Class 12th biology Chapter 2 Notes ncert pattern / यूपी बोर्ड कक्षा 12वी जीव विज्ञान अध्याय 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन
class 12th biology chapter 2 ncert notes
यूपी बोर्ड कक्षा 12वी जीव विज्ञान अध्याय 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन
02 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन
बहुविकल्पीय प्रश्न : 1 अंक
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा भाग पुष्प के नर जनन अंग का प्रतिनिधित्व करता है।
(a) पुमंग
(b) जायांग
(c) गुरुबीजाणुधानी
(d) परागण
उत्तर (a) पुमंग
प्रश्न 2. आवृतबीजी पौधों में पुंकेसर है।
(a) मादा जननांग
(b) नर जननांग
(c) दोनों (a) एवं (b)
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) नर जननांग
प्रश्न 3. अगुणित कोशिका है
(a) पीटम
(b) पराग मातृ
(c) पराग कण
(d) पराग कोष कोशिका
उत्तर (c) पराग कण
प्रश्न 4. एक प्रारूपिक आवृतबीजी परागकोष में लघुबीजाणुधानियों की संख्या होती है
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 4
उत्तर (d) चार (4)
प्रश्न 5. पराग कण मातृ कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या होती है
(a) अगुणित
(b) द्विगुणित
(c) त्रिगुणित
(d) बहुगुणित
उत्तर (b) द्विगुणित
प्रश्न 6. किसी परागकोष की लघुबीजाणुधानी की बाह्यतम व सबसे भीतरी परतें क्रमशः होंगी
(a) एण्डोथीसियम व टेपीटम
(b) एपिडर्मिस व एण्डोडर्मिस
(c) एपिडर्मिस व मध्य परतें
(d) एपिडर्मिस व टेपीटम
उत्तर (d) एपिडर्मिस व टेपीटमा
प्रश्न 7. 200 लघुबीजाणुओं के निर्माण के लिए प्रकार्यात्मक लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं में कितने अर्द्धसूत्री विभाजन होगें ?
(a) 400
(b) 50
(c) 200
(d) 100
उत्तर (b) 50
प्रश्न 8. 112 लघु बीजाणुओं के निर्माण हेतु लघु बीजाणु मातृ कोशिकाओं में कितने अर्द्धसूत्री विभाजन होंगे?
(a) 56
(b) 28
(c) 112
(d)224
उत्तर (b) 28
प्रश्न 9. अण्ड समुच्चय के निर्माण में कौन सहायक है?
(a) अण्ड
(b) अण्ड व सहायक कोशिकाएँ
(c) अण्ड व प्रतिमुख कोशिकाएँ
(d) सहायक कोशाएँ व प्रतिमुख कोशिकाएँ
उत्तर (b) सहायक कोशिकाएँ
प्रश्न 10. बीजाण्ड का वह स्थान जहाँ बीजाण्डवृन्त
जुड़ा होता है, उसे कहते हैं
(a) निभाग
(b) नाभिका
(c) केन्द्रक
(d) माइक्रोपाइल
उत्तर (b) नाभिका
प्रश्न 11. निभाग पाया जाता है
(a) परागकण में
(b) बीजाण्ड में
(c) भ्रूणपोष में
(d) ये सभी
उत्तर (b) बीजाण्ड में
प्रश्न 12. निम्न में से कौन-सी कोशिकाएँ सभी प्रकार के भ्रूणकोष में पाई जाती हैं?
(a) सहकोशिका
(b) अण्ड कोशिका
(c) प्रतिमुखी कोशिका
(d) ये सभी
उत्तर (b) अण्ड कोशिका
प्रश्न 13. पॉलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष है। अथवा एक प्रारूपी आवृतबीजी भ्रूणकोष परिपक्व होने पर होता है।
(a) 8-कोशिकीय, 7 केन्द्रकीय
(b) 7-कोशिकीय, 8-केन्द्रकीय
(c) 8-कोशिकीय, 8- केन्द्रकीय
(d) 7-कोशिकीय, 7-केन्द्रकीय
उत्तर (b) 7- कोशिकीय, 8-केन्द्रकीय
प्रश्न14. प्रतिमुखी कोशिकाएँ वे होती हैं, जो उपस्थित होती हैं।
(a) निभागीय छोर पर
(b) अण्डद्वार छोर पर
(c) मध्य में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) निभागीय छोर पर
प्रश्न 15. एक ही पादप के एक पुष्प के पराग कणों का दूसरे पुष्प के वर्तिकायों तक का स्थानान्तरण कहलाता है।
(a) स्वयुग्मन
(b) सजातपुष्पी परागण
(c) परानिषेचन
(d) अनुन्मील्य परागण
उत्तर (b) सजातपुष्पी परागण
प्रश्न 16.एक उन्मील परागणी पुष्प (Chasmogamous flower) में ऑटोगेमी सम्पन्न हो सकती है यदि
(a) परागकण वर्तिकाग्र के सुग्राही होने से पहले परिपक्व हो जाते हैं
(b) वर्तिका परागकणों के परिपक्व होने से पहले ब्राह्म हो जाता है
(c) परागकण व वर्तिका एक ही समय पर परिपक्व होते हैं
(d) परागकोष व वर्तिकार दोनों की लम्बाई बराबर है
उत्तर(c) परागकण व वर्तिकाम एक ही समय पर परिपक्व होते हैं।
प्रश्न 17. सात्विया में परागण होता है।
(a) जल द्वारा
(b) वायु द्वारा
(c) कीटो द्वारा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (C) कीटो द्वारा
प्रश्न 18. जल परागित पादप का नाम है।
(a) हाइड्रिला
(b) मटर
(c) नीबू
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) हाइड्रिला
प्रश्न 19. किसी एकलिंगाश्रयी पौधे के लिए कृत्रिम संकरण की योजना बनाने में निम्न में से कौन-सा पद किसी महत्त्व का नहीं है ?
(a) मादा पुष्प की वैगिंग
(b) वर्तिका पर परागकणों का छिड़काव
(c) विपुंसना
(d) परागकण एकत्रीकरणा
उत्तर (c) विपुंसना
प्रश्न 20. भ्रूणकोष विकास के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा क्रम सही है?
(a) आर्किस्पोरियम → गुरुबीजाणु →गुरुबीजाणु मातृ कोशिका
(b) आर्किस्पोरियम→ गुरुबीजाणु मातृ कोशिका →गुरुबीजाणु →भ्रूणकोष
(c) आर्किस्पोरियम → गुरुबीजाणु →गुरुबीजाणुद्भिद →भ्रूणकोष
(d) आर्किस्पोरियम → गुरुबीजाणुदमिद् →भ्रूणकोष
उत्तर (b) भ्रूणकोष विकास के लिए सही क्रम है
(b) आर्किस्पोरियम→ गुरुबीजाणु मातृ कोशिका →गुरुबीजाणु →भ्रूणकोष
प्रश्न 21. द्विनिषेचन की क्रिया होती है।
अथवा दोहरा निषेचन होता है।
(a) शैवाल में
(b) कवक में
(c) आवृतबीजी पादपों में
(d) अनावृतबीजी पादपों में
उत्तर (c) आवृतबीजी पादपों में
प्रश्न 22.द्विनिषेचन का तात्पर्य है
(a) दो नर युग्मकों का अण्डकोशिका से संयोजन
(b) एक नर युग्मक का अण्ड कोशिका से तथा दूसरे का द्वितीयक केन्द्रक से संयोजन
(c) एक नर युग्मक का अण्ड कोशिका से तथा दूसरे का सिनर्जिंड कोशिका से संयोजन
(d) उपरोक्त सभी.
उत्तर (b) एक नर युग्मक का अण्ड कोशिका से तथा दूसरे का द्वितीयक केन्द्रक से संयोजन
प्रश्न 23. भूणपोष की कोशिकाएँ होती है।
अथवा आवृतबीजी पौधे का भ्रूणपोष होता है।
(a) द्विगुणित
(b) बहुगुणित
(c) त्रिगुणित
(d) अगुणित
उत्तर (c) त्रिगुणित
प्रश्न 24. भ्रूणपोष में गुणसूत्रों की संख्या होती है
(a) 2X
(b) 3X
(c) X
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) 3X
प्रश्न 25, भारतीय भ्रूणविज्ञान का पिता कहते हैं।
(a) सर जगदीश चन्द्र बोस
(b) प्रो. पंचानन माहेश्वरी
(c) डॉ. हरगोविन्द खुराना
(d) डॉ. बीरबल साहनी
उत्तर (b) प्रो. पंचानन माहेश्वरी
प्रश्न 26. परिभूणपोष (पेरीस्पर्म) अवशेष है
(a) बाहा अध्यावरण को
(b) अन्त: अध्यावरण का
(c) बीड द्वारका
(d) बीजाण्डकाय का
उत्तर (d) बीजाण्डकाय का
प्रश्न 27. निम्न में से कौन कूट फल है?
(a) सेव
(b) अंगूर
(c) आम
(d) मटर
उत्तर (a) सेव
प्रश्न 28. निम्नलिखित में से कौन-सा एक आभासी फल नहीं है?
(D) स्ट्रॉबेरी
(c) अखरोट
(a) सेव
(d) आम
उत्तर (a) आम
प्रश्न 29. बहुभ्रूणता खोजी गई
(a) ल्यूवेनहॉक द्वारा
(b) माहेश्वरी द्वारा
(c) विकलर द्वारा
(d) कूपर द्वारा
उत्तर (a) ल्यूवेनहॉक द्वारा
(अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक)
प्रश्न 1. पुष्पदल का क्या कार्य है?
उत्तर इसके मुख्य दो कार्य है
(i) कलिकावस्था में यह जनन अंगों की रक्षा करते हैं। (ii) ये कीटों को आकर्षित कर कीट परागण में सहायक होते हैं।
प्रश्न 2. एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम लिखिए जहाँ नर एवं मादा युग्मकोद्भिद का विकास होता है।
उत्तर नर युग्मकोद्भिद् (पराग कण) →परागकोष (लघुबीजाणुधानी)
मादा युग्मकोद्भिद् (भ्रूणकोष) →अण्डाशय (बीजाण्ड)
प्रश्न 3. लघुबीजाणुधानी की सबसे भीतरी परत क्या कहलाती है? इसका क्या महत्त्व है? अथवा टेपीटम कहाँ स्थित होता है? इसका क्या कार्य है?
उत्तर परागकोष की लघुबीजाणुधानी की सबसे भीतरी परत टेपीटम कहलाती है।यह लघुबीजाणु या पराग कणों को पोषण प्रदान करती है।
प्रश्न 4. पराग कण मातृ कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या क्या होती है?
