हिंदी वर्णमाला : स्वर और व्यंजन / Hindi Alphabet : Vowels and Consonants

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हिंदी वर्णमाला : स्वर और व्यंजन / Hindi Alphabet : Vowels and Consonants

हिंदी वर्णमाला : स्वर और व्यंजन / Hindi Alphabet : Vowels and Consonants


हिंदी वर्णमाला : स्वर और व्यंजन / Hindi Alphabet : Vowels and Consonants



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नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट upboard.live  पर । आज की पोस्ट में हम आपको हिंदी वर्णमाला : स्वर और व्यंजन ( Hindi Alphabet : Vowels and Consonants) के बारे में बताएंगे तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और अंत तक पढ़ना है।



हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala)


हिंदी भाषा को सीखने और समझने के लिए हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) को सीखना और समझना बहुत ज़रूरी है। हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में हिंदी भाषा में प्रयुक्त सभी ध्वनियों को शामिल किया गया है, जिनके बारे में हम इस लेख में जानेंगे।

"हिंदी" फारसी भाषा का शब्द है।

                        

वर्ण या अक्षरों के क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित समूह को वर्णमाला (Varnamala) कहते हैं। अतः हिंदी भाषा में समस्त वर्णों के क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित समूह को हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) कहते हैं। हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में 44 अक्षर होते हैं, जिसमें 11 स्वर एवं 33 व्यंजन हैं। दरअसल, प्रत्येक भाषा अपने आप में एक व्यवस्था है हिंदी में भी सभी वर्गों को एक व्यवस्था में रखा गया जिसे हम उस भाषा की वर्णमाला के नाम से जानते हैं।


हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में कुल अक्षरों संख्या 52 होती है।


 हिदीं वर्णमाला में कामता प्रसाद गुरु के अनुसार  अक्षरों की संख्या 46 होती है।


वर्ण किसे कहते हैं (Varn Kise Kahate Hain)


वर्ण की परिभाषा - 


मूल ध्वनि का वह लिखित रूप जिसके टूकड़े नहीं किए जा सकते (अखण्डित ध्वनि), उसे वर्ण (Varn) कहते है। हिंदी की सबसे छोटी इकाई वर्ण (Varn) होता है। हम जो भी बोलते हैं, वह एक ध्वनि होती है। हमारे मुँह से उच्चारित अ, आ, क, ख, ग आदि ध्वनियाँ हैं। हमारे द्वारा बोली जाने वाली प्रत्येक अर्थपूर्ण ध्वनि को एक आकृति या आकार से दर्शाया जाता है, जिन्हें हम वर्ण के नाम से जानते हैं। मौखिक हिंदी की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। हिंदी की सबसे छोटी लिखित इकाई वर्ण होती है।


वर्ण के भेद - Varn Ke Bhed


वर्ण के दो भेद होते हैं।


1. स्वर (कुल स्वर = 13) (स्वर= 11) अं,अ: अयोगवाह होते हैं


2. व्यंजन (कुल व्यंजन=39) (व्यंजन=33)


स्वर किसे कहते हैं (Savar Kise Kahate Hain)


स्वर की परिभाषा - वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में हवा बिना किसी रुकावट के मुँह या नाक के द्वारा बाहर निकलती है उन्हें स्वर (Swar) कहते हैं। इन वर्गों के उच्चारण में जीभ तथा होंठ परस्पर कहीं स्पर्श नहीं करते हैं। हिंदी में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ स्वर होते हैं. हिंदी वर्णमाला में ग्यारह ( 11 स्वर) स्वर होते हैं। ऋ का दीर्घ रूप “ॠ” हिंदी में प्रयोग नहीं किया जाता है।


इसके अतिरिक्त अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) होते हैं, जिन्हें अयोगवाह कहते हैं।


स्वर के भेद - Swar Ke Bhed Ke


उच्चारण /मात्राक/काल अवधि की दृष्टि से Hindi Bhasha Ke Swar तीन प्रकार के होते हैं।


1. हृस्व स्वर


2. गुरु या दीर्घ स्वर


3. प्लुत स्वर


•हृस्व स्वर-


जिन वर्गों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं | हिंदी में चार ह्रस्व स्वर अ, इ, उ, ऋ होते हैं। हिंदी में चार ह्रस्व स्वर होते हैं। इनको लघु, मूल या एकमात्रिक स्वर भी कहा जाता है।


•गुरु या दीर्घ स्वर-


जिन वर्गों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों के उच्चारण से दूगना (दो मात्रा) समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं | हिंदी में आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ,ऑ आदि दीर्घ स्वर होते हैं। हिंदी में सात दीर्घ स्वर होते हैं। इनको संधि एवं द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं।


