रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध / Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi
रानी लक्ष्मीबाई पर निबंधTable of contents-
1.परिचय
2.शिक्षा
3.देशभक्ति की भावना
4.विवाह
5.गंगाधर राव का निधन
6.विद्रोह
7.संघर्ष
8.ब्रिटिश सेना के साथ युद्ध
9.मृत्यु
10.उपसंहार
नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारे एक और नये आर्टिकल पर। आज की पोस्ट में हम आपको 'झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध (Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi') के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे एवं इस निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर पर भी परिचर्चा करेंगे। ये सभी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर एनसीईआरटी पैटर्न पर आधारित हैं। तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए। अगर पोस्ट अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में भी शेयर करिए।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर हिंदी में निबंध
"बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।"
1.परिचय- रानी लक्ष्मीबाई भारत की एक महान वीरांगना थी। उनका जन्म 19 नवंबर 1835 में काशी नगरी में एक मराठा ब्राह्मण परिवार में हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई के पिता जी का नाम मोरोपंत तांबे और माता जी का नाम भागीरथी बाई था। रानी लक्ष्मी बाई का असली नाम मणिकानिर्का था और सभी उन्हें प्यार से मनु कहते थे। रानी लक्ष्मी बाई के माता धर्म और संस्कृति परायण भारतीयता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थी । अतः इन्होने बचपन में मनुबाई को विविध प्रकार की धार्मिक, सांस्कृतिक और सौर्यपूर्ण गाथाये सुनाई थी। इससे बालिका मनु का मन और हृदय विविध प्रकार के उच्च और महान उज्ज्वल गुणों से परिपुष्ट होता गया ।
2.शिक्षा- स्वदेश प्रेम की भावना और वीरता की उच्छल तरंगे बार-बार मनु के ह्रदय से निकलने लगी। रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा की धनी थी, जिसे उनके पिता मोरोपन्त तांबे ने शुरुआत में ही भांप लिया था और उस दौर में जब लोग अपनी बेटियों की शिक्षा पर ज्यादा महत्व नहीं देते थे, तब उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को घर पर ही शिक्षा ग्रहण करवाई।
3.देशभक्ति की भावना - रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही बहुत बड़ी देशभक्त थी। और अपनी मातृभूमि एवं राज्य के प्रति उनका विशेष स्नेह था। इसके साथ ही एक वीर योद्धा की तरह निशानेबाजी, घेराबंदी, युद्ध की शिक्षा, सैन्य शिक्षा, घुड़सवारी, तीरंदाजी, आत्मरक्षा आदि की भी ट्रेनिंग दिलवाई, घुड़सवारी और अस्त्र-शस्त्र चलाना मनु के बचपन में प्रिय खेल थे । मनुबाई बेहद कम उम्र में ही शस्त्र विद्याओं में निपुण हो गई थी । बाद में एक साहसी योद्दा की तरह वे एक वीर रानी बनी और लोगों के सामने अपनी वीरता की मिसाल पेश की ।
4.विवाह- सन् 1842 में मनुबाई का विवाह झांसी के राजा के साथ हुआ। सन् 1851 में उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। झांसी के कोने-कोने में आनंद की लहर प्रवाहित हुई, लेकिन चार माह पश्चात उस बालक का निधन हो गया। सारी झांसी शोकसागर में डूब गई। राजा गंगाधर राव को तो इतना गहरा धक्का पहुंचा कि वे फिर स्वस्थ न हो सके और 21 नवंबर 1853 को चल बसे। हालांकि बाल विवाह की प्रथा के अनुरुप कर्तव्य परायण और स्वाभिमानी वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का विवाह 14 साल की छोटी सी उम्र में झांसी के महाराज गंगाधर राव के साथ करवा दिया गया। विवाह के बाद उनका नाम मनुबाई से बदलकर लक्ष्मीबाई रखा गया ।
5.गंगाधर राव का निधन -जिसके बाद उनके परिवार पर संकट के बादल छा गए। वहीं रानी लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव अपने पुत्र खोने का दुख नहीं सहन कर सके और उन्हें बीमारी ने घेर लिया। बीमारी ने विकराल रुप ले लिया और 21 नवंबर 1853 में वे दुनिय छोड़कर चले गए। यह रानी लक्ष्मीबाई के जीवन का सबसे कठिन समय था। अपने पुत्र को खोना और फिर पति की मौत से रानी लक्ष्मीबाई काफी आहत हुईं, लेकिन इस भयावह स्थिति में भी कभी कमजोर नहीं पड़ी और उन्होंने अपने राज्य का काम-काज संभालने का फैसला दिया । यद्यपि महाराजा का निधन महारानी के लिए असहनीय था, लेकिन फिर भी वे घबराई नहीं, उन्होंने विवेक नहीं खोया । राजा गंगाधर राव ने अपने जीवनकाल में ही अपने परिवार के बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र मानकर अंग्रेजी सरकार को सूचना दे दी थी। परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार ने दत्तक पुत्र को अस्वीकार कर दिया।रानी लक्ष्मीबाई के उत्तराधिकारी बनने पर क्रूर ब्रिटिश शासकों ने बहुत विरोध किया ।
स्वतंत्रता आंदोलन में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का योगदान
