UP board solution of class 10th Hindi- (कर्मवीर भरत खंडकाव्य) || karmveer Bharat chitran saransh- up board live

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UP board solution of class 10th Hindi- (कर्मवीर भरत खंडकाव्य) || karmveer Bharat chitran saransh- up board live

UP board solution of class 10th Hindi- (कर्मवीर भरत खंडकाव्य) || karmveer Bharat chitran saransh- up board live 

नमस्कार दोस्तों स्वागत है एक और नई पोस्ट में तो आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कर्मवीर भारत के द्वितीय सर्ग कथा के बारे में बिल्कुल आसान भाषा में बताने वाले हैं।बप अगर आपको यह पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तों और मित्रों में जरूर शेयर करें और पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

 UP board solution of class 10th Hindi- (कर्मवीर भरत खंडकाव्य) || karmveer Bharat chitran saransh- up board live

Table of contents 

'कर्मवीर भरत' खंडकाव्य के प्रथम सर्ग आगमन की कथावस्तु लिखिए।

कर्मवीर भरत के द्वितीय सर्ग अथवा राजभवन सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए ।

दशरथ की मृत्यु का कारण

राम को वन भेजने के कारण

कर्मवीर भारत खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग आदर्श वरण का सारांश लिखिए! 

कर्मवीर भरत ' के चतुर्थ सर्ग की कथा लिखिए!

दशरथ का अंतिम संस्कार

कर्मवीर भरत' खंडकाव्य के पंचम सर्ग का सारांश लिखिए!

कर्मवीर भारत के षष्ठ सर्ग अंतिम सर्ग राम भरत मिलन का सारांश लिखिए! 

कर्मवीर भरतखंड का के आधार पर उसके नायक भारत का चरित्र चित्रण कीजिए।

कर्मवीर भारत के आधार पर कैकेई का चरित्र चित्रण कीजिए। 


प्रश्न.1- 'कर्मवीर भरत' खंडकाव्य के प्रथम सर्ग आगमन की कथावस्तु लिखिए।


उत्तर- आगमन सर्ग (प्रथम सर्ग)- भरत एवं शत्रुघ्न दोनों अपने ननिहाल गए हुए थे। अयोध्या के दूध में वहां पहुंच बार दोनों भाइयों को सूचित किया कि आप दोनों राजकुमारों को ज्यादा शीघ्र गुरु वशिष्ठ ने अयोध्या बुलाया है। भारत ने परिवारिक कुशल क्षेम जाननी चाही लेकिन दूत अपनी भावनाओं को दबाते हुए मौन ही रहा तथा वह दशरथ की मृत्यु एवं राम बनवास के समाचार को छिपा गया। भरत एवं शत्रुघ्न मामा की आज्ञा लेकर अयोध्या की ओर चल पड़े। उन्हें मार्ग शून्य राम प्रतीत हुआ। अयोध्या नगरी में सुन्नता देखकर तो उन्हें अत्यधिक आश्चर्य हुआ क्योंकि उन्होंने देखा कि उनके आगमन पर किसी प्रकार का उल्लास नहीं दिखलाई दिया।


ना कोई स्वागत, ना कोई नाच गाना। राजभवन मूक इगितो का केंद्र बन गया था। बुद्धिमान भरत ने अंबगल हो गया लेकिन क्या हो गया, इस वास्तविकता का उन्हें पता नहीं चला। वे सर्वप्रथम सीधे अपने पूज्य पिता दशरथ जी के भवन में ही पहुंचे। वहां की शांति देखकर तो उनका मन एकदम विचलित हो उठा। उन्होंने राज्य भवन के द्वार पर किसी द्वारपाल अथवा मंत्री तक को नहीं देखा। तलवे अति व्याकुल हुए और अपनी माता के पीछे भवन की ओर चल पड़े।


प्रश्न -2 कर्मवीर भरत के द्वितीय सर्ग अथवा राजभवन सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए । (2008, 10,11,12,13) 


