ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास// Omkareshwar temple in Hindi
ओमकारेश्वर मंदिर भारत के मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह मंदिर नर्मदा नदी के बीच मदत आया शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। यह दीप हिंदू पवित्र चिन्हा ॐ के आकार में बना है। यहां दो मंदिर स्थित हैं १- ॐकारेश्वर, २ अमरेश्वर। यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं।
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास// Omkareshwar temple in Hindi
Table of contents
हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां स्वयं प्रकट हुए उन 12 स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है, यह संख्या 12 है। हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातः-काल और संध्या के समय इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है उसके सात जन्मों का क्या हुआ अब आप इन लोगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है यहां ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही कमलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है इन दोनों लोगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग में की गई है ओकारेश्वर स्थान भी मालवा क्षेत्र में ही पड़ता है।
ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास-
इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने तपस्या की थी तथा शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसे शिव ने देवताओं का धनपति बनाया था। कुबेर के स्थान के लिए शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी। यह नदी कुबेर मंदिर के बाजू से भागकर नर्मदा जी में मिलती है, जिसे छोटी परिक्रमा में जाने वाले भक्तों को प्रत्यक्ष प्रणाम के रूप में देखा जाता है। यही कावेरी ओंकार पर्वत का चक्कर लगते हुए संगम पर वापस नर्मदा जी से मिलती है ऐसे ही नर्मदा कावेरी का संगम कहते हैं।
यहां के ज्यादातर मंदिरों का निर्माण पेशवा राजाओं द्वारा ही कराया गया था। ऐसा बताया जाता है कि भगवान ओमकारेश्वर का मंदिर भी हो निवेशकों द्वारा ही बनाया गया है इस मंदिर में दो कमरों कक्षाओं के बीच में होकर जाना पड़ता है क्योंकि भीतर अंधेरा रहता है इसलिए यहां हमेशा दीपक जलता रहता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
ओमकारेश्वर लिंक किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा तेरा साया बनाया हुआ नहीं है, बल्कि अब प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों और हमेशा जल भरा रहता है। राधा किसी मंदिर में लिंग की स्थापना गर्भ ग्रह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिकार होता है किंतु यह ओमकारेश्वर लिंग मंदिर के गुंबज के नीचे नहीं है इसलिए एक विशेषता यह भी है कि मंदिर के शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है कुछ लोगों की मान्यता है कि हर वक्त ही ओमकारेश्वर रूप है।
धर्म के साथ कुप्रथा भी
इस ओंकारेश्वर मंदिर में कभी एक भीषण परंपरा भी प्रचलित थी, जो अब समाप्त कर दी गई है। इस मान्धाता पर्वत पर एक खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी है इसे संबंध में एक प्रचलन था कि जो कोई मनुष्य किस पहाड़ी से कूद कर अपना प्राण नर्मदा में विसर्जित करते देता है उसकी तत्काल मृत्यु हो जाती है। इस कुप्रथा के चलते हुए बहुत सारे लोग शब्दों मुक्त तत्काल मोक्ष की कामना से उस पहाड़ी पर से नदी में कूदकर अपनी जान दे देते थे। इस प्रथा को भृगुपतन नाम से जाना जाता था, सती प्रथा की तरह इस प्रचलन को भी अंग्रेजों द्वारा सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया। यह प्रांत नाशक अनुष्ठान सन 1824 ई. में ही बंद कर दिया था।
ओमकारेश्वर दर्शन
