कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 4 भूमि संसाधन एवं विकास / up board class 10 social science chapter 4 NCERT notes

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कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 4 भूमि संसाधन एवं विकास / up board class 10 social science chapter 4 NCERT notes

कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 4 भूमि संसाधन एवं विकास / up board class 10 social science chapter 4 NCERT notes


यूपी बोर्ड एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 4 भूमि संसाधन एवं विकास 





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यूपी बोर्ड कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 4 संसाधन एवं विकास


up board class 10 social science chapter 4 sansadhan avm vikas





इकाई 2 : समकालीन भारत-2 (भूगोल)


अध्याय 1 संसाधन एवं विकास





याद रखने योग्य मुख्य बिन्दु


1• हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है


जो आर्थिक रूप से संभाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक संसाधन है।


2• संसाधनों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है


(क) उत्पत्ति के आधार पर – जैव और अजैव


(ख) समाप्यता के आधार पर नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य


 (ग) स्वामित्व के आधार पर व्यक्तिगत सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय


(घ) विकास के स्तर के आधार पर संभावी विकसित भंडार और संचित कोष 



3• एजेंडा 21 एक घोषणा है जिसे 1992 में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन के तत्वावधान में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा

स्वीकृत किया गया था। इसका उद्देश्य भूमंडलीय सतत् पोषणीय विकास हासिल करना है।


4● भू-उपयोग को निर्धारित करने वाले तत्वों में भौतिक कारक: जैसे- भू-आकृति जलवायु और मृदा के प्रकार तथा मानवीय कारक: जैसे – जनसंख्या घनद


5.प्रौद्योगिक क्षमता, संस्कृति और परंपरा इत्यादि सम्मिलित हैं। - हमारे देश में राष्ट्रीय वन नीति (1952) द्वारा निर्धारित वनों के अंतर्गत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र होना चाहिए जिसकी तुलना में वन के अंतर्गत क्षेत्र काफी कम है।


6• मृदा बनने की प्रक्रिया को निर्धारित करने वाले तत्वों, उनके रंग, गहराई, गठन, आयु व रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर मृदा को जलोद काली मिट्टी लेटराइट मिट्टी, मत्स्थलीय मुढा ताल और पीली मिट्टी के रूप में विभाजित किया जाता है।






महत्त्वपूर्ण शब्दावली


1●संसाधन प्रकृति से प्राप्त विभिन्न वस्तुएँ जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जाती है और जिनको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है। संसाधन कहलाती हैं।




2.जैव संसाधन-वे संसाधन जो जैवमंडल से प्राप्त होते हैं और जिनमें जीवन व्याप्त है जैसे मनुष्य, वनस्पति जगत, प्राणि जगत, मत्स्य जीवन,आदि जैव संसाधन कहलाते हैं।





3.अजैव संसाधन संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बनते हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं जैसे-चट्टाने, धातुएँ आदि।


4• नवीकरणीय संसाधन – जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत किया जा सकता है या पुनः उपयोगी बनाया जा स है. उन्हें नवीकरणीय संसाधन कहते हैं, जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन व वन्य जीवन 




5.अनवीकरणीय संसाधन जो एक बार प्रयोग करने पर समाप्त हो जाते हैं. अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। इन संसाधनों का विकास एवं लंबे भू-वैज्ञानिक अन्तराल में होता है। खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण है। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं।



6 • राष्ट्रीय संसाधन-तणनीकी तौर पर देश में पाए जाने वाले सभी संसाधन राष्ट्रीय है। देश की सरकार व्यक्तिगत संसाधनों को भी आम जनता के हित में अधिगृहीत कर सकती है। खनिज पदार्थ, जल संसाधन, वन, वन्य जीवन, समस्त भू क्षेत्र, महासागरीय क्षेत्र व इसमें पाए आने वाले संसाधन राष्ट्र की संपता है।


7• सुमाली साधन – ये वे संसाधन हैं जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं, किंतु इनका उपयोग नहीं किया गया है, जैसे- राजस्थान और गुजरात में पवन और तौर ऊर्जा के संभावी संसाधन विद्यमान है।


8●विकसित संसाधन-संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित कहलाते हैं। 



9.भंडार– पर्यावरण में उपलब्ध ये पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परंतु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में उसकी पहुँच से बाहर है.