राजभवन इस सर्ग में भरत कैकई मिलन के साथ-साथ राम वन गमन की संक्षिप्त कथा के अतिरिक्त अभिव्यक्त किया गया है कि कैकई ने राम को जन्म सेवा तथा व्यक्तित्व के विकास के लिए 1 भेजा था किसी लोहिया कठोरता के कारण नहीं।


उत्तर - कर्मवीर भरत के राज भवन नामक द्वितीय सर्ग में कैकयी द्वारा राम को वन भेजने का कारण एवं भारत की आत्म ज्ञानी व्यक्ति हुई है। कैकीय ने भारत को देखकर बयान से गले लगाया और अपने माता-पिता का कुशल पूर्वक पूछा भरत उनके मित्र ग्रह का कुशल क्षेत्र बताकर उनसे अयोध्यापुरी की वक्रता का कारण पूछते हैं। 


दशरथ की मृत्यु का कारण - कैकेई ने भरत को बताया कि राम अयोध्या में रहकर युगों से अभिशप्त अभावों से भूलगन वासियों की रक्षा ना कर सकेंगे आता तुम्हारे पिता से तुम्हारे लिए अयोध्या का राज मांग कर और राम को वन में भेजकर मैंने अपनी राजनीतिक सूझ -बूझ का परिचय दिया था लेकिन तुम्हारे पिता ने तुमको अयोध्या का राज देने की मेरी पहली बात तो मान ली परंतु राम वन गमन की दूसरी मांग सुनकर प्राण त्याग दिए। 


राम को वन भेजने के कारण - कैकेई कहती है कि यद्यपि लोग मुझे नींद क्रूर और स्वार्थी कहकर कलंकित करेंगे परंतु मैंने जन जीवन को सुखमय बनाने के लिए ही राम को 1:00 भेजने का वर मांगा था राम में पोरस और प्रतिभा है तथा मानव मात्र का कल्याण करने की उदास भावना है उन्हें सिंहासन का मुंह नहीं है यही सोच कर मैंने असम से आवेशित एवं अभावग्रस्त वनवासियों के कल्याण हेतु सत्य निष्ठा पिता ने अपने प्राण त्याग दिए जब मैंने 5 साल ही दे बनकर ममता को त्यागकर राम को उनके वनवास की बात बताई तो वे प्रसन्न होकर वल्कल शंकर सीता और लक्ष्मण विस्तार तत्काल वन को  चल दिए। 


भरत को शोक - अपनी माता के मुख से यह का करुण कहानी सुनकर भरत स्तब्ध रह गए और उनके नेत्रों से अश्रु धारा प्रवाहित होने लगी! वह हाय पिता हाय राम कहकर भूमि पर गिर पड़े तथा खिन्न होकर अपने आभूषण उतार फेंके! अपने हाथों से घर में आग लगाने वाली अपनी माता की नीति उन्हें अच्छी ना लगी तीनों लोकों में उन्हें ऐसी रानी नहीं दिखाई पड़ी जिस ने एक साथ अपने पति को मृत्युलोक और पुत्र को वन भेज दिया हो! भरत ने कैकेयी से कहा तुम्हारे द्वारा मेरे लिए राज मांगने के पीछे सभी लोग उसे मेरी इच्छा बताएंगे हमारे वंश में बड़े पुत्र का राजतिलक होने की परंपरा है! यदि तुम चारों पुत्रों को वन में भेज देती तो तुम्हारा त्याग अमर हो जाता तुम भरत को राज दिला कर और राम को वन में बिजवाकर  अपने कार कौशल व बुद्धिमता की दहाई दे रही हो! 


राम में अलौकिक शक्ति -  अंत में कैकेयी ने समझाया कि तुम राम की असीम शक्ति पर विचार ना करके मात्र वन की भयंकरता से डर रहे हो ! उन्होंने वीर क्षत्राणी का पय- पान किया है, विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए स्वभाव और ताडका जैसे राक्षसों का वध किया है तथा जनकपुर में रावण की गर्व को चूर कर और सीता का हरण करके अपनी सत्य की महिमा स्थापित की है ! अत: तुम सुख ना करके जनहित के कार्य में लग जाओ! 

