डॉ भगवतशरण उपाध्याय का जीवन परिचय || Dr Bhagwat saral Upadhyay ka jivan Parichay ine Hindi
UP board live class Class- 10th Hindi
पाठ- 6 अजंता ( डॉ भगवतशरण उपाध्याय)
-लेखक संबंधी प्रश्न-
(1)- डॉ भगवतशरण उपाध्याय का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए|
(2)- डॉक्टर भगवतशरण उपाध्याय का जीवन परिचय देते हुए उनकी गलतियों और बात करूं पर प्रकाश डालिए|
(3) - डॉ भगवतशरण उपाध्याय का साहित्य परिचय दीजिए|
(4) - डॉ भगवतशरण उपाध्याय का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रतिभा और भाषा शैली पर प्रकाश डालिए
(6)- डॉ भगवतशरण उपाध्याय की भाषा शैली की विवेचना कीजिए|
जीवन परिचय-
डॉ भगवतशरण उपाध्याय का जन्म सन 1910 में बलिया जिले के उजियारपुर नामक गांव में हुआ था अपनी तैयारी में शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास विषय में m.a. किया| संस्कृत -साहित्य तथा पुरातत्व के ज्ञानी थे/ उन्होंने पुरातत्व एवं प्राचीन भाषाओं का गहन अध्ययन के साथ-साथ अन्य आधुनिक यूरोपीय भाषाओं का भ्रमण करते हुए हिंदी -साहित्य को उन्नति के पथ पर अग्रसर कराने विशिष्ट योगदान दिया|
इन्होंने 'पुरातत्व विभाग' 'प्रयाग संग्रहालय' लखनऊ संग्रहालय के अध्यक्ष तथा पिलानी में विदुला 'महाविद्यालय में प्राध्यापक पद पर कार्य किया| इसके पश्चात विक्रम विश्वविद्यालय में उन्होंने प्राचीन इतिहास विभाग में प्रोफेसर पद ग्रहण किया तथा अध्यक्ष पद पर कार्य करते हुए वहीं से अवकाश ग्रहण किया| इसी प्रकार हिंदी साहित्य की सेवा करते हुए अगस्त ,1982 में उनका स्वर्गवास हो गया|
साहित्यिक परिचय-
उपाध्याय जी ने अनेक अनेक देशों का भ्रमण किया उन्होंने यूरोप अमेरिका चीन आदि देशों की यात्राएं कीं तथा इन देशों में भारतीय संस्कृति एवं साहित्य पर व्याख्यान प्रस्तुत किए उपाध्याय जी अपने स्वतंत्र विचार एवं मौलिक विचारों के लिए प्रसिद्ध थे इनके व्यक्तित्व की ओर आकर्षित करने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्राचीन भारतीय संस्कृति के अध्येता और व्याख्या कार होते हुए भी रूढ़िवादिता और परंपरा बादशाह के प्रभाव से सदैव अलग रहे|
हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने के लिए उन्होंने विभिन्न प्रत्यय किए यह लंबे समय तक लगातार साहित्य साधना में लगे रहे| इनकी रचनाओं में अध्ययन की विजेता स्पष्ट रूप से झलकती है! यह एक महान शैली कार्य समर्थ आलोचक व पुरातत्व के महान ज्ञाता थे/ इन्होंने साहित्य ,संस्कृति, कला आदि विभिन्न विषयों पर सौ से भी अधिक पुस्तकें लिखी| आलोचना, यात्रा वृतांत ,पुरातत्व ,संस्थान एवं रेखाचित्र आदि विधाओं का सर्जन भी अपने साहित्य में किया|
कृतियां-
उपाध्याय जी की प्रमुख रचनाएं में लिखे है
(1)-आलोचनात्मक ग्रंथ- साहित्य और कला " विश्व साहित्य की रूपरेखा, 'इतिहास के पन्नों पर, 'विश्व की एशिया की देन' 'मंदिर और भवन!
