मध्यप्रदेश के आंचलिक पर्व एवं मेले//मध्य प्रदेश के प्रमुख मेले//Zoological Events and Fairs of Madhya Pradesh
हेलो दोस्तों आज की नई पोस्ट में आज आपको बताने वाले हैं मध्यप्रदेश के आंचलिक एवं मेले जो हमारे मध्य प्रदेश में बहुत ही फेमसहै। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें और अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
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मध्यप्रदेश के आंचलिक पर्व एवं मेले//मध्य प्रदेश के प्रमुख मेले//Zoological Events and Fairs of Madhya Pradesh |
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भगोरिया यह मालवा क्षेत्र के भीलों का उत्सव है। इस पर्व में वे अपने जीवनसाथी का चुनाव करते हैं। यह उत्सव फागुन में मनाया जाता है।
मेघनाथ फागुन में गॉड आदिवासियों द्वारा या पर्व मनाया जाता है। मेघनाथ को गॉड सर्वोच्च देवता मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। यह फागुन माह के पहले पक्ष में गॉड आदिवासियों द्वारा मनाया जाता है इस अवसर पर आदिवासी करतब दिखाते हैं एवं पूजा अनुष्ठान करते हैं।
गणगौर या महिलाओं का पर्व है, जो मालवा क्षेत्र में वर्ष में दो बार मनाया जाता है। चैत्र और भादो माह में इस उत्सव पर स्त्रियां शिव पार्वती का पूजन और नृत्य करती हैं और अंत में प्रतिमाओं को विसर्जित करती हैं।
संजा व मामुलिया संजा मालवा क्षेत्र में कुंवारी लड़कियों का उत्सव है, जो आश्विन माह में 16 दिन तक मनाया जाता है। इस दौरान दीवार पर आकृति अंकन और संध्या समय गायन किया जाता है। बुंदेलखंड क्षेत्र में ऐसे ही एक पर्व को मामुलिया के नाम से जाना जाता हैं।
नौरता दशहरे के पूर्व 9 दिनों तक यह उत्सव महिलाएं मनाती हैं। इस दौरान मां दुर्गा की पूजा होती है और गरबा का भी आयोजन होता है।
दशहरा प्रदेश का प्रमुख त्योहार है। राम की विजय के प्रतीक के रूप में जेठ माह दसवीं को मनाया जाता है, बुंदेलखंड क्षेत्र में इस दिन लोग एक दूसरे से घर-घर जाकर गले मिलते हैं और एक दूसरे को पान खिलाते हैं।
गंगा दशमी सरगुजा क्षेत्र में उत्सव गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की स्थिति में मनाया जाता है। जो जेठ माह दसवीं को होता है, इस पर्व में पति पत्नी मिलकर पूजन करते हैं। यह पर्व धर्म से सीधा संबंध नहीं रखता। लोग इस दिन अपनी अपनी पत्नी के साथ नदी किनारे खाते पीते नाचते गाते और तरह तरह के खेल खेलते हैं।
मड़ई जनवरी से अप्रैल के बीच दक्षिणी मध्य प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में, जहां गोंड़ और उनकी उपजाति रहती है, मडई का आयोजन किया जाता है। यह 10 से 12 दिन चलता है। मड़ई के दौरान देवी के सक्षम बकरे की बलि दी जाती है। उसी दौरान आदिवासी अपने अंगा देव के प्रति भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। मड़ई के दिनों में रात्रि को नृत्य किया जाता है।
हरेली मुख्य रूप से किसानों का पर्व है। इस दिन सभी कृषि एवं लौह उपकरण की पूजा की जाती है। श्रावण अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है। यह मंडला जिले में श्रावण पूर्णिमा एवं मालवा में आषाढ़ माह में मनाया जाता है। मालवा में इसे हर्यागोधा कहते हैं।