6.विद्रोह- 27 फरवरी 1854 को लार्ड डलहौजी ने गोद लेने की नीति के अंतर्गत दत्तकपुत्र को अस्वीकृत कर झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। सरकारी सूचना पाते ही रानी के मुख से यह वाक्य निकला, 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी। 7 मार्च 1854 को झांसी पर अंगरेजों का अधिकार हुआ। झांसी की रानी ने पेंशन अस्वीकृत कर दी व नगर के राजमहल में निवास करने लगीं।
यहीं से भारत की प्रथम स्वाधीनता क्रांति का बीज अंकुरित हुआ। अंग्रेजो की राज्य हड़प की नीति से उत्तरी भारत के नवाब और राजा-महाराजा असंतुष्ट हो गए और सभी में विद्रोह की आग भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने इसको स्वर्णावसर माना और क्रांति की ज्वालाओं को अधिक सुलगाया तथा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की योजना बनाई।
7.संघर्ष- भारत की जनता में विद्रोह की ज्वाला भभक गई। समस्त देश में सुसंगठित और सुदृढ रूप से क्रांति को कार्यान्वित करने की तिथि 31 मई 1857 निश्चित की गई, लेकिन इससे पूर्व ही क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित हो गई और 7 मई 1857 को मेरठ में तथा 4 जून 1857 को कानपुर में, भीषण क्रांति हुई। कानपुर तो 28 जून 1857 को पूर्ण स्वतंत्र हो गया। अंग्रेजों के कमांडर सर ह्यूरोज ने अपनी सेना को सुसंगठित कर विद्रोह दबाने का प्रयत्न किया।
8.ब्रिटिश सेना के साथ युद्ध - लक्ष्मीबाई पहले से ही सतर्क थीं और वानपुर के राजा मर्दनसिंह से भी इस युद्ध की सूचना तथा उनके आगमन की सूचना प्राप्त हो चुकी थी। 23 मार्च 1858 को झांसी का ऐतिहासिक युद्ध आरंभ हुआ। रानी लक्ष्मीबाई ने सात दिन तक वीरतापूर्वक झांसी की सुरक्षा की और अपनी छोटी-सी सशस्त्र सेना से अंग्रेजों का बड़ी बहादुरी से मुकाबला किया। रानी ने सामने से शत्रु का सामना किया और युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया।
वे अकेले ही अपनी पीठ के पीछे बेटे को कसकर घोड़े पर सवार हो, अंग्रेजों से युद्ध करती रहीं । बहुत दिन तक युद्ध का क्रम इस प्रकार चलना असंभव था। सरदारों का आग्रह मानकर रानी ने कालपी प्रस्थान किया। वहां जाकर वे शांत नहीं बैठीं।
उन्होंने नाना साहब और उनके योग्य सेनापति तात्या टोपे से संपर्क स्थापित किया और विचार-विमर्श किया। रानी की वीरता और साहस का लोहा अंग्रेज मान गए, लेकिन उन्होंने रानी का पीछा किया।
9.मृत्यु- दरअसल, ब्रिटिश सरकार के नियम के मुताबिक राजा की मौत के बाद अगर खुद का पुत्र हो तो उसे उत्तराधिकारी बनाया जाता है, नहीं तो उसका राज्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में मिला दिया जाता था। जिसके चलते रानी लक्ष्मीबाई को काफी संघर्ष करना पड़ा क्योंकि ब्रिटिश अधिकारी उनके राज्य झांसी को हथिया लेना चाहते थे । अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए उन्होंने " मैं अपनी झांसी न दूंगी" का घोषणा किया। 17 जून 1858 रानी लक्ष्मी बाई ने अपने जीवन की अंतिम लड़ाई किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में उन्होंने ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का मोर्चा संभाला।
10.उपसंहार- किंग्स रॉयल आयरिश के विरुद्ध युद्ध में महिलाएं भी शामिल हुई। हालांकि, इस लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह घायल हो गई, और कोटा के सराई पास वीरगति को प्राप्त हुईं। इस तरह रानी लक्ष्मीबाई तमाम संघर्षों का सामना करते हुए अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती रहीं और अंग्रेजों को अपनी बहादुरी और सैन्य शक्ति का एहसास करवाया उनके साहस और पराक्रम की तारीफ उनके दुश्मनों ने भी की थी। रानी लक्ष्मी बाई के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हमें जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। किसी भी नारी को कमजोर नहीं समझना चाहिए। अपनी मातृभूमि के लिए यदि अपने जीवन का बलिदान भी देना पड़े तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए।
FAQs
1.रानी लक्ष्मी बाई कौन थी? वह भारत में प्रसिद्ध क्यों है?
उत्तर-रानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी थी। झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा करते हुए अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध में अपने जीवन का बलिदान कर दिया था।
2.रानी लक्ष्मी बाई के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर- रानी लक्ष्मी बाई के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हमें जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। किसी भी नारी को कमजोर नहीं समझना चाहिए। अपनी मातृभूमि के लिए यदि अपने जीवन का बलिदान भी देना पड़े तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए।
3. रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम क्या था?
उत्तर- मनुबाई
4. रानी लक्ष्मीबाई का विवाह किसके साथ हुआ था?
उत्तर- झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ।
5. रानी लक्ष्मी बाई के माता पिता का क्या नाम था?
उत्तर-रानी लक्ष्मीबाई के पिता जी का नाम मोरोपंत तांबे और माता जी का नाम भागीरथी बाई था।
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