माता अत्यंत विदुषी और धार्मिक थी इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा
अपने पिता के पास जिले की राठ तहसील में हुई और इन्होंने मिशन स्कूल से दसवीं की परीक्षा
उत्तीर्ण की गणित गणित में कमजोर होने के कारण है आगे नहीं बढ़ सके उन्होंने एफ ए०
इंटरमीडिएट की शिक्षा इलाहाबाद से ली थी किंतु परीक्षा से पूर्व ही विद्यालय छूट गया!
इसके पश्चात उन्होंने मिर्जापुर के न्यायालय में नौकरी आरंभ कर दी यह नौकरी इनके स्वभाव
के अनुकूल नहीं थी आता यह मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक हो गए अध्यापन
का कार्य करते हुए उन्होंने अनेक कहानी कविता निबंध नाटक आदि की रचना की इनकी विधता
से प्रभावित होकर इन्हें हिंदी शब्द सागर के संपादन कार्य में सहयोग के लिए श्यामसुंदर
दास जी द्वारा काशी नगरी प्रचारिणी सभा में सम्मान बुलवाया गया! इन्होंने 19 वर्ष तक
काशी नगरी प्रचारिणी पत्रिका का संपादन भी किया कुछ समय पश्चात इनकी नियुक्ति काशी
हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रदाता के रूप में हो गई और श्याम सुंदर दास
जी के अवकाश प्राप्त करने के बाद यह हिंदी विभाग के अध्यक्ष भी हो गए! और श्याम सुंदर
दास जी की अवकाश प्राप्त करने के बाद यह हिंदी विभाग के अध्यक्ष भी हो गए स्वाभिमानी
और गंभीर प्रकृति का हिंदी का विगत साहित्यकार सन 1947 ई० में स्वर्गवासी हो गया!
रचनाएं- शुक्ला जी एक प्रसिद्ध निबंधकार, निस्पक्ष,आलोचक,
श्रेष्ठ इतिहासकार और सफल संपादक थे इनकी रचनाओं का विवरण निम्न वत है!
1- निबंध चिंतामणि' (दो भाग) तथा विचार वीथी'!
2- आलोचना-(क) रस- मीमांसा (ख) त्रिवेणी, (ग) सूरदास!
3- इतिहास- हिंदी साहित्य का इतिहास!
4- संपादन- 'जायसी ग्रंथावली ,तुलसी, ग्रंथावली भ्रमरगीत
सार ,हिंदी शब्द -सागर और काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका का कुशल संपादन किया!
इसके अतिरिक्त शुक्ल जी ने
कहानी( 11 वर्ष का समय) काव्य रचना (अभिमन्यु वध) तथा कुछ अन्य भाषाओं से हिंदी में
अनुवाद लिखिए जिनमें 'मेगास्थनीज का भारतवर्षीय विवरण 'आदर्श जीवन कल्याण का आनंद विश्व
प्रबंध 'बुद्धचरित का आदि प्रमुख हैं!
साहित्य में स्थान- हिंदी निबंध को नया आयाम देकर उसे ठोस धरातल
पर प्रतिष्ठित करने वाले शुक्ला जी हिंदी -साहित्य के मधून आलोचक श्रेष्ठ निबंधकार
निष्पक्ष स्पष्ट इतिहासकार महान सरकार एवं युग प्रवर्तक साहित्यकार थे यह हृदय से कभी
मस्तिष्क से आलोचक और जीवन से अध्यापक थे हिंदी साहित्य में इनका मधून स्थान है इनकी
विलक्षण प्रतिभा के कारण ही इनके समकाली का मानना है तथा लोग लगते में क्या देख कर
उससे मिलता कर लेते हैं बनाने की दिशा में सशस्त्र ऐसा करना इसलिए आवश्यक विचारधारा होती हैं न हिंदी गद्य के काल को
"शुक्ल 'युग के नाम से संबोधित किया जाता है!
गद्यांश पर आधारित प्रश्न-
1- हंसमुख चेहरा बातचीत का ढंग थोड़ी चतुराई
का साहस -यही दो चार बातें किसी में देखकर लोग चटपट उसे अपना बना लेते हैं हम लोग यह
नहीं सोचते कि मैत्री का उद्देश्य क्या है तथा जीवन के व्यवहार में उसका कुछ मूल भी
है वह बाद हमें नहीं सोचती कि यह एक ऐसा साधन है जिससे आपने शिक्षा का कार्य बहुत सुगम
हो जाता है एक प्राचीन विद्वान का वचन है विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी सुरक्षा
होती है जिससे ऐसा मित्र मिल जाए उसे समझना चाहिए कि खजाना मिल गया!
(क) प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए!
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए!
(ग) सामान्यता से अंत तक सामान्य तथा लोग व्यक्ति
में क्या देख कर उससे मित्रता कर लेते हैं
उत्तर-
(अ) प्रस्तुत गद्दावतरण आचार्य
रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित एवं हमारी पाठ् य -पुस्तक 'हिंदी' के' गद्य खंड' में संकलित
मित्रता नामक निबंध से अवतरित हैं!
विशेष -इस पाठ के शेष सभी गद्यांशो की व्याख्या में यही संदर्भ प्रयुक्त होगा!