उत्तर परागकण मातृ कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (2n) होती है।
प्रश्न 5. 240 पराग कणों के निर्माण में कितनी पराग मातृ कोशिकाओं की आवश्यकता होती है?
उत्तर एक पराग मातृ कोशिका से चार पराग कणों का निर्माण होता है, तो 240 पराग कणों के लिए 60 पराग मातृ कोशिकाओं की आवश्यकता होगी।
प्रश्न 6. एक परिपक्व पराग कण में समाहित कोशिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर परिपक्व पराग कण में कायिक व जनन कोशिकाएँ उपस्थित होती है।
प्रश्न 7. पॉलीगोनम प्रकार के भ्रूणकोष में कितने केन्द्रक उपस्थित होते हैं?
अथवा पॉलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष कितने केन्द्रकीय होता है?
उत्तर पॉलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष 7- कोशिकीय एवं 8 केन्द्रकीय होता है
प्रश्न 8. मादा युग्मकोद्भिद् के एकबीजाणु विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर आवृतबीजी पादपों में मादा युग्मकोदभिद (भ्रूणकोष) के निर्माण के दौरान गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से चार अगुणित गुरुबीजाणु कोशिकाएँ बनती हैं। इनमें से सबसे नीचे की कोशिका आकार में बड़ी होकर सक्रिय गुरुबीजाणु कोशिका या मादा युग्मकोदभिद् बनाती है, जबकि शेष तीन नष्ट हो जाती है। इसे ही एकबीज विकास कहते हैं।
प्रश्न 9. परागण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर पराग कणों के पुंकेसर के परागकोष से जायांग (स्त्रीकेसर) के वर्तिकाम तक पहुँचने की प्रक्रिया को परागण कहते हैं।
प्रश्न 10. अनुन्मील्यता (Cleistogamy) से क्या तात्पर्य है? अथवा निमिलिता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर वे द्विलिंगी पुष्प जो सदैव बन्द रहते हैं और कभी नहीं खिलते हैं अनुन्मील्य पुष्प कहलाते है, जबकि स्वः परागण की यह युक्ति निमिलिता या अनुन्मील्यता कहलाती है जैसे खट्टी-बूटी, कनकौआ (कौमेलाइना)
प्रश्न 11. रात्रि में खिलने वाले पुष्प प्रायः श्वेत रंग तथा सुगन्ध वाले होते हैं, क्यों?
उत्तर रात्रि में खिलने वाले पुष्प श्वेत रंग व सुगन्ध वाले होते हैं, जिससे कम प्रकाश में भी कोट आकर्षित होकर रात्रि में कीट परागण करते हैं।
प्रश्न 12. कीटों द्वारा परागित पौधे का नाम लिखिए।
उत्तर साल्विया बोगनविलिया, लार्कस्पर एवं डान्स
प्रश्न 13. जलीय परागण करने वाले किन्हीं दो पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर कैलिसनेरिया एवं हाइडिला
प्रश्न 14. दोहरा निषेचन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा द्विनिषेचन प्रक्रिया का सर्वप्रथम किसने पता लगाया अथवा दोहरा निषेचन की परिभाषा दीजिए।
अथवा दोहरा निषेचन क्या है? इसकी खोज किसने की?
उत्तर एस. जी. नवाश्चिन (SG Newaschin, 1898) ने सर्वप्रथम फ्रिटिलेरिया तथा लिलियम पादपों में द्विनिषेचन (दोहरा निषेचन) की खोज की। इसमें एक अगुणित नर युग्मक अगुणित अण्ड कोशिका से संयुग्मन करके द्विगुणित युग्मनज या जाइगोट बनाता है। यह सत्य निषेचन है, जबकि दूसरा अगुणित नर युग्मक द्वितीयक केन्द्रक (ध्रुवीय केन्द्रक) से संलयन करके त्रिगुणित (35) प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका बनाता है। यह क्रिया त्रिसमेकन या त्रिक संलयन कहलाती है। आवृतबीजी में निषेचन क्रिया दो बार में सम्पन्न होती है, इसलिए इसे द्विनिषेचन या दोहरा निषेचन कहते है।
प्रश्न 15. यदि किसी पौधे के पराग कण में क्रोमोसोम्स की संख्या 21 है, तो उसके अण्ड कोशिका और युग्मनज कोशिका के क्रोमोसोम्स की संख्या लिखिए।
उत्तर यदि किसी पौधे के अगुणित पराग कण में क्रोमोसोम्स की संख्या 21 है, तो उसकी अगुणित अण्ड कोशिका में 21 एवं द्विगुणित युग्मनज कोशिका में
क्रोमोसोम्स होंगे।
प्रश्न 16. एक निषेचित बीजाण्ड में युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं?
उत्तर युग्मनज प्रसुप्ति एक प्रकार का अनुकूलन है, क्योंकि जब तक भ्रूणपोष का ऊतक कुछ मात्रा में बन नहीं जाता है, युग्मनज विभाजित नहीं होता है। युग्मनज भ्रूण के विकास के दौरान विभाजित होते समय भ्रूणपोष से निरन्तर पोषण प्राप्त करता रहता है। अगर युग्मनज में प्रसुप्ति नहीं होगी, तो भ्रूणपोष की वृद्धि के बिना ही युग्मनज विभाजित होने लगेगा एवं सम्भवतया पोषण के अभाव में उसकी वृद्धि रुक जाएगी और वह नष्ट हो जाएगा।
प्रश्न 17. भारतीय भ्रूण विज्ञान का पिता किसे कहते हैं?
उत्तर प्रोफेसर पी. माहेश्वरी को भारतीय भ्रूण विज्ञान का जनक कहते हैं।
प्रश्न 18. भ्रूणपोष का विकास आवृतबीजी पादपों में किस प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है?
अथवा भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण कैसे होता है? इसमें उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती है?
उत्तर – भ्रूणपोष का विकास आवृतबीजी पादपों में एक अगुणित नर युग्मक एवं भ्रूणकोष के द्वितीयक ध्रुवीय केन्द्रक के संलयन या त्रिसंलयन (Triple fusion) से बने प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका केन्द्रक से होता है। इसमें गुणसूत्रों की संख्या त्रिगुणित (3n) होती है।
प्रश्न 19. दो बीजों के नाम लिखिए, जिनमें बीज के परिपक्व होने से पूर्व भ्रूणपोष विकासशील भ्रूण द्वारा उपभोग कर लिया जाता है।
उत्तर चना, मटर, दालें तथा सेम में बीज के परिपक्व होने से पूर्व भ्रूणपोष विकासशील ग द्वारा उपयोग कर लिया जाता है।
प्रश्न 20. आभासी (मिथ्या) फलों के कोई दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर निषेचन पश्चात् अण्डाशय के परिपक्व होने से फल बनता है व पुष्प के फल की रचना करता है?
शेष अंग झड़ जाते है। ऐसा फल सत्य फल कहलाता है। सेब में चूंकि पुष्पासन फल का मुख्य खाने योग्य भाग बनाता है। अतः सेब को आभासी फल कहा जाता है।
प्रश्न 21. बहुभ्रूणता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा किन्हीं दो आभासी फलों के नाम लिखिए।
उत्तर आभासी (मिथ्या) फली के उदाहरण सेब, नाशपाती, स्ट्रॉबेरी, आदि हैं।
प्रश्न 22. एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन-सा भाग फल की रचना करता है
अथवा बहुभ्रूणता क्या है?
उत्तर एक बीज में एक से अधिक (अनेक) भ्रूण विकसित होने की प्रक्रिया को बहुभूता कहते हैं। यह बीजाण्ड में एक से अधिक भ्रूणकोष की उपस्थिति के कारण अथवा भ्रूणकोष की अण्डकोशिका के अतिरिक्त किसी अन्य कोशिका जैसे सहायक कोशिका के भ्रूण के निर्माण करने के परिणामस्वरूप होती है; उदाहरण पाइनस, सन्तरा, आदि।
प्रश्न 23. अपयुग्मन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा असंगजनन व अपयुग्मन में अन्तर लिखिए। उत्तर अण्ड कोशिका को छोड़कर, भ्रूणकोष की किसी भी कोशिका से बिना निषेचन के जब भ्रूण का विकास होता है, तो यह क्रिया अपयुग्मन कहलाती है; उदाहरण-एलियम ।
प्रश्न 24. असंगजनन व अनिषेकफलन में अन्तर लिखिए।
अथवा अनिषेकफलन क्या है? समझाइए ।
उत्तर असंगजनन व अनिषेकफलन में अन्तर निम्न हैं
असंगजनन
इसमें आवृतबीजी पादपों में अर्द्धसूत्री विभाजन एवं निषेचन के बिना ही अर्थात् नर एवं मादा युग्मक के संलयन के बिना भ्रूण व बीजाणुद्भिद् का निर्माण होता है।
अनिषेकफलन
इसमें पादपों में परागण एवं निषेचन के बिना ही फल का निर्माण होता है:
उदाहरण-बीजरहित फलों का विकास।
प्रश्न 25. अनिषेकजनन से आप क्या समझते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
अथवा अनिषेकजनन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर बिना निषेचन के अर्थात् अनिषेचित बीजाण्ड द्वारा अगुणित भ्रूण एवं बीज का विकसित होना, अनिषेकजनन कहलाता है;
उदाहरण-धतूरा, आलू आदि में।
प्रश्न 26. क्या एक अनिषेचित, असंगजनन द्वारा निर्मित भ्रूणकोष से द्विगुणित भ्रूण का विकास हो सकता है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर हाँ, यदि गुरुबीजाणु बिना अर्द्धसूत्री विभाजन के भ्रूणकोष में विकसित हो जाए तो अण्डकोशिका द्विगुणित होगी। यह द्विगुणित अण्ड कोशिका समसूत्री विभाजन द्वारा द्विगुणित भ्रूण को जन्म देगी।
[ लघु उत्तरीय प्रश्न- 2 अंक ]
प्रश्न 1. अपरिपक्व परागकोष की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए।
प्रश्न 2.परिपक्व परागकोष की अनुप्रस्थ काट का चित्र बनाइए।
अथवा आवृतबीजी पौधे के एक परिपक्व परागकोष की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए ।
प्रश्न 3. ऋजुवर्ती (आर्थोट्रॉपस) बीजाण्ड की अनुदैर्ध्य काट का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
परागकण, बीजाणुजन ऊतक, लघुबीजाणु चतुष्क, पराग मातृकोशिका, नर युग्मक
उत्तर विकास का सही क्रम निम्नलिखित है
(i) बीजाणुजन ऊतक
(ii) पराग मातृ कोशिका
(iii) लघुवीजाणु चतुष्क
(iv) पराग कण (लघुवीजाणु)
(v) नर युग्मका
प्रश्न 5. लघुबीजाणुजनन व गुरुबीजाणुजनन में अन्तर कीजिए।
अथवा पौधों में गुरुबीजाणुजनन पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर लघुबीजाणुजनन व गुरुबीजाणुजनन में निम्नलिखित अन्तर हैं
लघुबीजाणुजनन
1.यह क्रिया पुंकेसर के परागकोष में होती है।
2. इसमें परागकण या लघुबीजाणु बनता है।
3.इसमें 4 लघुबीजाणु प्राप्त होते हैं।
गुरुबीजाणुजनन
1.यह क्रिया बीजाण्ड के अन्दर होती है।
2. इसमें गुरुबीजाणु या भ्रूणकोष बनता है।
3.इसमें एक क्रियात्मक गुरुबीजाणु प्राप्त होता है।
प्रश्न 6. 'स्व-परागण की अपेक्षा पर परागण अधिक उपयोगी है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा स्वपरागण तथा पर-परागण में अन्तर स्पष्ट कीजिए । अथवा स्वपरागण व पर-परागण को स्पष्ट कीजिए। इनमें से कौन अधिक उपयोगी है?
