Susangati ek vardan athva satsangati ka mahatva per nibandh//सत्संगति का महत्व अथवा संगति के लाभ पर निबंध

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Susangati ek vardan athva satsangati ka mahatva per nibandh//सत्संगति का महत्व अथवा संगति के लाभ पर निबंध

Susangati ek vardan athva satsangati ka mahatva per nibandh//सत्संगति का महत्व अथवा संगति के लाभ पर निबंध

सठ सुधरहिं सत्संगति पाई

अथवा


सत्संगति का महत्व

अथवा


सुसंगति के लाभ

अथवा


सुसंगति : एक वरदान 


भूमिका-यह संसार गुण व दोष दोनों से भरा पड़ा है विवेकी व्यक्ति सदैव गुणग्राही होता है और दोषों को त्याग देता है लेकिन मूर्ख व्यक्ति गुणों को छोड़ दोष ग्रहण करता है इस प्रकार सारे मनुष्य गुण व दोषों से भरे पड़े हैं मनुष्य पर गुण व दोषों का प्रभाव संगति से पड़ता है सज्जनों की संगति मैं गुण व दुर्जनो की संगति में दोष ही दोष मिलते हैं संगति का चर अचर अभी जीवन पर परस्पर प्रभाव पड़ता है हवा की गर्मी व ठंड की संगति पाकर वैसे ही बन जाती है अर्थात हम जिस की संगति मैं रहते हैं उसका हम पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है मानव समाज में सज्जन लोगों की संगति को सत्संगति कहते हैं और दुर्जन लोगों की संगति को कुसंगति ।

Susangati ek vardan athva satsangati ka mahatva per nibandh//सत्संगति का महत्व अथवा संगति के लाभ पर निबंध
Susangati ek vardan athva satsangati ka mahatva per nibandh//सत्संगति का महत्व अथवा संगति के लाभ पर निबंध



सज्जन के लक्षण-सभी विद्वान व धर्म ग्रंथ सज्जनों की संगति करने को कहते हैं इसलिए हमें जानना चाहिए कि सज्जनों की क्या पहचान है अर्थात संसार में सज्जन व दुर्जन में क्या अंतर है सज्जन लोग ज्ञान के भंडार होते हैं वे सदैव दूसरे के हित में लगे रहते हैं अपने जीवन को उन्नत बनाने के लिए सदैव परिश्रम पूर्वक शब्द कार्यों में जुटे रहते हैं।

वे संयम सत्य बोलते हैं और अपने निकट आने वाले में भी शब्द का संचार करते हैं सज्जन लोगों का  हृदय अत्यंत कोमल होता है वे दया की मूर्ति होते हैं वे दूसरों के दुख में दुखी वह दूसरों के सुख में सुखी होते हैं दूसरों की सहायता करने मैं उनका जीवन सलंग्न रहता है इसके विपरीत दुर्जन लोगों को दूसरों का अहित करने में आनंद आता है वह दूसरों के दुख को देख कर खुश होते हैं ईष्र्या, द्वेष, जलन ,क्रोध, छल और कपट उनके प्रमुख गुण होते हैं। 


सज्जनों की संगति के लाभ-सज्जनों की संगति से मनुष्य के जीवन में आमूल -चूल परिवर्तन हो जाता है बड़े-बड़े चोर डाकू भी सत्संगति मैं आकर संत बन जाते हैं रत्नाकर डाकू बाल्मीकि बन गए अंगुलिमाल डाकू बुद्ध के संपर्क मैं आकर एक संत बन गए इस प्रकार के कई उदाहरण मिलते हैं जो सत्संगति पाकर एकदम बदल गए बड़े-बड़े अपराधी आज भी सज्जन लोगों की संगति मैं आकर अपनी अपराध वृत्ति को त्याग देते हैं तुलसीदास जी ने कहा

"सठ सुधरहिं सत्यगति पाई। पारस परस कधातु सुहाई ।।"सज्जनों की संगति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि  वे अपनी संगति में आने वाले जन को अपने समान ही महान बना देते हैं जिनमें सारे अच्छे गुण होते हैं, वह सज्जन व्यक्ति होते हैं

विद्यालयों में परिश्रमी, लगनशील, विनम्र व मृदुभाषी बालक सज्जन होते हैं ऐसे बालक सदैव उन्नति की चरम सीमा को स्पर्श करते हैं ऐसे छात्रों की जो संगति करता है वह भी उन्हीं की तरह महान बन जाता है विद्यालय में भी हर प्रकार के छात्र होते हैं उन सब में परस्पर संगति का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है सज्जन विद्यार्थी सदैव  अच्छे अंको में पास होते हैं और विद्यालय में सबके प्रिय बने रहते हैं


उपसंहार-प्रत्येक व्यक्ति को अपने हित की बात सोचनी चाहिए हमेशा सत्संगति में होता है अच्छी संगति में जाकर दुर्जन व्यक्ति भी अच्छा बन जाता है जबकि दुर्जन की संगति में यदि गलती से कोई सज्जन व्यक्ति आ जाता है तो सज्जन व्यक्ति भी फस जाता है चारों के बीच में एक ईमानदार व्यक्ति को भी सब चोर ही कहेंगे तथा इमानदारो के बीच में चोर भी ईमानदार ही कहलाता है इसलिए कहा है

"संगति कीजै साधु की, हरे और की व्याधि। संगति बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि,"।


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