भंडार कहलाते हैं। 



10● संसाधन संरक्षण संसाधनों का न्यायसंगत और योजनाबद्ध प्रयोग जिससे संसाधन व्यर्थ न आएँ, संसाधन संरक्षण कहलाता है।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1.भूमि एक संसाधन है।



(क) प्राकृतिक


(ख) मानव-निर्मित


(ग) सौर ऊर्जा से निर्मित


(घ) इनमें से कोई नहीं


उत्तर

(क) प्राकृतिक




प्रश्न 2.निम्नलिखित में से एक मिट्टी का प्रकार नहीं है -


(क) काली


(ख) पीली


(ग) लेटराइट


(घ) सीमेन्ट


उत्तर

(घ) सीमेन्ट




प्रश्न 3. रियो-डी-जेनेरो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन का आयोजन किस वर्ष हुआ था?


 (क) वर्ष 1972 


(ख) वर्ष 1992 


(ग) वर्ष 1979 


(घ) वर्ष 1998



उत्तर-


(ख) वर्ष 1992


प्रश्न 4.निम्न में से कौन अजैवीय संसाधन है?


(क) चट्टानें 


(ख) पशु


(ग) पौधे


(घ) मछलियाँ


उत्तर


(क) चट्टानें


प्रश्न 5 .निम्नलिखित में से किस राज्य में काली मिट्टी पाई जाती है?



(क) झारखण्ड


 (ख) गुजरात


(ग) राजस्थान


(घ) बिहार 


उत्तर


(ख) गुजरात


प्रश्न 6 पर्वतों पर मृदा अपरदन का साधन है


(क) पवन


(ग) जल


(घ) पशुचारण


उत्तर-


(ख) हिमनद


प्रश्न 7.लाल-पीली मिट्टी पाई जाती है


(क) दक्कन के पठार में


(ख) मालवा प्रदेश में


(ग) ब्रह्मपुत्र घाटी में


(घ) थार रेगिस्तान में


उत्तर

(क) दक्कन के पठार में


प्रश्न 8.पंजाब में भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण क्या है?



(क) गहन खेती


(ग) अधिक सिंचाई


(ख) वनोन्मूलन


(घ) अति पशुचारण


उत्तर-


(ग) अधिक सिंचाई



प्रश्न 9.निम्नलिखित में से कौन-सा नवीकरण योग्य संसाधन नहीं है?



(क) पवन ऊर्जा


 (ख) जल


(ग) जीवाश्म ईंधन


(घ) वन


उत्तर-


(ग) जीवाश्म ईंधन



प्रश्न 10.कपास की खेती के लिए कौन-सी मृदा उपयुक्त है? 


(क) काली मृदा


(ख) लाल मृदा


(ग) जलोढ़ मृदा


(घ) लेटराइट मृदा



उत्तर

(क) काली मृदा




अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक


प्रश्न 1.भारत में सबसे अधिक कौन-सी मिट्टी पाई जाती है, इसका निर्माण किस प्रकार हुआ है?


उत्तर- भारत में सबसे अधिक जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, इसका निर्माण नदियों द्वारा लाए गए अवसादों से हुआ है। यह बहुत अधिक उपजाऊ तथा गहन कृषि योग्य होती है।


प्रश्न 2.दक्षिण भारत के पठारी भागों के दक्षिणी और पूर्वी भागों में आग्नेय चट्टानों पर कम वर्षा वाले भागों में कौन-सी मिट्टी पाई जाती है? इस मिट्टी की दो विशेषताएँ बताइए।


उत्तर- दक्षिण भारत के पठारी भागों के दक्षिणी और पूर्वी भागों में लाल एवं पीली मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी में लोहा, ऐलुमिनियम और चूना पर्याप्त मात्रा में होता है। फॉस्फोरस और वनस्पति का अंश कम होता है।


प्रश्न 3.किन आधारों पर भारत की मृदाओं को बाँटा जा सकता है?