उत्तर स्व-परागण एवं पर-परागण में निम्नलिखित अन्तर हैं।
प्रश्न 7. क्या स्व-असामंजस्यता स्वयुग्मन को अवरुद्ध करती है? कारण बताइए तथा इन पादपों में परागण की विधि बताइए।
उत्तर – स्व असामंजस्यता या स्वबन्ध्यता स्वयुग्मन को अवरुद्ध करती है। इसका कारण यह है, कि अधिकांश पादपों में द्विलिंगी पुष्प पाए जाते हैं। स्व-असामंजस्यता के कारण जब पराग कण उसी पुष्प के वर्तिकाम पर पहुंचते हैं, तो उनका अंकुरण नहीं होता है। अतः यह स्व-परागण को अवरुद्ध करता है। सतत् स्वपरागण से अन्तः प्रजनन अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अतः पादप ऐसी युक्तियाँ विकसित करते हैं, जो स्वपरागण को हतोत्साहित करती हैं। यह स्वपरागण को रोकने की एक आनुवंशिक विधि है।
प्रश्न 8. परागण तथा निषेचन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। उत्तर परागण एवं निषेचन में निम्नलिखित अन्तर हैं
प्रश्न 9. भ्रूणकोष तथा भ्रूणपोष में अन्तर कीजिए।
उत्तर भ्रूणकोष तथा भ्रूणपोष में निम्नलिखित अन्तर हैं
प्रश्न 10. अनिषेकफलन पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा अनिषेकजनित फल क्या है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर अनिषेकफलन शब्द नैल ने दिया। सामान्यतया निषेचन (Fertilisation) के पश्चात् अण्डाशय (Ovary) फल में परिवर्तित होता है, लेकिन प्रकृति में कभी-कभी बिना निषेचन के अण्डाशय फल में विकसित हो जाता है। यह क्रिया अनिषेकफलन (Parthenocarpy) कहलाती है तथा फल अनिषेकफल कहलाते हैं; जैसे-केला, पपीता, सन्तरा, नाशपाती, अनानास, आदि। अनिषेकफलों में बीजाण्ड बीज में परिवर्तित नहीं हो पाते अर्थात् फल बीजरहित
'अनिषेकजनन होते हैं, अनिषेकफल को आर्थिक लाभ के बीज रहित फलों की प्राप्ति के लिए कुछ हॉर्मोन्स जैसे- NAA (Naphthalene Acetic Acid) के छिड़काव से प्रेरित (Induce) किया जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II 3 अंक
प्रश्न 1. नामांकित चित्र की सहायता से लघुबीजाणुधानी की संरचना का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
अथवा
लघुबीजाणुधानी का चित्र बनाइए एवं इसके भित्तीय स्तरों को नामांकित कीजिए। भित्तीय स्तरों के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
लघुबीजाणुधानी की अनुप्रस्थ काट
उपरोक्त अनुप्रस्थ कार में प्रारूपिक लघुबीजाणुधानी गोल दिखायी देती है, जो चार स्तरों से घिरी रहती है।
1. बाह्यत्वचा (Epidermis ) यह सबसे बाहरी सुरक्षात्मक स्तर है। इसकी कोशिकाएँ मोटी भित्ति वाली होती है। ये सघन रूप से व्यवस्थित होती है तथा परागकोष के स्फुटन में सहायक होती है।
2. एण्डोथीसियम (Endothecium) यह स्तर बाह्यत्वचा के नीचे स्थित होता' है। परिपक्वता पर इसकी कोशिकाएँ जल के ह्रास के कारण सिकुड़ जाती हैं। व परागकोष के स्फुटन में सहायता करती है।
3. मध्य स्तर (Middle Inyer) यह अन्तस्थीसियम व टेपीटम के मध्य स्थित होता है। ये पतली भित्ति वाली कोशिकाओं से बना होता है, जो एक से पाँच स्तरों में व्यवस्थित होती है। ये भी पराकोष के स्कूटन में सहायक होती है।
4. टेपीटम (Tapetum) यह बड़ी, पतली भिति युक्त, सपन कोशिकाद्रव्य वाली कोशिकाओं का सबसे आन्तरिक स्तर है। इन कोशिकाओं में एक से अधिक केन्द्रक होते है। ये पोषक है, जो परिवर्तनशील पराग कणों को पोषण प्रदान करता है। लघुबीजाणुधानी के केन्द्र में बीजाणुजन ऊतक (Sporogenous tissue) उपस्थित होता है, जो अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा लघुबीजाणु चतुष्क बनाता है। यह प्रक्रिया लघुवीजाणुजनन कहलाती है।
प्रश्न 2. एक पराग कण की सूक्ष्मदर्शीय संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए। अथवा पराग कण के अंकुरण की प्रक्रिया को उपयुक्त चित्रों द्वारा समझाइए ।
अथना आवृतबीजी पादपों के नर युग्मकोद्भिद का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर लघुबीजाणु या पराग कण नर युग्मकोदभिद की प्रथम कोशिका होती है, जो सामान्यतया एककोशिकीय, अगुणित, गोलाकार या अण्डाकार तथा द्विस्तरीय भित्तियों से ढकी संरचना होती है। पराग कण निम्न दो आंवरणों से आस्तरित रहते हैं
(i) बाह्यचोल यह मोटा व खुरदरा होता है। यह एक विशेष वसीय रासायनिक पदार्थ स्पोरोपोलेनिन का बना होता है। इसके कारण ही पराग कणों में अपघटन के प्रति उच्च प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है।
(ii) अंतः चोल यह पतला एवं कोमल झिल्ली सदृश्य स्तर होता है। यह पराग कण के जीवद्रव्य को ढके रहता है। यह मुख्यतया पेक्टोसेलुलोस का बना होता है।
बाह्यचोल आवरण में कुछ छिद्र पाए जाते हैं, जिन्हें जनन छिद्र कहते हैं। यहाँ पर स्पोरोपोलेनिन अनुपस्थित होता है। प्रायः द्विबीजपत्री पराग कणों में तीन जननछिद्र तथा एकबीजपत्री में एक जननछिद्र पाया जाता है। पराग कण के केन्द्र में सघन कोशिकाद्रव्य, एक बड़ा नलिकीय केन्द्रक, रिक्तिका, जनन कोशिका, आदि कोशिकांग पाए जाते हैं।
पराग कण का अकुंरण
लघुबीजाणुजनन के बाद पराग कण में समसूत्री विभाजन होता है जिससे यह दो असमान कोशिकाओं का निर्माण करता है। इनमें से एक बड़ी कोशिका को वर्धी या कायिक कोशिका (Vegetative cell) तथा दूसरी छोटी कोशिका को जनन कोशिका (Generative cell) कहते हैं। अब पराग कण द्विकोशिकीय अवस्था में आ जाता है एवं इसी समय पराग कण का परागण हो जाता है।
परागण के बाद वर्तिकाम पर अंकुरण के समय कायिक कोशिका की भित्ति जनन हिंद से निकलकर एक नलिका का निर्माण करती है, जिसे पराग नलिका कहते है। परागनलिका वर्तिका से होती हुई बीजाण्ड की तरफ गति करती है। कायिक कोशिका का केन्द्रक भी इस नलिका में आ जाता है, जिसे नलिका केन्द्रक (Tube nucleus) कहते हैं। यह नलिका केन्द्रक बाद में नष्ट हो जाता है। जनन कोशिका का जनन केन्द्रक भी इस पराग नलिका में आकर समसूत्री विभाजन द्वारा दो अचल नर युग्मों का निर्माण करता है।
इस प्रकार पराग कण के अंकुरण से बनी पराग नलिका युक्त संरचना, जिसमें दो नर युग्मक उपस्थित होते हैं, नर युग्मकोदभिद कहलाती है।
प्रश्न 3.आवृतबीजी पौधे के ऑर्थोट्रोपस बीजाण्ड के लम्बवत् काट का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए
उत्तर ऑर्थोोट्रोपस प्रकार के बीजाण्ड उल्टे होते है तथा इनमें बीजाण्डद्वार व निभाग दोनों एक-दूसरे के पास आ जाते है। अधिकांश पादपों (82%) में इसी प्रकार का बीजाण्ड पाया जाता है। उदाहरण-मटर, सेम, चना आदि।
प्रश्न 4. लघु बीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच कोई तीन अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच अन्तर निम्न हैं।
प्रश्न 5. पर परागण क्या है? इसके लाभ एवं हानि का वर्णन कीजिए।
अथवा पर परागण किसे कहते हैं? इसके क्या लाभ हानि है?