•प्लुत स्वर-


जिन वर्णों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से दूगना या ह्रस्व स्वरों से तीन गुना अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। आपने अक्सर यह देखा होगा कि कहीं कहीं राम को राडम लिखा गया है, यहाँ “रा” और “म” के बीच में लगा हुआ निशान प्लुत स्वर को दर्शाता है। जहाँ यह निशान लगा होता है उससे पहले वाले अक्षर को उच्चारित करते समय तीन गुना अधिक समय लगता है। साधारण भाषा में कहें तो उस अक्षर को खींच कर उच्चारित किया जाता है। त्रैमात्रिक स्वर भी कहते हैं ।


इनका उपयोग-


नाटक का संवाद बोलने में


किसी को पुकारने में


जैसे- राsssम ,ओsssम


प्रकृति के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-


1- मूल स्वर- जो एक प्रयास + एक स्थान = अ,इ,उ,ऋ


2- सन्धि स्वर- यह दो प्रकार की होते है-


•मूल दीर्घ स्वर


आ= (अ+अ), 


ई= (इ+इ) ,


ऊं  =(उ+उ)


•संयुक्त स्वर- 


अ+इ = ए, 


अ+ए = ऐ


अ+उ = ओ


अ+ ओ = औ


नासिका के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-


•अनुनासिक-  जो वर्ण बिना नाक की सहायता से बोले जाते हैं अनुनासिक वर्ण कहलाते हैं।


जैसे- आग, ऊन,ईख


•सानुनासिक- जो वर्ण नाक की सहायता से बोले जाते हैं सानुनासिक वर्ण कहलाते हैं।


जैसे-  आंख, ऊंट,छींक


होठों की स्थिति के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-


1- आवृत्त मुखी- यह दो प्रकार के होते हैं-


•अर्धवर्तुल स्वर- आ,आ


•प्रसृत स्वर-   इ,ई,ए,ऐ


2- वृत्त मुखी (वर्तुल)- उ,ऊ,ओ,औ,ऑ



जीभ के प्रयोग के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-


1- जीभ के भाग के आधार पर - यह तीन प्रकार के होते हैं- 


•अग्र स्वर-  इ,ई,ए,ऐ


•मध्य स्वर- अ


•पश्च स्वर- आ,उ,ऊ,ओ,औ,ऑ



2- जीभ के उठने के आधार पर-यह चार प्रकार के होते हैं-


•संवृत- इ,ई,उ,ऊ


•अर्द्वसंवृत- ए,ओ


•विवृत-


•अर्द्वविवृत- अ,ऐ,औ,ऑ



स्वरों का उच्चारण स्थान-


स्वर               उच्चारण स्थान


अ, आ               कंठ


इ, ई                  तालु


उ, ऊं                 ओष्ठ


ऋ                     मूर्धा


ए, ऐ                 कंठ – तालु


ओ, औ               कंठ- ओष्ठ




व्यंजन (Vyanjan in Hindi Varnmala)


व्यंजन की परिभाषा - जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है उन्हें व्यंजन (Vyanjan) कहते हैं। व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय हवा मुंह में कहीं ना कहीं रुक कर बाहर निकलती है। जब हम किसी वर्ण विशेष का उच्चारण करते हैं तो हमारे मुँह में या स्वरयंत्र में वर्ण विशेष के हिसाब से हवा को रुकावट का सामना करना पड़ता है। जब यह रुकावट हटती है तो इन वर्गों का उच्चारण होता है।


हिंदी वर्णमाला में कितने व्यंजन होते हैं (How Many Vyanjan in Hindi Varnmala)


हिंदी वर्णमाला में 33 व्यंजन (33 Vyanjan in Hindi ) होते हैं। इसके अलावा चार संयुक्त व्यंजन होते हैं। अतः हिंदी में कुल व्यंजनों की संख्या 39 होती है।


हिंदी व्यंजन की मात्रा (Hindi Vyanjan Ki Matra)


हिंदी व्यंजनों की अपनी कोई मात्रा नहीं होती है, जब किसी व्यंजन वर्ण में कोई स्वर वर्ण जुड़ता है तो व्यंजन वर्ण में उस स्वर की मात्रा जुड़ जाती है. जैसे क् + आ = का.