अपने नीति कुशल माता की बुद्धि भ्रष्ट हुई  जान मन में शोक का भार लिए भरत शत्रुघ्न के साथ कौशल्या माता से मिलने के लिए चले जाते है! 


प्रश्न 3 - कर्मवीर भारत खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग आदर्श वरण का सारांश लिखिए! 


                           अथवा


चतुर्थ सर्ग 'आदर्श 'वरण में सच्चे अर्थों में भारत की कर्म वीरता व्यक्त की है! " उदाहरण सहित इस कथन की सत्यता की पुष्टि कीजिए! 


                             अथवा


कर्मवीर भरत ' के चतुर्थ सर्ग की कथा लिखिए! 


उत्तर- गुरु का समझाना - भारत और शत्रुघ्न गुरु के पास पहुंचे और उनके चरणों में नमन कर संकोच के कारण कुछ भी कह न सके! गुरु ने आशीर्वाद लेकर भरत को उनके वर्तमान कर्तव्य का निर्वाह करने के लिए कहा उन्होंने कहा कि दशरथ सत्य का पालन करने के कारण मरकर भी अमर हो गए तथा अब तुम चिंता को छोड़कर पिता के शरीर का विधिवत संस्कार करो पिता के निर्जीव शरीर को देखकर भरत मूर्छित हो गये जितना लौटने पर वशिष्ठ ने भारत का हाथ पकड़कर उन्हें संसार की नशवरता समझायी और कहा कि नाश और विकास सुख और दुख मृत्यु और जीवन साथ - साथ चलते रहते हैं ! इस जीवन के रंगमंच पर हम सभी अभिनय करते हैं! केवल ईश्वर ही सूत्रधार तथा संचालक होता है! 


दशरथ का अंतिम संस्कार -  दशरथ के मृत शरीर को एक पालकी में रखकर सरयू तट पर लगाया गया पुरवासी विकल होकर पीछे - पीछे चल रहे थे! भरत ने पिता के भौतिक शरीर का दाह - संस्कार किया और श्रद्धापूर्वक स्वर्ण मणियों का दान दिया! 




भारत के अभिषेक का प्रस्ताव तथा भरत का राम को लौटा लाने का संकल्प -  स्नानादि से शुद्ध होकर गुरु वशिष्ट की उपस्थिति में एक सभा बुलायी गयी! सुमंत ने भारत के राज्याभिषेक को शस्त्रसम्मत लोकसंबंत और पिता की आज्ञा बताते हुए उनके राजतिलक का प्रस्ताव रखा सुमंत की बात सुनकर भरत ने विनय सहित कहा कि रघुकल की युगो से रीति रही है! कि बड़ा पुत्र शासन का अधिकारी होता है अतः परंपरा निर्वाह के लिए त्याग पूर्वक सिद्धांतों की रक्षा करना ही उचित है ! राम सन्यासी होकर वन में चले गए जिसके कारण पिता स्वर्ग सिधार गए फिर भी वहीं राज्य में ग्रहण करूं यह कैसे संभव है! मैं वन में जाकर राम के चरण पकड़ कर उनके लौटाकर लाऊंगा और मां के द्वारा लगाए गए कलंक को मिटा ऊंचा! 


              वन  में  राम  रहे , मैं  बैठू  सिंहासन  पर


               शोभा  देता  नहीं  मुझे  आज्ञा  दें  गुरुवर  ! 


             वन  में  जाकर  चरण  पकड़  कर  उन्हें मनाऊं, 


            जैसे  भी  हो  सके  राम  को  लौटा  लाऊं  !! 


भरत के वचन सुनकर दुख की समुद्र में डूबते हुए सबको मानो जीने का सहारा मिल गया भरत के दृढ़ संकल्प को सुनकर शत्रुघ्न कैकेयी सहित सभी माताओं पुरवासियों और वशिष्ठ ने राम को अयोध्या लौटने के लिए वन की ओर प्रस्थान किया कुछ दूर तक तो भरत पैदल ही चले किंतु माता कौशल्या के कहने पर रथ पर बैठ गए दिन भर चलने के पश्चात सभी ने तमाशा नदी के तट पर विश्राम किया और प्रात गुरु वशिष्ट की आज्ञा लेकर नदी को पार करके आगे बढ़े! 