उत्तर जब एक पुष्प के पराग कण लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न उसी जाति के अन्य पादप के वर्तिका पर विभिन्न माध्यमों से पहुंचते हैं, तो इसे पर परागण कहते हैं। एकलिंगी पुष्प पपीता, उभयलिंगी पादप मक्का, आदि में पर परागण पाया जाता है। पर परागण कीटों द्वारा, वायु द्वारा, जल द्वारा होता है।
पर - परागण के लाभ इसके लाभ निम्नलिखित हैं और जन्तुओं के माध्यम से
1. पर परागण के फलस्वरूप आनुवंशिक पुनर्योजन होता है, जिसके कारण सन्तति में लाभदायक लक्षण विकसित होते हैं।
2. पर परागण से नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं।
3. पर परागण के फलस्वरूप बने बीज संख्या में अधिक और स्वस्थ होते हैं।
4. कृत्रिम पर परागण के फलस्वरूप रोग प्रतिरोधी प्रजातियाँ विकसित की जाती है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
पर परागण की हानियाँ इसकी हानियां निम्नलिखित है
1. पराग कण अधिक संख्या में बनते और व्यर्थ होते हैं। 2. पर परागण के लिए पादपों को विभिन्न युक्तियों जैसे कीट, वायु, जल,पक्षी, आदि पर निर्भर रहना होता है। 3. पादपों को पराग कण, गन्ध और मकरन्द बनाने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है।
4. पर - परागण के फलस्वरूप प्रजाति के पैतृक गुणों में भिन्नता आ जाती है।
प्रश्न 6. वायु परागण पर टिप्पणी लिखिए। अथवा वायु परागित पुष्पों की विशेषताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – पुष्पों में वायु द्वारा होने वाले पर परागण को वायु परागण कहते हैं और ऐसे पुष्पों को वायु परागित पुष्प (Anemophilous flowers) कहते हैं। वायु परागित पुष्पों में कुछ विशेषताएँ पायी जाती हैं, जो निम्नलिखित है
1. वायु परागित पुष्प छोटे, आकर्षण रहित तथा एकलिंगी (Unisexual) होते हैं। ये या तो पत्तियों वाले भाग के ऊपर निकलते हैं; जैसे-मक्का में अथवा फिर नई पत्तियों के निकलने से पहले ही खिल जाते हैं, जैसे- पोपलर में
2. इनमें बाह्यदल एवं दल या तो होते ही नहीं या फिर बहुत छोटे होते हैं, जिससे ये पराग कणों और वर्तिकाय के बीच रुकावट न बन सके।
3. परागकोषों में प्रचुर मात्रा में पराग कण (Pollen grains) उत्पन्न होते हैं, क्योंकि वायु के साथ अधिकांश पराग कण इधर-उधर गिरकर व्यर्थ हो जाते हैं।
4. परागकण छोटे, शुष्क व हल्के होते हैं, जिससे ये वायु में आसानी से इधर-उधर उड़ सके।
5. पुंकेसर के पुंतन्तु प्रायः लम्बे तथा पतले होते हैं और पुष्प के बाहर निकले रहते हैं, जिससे वायु के साथ ये आसानी से ठंड़ सकें; जैसे-पोपलर में।
6. इन पुष्पों का वर्तिका लम्बा होता है एवं पुष्प के बाहर निकला होता है तथा पराग कणों को पकड़ने के लिए रोमयुक्त (मक्का) तथा चिपचिपा (पोपलर) होता है.
प्रश्न 7. कृत्रिम संकरण क्या होता है? इसकी प्रमुख विधियाँ बताइए।
अथवा कृत्रिम परागण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – कृत्रिम संकरण विभिन्न वंश परम्परा के दो अथवा अधिक प्रकार के पादपों के सर्वश्रेष्ठ लक्षणों को साथ लाने एवं नई प्रजाति को उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला चयनित संकरण होता है, जो पादप प्रजनकों (Plant breeders) द्वारा कृत्रिम रूप से सम्पन्न किया जाता है। इसमें कृत्रिम ढंग से किसी पुष्प के पराग कणों को स्वेच्छानुसार किसी दूसरे पादप के वर्तिकाग्र पर पहुँचाया जाता है। कृत्रिम परागण विभिन्न जातियों के पादप के मध्य भी किया जा सकता है। कृत्रिम परागण विधि से उन्नत नस्ल की फसले प्राप्त होती हैं, जो उत्पादन एवं गुणवत्ता में श्रेष्ठ होती है। इसके द्वारा रोग प्रतिरोधक बीज भी प्राप्त होते हैं। कृत्रिम संकरण करने हेतु निम्न दो प्रक्रम आवश्यक होते हैं
1. विपुंसन (Emasculation) विपुंसन या बन्ध्याकरण में पादपों के द्विलिंगी पुष्प के परागकोषों को उनकी कलिका स्थिति में ही चिमटी से निकाला जाता है एवं इस पुष्प का मादा जनक के रूप में चयन किया जाता है।
2. थैलीकरण (Bagging) इसे बैगिंग या बोरा वस्त्राकरण भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में विपुंसित (Emasculated) एवं सामान्य दोनों प्रकार के पुष्पों को पॉलीथीन, आदि के थैलों से अनैच्छिक पराग कणों द्वारा पुष्प के वर्तिका का संदूषण रोकने हेतु ढक दिया जाता है।
जब इच्छित पुष्प के विपुंसित वर्तिका परिपक्य होते हैं, तब उन पर दूसरे इच्छित पुष्य के पराग कणों को छिड़क दिया जाता है और पुष्पों को पुनः आवरित कर दिया जाता है।
प्रश्न 8. त्रिसंलयन क्या है? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है? त्रिसंलयन में सम्मिलित न्यूक्लियाई (केन्द्रकों) का नाम बताइए।
उत्तर आवृतबीजी पादपों में भ्रूणकोष में पराग नलिका से मुक्त एक अगुणित नर युग्मक अगुणित अण्ड कोशिका से संयोजन करके द्विगुणित (2n) युग्मनज का निर्माण करता है, यह प्रक्रिया संयुग्मन (Syngamy) या वास्तविक निषेचन कहलाती है, जबकि दूसरा नर युग्मक द्वितीयक ध्रुवीय केन्द्रक (2n) के साथ मिलकर त्रिगुणित (3n) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण करता है। यह प्रक्रिया त्रिसंलयन या त्रिसमेकन (Triple fusion) कहलाती है।
इस प्रकार दोनों नर युग्मक निषेचन प्रक्रिया में भाग लेते हैं अर्थात् निषेचन दो बार होता है, इसलिए इस प्रक्रिया को द्विनिषेचन (Double fertilisation) कहते हैं। अतः संयुग्मन तथा त्रिसमेकन दोनों द्विनिषेचन के ही भाग हैं। इस क्रिया में कुल पाँच केन्द्रक भाग लेते हैं। संयुग्मन के फलस्वरूप बना युग्मनज भ्रूण का निर्माण करता है तथा त्रिसंलयन के पश्चात् बना प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक भ्रूणपोष का निर्माण करता है। इसमें भोजन संग्रहित रहता है, जो भ्रूण के परिवर्धन के समय भ्रूण के पोषण में काम आता है।
प्रश्न 9. आवृतबीजी पादपों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के भ्रूणपोषों का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा भ्रूणपोष क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा भ्रूणपोष पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर आवृतबीजयों में धूणपोष त्रिसंलयन के फलस्वरूप बनता है। इसी कारण येत्रिगुणित (3n) होता है। भ्रूणपोष वृद्धि करते हुए भ्रूण को पोषण प्रदान करता है। अनावृतबीजी में भ्रूणपोष का विकास निषेचन पूर्व ही हो जाता है। अतः यह अगुणित होता है।
आवृतबीजी पादपों में विकास के आधार पर भ्रूणपोष निम्न प्रकार के होते हैं 1. केन्द्रकीय भ्रूणपोष इस प्रकार के भ्रूणपोष में प्राथमिक भ्रूणकोष केन्द्रक बार-बार विभाजित होता है, लेकिन कोशिका भित्ति का निर्माण नहीं होता है। प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक से सूत्री विभाजन द्वारा अनेक केन्द्रकों का निर्माण होता है, जो बाद में परिधि पर विन्यासित हो जाते हैं। इससे भ्रूणपोष के मध्य में एक केन्द्रीय रिक्तिका बन जाती है, जो बाद में समाप्त हो जाती है और बहुत से केन्द्रक व कोशिकाद्रव्य इसमें भर जाते हैं। इसके पश्चात् इसमें बहुत-सी कोशिकाएँ बन जाती हैं। पॉलीपैटेली वर्ग के सदस्यों में इस प्रकार का भ्रूणपोष पाया जाता है; जैसे-नारियल।
2. कोशिकीय भ्रूणपोष इस प्रकार के भ्रूणपोष निर्माण में प्राथमिकम भ्रूणपोष केन्द्रक के प्रत्येक विभाजन के पश्चात् कोशिका भित्ति का निर्माण होता है। गैमोपैटेली वर्ग में इस प्रकार का बहुकोशिकीय भ्रूणपोष पाया जाता है; उदाहरण-पिटूनिया, धतूरा
3. माध्यमिक भ्रूणपोष यह केन्द्रकीय व कोशिकीय भ्रूणपोषों के बीच की अवस्था है। इसमें भ्रूणपोष केन्द्रक के प्रथम विभाजन के पश्चात् कोशिका भित्ति का निर्माण होता है, परन्तु इसके बाद मुक्त केन्द्रक विभाजन पाया जाता है; उदाहरण- ऐरीमुरस ।
प्रश्न 10. बीजपत्राधार एवं बीजपत्रोपरिक के मध्य अन्तर कीजिए।
उत्तर बीजपत्राधार तथा बीजपत्रोपरिक में अन्तर निम्नलिखित हैं
प्रश्न 11. बीजों की प्रकीर्णन विधि का उल्लेख कीजिए।
अथवा फल एवं बीजों के प्रकीर्णन का महत्त्व बताइए।
उत्तर – बीजों का मातृ पादपों से दूर-दूर फैलना, प्रकीर्णन कहलाता है। बीजों में प्रकीर्णन निम्नलिखित प्रकार से होता है
1. वायु द्वारा प्रकीर्णन (Dispersion by air)
*सूक्ष्म और हल्के बीज; जैसे-सिनकोना, टर्मीनेलिया, आदि।
* सपक्ष फल एवं बीज; जैसे- पाइनस, मोरिंगा, साल, असर, मधुलता, आदि ।
*पैरासूट विधि; जैसे- डेन्डिलियोन, मदार, एल्सटोनिया, ऑर्किड, कैलन्डुला, आदि।
*संवेदन विधि; जैसे- हंसलता, एन्टीराइनम, आदि।
*वेलनी विधि; जैसे- पीली कंटेली, सालसोला, चौलाई, आदि।
2. जल द्वारा (By water); जैसे- कुमुदिनी, कमल, आदि।
3. विस्फोट द्वारा (By blast); जैसे- एन्टेड्रा, इक्वेलियम, रुएलिया, अरण्ड, जिरेनियम, गुलमेंहदी, आदि।
4. जन्तुओं द्वारा (By animals); जैसे- चोरकॉटा, लटजीरा, गोखरु, एरिस्टिडा, बोरहाविया, आदि।
प्रकीर्णन का महत्व फलों व बीजों के प्रकीर्णन द्वारा निम्नलिखित लाभ होते हैं
1.पादपों में बने सभी बीज व फल एक स्थान पर एकत्र रूप से अंकुरित न होकर अलग-अलग स्थान पर अंकुरित होते हैं।
2. यदि प्रकीर्णन न हो तथा सभी पादप एक ही स्थान पर उग जाए, तो जीवन हेतु संघर्ष बढ़ जाता है, जिससे कुछ हद तक पादपों की वह प्रजाति प्रभावित होती है।
3. किसी भी प्राकृतिक आपदा या मानव निर्मित आपदा से पूरी प्रजाति को उनमें बचाने हेतु प्रकीर्णन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।
4. प्रकीर्णन द्वारा बीज भिन्न-भिन्न वातावरणीय दशाओं में पहुँच जाते हैं, जिससे पादपों में नए वातावरण के प्रति अनुकूलन आ जाते हैं। इससे पादपों में नई विभिन्नताएं आ जाती है तथा नई जाति के उद्भव की सम्भावना ब जाती है।
प्रश्न 12. बहुभ्रूणता किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार की होती है? स्पष्ट कीजिए।
अथना बहुभ्रूणता क्या है तथा व्यावसायिक स्तर पर इसका क्या लाभ है?