(ब )रेखांकित अंश की व्याख्या- शुक्ला जी कहते हैं कि मित्र बनाते समय हमें
है! सोचना चाहिए कि जिस व्यक्ति को हम मित्र बना रहे हैं उस व्यक्ति को मित्र बना कर
क्या हम अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं !क्या उस व्यक्ति के अंदर वे सभी
गुण विद्यमान जिनकी हमें अपने जीवन के लक्ष्य को पाने में आवश्यकता है !यदि व्यक्ति
को अविश्वास करने योग्य मिल जाता है !तो उसे
एक ऐसा साधन मिल जाता है! जो आत्मविश्वास के कारण कार्य को सरल बना देता है! एक प्राचीन
विद्वान का वचन है !कि विश्वास मित्र हमें पग-पग पर संकेत करता है! विश्वासपात्र मित्र
भाग्यशाली लोगों को ही प्राप्त होता है !क्योंकि ऐसा मित्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र
में रक्षा करता है !जिस व्यक्ति को ऐसा मित्र मिल जाए उसे समझना चाहिए कि उसे कोई बड़ा
संचित धन मिल गया है!
(स) सामान्यतया लोग किसी व्यक्ति का हंसमुख चेहरा उसके बात करने का तरीका
उसकी चालाकी उसकी निर्भीकता आदि गुणों को देखकर ही उससे मित्रता कर लेते है!
2- विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषध है|हमें
अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए |कि वे उत्तम संकल्पों से हमें दृढ़ करेंगे ,दोषों
और त्रुटियों से हमें बचाएंगे ,हमारे सत्य ,पर पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट
करेंगे ,जब हम के पर्व पर रखेंगे तब हम हमें
संचेत करेंगे जब हम हतोत्साहित होंगे तब वे हमें उत्साहित करेंगे |सारांश यह है कि
वह हमें उत्तमता पूर्वक का पूरा जीवन निर्वाह करने में हर तरह से सहायता देंगे |सच्ची
मित्रता में उत्तम से उत्तम वेद की निपुणता और परख होती है अच्छी सी अच्छी माता का
सा धैर्य और कोमलता होती है मित्रता |करने का प्रत्येक पुरुष को करना चाहिए और कोमलत
होती है ऐसी मित्रता करने का प्रयत्न करना चाहिए/
(क) - प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए|
(ख) - रेखांकित अंशों की व्याख्या
कीजिए|
(ग) 1- व्यक्ति को अपने मित्रों से कैसी उम्मीद रखनी चाहिए|
2- एक सच्चा मित्र किसे कह सकते हैं|
उत्तर-
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या- आचार्य शुक्ल जी का कहना है| कि जिस प्रकार
अच्छी औषध आपके शरीर को अनेक प्रकार के रोगों से बचाकर स्वस्थ बना देती है |उसी प्रकार
विश्वसनीय मित्र उनके बुराइयों से बचा कर हमारे जीवन को उन्नत तथा सुंदर बनाता हैहमारा
मित्र ऐसा होना चाहिए जिस पर हमें यह विश्वास हो कि हम वह हमें सदा उत्तम कार्यों में
लगाएगा हमारे मन में अच्छे विचारों को उत्पन्न करेगा बुराइयों और गलतियों से हमें बचाता
रहेगा! हमसे सच और मर्यादा के प्रति प्रेम को विकसित करेगा उनमें किसी तरह की कमी नहीं
आने देगा यदि हम बुरे मार्ग पर चलेंगे तो वह हमें उस से हटाकर सन्मार्ग पर चलने की
प्रेरणा देगा! और जब कभी हमें उद्देश्यों के प्रति निराशा उत्पन्न होगी तो वह आशा का
संचार कर अच्छे कार्यों के प्रति हमारा उत्साह बढ़ाएगा !निष्कर्ष रूप मैं कहा जा सकता
है !कि विश्व स्वास्थ्य मित्र हमें गरिमा से जीवनयापन करने में प्रत्येक संभव सहायता
प्रदान करेगा जिससे हम सुविधा एवं सम्मान पूर्वक जी सके|
रेखांकित अंश की व्याख्व्या- आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का कहना है कि जिस
तरह कुशल वेद नाडी देखकर तत्काल रोक का पता
लगा लेता है |उसी प्रकार सच्चा मित्र हमारे गुणों और दोषो को परख लेता है |जिस प्रकार
अच्छी माता धैर्य के साथ सभी कष्टों को सहन कर मधुर व्यवहार करती है उसी प्रकार सच्चा
मित्र अपने मित्र को बड़े धैर्य पूर्वक कुमार से हटाकर इसने के साथ सन्मार्ग पर लगाता
है |अतः हमें ऐसा मित्र चुनना चाहिए जिस पर हमें यह विश्वास हो कि वह हमें कुमार से
हटाकर सु मार्ग की ओर ले आएगआएग|
(ग) 1- व्यक्ति को मित्रों से यह उम्मीद रखनी चाहिए |कि वह उन्हें उत्तम
कार्यों की ओर प्रगति करेंगे |मन में अच्छे विचारों को उत्पन्न करेंगे बुराइयों और
गलतियों से उन्हें बचाएंगे सत्य पवित्रता और मर्यादा के प्रति प्रेम और विकसित करेंगे
सर मार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे तथा निर उत्साहित होने पर उत्साहित करेंगे|
2- हम ऐसे मित्र को सच्चा मित्र कह सकते हैं
|जो हमें उत्तम संकल्पों से दृढ़ करेगा बुराइयों और त्रुटियों से हमें बचाएगा |हमसे
सत पवित्रता और अब मर्यादा रूपी मानवीय मूल्यों को करेगा |बुरे मार्ग पर चलने से हमें
रोकेगा और सदैव उत्साहित करेगा|
Roshani kushwaha
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