प्रश्न 4 - कर्मवीर भरत' खंडकाव्य के पंचम सर्ग का सारांश लिखिए! 


उत्तर- निषादराज की संख्यासंख्या -  श्रृंगवेरपुर में गंगा के तट पर भारत के पहुंचने का समाचार पाकर और रथ पर इक्ष्वाकु वंश की पताका लहराते देखकर निषाद राज के मन में शंका उत्पन्न हो गई कि कहीं राम को वन में अकेले जानकर राज्य मद में चूर भरत सेना सहित वन में  विघ्न डालने के लिए तो नहीं आ रहे हैं! उसमें सभी निषादों के साथ मिलकर निश्चय किया कि हम किसी को भी गंगा पार ना जाने देंगे उसी समय एक वृद्ध निषाद ने कहा कि पहले उनके आने का रहस्य जान लेना चाहिए क्योंकि गुरु वशिष्ट और माता कौशल्या भी उनके साथ हैं! 


भारत का सम्मान -  वृद्ध की बात सुनकर बिना विचारे अपने वीर भाव दर्शाने पर लज्जित निषाद राज ने भरत के साथ कार्य हेतु कंदमूल फल मंगाए गुरु वशिष्ट की बातों से तो निषादराज गदगद हो गए तथा भरत के समीप पहुंचने वालों के अपार स्नेह से अत्यधिक पुलकित हो गए! उनका यथोचित सत्कार करके न वो द्वारा सब को पार ले गये! यहां भरत भारद्वाज ऋषि के आश्रम में प्रयाग पहुंचे ! वहां से चित्रकूट में राम के निवास का समाचार प्राप्त करता था चित्रकूट को समीप जानकर भरत और शत्रुघ्न दोनों भाई पैदल ही आगे की ओर चल दिए! 

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प्रश्न 5- कर्मवीर भारत के षष्ठ सर्ग अंतिम सर्ग राम भरत मिलन का सारांश लिखिए! 


उत्तर - सेनासहित भरतपुर से सवसा वन में आते देखकर एक भील ने रामचंद्र जी को भारत आगमन का समाचार सुनाया लक्ष्मण का मन कुछ संकेत होगा परंतु भरत का नाम सुनकर पुलकित होकर राम चरण पादुका के बिना ही कुटी के बाहर आ गए उन्होंने भारत को स्नेह सहित गले से लगा लिया! शत्रुघ्न ने राम और लक्ष्मण के चरण स्पर्श किए इसके बाद दोनों भाइयों ने सीता के चरणों में शीश झुकाकर सदा सुखी जीवन जीने का आशीष आशीर्वाद प्राप्त किया! 

गुरु का आगमन सुनकर राम आदर सहित होने आश्रम मे ले गए माताओं की चरण छूकर और सुमंत से भेंट करके राम अति हर्षित हुए! पिता की मृत्यु की बात सुनकर व्याकुल होकर हाय पिता कहकर पृथ्वी पर गिर पड़े तथा गुरु के समझाने पर तर्पणादि कार्य करके निर्मित हुए! 


चित्रकूट में राम के प्रेम में विभोर हुए सब के कई दिन बीत गए चित्रकूट के वन उपवनो की प्राकृतिक सुषमा ने उनका मन मोह लिया था! अवसर पाकर भरत ने कहा कि मैं राम का प्रतिनिधि बनकर वन में निवास करूंगा हम सब की विनती स्वीकार कर राम अयोध्या जाए कैकेयी ने राम से कहा पुत्र में इस दुख में नाटक की सूत्रधारिणी है! तुम राज्य प्राप्त करके मेरे कलंक को मिटाओ गुरु ने भी कैकेयी का समर्थन किया कैकेयी के वचन सुनकर राम ने कहा माता इसमें तुम्हारा दोष नहीं है! कार्य की गति ही वक्र है भरत को राज्य का मुंह नहीं है! फिर भी मैं अयोध्या जाकर राज नहीं कर सकता भरत धर्म नष्ट होकर भी प्रेम सिंधु में डूब रहा है! यदि वह कह तो मैं पिता की आज्ञा का उल्लंघन कर अवश्य के सागर में डूब सकता हूं ! 