गोवर्धन पूजा कार्तिक माह में दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। यह पूजा गोवर्धन पर्वत और गोधन से संबंधित है। महिलाएं गोबर से पर्वत और बैलों की आकृतियां बनाती है। मारवा में भील आदिवासी पशुओं के सामने अवदान गीत होड़ गाते हैं। पशुपालक अहीर इस दिन खेर देव की पूजा करते हैं चंद्रावली नामक कथा गीत भी इस अवसर पर गाया जाता है।
नवान्न नई फसल पकने पर दिवाली के बाद यह पर्व मनाया जाता है कहीं-कहीं या छोटी दिवाली कहलाती है।
लाऊकाज इस उत्सव में सूअर की बलि दी जाती है। यह सब गोंड आदिवासी नारायण देव के सम्मान में मनाते हैं। गोंड़ों का नारायण देव के सम्मान में मनाया जाने वाला है पर्व सूअर के विवाह का प्रतीक माना जाता है। आजकल यह पर्व शन्नै: शन्नै: लुप्त होता जा रहा है। परिवार की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए इस तरह का आयोजन एक निश्चित अवधि के बाद करना आवश्यक होता है।
रतौना यह बैगा आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है। इस पर्व का संबंध नागा बैगा से है। इस अवसर पर मधुमक्खियों की पूजा की जाती है।
करमा हरियाली आने की खुशी में त्यौहार मुख्य रूप से उराव मनाते हैं। जब धान रोकने के लिए तैयार हो जाता है तब यह उत्सव मनाया जाता है और करमा नृत्य किया जाता है।
सरहुल उरांव जनजाति का महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस अवसर पर प्रतीकात्मक रूप से सूर्य देव और धरती माता का विवाह रचाया जाता है। मुर्गे की बलि दी जाती है। अप्रैल के आरंभ में साल वृक्ष के फल ने पर्व मनाया जाता है।
सुआरा बुंदेलखंड क्षेत्र का सुआरा पर्व मालवा के घड़ल्या की तरह ही है। दीवार से लगे एक चबूतरे पर एक राक्षस की प्रतिमा बैठाई जाती है। राक्षस के सिर पर शिव पार्वती की प्रतिमाएं की जाती है। दीवार पर सूर्य और चंद्र बनाए जाते हैं। इसके बाद लड़कियां पूजा करती है और गीत गाती है।
भाई दूज साल में दो बार मनाई जाती है। एक चैत्र माह में होली के उपरांत यह दूसरी कार्तिक में दिवाली के बाद। बड़े भाई को कुमकुम हल्दी चावल से तिलक करती है तथा भाई बहनों को उनकी रक्षा करने का वचन देती है।
मध्य प्रदेश के प्रमुख मेले
सिंहस्थ - शिप्रा नदी पर चैत्र माह की पूर्णिमा से वैशाख पूर्णिमा तक महान स्नान पर्व जलता है। कुंभ पवित्रतम मेला माना जाता है। इस मेले में लोगों की अत्यधिक श्रद्धा रहती है। मध्यप्रदेश में उज्जैन एक मात्र स्थान है जहां कुंभ का मेला लगता है। बृहस्पति के सिंह राशि पर आने पर कुंभ मेला लगता है। यह ग्रह स्थिति प्रत्येक 12 साल में आती है। इसी कारण उज्जैन में लगने वाले कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है ।
रामलीला का मेला - ग्वालियर जिले की भांडेर तहसील में या मेला लगता है। 100 वर्षों से अधिक समय से चला आ रहा यह मेला जनवरी फरवरी माह में लगता है।
हीरा भूमिया मेला - हीरामन बाबा का नाम ग्वालियर और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है। यह कहा जाता है कि हीरामन बाबा के आशीर्वाद से महिलाओं का बांझपन दूर होता है। कई वर्षों वर्षों पुराना मेला अगस्त और सितंबर मैं आयोजित किया जाता है।
