Up board live class- 10th hindi निबन्ध भारत में भारत में भ्रष्टाचार की समस्या/ या भ्रष्टाचार देश के विकास में बाधक है ।
निबंध
भारत में भ्रष्टाचार की समस्या
या
भ्रष्टाचार देश के विकास में बाधक है
(2011,12,13,14,17)
प्रस्तावना - भ्रष्टाचार देश की संपत्ति का आपराधिक दुरुपयोग है! भ्रष्टाचार का अर्थ - है भ्रष्ट आचरण अर्थात नैतिकता और कानून के विरुद्ध आचरण जब व्यक्ति को न तो अंदर की लज्जा या धर्माधर्म का ज्ञान करता है (जो अनैतिकता है) और ना बाहर का डर रहता है (जो कानून की अवहेलना है तो वह संसार में जगाने से जगन प्राप्त कर सकता है, अपने देश जातिवाद समाज की बड़ी से बड़ी हानि पहुंचा सकता है और मानवता को भी कलंकित कर सकता है! दुर्भाग्य से आज भारत इस भ्रष्टाचार रूपी सहस्त्र मुख वाले दानव के जबड़ों में फसकर तेजी से विनाश की ओर बढ़ता जा रहा है!
भ्रष्टाचार की विविध रूप - पहले किसी घोटाले की बात सुनकर देशवासी चौक जाते थे ,आज नहीं चौकेते! पहले घोटालों के आरोपी लोग लज्जा के कारण अपना पद छोड़ देते थे पर आज पकड़े जाने पर भी वे शान से जेल जाते हैं, जैसे किसी राष्ट्र सेवा के मिशन पर जा रहे हो ! इसीलिए समूचे प्रसन्न तंत्र में भ्रष्ट आचरण धीरे-धीरे सामान्य बनता जा रहा है आज भारतीय जीवन का कोई भी क्षेत्र सरकारी या गैरसरकारी सर्वजनिक या निजी ऐसा नहीं जो भ्रष्टाचार से अछूता हो! यद्यपि भ्रष्टाचार इतने अगणित रूपों में मिलना है कि उसे वर्गीकृत करना सरल नहीं है फिर भी उसे मुक्ता निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है!
(क) राजनीतिक भ्रष्टाचार - भ्रष्टाचार का सबसे प्रमुख रूप राजनीति है जिसकी छत्रछाया में भ्रष्टाचार के सारे रूप पनपते और संरक्षण पाते हैं संसार में ऐसा कोई भी कुक्रतय अनाचार या हथकंडा नहीं है जो भारतवर्ष में चुनाव जीतने के लिए ना अपनाया जाता वह देश की वर्तमान दुर वस्था के लिए ये भ्रष्ट राजनेता की ही दोषी है जिनके कारण अनेकानेक घोटाले हुए हैं!
(ख) प्रशासनिक भ्रष्टाचार - इसके अंतर्गत सरकारी अर्द्ध सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं संस्थानों प्रतिष्ठानों या सेवाओं में बैठे वे सारे अधिकारी आते हैं जो जातिवाद भाई भतीजावाद किसी प्रकार के दबाव या अन्यान्य किसी कारण से आयोग व्यक्तियों की नियुक्तियां करते हैं ,उन्हें पदोन्नत करते हैं ,स्वयं अपने कर्तव्य की अवहेलना करते हैं, और ऐसा करने वाले अधीनस्थ कर्मचारियों को परिचय देते हैं या अपने किसी भी कार्य आचरण से देश को किसी मोर्चे पर कमजोर बनाते हैं!
(ग) व्यवसायिक भ्रष्टाचार - इसके अंतर्गत विभिन्न पदार्थों में मिलावट करने वाले घटिया माल तैयार करके बढ़िया के मोल बेचने वाले दलित दर से अधिक मूल्य वसूलने वाले वस्तु विशेष का कृत्रिम अभाव पैदा करके जनता को दोनों हाथों से लूटने वाले कर चोरी करने वाले तथा अन्यान्य भ्रष्ट और तरीके अपनाकर देश और समाज को कमजोर बनाने वाले व्यवसाई आते हैं!
(घ) शैक्षणिक भ्रष्टाचार- शिक्षा जैसा पवित्र क्षेत्र भी भ्रष्टाचार के संक्रमण से अछूता नहीं रहा आज योग्यता से अधिक सिफारिश व चापलूसी का बोलबाला है !परिश्रम से अधिक बल धन में होने के कारण शिक्षा का निरंतर पतन हो रहा है!
भ्रष्टाचार के कारण - भ्रष्टाचार सबसे पहले उच्चतम स्तर पर पनपता है और तब क्रमशः नीचे की ओर फैलता जाता है! कहावत है! यथा राजा तथा प्रजा आज समस्त भारतीय जीवन में ऐसा व्याप्त हो गया है! कि लोग ऐसे किसी कार्यालय या व्यक्ति की कल्पना तक नहीं कर पाते जो भ्रष्टाचार से मुक्त हो!