भरत ने कहा हे, प्रभु में नन्दिग्राम में कुटी बनाकर सिंहासन पर आप की चरण पादुका में रखकर चौदह वर्ष तक वनवासी की तरह  निवास करूंगा और आपका प्रतिनिधि बनकर जन सेवा करता रहूंगा आप मुझे चौदह वर्ष की अवधि बीतने पर लौट आने का आश्वासन दीजिए ! 

राम ने अपनी चरण-  पादुकाएं ने दे दी भरत ने अयोध्या ना जानकर नन्दिग्राम में कुटी बनाई और सिंहासन पर राम की चरण - पादुकाएं  रख दी! शत्रुघ्न , भारत की आज्ञा से राज्य का कार चलाने लगे! इस प्रकार भारत में अपने चरित्र का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया है ! 


प्रश्न -6 कर्मवीर भरतखंड का के आधार पर उसके नायक भारत का चरित्र चित्रण कीजिए। (2008, 09,10,11,12,13,14,15,17) 


अथवा

भरत को कर्मवीर की उपाधि क्यों दी गई है स्पष्ट कीजिए। (2015) 


अथवा

कर्मवीर भरतखंड काल के मुख्य पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2017) 


उत्तर - श्री लक्ष्मी शंकर मिश्र निशंक द्वारा उचित कर्मवीर भारत खंडकाव्य के नायक भारत आदि से अंत तक उनके कार्य एवं चरित्र का विकास हुआ है। उनके चरित्र की विशेषताएं इस प्रकार है। 


1. आज्ञाकारी - भरत अपने मामा के यहां गए हुए थे दूधों के द्वारा अयोध्या लौट आने की गुरु की आज्ञा पाकर भी किरण अयोध्या लौट आते हैं। अयोध्या लौटने से पूर्व में मामा की आज्ञा प्राप्त करना भी उचित समझते हैं। 


2.  मर्यादा एवं कर्तव्य के पालक - भरत को अपने जीवन से भी अधिक अपने कुल की मर्यादा और कर्तव्य की रक्षा का ध्यान है ,रघुकुल में राज्य का अधिकारी होता है। इस मर्यादा की रक्षा के लिए वे राज्य को ही नहीं जीवन के सभी सुखों को भी निछावर कर देते हैं। 


3. सच्चे योगी - भरत सचिन योगी हैं। वे राजभवन में रहकर भी वनवासी का जीवन बिताते हैं। वे राज्य सुख को ठुकरा कर अपने योगी होने का परिचय देते हैं। राम वन में रहकर योगी का जीवन बिताते हैं। तो वे राजभवन में रहकर भी योगी बने हुए हैं। वह नंदीग्राम में कुटी बनाकर  आसन पर बैठकर राज्य कार्य का संचालन करते हैं। 


प्रश्न 7 - कर्मवीर भारत के आधार पर कैकेई का चरित्र चित्रण कीजिए। 


उत्तर - कर्मवीर भरत के स्त्री पात्रों में कैकेई का चरित्र सर्वोपरि है। उसमें साहस रहता था । राजनीतिक ,कुशलता अध्यक्षता ,जनहित ,भावना ,पुत्र -प्रेम आदि आदर्श भारतीय नारी के गुण विद्यमान हैं । उसके चरित्र की विशेषताएं इस प्रकार हैं।


1.युद्ध निपुण वीरांगना - कैकेई का चरित्र एक वीरांगना का चरित्र है। उसी में नारी होकर अगला वरना नहीं सीखा है युद्ध भूमि में भी वह अपने पति के साथ गई थी। और संकट में उनके प्राणों की रक्षा की थी निश्चित नहीं थी। उसका विरक्त प्रकट होता है। 