अथवा बहुभ्रूणता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर कभी-कभी एक ही बीज में एक से अधिक भ्रूण विकसित हो जाते हैं, इसे बहुभ्रूणता कहते हैं। बहुभ्रूणता की खोज सबसे पहले सन् 1719 में ल्यूवेनहॉक ने सन्तारों के पादपों में की थी। कुछ पादपों में युग्मनज कई खण्डों में विभाजित हो जाता है और प्रत्येक खण्ड से एक भ्रूण का विकास होता है। इसे विदलन बहुभ्रूणता कहते हैं। इस प्रकार की बहुभ्रूणता नग्नबीजी पादपों जैसे— पाइनस में पायी जाती है।
शनार्फ (1929) के अनुसार, बहुधूणता दो प्रकार की होती हैं हैं।
1. वास्तविक बहुभ्रूणता (True polyembryony) जब सभी भ्रूण एक ही भ्रूणकोष की विभिन्न कोशिकाओं से बनते हैं। इस स्थिति को वास्तविक
बहुभ्रूणता कहते हैं।
यह तीन प्रकार से हो सकती है
*युग्मनज के विदलन के कारण उत्पन्न हुए भ्रूण ।
*भ्रूणकोष की अण्ड के अतिरिक्त किसी अन्य कोशिका; जैसे-सहायक कोशिका अथवा प्रतिमुख से उत्पन्न हुए भ्रूण ।
*अध्यावरण अथवा बीजाण्डकाय की किसी कोशिका से उत्पन्न हुए भ्रूण।
2. कूट बहुभ्रूणता (False polyembryony) जब सभी भ्रूण बीजाण्ड के अलग भ्रूणकोषों या स्थानों पर बनते हैं, तो इस स्थिति को कूट बहुभ्रूणता कहते हैं। यह तीन प्रकार से हो सकती है
* एक ही गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से उत्पन्न बहुत से भ्रूणकोष ।
*विभिन्न गुरुबीजाणु मातृ कोशिकाओं से उत्पन्न बहुत से भ्रूणकोष ।
*अपबीजाणुक भ्रूणकोष ।
बहुभ्रूणता के उपयोग
(i) पादप प्रजनक तथा उद्यान वैज्ञानिकों के लिए फलोत्पादन में यह बहुउपयोगी विधि है। वर्तमान में आम व नींबू प्रजाति के पादपों के लिए बीजाण्डकाय से प्राप्त भ्रूण का उपयोग बहुतायत से किया ज रहा है।
(ii) इनसे प्राप्त नवोद्भिद् जनक पादप के समान होते हैं। ये कायिक प्रजनन के समान ही उपयोगी है।
(iii) ये सामान्यतया रोग मुक्त होते हैं। अतः इनसे विषाणु मुक्त क्लोन प्राप्त किए जा रहे हैं।
प्रश्न 13. निम्न को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
(i) असंगजनन तथा अपयुग्मन
(ii) अनिषेकफलन
अथवा असंगजनन क्या है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
अथवा अपबीजाणुता की परिभाषा लिखिए तथा दो उदाहरण भी दीजिए।
अथवा असंगजनन क्या है? इसका क्या महत्त्व है?
अथवा असंगजनन एवं अनिषेकजन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – असंगजनन (Apomixis) कभी-कभी पादप के जीवन चक्र में लैंगिक जनन या युग्मक संलयन (Syngamy) या अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis division) की अनुपस्थिति में ही नए पादप का निर्माण हो जाता है। यह क्रिया असंगजनन कहलाती है। इसकी खोज विंकलर (Winkler; 1908) ने की थी। यह मुख्यतया दो प्रकार का होता है, जो निम्नलिखित हैं
(i) कायिक असंगजनन (Vegetative Apomixis) इस प्रकार के जनन में किसी कलिका से, जो तना या पत्ती उत्पन्न होती है, उससे एक नए पादप का निर्माण होता है। इस क्रिया में बीज का निर्माण नहीं होता है; उदाहरण- गन्ना, आलू, आदि।
(ii) अनिषेकबीजता (Agamospermy) इस प्रकार के प्रजनन में लैंगिक जनन की अनुपस्थिति में बीज का निर्माण होता है, परन्तु बीज के बनने में युग्मक संलयन तथा अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रक्रियाएं नहीं होती है। यह निम्न प्रकार से होता है
(a) अपस्थानिक भ्रूणता (Adventive Embryony) इस प्रकार के जनन में बीजाण्डकाय या अध्यावरणों की कुछ कोशिकाएँ विभाजन एवं वृद्धि करके भ्रूण का निर्माण करती है, जिसकी सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (Diploid) होती है उदाहरण नींबू, नागफनी आदि।
(b) द्विगुणित बीजाणुता (Diplospory) इस प्रकार के प्रजनन में गुरुबीजाणु मातृ कोशा से भ्रूणकोष बन जाता है। अतः सभी कोशिकाएं द्विगुणित होती हैं। यदि इस भ्रूणकोष की अण्ड कोशिका से नर युग्मक के संयोजन के बिना भ्रूण का विकास हो जाता है, तो वह क्रिया द्विगुणित बीजाणुता कहलाती है; उदाहरण- इक्सेरिस डेन्टाटा (Ixeris dentata))
(c) अपबीजाणुता (Apospory) इसकी खोज रोजनवर्ग (1907) ने की थी। कभी-कभी प्रप्रसु कोशिका की अथवा बीजाण्डकाय की किसी भी एक कोशिका से बिना अर्द्धसूत्री विभाजन या गुरुबीजाणुजनन के भ्रूणकोष या बीजाणुद्भिद विकसित हो जाता है। ये भूणकोष द्विगुणित होते है। इस क्रिया को अपनीजाणुता कहते हैं जैसे-सेब, रुबस तथा पोआ।
असंगजनन का महत्त्व
(i) कृषि विज्ञान में तथा बागवानी में इसका अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि संकर जातियाँ अगर बीज से बोई जाती हैं, तो अपने विशिष्ट गुण कम कर सकती हैं, किन्तु यही जातियाँ जब असंगजनन से प्राप्त की जाती हैं, तब वह पूर्णरूप से अपने संकर जनक के समान विशिष्ट गुणों युक्त होती हैं।
(ii) असंगजनन उन फसली पौधों में भी संकर पौरुष शक्ति बनाए रखने की क्षमता रखता है, जहाँ कायिक प्रजनन सम्भव नहीं होता है।
*अनिषेकजनन (Parthenogenesis) जब अण्ड कोशिका बिना निषेचन के ही अगुणित भ्रूण में विकसित हो जाती है, तो यह क्रिया अनिषेकजनन कहलाती है। इस प्रकार के अगुणित भ्रूण बन्ध्य (Sterile) होते हैं; उदाहरण- ऑइनोवेरा धतूरा, आलू, आदि।
*अपयुग्मन (Apogamy) अण्ड कोशिका को छोड़कर, भ्रूणकोष की किसी भी कोशिका से बिना निषेचन के जब अगुणित भ्रूण का विकास होता है, तो यह क्रिया अपयुग्मन कहलाती है; जैसे-एलियम, एल्केमिला, आदि। पादपों में सहायक कोशिकाएँ या प्रतिमुख कोशिकाओं (Antipodal cells) से इस प्रकार भ्रूण विकसित हो जाते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5 अक
प्रश्न 1. आवृतबीजी पुष्प की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर – पुष्प की संरचना (Structure of Flower) हमारे चारों ओर अनेक प्रकार के पादप पाए जाते हैं, जिनमें अनेक छोटे-बड़े पुष्प उपस्थित होते हैं, जो विभिन्न प्रकार की सुगन्ध, रंग एवं आकार लिए रहते हैं। पुष्प, पादप का जनन अंग होता है। यह एक विशेष प्रकार का रूपान्तरित प्ररोह (Modified shoot) है। एक पूर्ण पुष्प में मुख्य रूप से निम्न चार चक्रीय भाग उपस्थित होते हैं
(i) बाह्यदलपुंज (Calyx) यह पुष्प का सबसे बाहरी प्रथम चक्र है। इसकी इकाई को बाह्रादल (Sepal) कहते हैं। ये प्रायः हरे रंग के होते हैं तथा कलिकावस्था में पुष्प की रक्षा करते हैं। कभी-कभी बाह्यदलपुंज के नीचे बादलों के समान एक और अन्य चक्र होते हैं, जिन्हें अनुबाह्यदल (Epicalyx) कहते हैं।
(ii) दलपुंज (Corolla) यह पुष्प का दूसरा चक्र है। इसकी इकाई को दल (Petal) कहते हैं। ये प्रायः रंगीन होते हैं एवं कीटों को परागण हेतु आकर्षित करते हैं।
(iii) पुमंग (Androecium) यह पुष्प का तीसरा चक्र हैं, जिसमें (नर जनन अंग) प्रायः अनेक पुंकेसर (Stamen) उपस्थित होते हैं। प्रत्येक पुंकेसर एक पुतन्तु तथा परागकोष में विभक्त होता है, परागकोष प्रायः द्विपालित होता है एवं प्रत्येक पाली में दो कोष्ठक (लघुबीजाणुधानी) होते हैं, जिनमें पराग कण बनते हैं।
(iv) जायांग (Gynoecium) यह पुष्प का चौथा चक्र है, जिसमें (मादा जनन अंग ) प्रायः एक या एक से अधिक अण्डप या स्त्रीकेसर (Carpels) उपस्थित होते हैं। प्रत्येक अण्डप तीन भागों-वर्तिका, वर्तिकाग्र तथा अण्डाशय में बँटा होता है, ये अण्डप पृथक् या संयुक्त होते हैं। निषेचन के बाद बीजाण्ड से बीज तथा अण्डाशय से फल बन जाते हैं।
उपरोक्त चक्रों में बाह्यदलपुंज तथा दलपुंज को सहायक चक्र (Accessory whorls) तथा पुमंग व जायांग को आवश्यक चक्र (Necessary whorls) कहते हैं।
जननांगों के आधार पर पुष्प दो प्रकार के होते हैं
(i) एकलिंगी पुष्प (Unisexual flower) जब पुष्प में पुंकेसर या स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है, तो पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं; जैसे-पपीता, तरबूज, आदि।
(ii) उभयलिंगी पुष्प (Bisexual flower) जब पुष्प में पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं, तो पुष्प उभयलिंगी कहलाते हैं; जैसे-गुड़हल, सरसों, आदि। वह पुष्प, जिनमें चारों प्रकार के चक्र पाए जाते हैं, पूर्ण पुष्प (Complete flower) तथा जिनमें एक या एक से अधिक चक्र अनुपस्थित होते हैं, उन्हें अपूर्ण पुष्प (Incomplete flower) कहते हैं।