उत्तर- मृदा बनने की प्रक्रिया को निर्धारित करने वाले तत्त्वों; उनके रंग, गहराई, गठन, आयु व रासायनिक और भौगोलिक गुणों के आधार पर भारत की मृदाओं को अनेक प्रकारों में बाँटा जा सकता है।




प्रश्न 4. भारत में कौन-कौन सी मृदाएँ पाई जाती हैं? 


उत्तर भारत में जलोढ़ मृदा, काली मृदा, लाल व पीली मृदा, लेटराइट मृदा, मरुस्थली मृदा और वन मृदा पाई जाती हैं।


प्रश्न 5.चादर अपरदन किसे कहते हैं?


उत्तर कई बार जल विस्तृत क्षेत्र को ढके हुए ढाल के साथ नीचे की ओर बहता है, ऐसी स्थिति में इस क्षेत्र की ऊपरी मृदा घुलकर जल के साथ बह जाती है। उसे चादर अपरदन कहा जाता है।


प्रश्न 6.पवन अपरदन किसे कहते हैं?


उत्तर- पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।



प्रश्न 7. वन मृदा की दो विशेषताएँ बताइए। 


उत्तर- वन मृदा की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


(i) नदी घाटियों में ये मृदाएँ दोमट और सिल्टदार होती हैं परंतु ऊपरी •ढालों पर इनका गठन मोटे कणों का होता है।


(ii) हिमालय के हिम क्षेत्रों में ये अधिसिलिक तथा ह्यूमस रहित होती हैं।


 प्रश्न 8. मरुस्थलीय मृदा की विशेषताएँ बताइए।


उत्तर- मरुस्थलीय मृदा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं


(i) मरुस्थलीय मृदाओं का रंग लाल और भूरा होता है।


(ii) ये मृदाएँ आमतौर पर रेतीली और लवणीय होती हैं।


(iii) मृदाओं में ह्यूमस और नमी की मात्रा कम होती है। 



प्रश्न 9. तीन राज्यों के नाम बताइए जहाँ काली मृदा पाई जाती है। इस पर मुख्य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है?


उत्तर- काली मृदा का रंग काला होता है। इसे रेगर मृदा भी कहते है। यह लावाजनक शैलों से बनती है। यह मृदा महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार में पाई जाती है। काली मृदा कपास की खेती के लिए उचित समझी जाती है। इसे काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है।


प्रश्न 10. जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं? कुछ उदाहरण दीजिए।


उत्तर- जैव संसाधन-वे संसाधन जिनकी प्राप्ति जीवमंडल से होती है और जिनमें जीवन व्याप्त होता है; जैव संसाधन कहलाते हैं; जैसे—मनुष्य, वनस्पति जगत, प्राणी जगत्, पशुधन तथा मत्स्य जीवन आदि। अजैव संसाधन-वे सारे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं; जैसे-चट्टानें और धातुएँ।




लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक




प्रश्न1. नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधनों में अंतर स्पष्ट कीजिए।


उत्तर नवीकरणीय संसाधन-वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरण, योग्य अथवा पुनः पूर्ति योग्य संसाधन कहा जाता है। उदाहरणार्थ- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन व वन्य जीवन। इन संसाधनों को सतत अथवा प्रवाह संसाधनों में विभाजित किया गया है।


अनवीकरणीय संसाधन-इन संसाधनों का विकास एक लंबे भू-वैज्ञानिक अंतराल में होता है। खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण हैं। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं। इनमें से कुछ संसाधन जैसे धातुएँ पुनः चक्रीय हैं और पेट्रोल, डीजल जैसे कुछ संसाधन अचक्रीय हैं। वे एक बार के प्रयोग के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।