(2)- यात्रा -साहित्य- 'कलकत्ता से पीकिंग'|
(3) - अन्य ग्रंथ 'ठूठा आम' "सागर की लहरों पर' कुछ फीचर' "कुछ एकांकी इतिहास साक्षी है', 'इंडिया इन कालिदास|
भाषा-
उपाध्याय जी ने अपने साहित्य में शुद्ध परिष्कृत एवं परामर्श इस भाषा का प्रयोग किया है| इनकी भाषा में बोधगम्यता के साथ-साथ गंभीर चिंतन एवं विस्तार भी विद्यमान है| ग्रहण से गहन विषय को भी सरल भाषा में प्रस्तुत करने की क्षमता भी इनमें दिखाई पड़ती है| इनकी सबसे भाषा सजीवता का गुण विद्यमान है इनकी भाषा सरल सरल, एवं महत्वपूर्ण है|
शैली-
उपाध्याय जी ने अपनी रचना में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया है
1- विवेचनात्मक- उपाध्याय जी ने अपने आलोचनात्मक ग्रंथों पर एवं निबंधों में विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया है| "साहित्य और कला, 'विश्व साहित्य की रूपरेखा' आदि आलोचनात्मक ग्रंथों में इस शैली की प्रधानता है|
(2) - वर्णनात्मक- इस शैली का प्रयोग उपाध्याय जी ने अपने यात्रा साहित्य में किया है इस शैली की उत्कृष्ट जीवन मित्रता का कारण इसका वर्णनात्मक के साथ साथ भावनात्मक पक्ष का होना है|
(3)-भावात्मक भारतीय संस्कृत से लगा होने के कारण उनकी संस्कृति रचनाओं में भावात्मक शैली की छटा देखने को मिलती है| 'झूठा आम ,'सागर की लहरों ,पर 'मंदिर और भवन ,आदि कृतियों में भावात्मक शैली का प्रयोग किया गया है|
हिंदी साहित्य में स्थान-
संस्कृत साहित्य तथा पुरातत्व के अध्ययन में डॉ भगवतशरण उपाध्याय जी के विशिष्ट रुचि है इसके द्वारा भारतीय संस्कृति एवं साहित्य पर विदेशों में दी गई व्याख्या हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है पुरातत्व के क्षेत्र में तो इन्हें प्राप्त है उन्होंने 100 से अधिक विभिन्न विधाओं में रचना करके हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय व अविस्मरणीय स्थान प्राप्त किया है!
1- जिंदगी को मौत के पंजों से मुक्त कर उससे अमर बनाने के लिए आदमी ने पहाड़ काटा है ! किस तरह इंसान की खूबियों की कहानी सदियों बाद आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाई जाए इसके लिए आदमी ने कितने ही उपाय सोचें और किए !उसने चट्टानों पर अपने संदेश खोदे से ऊंचे धातुओं से इतने पत्थर के खंभे खड़े किए तांबे और पीतल के पत्थरों अक्षरों के मोती बिखेरे और उसके जीवन मरण की कहानी सदियों के उतार पर सरकती चली आई ,चली आ रही हैं, जो आज हमारी अमानत विरासत बन गई है|
(1) - प्रस्तुत गंडास का संदर्भ लिखिए|
2) - रेखाकित अंश की व्याख्या कीजिए|
(3) - 1-व्यक्ति के आगामी पीढ़ी तक अपनी बातों को पहुंचाने के लिए क्या-क्या किया है!
(2) - आगामी पीढ़ी तक पहुंचाई गई बातें आज हमारे लिए क्या स्थान रखते हैं|
(3) - लेखक की दृष्टि में अजंता की गुफाओं के निर्माण का क्या उद्देश्य रहा है|
-उत्तर-
(1 ) -प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'हिंदी' के गद्य खंड में संकलित तथा भारतीय पुरातत्व के महान विद्यान " श्री भगवत शरण उपाध्याय द्वारा लिखित 'अजंता' शीर्षक निबंध से उद्धृत है|
-2) - रेखांकित अंश की व्याख्या- मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है मृत्यु सबको निकल जाती है मृत्यु से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है वह है कृति ,(रचना) मनुष्य को कुछ ऐसी रचना कर देनी चाहिए जो अंतकाल तक स्थाई रहे| जब तक वह रचना विद्वान रहेगी ,उसके रचयिता का नाम जीवित रहेगा/ लोग उसे भी याद करेंगे| किसी व्यक्ति विशेष को अगली पीढ़ियां जाने और सैकड़ों -हजारों वर्षों के बाद आने वाली पीढ़ियां भी अपने महान पूर्वजों की विशेषताओं और इतिहास से परिचित हो इसके लिए मन उसने अनेक उपाय सोचे और उपायों को कार्य रूप में परिणत भी किया|
(3) -(1) - अपनी बातों को आगामी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए व्यक्ति ने पत्थर की चट्टानों पर संदेश खुदबाय दीवारें ऊंची -चिकने पत्थरों पर खंबे बनवाए तांबे- पीतल के पत्रों पर लेख पर्वतों पर गुफा मंदिर बनवाए|
3-(2) - आगामी पीढ़ी तक विभिन्न माध्यमों से पहुंचाई गई बातें आज हमारे लिए धरोहर का स्थान रखते हैं, जो पूर्वजों को परंपरा से आए हमारी संपत्ति है|
3- (3) - लेखक की दृष्टि में अजंता की गुफाओं के निर्माण का उद्देश्य है कि सैकड़ों -हजारों वर्षों के बाद आने वाली पीढ़ियां भी अपने पूर्वजों की विशेषताओं और अपने देश के इतिहास से परिचित हो सकें|
Writter Name- Roshani kushwaha
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