प्रश्न 2. पुष्पी पादपों में लघुबीजाणुजनन का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा आवृतबीजी पादपों के परागकोष के विकास में विभिन्न अवस्थाओं का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा केवल नामांकित चित्रों की सहायता से आवृतबीजी पादपों में लघुबीजाणुजनन का वर्णन कीजिए।
अथवा आवृतबीजी पादपों में नर युग्मकोद्भिद् के विकास पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – लघुबीजाणुजनन (Microsporogenesis) लघुबीजाणु मातृ कोशिका में लघुबीजाणुओं (पराग कणों) के बनने की क्रिया लघुबीजाणुजनन कहलाती है।
तरुण परागकोषों की कुछ अधःस्तरीय कोशिकाएँ (Hypodermal cells) अन्य कोशिकाओं से भिन्न हो जाती हैं। इन्हें प्रप्रसु कोशिकाएँ (Archesporial cells) कहते हैं। प्रत्येक प्रप्रसु कोशिका परिनत विभाजन द्वारा एक बाहरी प्राथमिक भित्तीय कोशिका व आन्तरिक प्राथमिक लघुबीजाणुजनन कोशिका बनाती है। प्राथमिक भित्तीय कोशिकाओं से अन्तःभित्ति, मध्य स्तर व टेपीटम का निर्माण होता है।
टेपीटम की कोशिकाओं में बहुगुणित (Polyploid) केन्द्रक व कोशिकाद्रव्य में यूबीश संरचनाएँ (Ubisch bodies) पायी जाती हैं। ये पराग कणों के परिवर्धन में सहायक होती हैं। टेपीटम की कोशिकाएँ नष्ट होकर लघुबीजाणुओं के पोषण में सहायता करती हैं। प्राथमिक पुंबीजाणुजनन कोशिकाएँ दो या तीन विभाजन कर लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। प्रत्येक क्रियात्मक लघुबीजाणु मातृ कोशिका अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार अगुणित लघुबीजाणु बनाती हैं।
द्विबीजपत्री पादपों में ये चतुष्फलक (Tetrahedral) व्यवस्था में लगे रहते हैं। द्विबीजपत्री पादपों में पराग कणों की भित्ति का निर्माण युग्पत, जबकि एकबीजपत्री पादपों में उत्तरोत्तर या क्रमानुसार प्रकार का होता है।
नर युग्मकोद्भिद् का परिवर्धन
1. परागण से पहले (Before pollination) पराग कण से पूर्ण विकसित नर युग्मकोद्भिद् बनने तक के क्रम को लघुयुग्मकजनन कहते हैं। नर युग्मकोद्भिद् का विकास परागकोष के अन्दर ही आरम्भ हो जाता है। पराग कण से नर युग्मकोद्भिद् बनाने वाले सभी विभाजन सूत्री विभाजन होते हैं।
पराग कण के प्रथम विभाजन के फलस्वरूप एक बड़ी नली कोशिका या कायिक कोशिका जिसका केन्द्रक भी बड़ा होता है तथा एक छोटी कोशिका, जनन कोशिका बनती है। प्रायः इस दो कोशिकीय अवस्था में पराग कण परागकोष से निकलते हैं अर्थात् परागण की क्रिया होती है। कुछ पादपों में जैसे- साइप्रस जनन कोशिका दो पर कोशिकाओं या नर युग्मकों से विभाजित हो जाती है अर्थात् पराग कण 3-कोशिकीय अवस्था (Thiree-celled stage) पर होता है।
2. परागण के बाद (After pollination) परागण के बाद वर्तिकाग्र पर पहुँचकर पराग कण वर्तिकाय (Stigma) की सतह से तरल पदार्थ सोखने के कारण फूल जाते हैं। इनकी अन्त: चोल (Intine), जनन छिद्र (Germ pore) से पराग (Pollen tube) के रूप में बाहर निकल जाती है। पराग कण के अंकुरण के लिए उच्च आर्द्रता प्रथम आवश्यकता है। इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट्स, बोरॉन, कैल्शियम, एन्जाइम, हॉर्मोन (IAA एवं GA) तथा भौतिक कारक: जैसे-ताप भी
स्व पात्रे (In vitro) अंकुरण के लिए आवश्यक है। पराग नलिका का खोज एक इटैलियन वैज्ञानिक जी. बी. अमिकि ने पोटूलाका ओलीरेसिया में सन् 1824 में किया था। प्रायः एक पराग कण से केवल एक पराग नलिका ही बनती है। ऐसे पराग कणों को एकनलिकीय कहते हैं। लेकिन मालवेसी तथा कुकुरबिटेसी कुल के सदस्यों में एक से अधिक पराग नलिकाएँ भी निकल सकती है।
ऐसे पराग कणों को बहुनलिकीय (Polysiphonous) कहते हैं। पराग नलिका में पहले नाल केन्द्रक जाता है जो कुछ समय बाद नष्ट हो जाता है। पराग नलिका के बीजाण्ड में प्रवेश करने से पहले जनन कोशिका सूत्री विभाजन द्वारा दो छोटे अचल नर युग्मक (Male gametes) बनाती है।
प्रश्न 3. एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते। हुए एक स्पष्ट एवं स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर – बीजाण्ड एक अण्डाकार सफेद एवं अण्डाकार संरचना होती हैं, जो पुष्प के अण्डाशय के अन्दर मृदूतक अपरा पर उत्पन्न होती है। इसके विभिन्न भाग निम्नवत् हैं
1. बीजाण्डवृन्त यह बीजाण्ड का वह भाग होता है, जिसके द्वारा यह अपरा से जुड़ा होता है। बीजाण्ड पर उपस्थित वह बिन्दु जहाँ बीजाण्डवृत्त इसके साथ सम्पर्क में आता है, हाइलम या नाभिका कहलाता है। प्रतीप बीजाण्ड में बीजाण्डवृन्त भी बीजाण्डकाय के साथ समेकित हो जाता है तथा एक उभार बनाता है, जिसे रेफी कहते हैं।
2. अध्यावरण ये बीजाण्ड का एक या दो स्तरीय उपचर्म युक्त बाह्य स्तर होता है। इसमें एक छोटा छिद्र, बीजाण्डद्वार पाया जाता है। बीजाण्डद्वार का विपरीत छोर विभाग कहलाता है।
3. बीजाण्डकाय यह गुरुबीजाणुधानी या बीजाण्ड के शरीर को दर्शाता है। यह मृदूतको कोशिकाओं का बना होता है, जो अत्यधिक भोजन संचित रखता है।
4. भ्रूणकोष यह गुरुबीजाणुधानी में धंसी लगभग अण्डाकार युग्मकोदभिद् सरचना होती है। भ्रूणकोष अत्यधिक पतले पेक्टोसेलुलोस स्तर द्वारा घिरा होता है। अन्दर की ओर यह सात कोशिकाओं युक्त होता है—एक बड़ी द्विकेन्द्रकीय या द्विगुणित केन्द्रीय ध्रुवीय कोशिका, तीन अगुणित बीजाण्डद्वारी कोशिकाएँ व तीन निभागी कोशिकाएँ। बीजाण्डद्वारी कोशिकाएं एक बड़ी अण्ड कोशिका व दो सहायक कोशिकाओं के साथ अण्ड उपकरण बनाती है। निभागी कोशिकाएँ प्रतिमुखी कोशिकाएँ भी कहलाती हैं। भ्रूणकोष की ये सभी कोशिकाएँ जीवद्रव्य तन्तु (Plasmodesmata) द्वारा जुड़ी होती हैं।
प्रश्न 4. आवृतबीजी पादपों में गुरुबीजाणुजनन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
अथवा गुरुबीजाणुजनन क्या है? आवृतबीजी पादपों में मादा युग्मकोद्भिद के परिवर्धन का वर्णन कीजिए।
अथवा एक स्वच्छ, नामांकित चित्र में आवृतबीजी भ्रूणकोष के विभिन्न भागों को दर्शाइए। सहायक कोशिका की भूमिका बताइए।
अथवा चित्रों की सहायता से एक सामान्य 8 केन्द्रकीय भ्रूणकोष के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा आवृतबीजी पादपों में भ्रूणकोष कैसे बनता है? चित्रों की सहायता से समझाइए विभिन्न केन्द्रकों के कार्य की विवेचना कीजिए।
अथवा एक स्पष्ट एवं स्वच्छ चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद् के 7- कोशिकीय, 8-केन्द्रकीय प्रकृति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – द्विगुणित गुरुवीजाणु मातृ कोशिका में अर्द्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप अगुणित गुरुबीजाणु बनने की प्रक्रिया गुरुबीजाणुजनन (Megasporogenesis) कहलाती है।
इसे दो चरणों में बाँटा जा सकता है।
1. आवृतबीजी पादपों में मादा युग्मकोद्भिद का बनना
बीजाण्ड (Ovule) में बीजाण्डकाय के स्वतन्त्र सिरे के कुछ अन्दर अर्थात् अधःस्तरीय (Hypodermal) क्षेत्र में एक या कई कोशिकाओं के एक समूह अपने आकार में वृद्धि करके प्राथमिक प्रप्रसु कोशिकाएँ (Archesporial cells) बनाते हैं। यदि एक से अधिक प्रप्रभु कोशिकाएँ हैं, तो भी प्रायः एक ही कोशिका बड़ी तथा स्पष्ट होकर एक परिनत विभाजन (Periclinal division) करती है, जोकि एक सूत्री विभाजन (Mitotic division) है। इस विभाजन के द्वारा दो कोशिकाओं का निर्माण होता है।
(i) बाहरी कोशिका, प्राथमिक भित्तीय कोशिका (Primary parietal cell) कहलाती है, जो एक परिनत विभाजन के द्वारा विभाजित होकर दो कोशिकाएं अथवा कुछ अपनत (Anticlinal) विभाजनों के द्वारा भित्तीय कोशिकाओं (Parietal cells) का एक समूह बना लेती है।
(ii) भीतरी कोशिका, प्राथमिक बीजाणुजनक कोशिका (Primary aporogenous cell) कहलाती है और प्रायः बिना विभाजित हुए सीधे ही गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (Megaspore mother cell) की तरह वृद्धि करने लगती हैं। यह कोशिका जब काफी बड़ी तथा स्पष्ट केन्द्रक वाली दिखाई देती तब इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) होता है और चार अगुणित (Haploid = n) गुरुबीजाणु कोशिकाएँ बनती हैं, जो प्रायः एक लम्बवत् चतुष्क (Linear tetrad) में विन्यासित रहती हैं।