प्रश्न 2. संभावी संसाधन तथा विकसित संसाधन में अंतर बताइए।


 उत्तर- संभावी संसाधन-वे संसाधन जो किसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं। परन्तु इनका उपयोग नहीं किया गया है। उदाहरण के तौर पर भारत के पश्चिमी भाग, विशेषकर राजस्थान और गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की अपार संभावनाएँ हैं। परंतु इनका सही ढंग से विकास नहीं हुआ है।


विकसित संसाधन-वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास प्रौद्योगिकी और उनकी संभाव्यता के स्तर पर निर्भर करता है।


प्रश्न 3. लाल मृदा और लेटराइट मृदा में अंतर स्पष्ट कीजिए।


उत्तर लाल मृदा- इस मृदा में लोहे की मात्रा अधिक होने के कारण इसका रंग लाल होता है। यह मृदा तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड में पाई जाती है। इसका विकास पठारों पर पाये जाने वाले शैलों से जलवाष्प परिवर्तनों के प्रभाव से होता है। यह मृदा उर्वर होती है और कृषि योग्य होती है।


लेटराइट मृदा – यह मृदा पहाड़ी या ऊँची समतल भूमि में पाई जाती है। इसकी ऊपर की तह प्रायः सख्त होती है। यह मृदा गर्म और अधिक वर्षा वाली जलवायु में पाई जाती है और इसका निर्माण निक्षालन क्रिया से होता है। इसमें बॉक्साइट और ऐलुमिनियम ऑक्साइड अधिक होता है। लेटराइट मृदा पर अधिक मात्रा में खाद और रासायनिक उर्वरक डालकर खेती की जा सकती है।


प्रश्न 4. मृदा अपरदन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।


या मृदा अपरदन क्या है?


उत्तर- भूमि की ऊपरी परत के हट जाने की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन का सबसे पहला कारण तेज बहने वाला जल तथा तेज बहने वाली पवनें हैं। ये दोनों मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं और भूमि को कृषि के लिए अनुपयोगी बना देते हैं। कुछ मानवीय कारक भी मृदा अपरदन को बढ़ावा देते हैं। वे अपने भवन निर्माण कार्यों से प्रेरित होकर रोड़ी, बजरी, संगमरमर, बदरपुर आदि प्राप्त करने की इच्छा से छोटी-बड़ी पहाड़ियों को गहरे खड्डों में परिवर्तित कर देते हैं। मृदा अपरदन के कारण मृदा के उपजाऊपन पर बड़ा विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।



प्रश्न 5. संसाधन नियोजन क्या है? संसाधन नियोजन की प्रक्रिया के सोपानों (चरणों) का उल्लेख कीजिए।


उत्तर संसाधन नियोजन का अर्थ-संसाधन नियोजन वह कला अथवा तकनीक है, जिसके द्वारा हम अपने संसाधनों का प्रयोग विवेकपूर्ण ढंग से करते हैं। संसाधन नियोजन की प्रक्रिया-संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है।


जिसमें निम्नलिखित चरण हैं


(i) देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान और उसकी तालिका तैयार करना। इसके लिए क्षेत्रीय सर्वेक्षण के साथ मानचित्र बनाना तथा संसाधनों की गुणवत्ता एवं मात्रात्मक प्रवृत्तियों का अनुमान लगाना तथा मापन करना है।


 (ii) संसाधन विकास योजनाएँ लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी,कौशल और संस्थागत नियोजन ढाँचा तैयार करना।


(iii) संसाधन विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजनाओं में समन्वय स्थापित करना।



प्रश्न 6. संसाधनों के दुरुपयोग से कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?