नर्मदा किनारे जो बस्ती है उससे विष्णुपुरी कहते हैं। यहां नर्मदा जी पर पक्का घाट है। सेतु अथवा ( नौका) द्वारा नर्मदा जी को पार करके यात्री मान्धाता द्वीप में पहुंचता है। उस और भी पक्का घाट है। यहां घाट के पास नर्मदा जी की कोठी तीर्थ या चक्रतीर्थ मारा जाता है। यही स्नान करके यात्री सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन करने जाते हैं।
धार्मिक दृष्टि से मान्धाता टापू में ओमकारेश्वर की छोटी और बड़ी दो प्रक्रियाएं की जाती है। ओमकारेश्वर छेत्र की संपूर्ण तीर्थयात्रा 3 दिनों में पूरी की जा सकती है। मान्धाता जीप में कोटि तीर्थ पर स्नान करने के बाद कोटेश्वर महादेव, हाटकेश्वर, त्रिंबकेश्वर, गायत्रीश्वर, गोविन्देश्वर, तथा सावित्रीश्वर आदि देवों के दर्शन किए जाते हैं। ददनपुर ईश्वर की कालिका माता और पांच मुख वाले गणपति सतीश नंदी का दर्शन करने के बाद ओमकारेश्वर मंदिर महादेव का दर्शन प्राप्त होता है मां कालेश्वर मंदिर में सुखदेव जी मान्धाताश्वर, मांं नागेश्वर, श्री द्वारकाधीश, नर्वदेश्वर भगवान, नर्मदा देवी महाकालेश्वर, भगवान केदारेश्वर, सिद्धेश्वर, रामेश्वर, जलेश्वर आदि का दर्शन करने के बाद लाख तीर्थ पर विश्वेश्वर का दर्शन किया जाता है।
मान्यता
नर्मदा क्षेत्र में ओमकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। शास्त्र माता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ का लेकिन तू जब तक वह ओमकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जरा पर यहां नहीं चढ़ाते उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदा जी का भी विशेष महत्व है। शास्त्र मान्यता के अनुसार जमुनाजी मैं 15 दिन का स्थान तथा गंगा जी में 7 दिन का इतना जो फल प्रदान करता है उतना पुण्य फल नर्मदा जी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है।
तीर्थ क्षेत्र
ओंकारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में चौबीस अवतार, माता घाट (सैलानी), सीता वाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय सन्यास आश्रम, अन्नपूर्णा आश्रम, विज्ञानशाला, ऋणमुक्तेश्वर महादेव, गायत्री माता मंदिर, सिद्धानाथ गोरी सोमनाथ, आडे हनुमान, माता वैष्णो देवी मंदिर, चांद सूरज दरवाजे, विरखला, विष्णु मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर, शेगांव के गजानन महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, नरसिंह टेकरी, कुबेरेश्वर महादेव, चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन भी होते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?
यदि आप हवाई जहाज मार्ग से ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंचना चाहते हैं तो आपको ओकारेश्वर से 70 किलोमीटर दूर अवस्थी इंदौर एयरपोर्ट जाना होगा। इसके बाद बस या टैक्सी के माध्यम से यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है मध्य प्रदेश के उज्जैन, खंडवा और इंदौर से कई गाड़ी बस सेवाएं भी यहां तक आपको पहुंचा सकती है।
रेल मार्ग से जाने के लिए भी इसके निकटतम कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। रेलवे के द्वारा जाने के लिए आपको इंदौर या खंडवा रेलवे स्टेशन तक जाने के बाद कोई बस या टैक्सी करनी होगी।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्लिंग को शिव महापुराण में परमेश्वर लिंक आ गया है। या परमेश्वर लिंग इस तीर्थ में कैसे प्रकट हुआ अथवा इसकी स्थापना कैसे हुई इस संबंध में शिवपुराण की कथा इस प्रकार है।
एक बार मुनीश्रेष्ट नारद ऋषि घूमने हुए गिरिराज विन्ध्य पर पहुंच गये। विन्ध्य ने बड़े आदर-सम्मान के साथ उनकी विधिवत पूजा की। मैं सर्वगुण संपन्न हूं। मेरे पास हर प्रकार की सम्पदा है, किसी वस्तु की कमी नहीं है' इस प्रकार के भाव को मन में लिए विंध्याचल नारद जी के समक्ष खड़ा हो गया। अहंकारनाशक श्री नारद जी विंध्याचल की अभिमान से भरी बातें सुनकर लंबी सांस खींचते हुए चुपचाप खड़े रहे। उनके बाद विन्ध्याचल पर्वत ने पूछा- आपको मेरे पास कौन सी कमी दिखाई दी? आपने किस कमी को देखकर लंबी सांस खींची?