इस प्रकार एक सम्पूर्ण बीजाण्ड अर्थात् गुरुबीजाणुधानी (Megasporangium) में केवल चार गुरुबीजाणु बनते हैं, जिनमें से प्रायः केवल एक निभागीय (Chalazal) छोर की ओर वाला गुरुबीजाणु, जो एक अगुणित (Haploid) तथा मादा युग्मकोद्भिद की प्रथम कोशिका है, क्रियाशील होता है और मादा युग्मकोद्भिद् (Female gametophyte) अर्थात् भ्रूणकोष (Embryo sac) में परिवर्धित होता है। शेष बचे तीन गुरुबीजाणु बाद में नष्ट हो जाते हैं।
2. भ्रूणकोष का निर्माण क्रियाशील गुरुबीजाणु बीजाण्डकाय से अधिक मात्रा में पोषण प्राप्त करने लगता है तथा अब यह बड़ा होकर भ्रूणकोष मातृ कोशिका (Embryo sac mother cell) की तरह कार्य करने लगता है। यह बीजाण्डकाय का अधिकतम स्थान घेर लेता है। वृद्धि के समय इसका केन्द्रक, जो लगभग मध्य में स्थित था, वह विभाजित होकर दो केन्द्रक बनाता है और बने हुए दोनों केन्द्रकों विपरीत ध्रुवों पर (बीजाण्डद्वार वाला सिरा तथा दूसरा निभाग की ओर) स्थित हो जाते हैं।
मादा युग्मकोद्भिद् अर्थात् भ्रूणकोष के परिवर्धन की विभिन्न प्रावस्थाएँ
दोनों ध्रुवों पर स्थित ये केन्द्रक सूत्री विभाजन के द्वारा प्रायः दो बार फिर से विभाजित होते हैं। इस प्रकार, प्रत्येक ध्रुव पर चार-चार (कुल आठ) केन्द्रक बन जाते हैं।
इस समय तक क्रियाशील गुरुबीजाणु, जिसमें ये केन्द्रक स्थित होता है, वह बढ़कर एक कोष की तरह हो जाता है और अब इसे भ्रूणकोष (Embryo Sac) कहते हैं। भ्रूणकोष के प्रत्येक ध्रुवीय सिरे में उपस्थित चार-चार केन्द्रकों में से एक-एक केन्द्रक एक-दूसरे के साथ जुड़कर केन्द्रीय भाग में द्वितीयक केन्द्रक (Secondary nucleus) युक्त एक ध्रुवीय कोशिका का निर्माण करते हैं तथा दोनों ध्रुवों पर शेष तीन-तीन केन्द्रक अपने चारों ओर कोशिकाद्रव्य एकत्रित कर निम्न कोशिकाओं का निर्माण करते हैं।
बीजाण्डद्वार की ओर वाली तीन कोशिकाओं में से एक कोशिका अधिक बड़ी हो जाती है, यह अण्ड कोशिका (Egg cell or Oosphere) तथा शेष दोनों कोशिकाएं सहायक कोशिकाएँ (Synergid cells) कहलाती हैं। अण्ड कोशिका प्रायः मध्य में तथा सहायक कोशिकाएँ पार्श्व में व्यवस्थित रहती हैं। सहायक कोशिकाओं पर उपस्थित तन्तुमय समुच्चय रसानुवर्तन द्वारा पराग नलिका को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। निभाग की ओर बनी तीनों कोशिकाएँ, प्रतिमुखी कोशिकाएँ (Antipodal cells) कहलाती हैं। इस तरह से, गुरुबीजाणुधानी के अन्दर ही एक गुरुबीजाणु मादा युग्मकोद्भिद् अथवा भ्रूणकोष का निर्माण करता है एवं एक प्रारूपी आवृतबीजी भ्रूणकोष 7 कोशिकीय तथा 8-केन्द्रकीय होता है।
प्रश्न 5. परागण क्या हैं? पुष्पी पादपों में होने वाले विभिन्न प्रकार के परागण का वर्णन कीजिए। जीवीय परागण कर्मको के बारे में उल्लेख कीजिए।
अथवा परागण किसे कहते हैं? साल्विया में होने वाले परागण की क्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर पुमंग में पराग कणों (Pollen grains) का निर्माण होता है, जो नर युग्मक (Male gamete) उत्पन्न करते हैं, जबकि जायांग में अण्डाशय का निर्माण होता है, जिसमें अण्डाणु (Egg) बनता है। पादपों में इन पराग कणों के परागकोष (Anther) से वर्तिका (Stigma) तक पहुँचने की इस क्रिया को परागण (Pollination) कहते हैं। पराग कण के पश्चात् पुंकेसर और दल गिर जाते हैं।
परागण दो प्रकार का होता है
1. स्वपरागण (Self-pollination or Autogamy) स्व-परागण में एक पुष्प के पराग कण उसी पुष्प अथवा उसी पादप के दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं। यह क्रिया द्विलिंगी व एकलिंगी दोनों पुष्पों में पायी जाती है। पादपों में स्व-परागण के लिए विशेष युक्तियाँ समकालपक्वता (Homogamy) तथा निमिलिता या अनुन्मील्यता (Cleistogamy) पायी जाती है। समकालपक्वता में नर तथा मादा जननांग एक साथ परिपक्व होते हैं, जबकि निमिलिता में द्विलिंगी पुष्प सदैव बन्द रहते हैं और कभी नहीं खुलते है, जैसे-खट्टी बूटी (ऑक्जेलिस) तथा कनकौआ (कौमेलाइना)।
2. पर परागण (Cross-pollination or Allogamy) पर परागण में एक पुष्प के पराग कण उसी जाति के दूसरे पादप के वर्तिकाल (Stigma) पर पहुँचते हैं। इस क्रिया में बीज उत्पन्न करने के लिए एक ही जाति के दो पादप काम में आते हैं। यहाँ परागकणों को किसी दूसरे पुष्प के वर्तिकाय तक पहुँचने के लिए किसी साधन की आवश्यकता होती है।
पर परागण की विधियाँ (Methods of cross-pollination) पादपों में पर परागण निम्न प्रकार से होता है
(i) कीटों द्वारा परागण (Entomophily) कोट परागित पुष्प बड़े, आकर्षक रंग युक्त दलों या बाह्यदलों, सुगंध एवं मकरन्द युक्त होते हैं। इन पुष्पों के वर्तिका प्रायः चिपचिपे होते हैं; उदाहरण-अंजीर, आक, साल्विया, पीपल, आदि।
साल्विया में परागण
साविया में परागण कोटो द्वारा होता है। अतः इसे कीट पर परागण कहते हैं। इसका पुष्प द्विओष्ठी (Bilobiate) होता है। ऊपरी ओष्ठ प्रजनन अंगों की रक्षा करता है और निचला ओष्ठ मधुमक्खियों (कोटों) के बैठने के लिए मंच (स्थान) का कार्य करता है। इसके पुष्प प्रोटेन्ड्स (Protandrous) अर्थात् पुंकेसर स्त्रीकेसर से पहले परिपक्व हो जाते हैं। इसमें पुकेसरों की संख्या दो होती हैं तथा दोनों पुकेसरों को बध्य पालियाँ दलपुंज के मुख पर स्थित रहती हैं। जब मकरन्द की खोज में मधुमक्खी दलपुंज की नली में प्रवेश करती है, तो निचली बन्ध्य परायकोच पालियों को पक्का लगता है, जिससे संयोजी का ऊपरी खण्ड लिवर की भाँति नीचे झुक जाता है, जिससे दोनों अवश्य परागकोष पालियाँ कीट से टकराकर अपने पराग कण इसके ऊपर बिखेर देती है और जब यह कीट अन्य परिपक्व अण्डप वाले किसी दूसरे पुष्प में प्रवेश करते हैं, तो नीचे की ओर मुड़े हुए वर्तिक इसकी पीठ से पराग कणों को प्राप्त कर लेते हैं और इस प्रकार परागण हो जाता है।
(ii) वायु द्वारा परागण (Anemophily)
(iii) जल द्वारा परागण (Hydrophily) यह परागण जल में उगने वाले पादपों में पाया जाता है। इन पादपों में प्राय: पुष्प जल के ऊपर खिलते हैं; जैसे- कमल, जललिलो, आदि। जल परागण के लिए पुष्पों, पराग कणों, वर्तिका, वर्तिकाम, आदि में अनेक अनुकूलन पाए जाते हैं। पुष्प रंगहीन, मकरन्दहीन और गन्धहीन होते हैं। पराग कण हल्के, श्लेष्म युक्त तथा ये संख्या में अधिक होते है। इससे पराग कण जल सतह पर तैरते हुए मादा पुष्प के सम्पर्क में आते हैं। तत्पश्चात् पराग कण वर्तिकाम द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं:
उदाहरण- वैलिस्नेरिया, हाइड्रिला, सिरेटोफिल्लम, आदि में।
(iv) जन्तु परागण (Zoophily) कुछ पादपों में परागण घोंघों, पक्षियों, चमगादड़, आदि की सहायता से होता है; उदाहरण सेमल, कदम्ब, बिग्नोनिया, आदि।
प्रश्न 6. आवृतबीजी पौधों में निषेचन क्रिया का वर्णन कीजिए। निषेचन के बाद पुष्प में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
अथवा परागकण का वर्तिकाग्र पर अंकुरण का नामांकित चित्र की सहायता से वर्णन कीजिए तथा नर और मादा युग्मकों के संयोजन का भी वर्णन कीजिए।
अथवा आवृतबीजी पादपों में निषेचन क्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा आवृतबीजी पौधों में निषेचन कैसे होता है? पश्च-निषेचन संरचनाओं एवं घटनाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – निषेचन अगुणित नर एवं मादा जनन इकाइयों या युग्मकों के संयोजन या संयुग्मन की क्रिया निषेचन कहलाती है। पुष्पीय पादपों में यह क्रिया पराग कणों द्वारा निर्मित नर युग्मक तथा बीजाण्ड में स्थित अण्ड कोशिका के संयोजन द्वारा होती है।
यह क्रिया निम्नलिखित चरणों के माध्यम से सम्पन्न होती है
1. पराग कण का वर्तिकाग्र पर अंकुरण पराग कण वर्तिका पर पहुंचकर यहाँ उपस्थित शर्करायुक्त तरल पदार्थ को सोखकर फूल जाते हैं। इनका अन्त: चोल (Intine) पराग नलिका के रूप में जनन छिद्र से बाहर निकल आता है। अंकुरण के बाद पराग नलिका में नाल केन्द्रक (Tube nucleus) या कायिक केन्द्रक (Vegetative nucleus) तथा जनन कोशिका से निर्मित दोन युग्मक उपस्थित होते हैं। नर युग्मक, मादा युग्मक की तुलना में छोटे एवं अचल होते हैं। नाल केन्द्रक पराग नलिका के बीजाण्ड में पहुँचने से पूर्व ही विघटित हो जाता है।