नागाजी का मेला - अकबर कालीन संत नागा जी की स्मृति में या मेला लगता है। मुरैना जिले के पोरसा कस्ब में 1 माह तक मेला जलता है। पहले यहां बंदर बेचे जाते थे। आप सभी पालतू जानवर बेचे जाते हैं।
तेजाजी का मेला - तेताजी सच्चे इंसान थे। कहा जाता है कि उनके पास एक ऐसी शक्ति थी जो शरीर से सांप उतार देती थी। गुना जिले के भामावड़ मैं पिछले 70 वर्षों से मेला लगाया जाता है। तेजाजी की जयंती पर या मेला आयोजित होता है। निमाड़ में भी इस मेले का आयोजन होता है।
कालू जी महाराज का मेला- पश्चिमी निमाड़ के पिपल्या खुर्द में 1 महीने तक मेला लगता है। यह कहा जाता है कि 200 वर्षों पूर्व काला जी महाराज यहां पर अपनी शक्ति से आदमी और जानवरों की बीमारी ठीक करते थे।
जागेश्वरी का मेला - हजारों सालों से अशोकनगर जिले के चंदेरी नामक स्थान में मेला लगता चला आ रहा है। कहा जाता है कि चंदेरी के शासक जागेश्वरी देवी के भक्त थे। वे कोढ़ से पीड़ित थे देवी के स्थान पर जाने पर देवी की कृपा से राजा का कोढ़ ठीक हो गया और उसी दिन से उस स्थान पर मेला लगना शुरू हो गया।
अमरकंटक का शिवरात्रि मेला - शहडोल जिले के अमरकंटक नामक स्थान में मेला लगता है यह मेला शिवरात्रि को लगता है।
महामृत्युंजना का मेला - रीवा जिले में महामृत्युंजय का मंदिर स्थित है जहां बसंत पंचमी और शिवरात्रि को मेला लगता है।
चंडी देवी का मेला - सीधी जिले के भी धरा नामक स्थान पर चंडी देवी की को सरस्वती का अवतार माना जाता है। यहां पर मार्च-अप्रैल में मेला लगता है।
काना बाबा का मेला - होशंगाबाद जिले के सोढ़लपुर नामक गांव में काना बाबा की समाधि पर मेला लगता है।
शहाबुद्दीन औलिया का उर्स - यह उर्स नीमच में फरवरी माह में आयोजित किया जाता है। जो 4 दिनों तक चलता है यहां बाबा शहाबुद्दीन की मजार है।
मठ घोघरा का मेला - सिवनी जिले के मौरंथन नामक स्थान पर शिवरात्रि को 15 दिवसीय मेला लगता है। यहां पर प्राकृतिक झील और गुफा भी है।
सिंगाजी का मेला - सिंगाजी एक महान संत थे। पश्चिमी निमाड़ के पिपल्या गांव में अगस्त सितंबर में 1 सप्ताह का मेला लगता है।
बरमान का मेला - नरसिंहपुर जिले के सुप्रसिद्ध ब्राह्मण घाट पर मकर संक्रांति पर 13 दिवसीय मेला लगता है।
धामोनी उर्स - सागर जिले के धामोनी नामक स्थान पर बाबा मस्तान अली शाह की मजार पर अप्रैल-मई में उर्स लगता है।
FAQ
1-मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा मेला कौन सा है?
उत्तर सिंहस्थ मेला कुंभ मेला उज्जैन
2-मध्य प्रदेश का सबसे सुंदर जिला कौन सा है?
उत्तर-देश का सबसे सुंदर गांव एमपी के निवाड़ी जिले में है जिसे यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन ने बेस्ट टूरिस्ट विलेज के लिए नॉमिनेट किया है। विश्व के प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र ओरछा के पास लालपुर गांव देश के 3 बेस्ट टूरिज्म विलेज में शामिल होने जा रहे हैं।
3-मध्य प्रदेश का राष्ट्रीय खेल कौन सा है?
उत्तर-मध्य प्रदेश का राज्य की खेल है मलखंब
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भगवान श्रीराम पर निबंध हिंदी में
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