नारद जी ने विन्ध्याचल को बताया कि तुम्हारे पास सब कुछ है किंतु मेरु पर्वत तुमसे बहुत ऊंचा है। उस पर्वत की शिखरों का विभाग देवताओं के लोकों तक पहुंचा हुआ है। मुझे लगता है कि तुम्हारे शिखर के भाग वहां तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे। इस प्रकार कहकर नारदजी वहां से चल गए। उनकी बात सुनकर विन्ध्याचल को बहुत पछतावा हुआ यह दुखी होकर मन ही मन शोक करने लगे।
उसने निश्चय किया कि अब वह विश्वनाथ भगवान सदा शिव की आराधना और तपस्या करेगा इस प्रकार विचार करने के बाद भगवान शंकर जी की सेवा में चला गया वहां पर साक्षात्कार विद्वान है उसी स्थान पर पहुंचा और उसने संता और प्रेम पूर्वक शिव की आरती मूर्ति मिट्टी के शिवलिंग बनाए और 6 महीने तक लगातार उसकी पूजा के बाद ध्यान नहीं भटका उसकी कठोर तपस्या को देख । चल की सच्ची श्रद्धा के प्रभावित होकर भगवान शिव साक्षात प्रकट हो गए और विद्यांचल को दर्शन दिए और वर मांगने को कहा विंध्याचल ने कहा है देवेंद्र महेश यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे कार्य सिद्ध करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करें,
भगवान शिव ने विंध्य को उत्तम वर दिया। उसी समय देवगढ़ और ऋषि गण भी वहां आ गए उन्होंने भगवान शंकर की विविध तक पूजा की और स्तुति के बाद भगवान शिव से अनुरोध किया कि वाह उसी स्थान पर विराजमान हो जाए। भगवान शिव ने उन सब की बातों को स्वीकार कर लिया और वहां पर स्थित एक ही होगा लिंक 2 स्वरूपों में विभिन्न हो गया पवन के अंतर्गत जो सदाशिव उत्पन्न हुए उन्हें ओंकार के नाम से जाना गया इसके अलावा भारतीय मूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई उसे परमेश्वर लिंग के नाम से जाना गया आपको बता दें कि इस परमेश्वर लिंक को ममलेश्वर लिंग भी कहा गया है।
FAQ
1-ओमकारेश्वर मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर-कथा राजा मांधाता ने यहां नर्मदा किनारे इस पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और शिव जी के प्रकट होने पर उनसे यही निवास करने का वरदान मांग लिया तभी से उक्त प्रसिद्ध तीर्थ नगरी ओमकारा मांधाता के रूप में कारी जाने लगी।
2-ओमकारेश्वर की विशेषता क्या है?
उत्तर-कहा जाता है कि यहां पर 33 करोड़ देवी देवताओं का वास है तथा नर्मदा नदी मोक्षदायिनी है 12 ज्योतिर्लिंग में ओमकारेश्वर का पवित्र ज्योतिर्लिंग भी शामिल है शास्त्रों में मान्यता है कि जब तक तीर्थयात्री ओमकारेश्वर के दर्शन कर यहां नर्मदा सहित अन्य नदियों का जल नहीं चढ़ाते हैं। तब तक उनकी यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है।
3-ओमकारेश्वर मंदिर की स्थापना कब हुई?
उत्तर-ओमकारेश्वर मंदिर के निर्माण से संबंधित इतिहास में कुछ खास तथ्य मौजूद नहीं है अब तक जो भी ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं उनके हिसाब से इस मंदिर का निर्माण के लिए सन 1063 में राजा उदयादित्य ने चार पुत्रों को स्थापित करवाया था जिन पर संस्कृति भाषा में अंकित स्तोत्रम थे।
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