व्यंजनों का वर्गीकरण-


व्यंजनों का वर्गीकरण चार आधार पर किया जाता है।


1. प्रयत्न स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


2. प्रयत्न विधि के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


3. स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


 4. प्राण वायु के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


प्रयत्न स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण


यहाँ प्रयत्न स्थान से तात्पर्य उच्चारण स्थान से है। किसी वर्ण को उच्चारित करते समय जिस स्थान पर हमारे मुंह के अवयव ( कंठ, जीभ, होंठ, तालु) एक दूसरे से मिलते हैं और जहाँ हमारी प्राण वायु रुकती है, वह स्थान उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहलाता है।



•कण्ठ्य व्यंजन (Kanth Vyanjan)-


हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण कंठ से किया जाता है, उन्हें कण्ठ्य व्यंजन (Kanth Vyanjan) कहते हैं । हिंदी में क, ख, ग, घ, ङ, क़, ख़, ग़ इत्यादि को कण्ठ्य व्यंजन कहते हैं. इन सभी वर्गों का उच्चारण स्थान कंठ होता है। इन वर्णों का उच्चारण करते समय जब हवा फेफड़ों से बाहर निकलती है तो, कंठ में रुक कर बाहर निकलती है।


इनमें से क़, ख़, ग़ वाली ध्वनियाँ हिंदी भाषा के शब्दों में प्रयुक्त नहीं होती है। ये ध्वनियाँ अरबी और फ़ारसी भाषा वाले शब्दों में प्रयुक्त होती हैं।


•तालव्य व्यंजन-


हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा तालु को स्पर्श करने से होता है उन्हें तालव्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी में च, छ, ज, झ, ञ, श, य को तालव्य व्यंजन कहते हैं. इन सभी वर्णों का उच्चारण स्थान तालु है ।


तालव्य व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ का अगला भाग तालु को छूता है, अर्थात जीभ और तालु का परस्पर मिलन होता है, जिससे हमारी प्राण वायु रुकती है। जब जीभ और तालु अलग होते हैं तो, प्राण वायु के मुँह से बाहर निकलने के साथ ही इन वर्णों का उच्चारण होता है।


•मूर्धन्य व्यंजन-


हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा मूर्धा (तालु का बीच वाला कठोर भाग) को स्पर्श करने से होता है, उन्हें मूर्धन्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी में ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, र, ष मूर्धन्य व्यंजन कहलाते हैं। इन वर्णों का उच्चारण करते समय जीभ का अगला भाग तालु के बीच वाले कठोर भाग (मूर्धा) को स्पर्श करता है।


•दन्त्य व्यंजन-


हिंदी वर्णमाला में जिन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा दांतों को स्पर्श करने से होता है, उन्हें दन्त्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में त, थ, द, ध, न, ल, स दन्त्य व्यंजन कहलाते हैं। इनका उच्चारण करते समय जीभ का अगला भाग ऊपर वाले दांतों को स्पर्श करता है। यह स्पर्श हमारी प्राण वायु के लिए अवरोध का काम करता है और जैसे ही अवरोध हटता है वर्गों का उच्चारण होता है।


•ओष्ठ्य व्यंजन (Osthya Vyanjan)-


हिंदी वर्णमाला के जिन वर्णों का उच्चारण होंठों के परस्पर मिलने से होता है, उन्हें ओष्ठ्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में प फ, ब, भ, म ओष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। हमारे होंठों को मिलाकर अलग करने से इनका उच्चारण होता है।


•दंतोष्ठ्य व्यंजन (Dantoshthya Vyanjan)-


हिंदी वर्णमाला में व को दंतोष्ठ्य व्यंजन कहते हैं।


•काकल्य व्यंजन-


हिंदी वर्णमाला में ह को काकल्य व्यंजन कहते हैं क्योंकि इसका उच्चारण स्थान कंठ से थोड़ा नीचे होता है।


प्रयत्न विधि के आधार पर वर्गीकरण-


•स्पर्शी या स्पृष्ट-


वे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय हमारी प्राण वायु या सांस जीभ या होंठ से स्पर्श करती हुई बाहर निकलती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। क-वर्ग, च-वर्ग, ट-वर्ग, त-वर्ग, प-वर्ग के वर्ण स्पर्श व्यंजन होते हैं। आसान भाषा में कहें तो "क" से लेकर “म” तक के वर्ण स्पर्श या स्पृष्ट व्यंजन कहलाते हैं। इन्हें वर्गीय व्यंजन (vargiya vyanjan) भी कहा जाता है। स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25 होती है।



•स्पर्श-संघर्षी व्यंजन-


च, छ, ज, झ, ञ (च-वर्ग) को स्पर्श-संघर्षी व्यंजन भी कहते हैं ।क्योंकि इन वर्गों को उच्चारित करते समय हमारी प्राण वायु स्पर्श के साथ-साथ संघर्ष करती हुई बाहर निकलती है। अर्थात हमारी सांस घर्षण करती हुई बाहर निकलती है।


•नासिक्य व्यंजन-


जिन वर्णों को उच्चारित करते समय हमारी प्राण वायु हमारी नाक से होकर गुज़रती है, उन्हें नासिक्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में ङ, ञ, ण, न, म नासिक्य व्यंजन कहलाते हैं।