 उत्तर- संसाधनों के दुरुपयोग से उत्पन्न मुख्य समस्याएँ निम्नवत् हैं 


(i) इससे संसाधनों का ह्रास हुआ है।


(ii) ये समाज के कुछ ही लोगों के हाथ में आ गए हैं, जिससे समाज दो हिस्सों— संसाधन संपन्न व संसाधनहीन अर्थात् अमीर व गरीब में बँट गया है।


(iii) संसाधनों के अंधाधुंध शोषण से वैश्विक पारिस्थितिकी संकट उत्पन्न मी हो गया है; जैसे— भूमंडलीय तापन, ओजोन परत अवक्षय, पर्यावरण की प्रदूषण और भूमि-निम्नीकरण आदि ।



प्रश्न.7 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संसाधन संरक्षण के लिए क्या-क्या प्रयास किए गए हैं? 



उत्तर- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 'संसाधन संरक्षण' के लिए निम्न प्रयास किए गए हैं


(i) 1968 ई. में 'क्लब ऑफ रोम' ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत की।


(ii) 1974 में शुमेसर ने अपनी पुस्तक 'स्माल इज ब्यूटीफुल में इस विषय पर गांधी जी के दर्शन की पुनरावृत्ति की।


(iii) 1987 में ब्रुन्डटलैंड आयोग रिपोर्ट द्वारा वैश्विक स्तर पर संसाधन संरक्षण में मूलाधार योगदान किया गया। इसने 'सतत् पोषणीय विकास' की संकल्पना प्रस्तुत की और संसाधन संरक्षण की वकालत की। यह रिपोर्ट बाद में 'हमारा साझा भविष्य' शीर्षक से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई।


(iv) इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण योगदान रियो डी जेनेरो, ब्राजील में 1992 में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन द्वारा किया गया।


प्रश्न 8. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? 


उत्तर पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर जलोढ़ मृदा पाई जाती है। इस जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—


(i) यह मृदा हिमालय के तीन महत्त्वपूर्ण नदी तंत्रों - सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गए निक्षेपों से बनी है।


(ii) जलोढ़ मृदा में रेत, सिल्ट और मृत्तिका के विभिन्न अनुपात पाए जाते हैं। जैसे-जैसे हम नदी के मुहाने से घाटी में ऊपर की ओर जाते हैं, मृदा के कणों का आकार बढ़ता चला जाता है।


(iii) जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है। अधिकतर जलोढ़ मृदाएँ पोटाश, फॉस्फोरस और चूनायुक्त होती हैं जो इनको गन्ने, चावल, गेहूँ और अन्य अनाजों और दलहन फसलों की खेती के लिए उपयुक्त बनाती हैं। अधिक उपजाऊपन के कारण जलोढ़ मृदा वाले क्षेत्रों में गहन कृषि की जाती है।



प्रश्न 8. भूमि के हास (निम्नीकरण) का क्या अर्थ है? भूमि हास के उत्तरदायी कारण क्या हैं?


या कोई दो मानवीय क्रियाएँ लिखिए जो भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी हैं। 


उत्तर- मिट्टी के कटाव अथवा भू-क्षरण का अर्थ


मिट्टी के कटाव का अर्थ है— भूमि की उर्वरा शक्ति का नष्ट होना। दूसरे शब्दों में, मिट्टी की ऊपरी परत के कोमल तथा उपजाऊ कणों को प्राकृतिक कारकों (जल, नदी, वर्षा तथा वायु) या प्रक्रमों द्वारा एक स्थान से हटाया जाना ही भूमि का ह्रास (कटाव) कहलाता है। यह कटाव अत्यधिक उपजाऊ भूमि को शीघ्र ही बंजर बना देता है। भारत में लगभग एक-चौथाई कृषि-भूमि, भूमि कटाव से प्रभावित है। असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्य भूमि-कटाव की समस्या से अत्यधिक प्रभावित हैं।


भूमि (मिट्टी) कटाव के प्रकार मिट्टी का कटाव निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है—