2. आदर्श माता - कहते स्वाभिमानी होने के साथ-साथ आदर्श माता भी है। वह अपने पुत्रों को केवल सूखी ही नहीं देखना चाहती अपितु उनके गौरव को भी बढ़ाना चाहते हैं। वह अपने पुत्रों को उनकी शिक्षा-दीक्षा और सूची के अनुसार कार में नियोजित करना चाहते हैं। वह प्रत्येक पुत्र के जीवन का विकास उसकी सामर्थ्य के अनुसार करना चाहती हैं। जिससे वे समाज राष्ट्र और मानवता की अधिकाधिक सेवा कर सके भरत से भी अधिक वह राम से प्यार करते हैं। वह राम से भरत में भेद नहीं मानते। 


3. राजनीति में कुशल  - कैटरीना री होकर भी राजनीति में पूर्व क्वेश्चन है। वह राजनीति के दांव पेच समझते हैं। और समय के अनुसार उनका प्रयोग करना भी जानते हैं। शाम को वन बजने में भी उसकी राजनीतिक सूझबूझ का प्रमाण मिलता है। और वनवासियों को अनुशासन सिखाना भी उनके अनुसार एक राजनीतिक दायित्व है। 


4. अपराध स्वीकार करने वाली - खंडकाव्य के कथानक के अनुसार कैकेई ने जो कुछ भी किया उसके पीछे उसका भी कोई भी स्वार्थ नहीं है। और ना तो कोई बुरा भावी था परंतु जब परिस्थितियां बदल जाते हैं। तथा परिणाम पूरे निकलने लगते हैं। तो क्या कि अपने आप को अपराध में स्वीकार कर लेती है तथा स्वयं ही अपने विषय में कहें उठती है। 

निष्कर्ष रूप ने कहा जा सकता है। कि प्रस्तुत खनकाने करके आदर्श माता वीर स्त्री व समाज वादी दृष्टिकोण को अपनाने वाले आदर्श नारियां निशंक जी के युग युग से अभिशप्त चरित्र का आधुनिक परिवेश में सामान्य का सफल प्रयास किया है। 


FAQ-question


प्रश्न-भरत का चरित्र चित्रण।

उत्तर- आज्ञाकारी भरत एक आज्ञाकारी पुत्र और शिष्य है, वे अपने ननिहाल में थे कि अचानक दूत द्वारा अयोध्या तुरंत लौटने की गुरु आज्ञा पाकर तुरंत अयोध्या लौट आते हैं। रोग रहित भारत के मन में राज्य की राजगद्दी को पाने का कोई लोग नहीं है। अपनी माता के गई से यह जानकर कि राम को वनवास उनके कारण मिला है वह दुखी हो जाते हैं।


प्रश्न-कर्मवीर भरत का सारांश।

उत्तर- राम पिता के वचनों का पालन करने के लिए वन में ही रहना चाहते हैं, तब भरत होने की चरण पादुका लेकर अयोध्या लौटते हैं, स्वयं नंदीग्राम में कुटी बनाकर रहते हैं तथा शत्रुघ्न की सहायता से राम के नाम पर अयोध्या का शासन चलाते हैं। कर्मवीर भारत खंड काव्य का प्रारंभ मंगलाचरण से होता है।


प्रश्न-कर्मवीर भरतखंड कब के आधार पर राम का चरित्र चित्रण कीजिए।

उत्तर-राम में पुरुष और प्रतिभा है तथा मानव मात्र का कल्याण करने की उदात्त भावना है। उन्हें सिंहासन का मोह नहीं है, यही सोचकर मैंने शब्द अशिक्षित एवं अभावग्रस्त वनवासियों के कल्याण हेतु राम को 14 वर्ष के लिए वन भेजने को वर मांगा था। यह सुनकर तुम्हारे शब्द निष्ठ पिता ने अपने प्राण त्याग दिए।


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