•उत्क्षिप्त व्यंजन-


ड़ एवं ढ़- उत्क्षिप्त व्यंजन है। इन वर्णों को द्विस्पृष्ठ या ताड़नजात व्यंजन भी कहते हैं। इनका उच्चारण करते समय हमारी जीभ हमारे तालु को छुते हुए एक झटके के साथ नीचे की तरफ़ आती है, जिससे हवा बाहर निकलती है और इन वर्गों का उच्चारण होता है।


•लुंठित व्यंजन-


र को लुंठित व्यंजन कहा जाता है क्योंकि “र” का उच्चारण करते समय हमारी प्राण वायु जीभ से टकरा कर लुढ़कती हुई बाहर निकलती है। आसान भाषा में कहें तो जब हम "र" का उच्चारण करते हैं तो हमारी जीभ में कंपन होता है, इसलिए "र" को प्रकंपित व्यंजन भी कहते हैं।


•अंत:स्थ व्यंजन-


य, एवं व (य,र,ल,व) अंतःस्थ व्यंजन है। इनका उच्चारण स्वर एवं व्यंजन के बीच का उच्चारण है। "य" एवं “व” का उच्चारण करते समय जीभ, तालु और होंठों का बहुत थोड़ा सा स्पर्श होता है। इन्हें अर्द्ध स्वर (Ardh Swar) तथा ईषत् स्पृष्ट व्यंजन भी कहते हैं।


•पार्श्विक व्यंजन-


ल पार्श्विक व्यंजन है। "ल" का उच्चारण करते समय हमारी सांस जीभ के बग़ल (पार्श्व) से गुज़रती है।


•उष्म व्यंजन-


श, ष, स, ह व्यंजनों को उष्म व्यंजन कहते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करते समय प्राण वायु हमारे मुंह से घर्षण (संघर्ष) करती हुई निकलती है। संघर्ष के साथ निकलने की वजह से इन्हें संघर्षी भी कहते हैं।


•संयुक्त व्यंजन-


क्ष, त्र, ज्ञ, श्र व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं, क्योंकि इन वर्णों को दो व्यंजनों के योग से बनाया गया है।


1. क्ष = क् + ष


2. त्र = त् + र


3. ज्ञ = ज् + ञ


4. श्र= श् + र



स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर वर्गीकरण


आपने ध्यान दिया होगा कि कुछ वर्णों का उच्चारण करते समय जब हवा हमारे गले से बाहर निकलती है तो हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन होता है, जबकि कुछ वर्ण ऐसे भी हैं जिनको उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन नहीं होता है। अतः इसी कंपन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण किया गया है। स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर इन वर्गों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।


अघोष व्यंजन


अघोष शब्द “अ” और “घोष” के योग से बना है। अ का अर्थ नहीं और घोष का अर्थ कंपन होता है। अतः जिन वर्गों को उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन नहीं होता है, उन वर्गों को अघोष वर्ण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का पहला एवं दूसरा वर्ण तथा श, ष, स अघोष व्यंजन होता है हिंदी में क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स वर्गों को अघोष व्यंजन कहते हैं


सघोष या घोष व्यंजन


जिन वर्णों को उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन होता है, उन वर्णों को सघोष वर्ण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का तीसरा, चौथा और पांचवां वर्ण तथा य, र, ल, व, ह सघोष व्यंजन होता हैं. हिंदी में ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ड, ढ, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह वर्णों को सघोष व्यंजन कहते हैं। सभी स्वर सघोष व्यंजन होते हैं।



प्राण वायु के आधार पर वर्गीकरण


हमारी प्राण वायु की मात्रा के आधार पर भी इन वर्णों का वर्गीकरण किया जाता है। किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाली प्राण वायु की मात्रा के आधार पर इन वर्णों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।


अल्पप्राण व्यंजन


जिन वर्णों के उच्चारण में हमारी प्राण वायु की कम मात्रा लगती है, उन्हें अल्प प्राण व्यंजन कहते हैं। व्यंजन वर्गों के दूसरे तथा चौथे वर्गों को छोड़कर शेष सभी वर्ण अल्पप्राण व्यंजन होते हैं। हिंदी में क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, ड़, ढ़ अल्पप्राण व्यंजन होते हैं. सभी स्वर भी अल्पप्राण होते हैं.


महाप्राण व्यंजन


जिन वर्णों के उच्चारण में हमारी प्राण वायु की मात्रा अधिक लगती है, उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं। स्पर्श व्यंजनों में प्रत्येक वर्ग का दूसरा एवं चौथा वर्ण तथा उष्म व्यंजन महाप्राण व्यंजन होते हैं. हिंदी में ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स,ह महाप्राण व्यंजन होते हैं।









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