1. धरातलीय या परतदार कटाव-तेज मूसलाधार वर्षा के कारण जब धरातल का ऊपरी उत्पादक भाग तेज पानी से बह जाता है, तब उसे धरातलीय या परतदार कटाव कहते हैं।


2. कछार वाला कटाव – नदियाँ अथवा तेज बहने वाली जल-धाराओं के द्वारा जो कटाव होता है, उसे कछार वाला कटाव कहते हैं। इसमें मिट्टी कुछ गहराई तक कट जाती है तथा भूमि सतह पर नालियाँ व गड्ढे बन जाते


3. वायु का कटाव-तेज मरुस्थलीय हवाओं के द्वारा धरातल की सतह की उपजाऊ मिट्टी उड़ जाती है जो उड़कर अन्य स्थानों पर ऊँचे-ऊँचे मिट्टी के टीले बना देती है।


मिट्टी के कटाव के कारण


मिट्टी के कटाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं


(i) तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा 


(ii) नदियों का तीव्र बहाव एवं उनमें उत्पन्न बाढ़


(iii) वनों का अत्यधिक विनाश


(iv) खेतों को जोतकर खुला छोड़ देना। 


(v) तेज हवाएँ चलना।


(vi) कृषि भूमि पर पशुओं द्वारा अनियन्त्रित चराई।


(vii) खेतों पर मेड़ों का न होना।


(viii) भूमि का अत्यधिक ढालू होना।


(ix) पानी के निकास की उचित व्यवस्था न होना।


(x) कृषि करने के दोषपूर्ण ढंग; जैसे-ढालू भूमि पर सीढ़ीदार जुताई न करना, फसलों के हेर-फेर के दोषपूर्ण ढंग इत्यादि।


प्रश्न 10. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?


उत्तर- मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं। विभिन्न मानवीय तथा प्राकृतिक कारणों से मृदा अपरदन होता रहता है। पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जाने चाहिए


(i) पर्वतीय ढालों पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती है। इसे समोच्च जुताई कहा जाता है।


(ii) पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर अवनालिका अपरदन को रोका जा सकता है। पश्चिमी और मध्य हिमालय में सोपान अथवा सीढ़ीदार कृषि काफी विकसित है।


(iii) पर्वतीय क्षेत्रों में पट्टी कृषि के द्वारा मृदा अपरदन को रोका जाता है। इसमें बड़े खेतों को पट्टियों में बाँटा जाता है। फसलों के बीच में घास की पट्टियाँ उगाई जाती हैं। ये पवनों द्वारा जनित बल को कमज़ोर करती हैं।


(iv) पर्वतीय ढालों पर बाँध बनाकर जल प्रवाह को समुचित ढंग से खेती के काम में लाया जा सकता है। मृदारोधक बाँध अवनालिकाओं के फैलाव को रोकते हैं।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 अंक


प्रश्न 1.स्वामित्व के आधार पर संसाधनों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- स्वामित्व के आधार पर संसाधनों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है


1. व्यक्तिगत संसाधन-संसाधन निजी व्यक्तियों के स्वामित्व में भी होते हैं। बहुत-से किसानों के पास सरकार द्वारा आवंटित भूमि होती है जिसके बदले में वे सरकार को लगान चुकाते हैं। गाँव में बहुत-से लोग भूमि के स्वामी भी होते हैं और शहरों में लोग भूखंडों, घरों व अन्य प्रकार की सम्पत्ति के मालिक होते हैं। बाग, चरागाह, तालाब और कुँओं का जल आदि संसाधनों के निजी स्वामित्व के कुछ उदाहरण हैं।


2. सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन-ये संसाधन समुदाय के सभी सदस्यों को उपलब्ध होते हैं। गाँव की चारण भूमि, श्मशान भूमि, तालाब और नगरीय क्षेत्रों के सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्थल और खेल के मैदान। वहाँ रहने वाले सभी लोगों के लिए उपलब्ध हैं।