भ्रष्टाचार का मुख्य कारण है- वह भौतिकवादी जीवन दर्शन जो अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से पश्चिम से आया है यह जीवन पद्धति विशुद्ध भोग वादी है खाओ पियो और मौज करो ही इसका मूल मंत्र है! संसार एक सुख भोग के लिए सर्वाधिक आवश्यक वस्तु है! धन आकूत किंतु धर्म अनुसार जीवन यापन करता हुआ कोई भी व्यक्ति अमृत कदापि एकत्र नहीं कर सकता किंतु जब वह देखता है! कि हर वह व्यक्ति जो किसी महत्वपूर्ण पद पर बैठा है हर उपाय से पैसा बटोर कर चरम सीमा तक विलासिता का जीवन जी रहा है !तो उसका मन भी डा़ंवां डोल होने लगता है!
भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय- प्रचार को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए!
(क) प्राचीन भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहन - जब तक अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से भोग वादी पाश्चात्य संस्कृति प्रचारित होती रहेगी भ्रष्टाचार कम नहीं हो सकता अतः सबसे पहले देशी भाषाओं की शिक्षा अनिवार्य करनी होगी जो जीवन मूल्यों कि प्रचारक और प्रष्ठ पोषक है! इससे भारतीयों में धर्म का भाव सुदृढ़ होगा और सभी लोग धर्म भीरू ईमानदार बनेंगे !
(ख) चुनाव प्रक्रिया में परिवर्तन - वर्तमान चुनाव पद्धति के स्थान पर ऐसी पद्धति अपनानी पड़ेगी जिसमें जनता स्वयं अपनी इच्छा से भारतीय जीवन मूल्यों के प्रति समर्पित ईमानदार व्यक्तियों को चुन सके अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव लड़ने से रोका जाए जो विधायक या संसद अवसर वादिता के कारण दल बदले उनके सदस्यता समाप्त कर दी जाए जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगने वालों को प्रतिबंधित कर दिया जाए विधायकों सांसदों के लिए भी अनिवार्य योग्यता निर्धारित की जानी चाहिए!
(ग) कर प्रणाली का सरलीकरण- सरकार ने हजारों प्रकार के कर और कोटा परमिट प्रतिबंध लगा रखे हैं! फलतः व्यापारी को अनैतिक हथकंडे अपनाने को विवश होना पड़ता है !अतः सैकड़ों कारों और प्रतिबंधों को समाप्त करके कुछ गिने-चुने कर ही लगाने चाहिए! कर वसूली की प्रक्रिया भी इतनी सरल बनानी चाहिए कि अल्प शिक्षित व्यक्ति भी अपना कर सुविधा पूर्वक जमा कर सके!
(घ) शासन और प्रशासन विहार में कटौती - आज देश के शासन और प्रशासन (जिसमें विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास भी सम्मिलित है) पर इतना अंधाधुंध व्यय हो रहा है कि जनता की कमर टूटती जा रही है! इस विषय में तत्काल कटौती की जानी चाहिए!
(ड़) देशभक्त को प्रेरणा देना - सबसे महत्वपूर्ण है की वर्तमान शिक्षा पद्धति में आमूल चूल परिवर्तन कर विद्यार्थी को चाहे वह किसी भी धर्म मत या समुदाय का अनुयाई हो उसे देश भक्ति का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए!
(च) आर्थिक क्षेत्र में स्वदेशी चिंतन अपनाना - पंचवर्षीय योजनाओं विराट बांधों बड़ी विद्युत परियोजना आदि के साथ-साथ स्वदेशी चिंतन - पद्धति अपनाकर अपने देश की प्रकृति परंपराओं और आवश्यकताओं के अनुरूप विकास योजनाएं बनाई जानी चाहिए!
(छ) कानून को अधिक कठोर बनाना- भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून को भी अधिक कठोर बनाया जाए और प्रधानमंत्री तक को उसकी जांच के घेरे में लाया जाना चाहिए!
उपसंघार - भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे को आता है ,इसलिए जब तक राजनेता देश भक्त और सदाचारी ना होंगे भ्रष्टाचार का उन्मूलन असंभव है! उपयुक्त राजनेताओं के चुने जाने के बाद ही पूर्वक्त सारे उपाय अपनाए जा सकते हैं, जो भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने में पूर्णता प्रभावी सिद्ध होंगे यह तभी संभव है जब चरित्रवान तथा सव्रस्व त्याग और देश - सेवा की भावना से भरे लोग राजनीति में आएंगे और लोग जितना के साथ जीवन को जोड़ेंगे!
Writer- Sandhya kushwaha
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