2. पराग नलिका का बीजाण्ड में प्रवेश अधिकांश आवृतबीजी पादपों में पराग नली वर्तिका मे होती हुई बीजाण्डद्वार के समीप पहुँच जाती है और इसी समय पराग नली में स्थित जनन केन्द्रक दो नर युग्मक में विभाजित हो जाता है: उदाहरण- कैप्सेला में पराग नलिका बीजाण्डद्वार द्वारा बीजाण्ड में प्रवेश करती है। इसे अण्डद्वारी प्रवेश (Porogamy) कहते हैं।
कैज्युराइना में पराग नलिका विभाग द्वारा बीजाण्ड में प्रवेश करती है, इसे निभागीय प्रवेश (Chalazogamy) कहते हैं। कभी-कभी पराग नलिका बीजाण्ड के अध्यावरण (Integuments) को तोड़ कर प्रवेश करती है, इसे मध्य प्रवेश (Mesogamy) कहते हैं; जैसे कुकुरबिटा।
3. पराग नलिका का भ्रूणकोष में प्रवेश पराग नलिका भ्रूणकोष में प्रायः बीजाण्डद्वारा छोर से तन्तुमय समुच्चय के रासायनिक उद्दीपन के कारण प्रवेश करती है। पराग नलिका का अन्तिम सिरा अण्ड उपकरण में एक सहायक कोशिका और अण्डकोशिका के बीच से होकर या सहायक कोशिका को भेदते हुए बीजाण्ड में प्रवेश करता है। सहायक कोशिका में पराग नलिका फटकर दोनों नर युग्मकों को स्वतन्त्र कर देती है।
प्रश्न 7. एक पुष्प में निषेचन पश्च परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
अथवा एक द्विबीजपत्री पादप में युग्मनज से प्रारम्भ कर भ्रूण की वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं को चित्र द्वारा दर्शाइए
अथवा आवृतबीजी पादपों में चित्र की सहायता से द्विबीजपत्री भ्रूण के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा द्विबीजपत्री भ्रूण के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा द्विबीजपत्री पौधों में भ्रूण के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का केवल नामांकित चित्र बनाइए।
अथवा पुष्पी पादप में निषेचन पश्च घटनाओं की व्याख्या कीजिए
उत्तर पुष्पीय पादपों में अगुणित नर तथा मादा युग्मकों के संलयन के उपरान्त धूणकोष में दो संरचनाओं का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है।
इसमें द्वितीयक ध्रुवीय केन्द्रक अर्थात् प्रारम्भिक भूणपोष केन्द्रक विकसित होकर त्रिगुणित भूणपोष बनाता है और युग्मनज विकसित होकर द्विगुणित भ्रूण का निर्माण करता है। भ्रूणकोष के अन्दर उपस्थित प्रतिमुख व सहायक कोशिकाएँ निषेचन के तुरन्त बाद ही नष्ट हो जाती है। निषेचन के पश्चात् होने वाले परिवर्तनों के अन्तर्गत भ्रूण का विकास, भ्रूणपोष का विकास तथा फल एवं बोज का निर्माण आता है।
भ्रूण का विकास
द्विबीजपत्री भ्रूण का विकास
1. युग्मनज आकार में बढ़कर अपने चारों ओर सेलुलोस की भित्ति का निर्माण करता है। यह अनुप्रस्थ विभाजन के द्वारा बीजाण्डद्वार की ओर आधार कोशिका तथा विभाग की ओर अन्तस्थ कोशिका (Terminal cell) का निर्माण करता है।
2. आधार कोशिका अनुप्रस्थ विभाजनों द्वारा 6-10 कोशिका लम्बा निलम्बक बनाती है। निलम्बक की सबसे ऊपरी कोशिका अधःस्फीतिका (Hypophysis) कहलाती है।
यह कोशिका आगे विभाजन करके मूलांकुर (Radicle) के शीर्ष को जन्म देती है। frees (Suspensor) का कार्य बीजाण्डकाय से भोजन अवशोषित करके वृद्धि कर रहे भ्रूण को प्रदान करना है।
3. अन्तस्थ कोशिका अनुप्रस्थ विभाजन करके अष्टांशक (Octant) का निर्माण करती है। इसमें अचः स्फीतिका के नीचे की चार कोशिकाएँ, अधराधर कोशिकाएँ (Hypobasal cells) तथा इसके नीचे की चार कोशिकाएँ अध्याधर कोशिकाएँ (Epibasal cells) कहलाती है।
4. अधराधर कोशिकाओं से मूलांकुर (Radicle) व अधोवीजपत्र तथा अध्याधर कोशिकाओं से प्रांकुर (Plumule) व बीजपत्र (Cotyledons) बनते हैं।
5. अष्टांशक (Octant) अवस्था की 8 कोशिकाएँ परिनत विभाजन के द्वारा बाह्यात्वचीय कोशिकाओं का एक स्तर बनाती हैं, जो अपनत विभाजन (Anticlinal division) के द्वारा त्वचाजन (Dermatogen) बनाता है।
6. इसके अन्दर की कोशिकाएँ उदग्र व अनुप्रस्थ विभाजनों द्वारा विभाजित होकर केन्द्रीय रम्भजन (Plerome) तथा मध्य में वल्कुटजन (Periblem) बनाती हैं। वल्कुटजन कोशिकाएँ, वल्कुट (Cortex) तथा रम्भजन कोशिकाएँ रम्भ (Stele) बनाती हैं।
7. भ्रूण वृद्धि करके हृदयाकार हो जाता है। इसमें बीजपत्र बड़े होकर मुड़ जाते हैं। इस प्रकार परिपक्व द्विबीजपत्री भ्रूण में दो बीजपत्र होते हैं, जो एक अक्ष से जुड़े होते हैं। अक्ष का एक भाग, जो बीजपत्रों के बीच होता है, प्रांकुर कहलाता है और दूसरा भाग मूलांकुर कहलाता है।
एकबीजपत्री भ्रूण का विकास
1. एकबीजपत्री पादपों में युग्मनज लम्बाई में बढ़कर अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा विभाजित होता है। इससे बीजाण्डद्वार (Micropyle) की ओर आधार कोशिका (Basal cell) तथा निभाग की ओर अन्तस्थ कोशिका (Terminal cell) बनती है।
2. आधार कोशिका से निलम्बक का निर्माण होता है।
3. अन्तस्थ कोशिका के विभाजन से अनेक कोशिकाएँ बनती हैं। ये कोशिकाएँ निलम्बक के नीचे स्थित कोशिकाओं के साथ मिलकर भ्रूण का निर्माण करती हैं।
4. भ्रूण में एक बीजपत्र होता है, जिसे स्कुटेलम (Scutellum) कहते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें प्रांकुर, बीजपत्राधार व मूलांकुर होता है। इसमें प्रांकुर पाश्र्वय होता है।
बीज तथा फल का निर्माण (Seed and fruit formation) निषेचन के बाद अण्डाशय (Ovary) से फल और फल के अन्दर बीजाण्डों से बीज बनते हैं। बीजाण्ड में भ्रूणपोष तथा भ्रूण के विकास के साथ-साथ अध्यावरण सूखकर सख्त हो जाते हैं और बीज कवच बनाते हैं। बीजाण्डकाय (Nucellus) समाप्त हो जाता है, लेकिन कुछ बीजों में यह एक पतली परत के रूप में शेष बचा रहता है, जिसे पेरीस्पर्म (Perisperm) कहते हैं।
परिपक्व अण्डाशय से सत्य फल बनता है। यदि अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्प के अन्य भाग भी फल निर्माण में भाग लेते हैं, तो इस प्रकार से बनने वाले फल आभासी फल या कूटफल (False fruit) कहलाते हैं; उदाहरण-सेब, अनानास, आदि।
प्रश्न 8. फलों तथा बीजों के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – बीज के निर्माण का महत्त्व (Significance of Seed Formation) बीज के निर्माण की प्रक्रिया आवृतबीजी पादपों में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अनुकूलन है। बीजों के अन्दर भ्रूण जीवित होते हुए भी सक्रिय अवस्था में नहीं होता है, अर्थात् प्रसुप्त अवस्था में रहता है। प्रायः बीजों के अंकुरण के लिए ऑक्सीजन, जल एवं उचित तापमान को आवश्यकता होती हैं, जबकि कुछ बीज तो विशेष परिस्थितियों में ही अंकुरित होते हैं, बीजों की यह निष्क्रिय अवस्था प्रसुप्ति (Dormancy) कहलाती है।
वातावरणीय दशाओं के अनुकूल ना होने की स्थिति में भ्रूण बीज के अन्दर लम्बे समय तक सुरक्षित अवस्था में रहते हैं, जैसे ही उचित परिस्थितियाँ आती हैं। ये अंकुरित हो जाते हैं। बीजों के भ्रूणपोष में संचित भोजन अंकुरण के समय भ्रूण की वृद्धि में सहायक होता है।
बीज वायु, जल तथा अन्य माध्यमों की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रकीर्णित होते हैं। ये बीज विभिन्न वातावरण में पहुँचकर अंकुरित होते हैं जिससे पादपों में अनुकूल विभिन्नताओं के कारण नई जातियों की उत्पत्ति होती है।
फलों का महत्त्व (Significance of Fruits) फलों का निर्माण आवृतबीजी पादपों का विशिष्ट लक्षण है, जो पादपों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। फलों के अन्दर बीज सुरक्षित रहते हैं।
एक फल के अन्दर अनेक बीज बिना किसी हानि के लम्बे समय तक सुरक्षित रह सकते हैं। दृढ फलभित्ति के कारण वातावरणीय दशाएँ तथा अनेक जीव-जन्तु बीजों को हानि नहीं पहुँचा पाते हैं। इसके अतिरिक्त फलों में विशेष रचनाएँ उत्पन्न होने के लिए उनका जल, वायु, जन्तुओं, आदि द्वारा आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रकीर्णन भी होता है। इस प्रकार आवृतबीजी पादपों में फलों के निर्माण का विशेष महत्त्व है।
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