3. राष्ट्रीय संसाधन-तकनीकी तौर पर देश में पाए जाने वाले सभी संसाधन राष्ट्रीय हैं। देश की सरकार को कानूनी अधिकार है कि वह व्यक्तिगत संसाधनों को भी आम जनता के हित में अधिगृहित कर सकती है। सभी खनिज पदार्थ, जल संसाधन, वन तथा वन्य जीवन,राजनीतिक सीमाओं के अंदर सम्पूर्ण भूमि और 12 समुद्री 'मील' तक महासागरीय क्षेत्र व इसमें पाए जाने वाले संसाधन राष्ट्र की संपदा हैं।


4. अंतर्राष्ट्रीय संसाधन-कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ संसाधनों को नियंत्रित करती हैं। तट रेखा से 200 किमी की दूरी से पूरे खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी देश का अधिकार नहीं है। इन संसाधनों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता।


प्रश्न 2.प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपयोग कैसे हुआ है?


उत्तर- किसी क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता अत्यन्त आवश्यक है, परन्तु प्रौद्योगिकी और संस्थाओं में तद्नुरूप परिवर्तन के अभाव में मात्र संसाधनों की उपलब्धता से विकास को सम्भव नहीं किया जा सकता है। देश में बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जो संसाधनों में समृद्ध होते हुए भी प्रौद्योगिकी के अभाव में संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं कर पाए और विकास में पिछड़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखण्ड जल एवं वन संसाधनों की दृष्टि से सम्पन्न राज्य है किन्तु उचित प्रौद्योगिकी के अभाव से इन संसाधनों का यहाँ पर्याप्त उपयोग नहीं किया जा रहा है, जबकि यही संसाधन एवं भौगोलिक परिस्थिति स्विट्जरलैण्ड के पास हैं और वहाँ इनको पर्यटन के रूप में ही नहीं, आर्थिक विकास की दृष्टि से भी प्रौद्योगिकी उपयोग से विकसित किया गया है। अत: यह कहना उचित है कि प्रौद्योगिक आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है तथा इन दोनों के द्वारा संसाधनों का अधिक मात्रा में उपयोग होने लगता है। वास्तव में प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास दोनों ही संसाधनों के उचित उपयोग के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। विकसित देशों के पास यह दोनों ही उपलब्ध हैं। इसलिए ये देश अपने ही संसाधनों का नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों के संसाधनों को भी आयात करके उनका उपयोग कर रहे हैं।



प्रश्न 3. मृदा के निर्माण में कौन-से चार कारक सहायक होते हैं?


उत्तर- मृदा के निर्माण की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। उदाहरण के लिए, धरती की ऊपरी 2 सेंटीमीटर की परत निर्मित होने में हज़ारों वर्ष लग जाते हैं। मृदा के निर्माण और उसकी उर्वरता के विकास के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं; इनमें शैल, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, स्थानीय स्थलाकृति, जलवायु और एक लंबी अवधि आदि विशेषकर उल्लेखनीय हैं।


(i) सबसे पहला कारक शैल है जिनसे मृदा के लिए उचित सामग्री मिलती है।


(ii) जलवायु - जलवायु शैलों को एक लंबी अवधि में छोटे-छोटे टुकड़ों और कणों में बदल देती है।


(iii) पेड़-पौधे-पेड़-पौधों की जड़ें शैलों में घुसकर उन्हें तोड़-फोड़ देती हैं।


(iv) अत्यंत चराई-पशु भी निरंतर चरने की क्रिया से इन शैलों में अनेक परिवर्तन ला देते हैं।


(v) वर्षा-निरंतर होने वाली वर्षा का जल भी इन शैलों के छिद्रों में घुसकर तोड़-फोड़ का कार्य करता है। एक लंबे समय तक अनेक कारकों के क्रियाशील रहने के कारण इन शैलों के कणों के टूटने की प्रक्रिया चलती रहती है जिससे धीरे-धीरे मृदा का निर्माण होता है। यह मृदा वायु, वर्षा आदि के प्रभाव के अधीन एक स्थान से दूसरे स्थानों पर निक्षेपित होती रहती है।


प्रश्न 4. मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है? मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिए।



उत्तर मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है। मृदा के बनने और अपरदन की क्रियाएँ आमतौर पर साथ-साथ चलती हैं। किंतु विभिन्न मानवीय क्रियाओं से मृदा अपरदन तेजी से होने लगता है। इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं


1. भौतिक कारक-मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी मुख्य भौतिक कारक निम्नलिखित हैं


(i) ढाल वाली भूमि पर अपरदन, समतल भूमि की अपेक्षा ज्यादा होता है।


 (ii) तीव्र व मूसलाधार वर्षा से मृदा अपरदन होता है। यह मृदा की ऊपरी परत को अपने साथ बहाकर ले जाती है।


(iii) पवनें जब आँधी का रूप ले लेती हैं तो बहुत बड़ी मात्रा में मृदा उड़ाकर ले जाती हैं। शुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों में मृदा अपरदन का यह एक बड़ा कारक है।


2. मानवीय कारक – निम्नलिखित कुछ मानवीय कारकों को भी मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी माना जाता है—

(i) पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई से भूमि पर वनस्पति का आवरण समाप्त हो जाता है। इस स्थिति में मृदा पर जल और वायु का प्रभाव हाँ तीव्र होता है।



(ii) वृक्षों की जड़ें मृदा की रक्षा करती हैं। वनों के कटाव से मृदा अपरदन में तेजी आ गई हैं, क्योंकि पानी और पवनों के बहाव को वृक्ष कम कर सकते हैं।


(iii) कृषि के गलत तरीकों से भी मृदा अपरदन होता है। गलत ढंग से हल चलाने; जैसे-ढाल पर ऊपर से नीचे की ओर हल चलाने से वाहिकाएँ बन जाती हैं, जिसके अंदर से बहता पानी आसानी से मृदा का कटाव करता है।


(iv) खनिज पदार्थ निकालने के लिए खनन कार्य से भी मृदा अपरदन होता है।


(v) मनुष्य भवन निर्माण कार्य के लिए रोड़ी, बजरी, संगमरमर, बदरपुर आदि प्राप्त करने के लिए छोटी-बड़ी पहाड़ियों को गहरे खड्डों में परिणत कर देते हैं।



प्रश्न 5. मृदा अपरदन को रोकने के उपायों का वर्णन कीजिए।


उत्तर- मृदा अपरदन के कारण भूमि कृषि योग्य नहीं रहती, उसकी उपजाऊ शक्ति समाप्त हो जाती है। मृदा अपरदन को रोकना आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं


(i) वनारोपण या काफी मात्रा में पेड़ लगाने से मृदा अपरदन की प्रक्रिया रोकी जा सकती है। पेड़ों का बंजर भूमि तथा पहाड़ी ढालों पर लगाना अधिक लाभदायक सिद्ध होता है। इस ढंग से वायु अपरदन को भी रोका जा सकता है।


(ii) ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानांतर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की गति घटती है। इसे समोच्च जुताई कहा जाता है।


(iii) ढाल वाली भूमि पर सोपान बनाए जा सकते हैं। सोपान कृषि मृदा अपरदन को नियंत्रित करती है। पश्चिमी और मध्य हिमालय में सोपान अथवा सीढ़ीदार खेत काफी विकसित हैं।


(iv) बड़े खेतों को पट्टियों में बाँधकर फसलों के बीच में घास की पट्टियाँ उगाई जाती हैं। ये पवनों द्वारा जनित बल को कम करती हैं। इस तरीके की कृषि को पट्टी कृषि कहते हैं।


(v) पेड़ों को कतारों में लगाकर रक्षक मेखला बनाना भी पवनों की गति को कम करता है। इन रक्षक पट्टियों का पश्चिमी भारत में रेत के टीलों के स्थायीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।



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