Labor (प्रसव) in Hindi

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Labor (प्रसव) in Hindi

Labor (प्रसव) in Hindi

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Labor (प्रसव) in Hindi 

Table of contents-

1.Definition of labor

2.Types of labor

3.Expected date of delivery

4.Terminology related to pregnancy and labor

5.Causes of onset of labor

6.Mechanism of labor 

7.लेबर पेन कितने दिन पहले शुरू होता है?

8.लेवर की स्टेज कितनी होती हैं?

9.नॉरमल लेबर को क्या कहा जाता है।

10. FAQS


Labor


Definition- series of events that take place in the genital organs in an effart to expel the viable products of conception out of the womb through the vagina into the outer world is called labor.


प्रसव जनन अंगों में होने वाले परिवर्तनों का क्रम है जिसके द्वारा गर्भाशय में उपस्थित जीवित भ्रूण को योनि में से होकर शरीर से बाहर निकलने का प्रयास किया जाता है।


 हम आम तौर पर labor एवं डिलीवरी को समानार्थक शब्द समझते हैं। परंतु इनकी वास्तविकता में अंतर बहुत होता है।


 यह निम्न प्रकार समझा जा सकता है labor एक प्रक्रिया है जिसमें शिशु स्वयं जन्म लेता है। एवं यह प्रक्रिया न्नाल योनि में से होकर होती है।


 जबकि डिलीवरी गर्भाशय से भ्रूण का बाहर आना है।

यह  स्वता भी हो सकती है। एवं प्रेरित भी इसमें शिशु को ऑपरेशन द्वारा गर्भाशय से बाहर निकाला जा सकता है ऑपरेशन की  यह प्रक्रिया delivery कही जा सकती है।


Types of labour


1.(सामान्य प्रस्व)Normal labor


A.सामान्य प्रसव यह प्रसव होता है जिसमें निर्णय विशेषताएं और लक्षण उपस्थित होता है


B.गर्भवती की समाप्ति पर या स्वता आरंभ होता है।


C.शिशु सर टैक्स प्रस्तुति में होता है।


D.सभी अवस्थाओं की अवधि सामान्य रहती है।


E. यह स्वता समाप्त होता है अर्थात न्यूनतम सहायता से समाप्त होता है।


F.किसी प्रकार की जटिलता उत्पन्न नहीं होती है सामान प्रसव यूटोसिया कहलाता है।


असामान्य प्रसव abnormal labour


सामान्य प्रसव के लक्षणों में से किसी प्रकार का अंतर होने पर यह असामान्य प्रसव कहलाता है इसमें निर्णय लक्षण उपस्थित हो सकते है


A.यह स्वतः आरंभ नहीं होता है।


B.इसमें प्रस्तुति असमान होती है।


C. अवधि सामान्य नहीं रहती है।


D.यह स्वता समाप्त नहीं होता है एवं इसके समापन हेतु अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है।


E.इसमें किसी प्रकार की जटिलताएं हो सकती हैं जो माता एवं शिशु के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।


F.सामान्य प्रसव डिस्टॉसिया कहलाता है।


प्रसव की संभावित तिथि (expected date of delivery)-


बिल्कुल ठीक प्रसाद तिथि की भविष्यवाणी करना असंभव होता है ऐसा प्रत्येक स्त्री की शारीरिक स्थिति एवं हारमोंस के स्तर में अंतर के कारण होता है इसके साथ ही लड़ना में असावधानी भी इसका कारण हो सकती है प्रसव के संभावित तिथि की गणना हेतु Naegele's Formula का उपयोग किया जाता है।


E.D.D- first day of last mensuration period+9 month+7 days


अर्थात् स्त्री से उसके अंतिम मासिक धर्म के प्रथम तिथि के बारे में सूचना प्राप्त की जाती है इस स्थिति में 10 चंद्रमास या 9 month जोड़कर इसमें 7 दिन और जोड़े जाते हैं इस प्रकार प्राप्त तिथि प्रसव की संभावित तिथि होती है।


Terminology related to pregnancy and labour-


Gravida- यह वर्तमान एवं पूर्व में उपस्थित रही गर्भावस्था को इंगित करता है।


Parity- यह वर्तमान से पूर्व गर्भावस्था की अवस्था है जिसमें स्त्री द्वारा जन्म दिए गए बच्चों की संख्या को गिना जाता है।


Nulliparity- यह एक अवस्था है जिसमें तेरी ने कभी किसी जीव शिशु को जन्म नहीं दिया है ना ही इस स्त्री ने गर्भावस्था की viability-stage पार की है।


puerperium- यह शिशु प्रसव के बाद की अवधि है जिसमें स्त्री के जननांग गर्भावस्था के पूर्ण अवस्था में वापस आते हैं।


Nullipara- यह वह स्त्री होती है जिसने कभी शिशु को जन्म ना दिया हो।


Primiparity-  यह प्रथम शिव को जन्म देने की अवस्था है।


Multipara- यह वह स्त्री होती है जो इससे पूर्व से शिशु को जन्म दे चुकी होती है।


Viability stage of period- यह गर्भावस्था की वह अवधि होती है। जिसके पश्चात शिशु स्वतंत्र रूप से जीवित रहने की क्षमता ग्रहण कर लेता है ।यह लगभग 28 सप्ताह होती है।



Causes of onset of labor


स्त्री में गर्भ अवधि का समय निश्चित होता है। एवं यह लगभग 280 दिन होता है गर्भ अवधि के समाप्त होने पर प्रसव क्रिया द्वारा शिशु का जन्म होता है। परंतु महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि प्रसव क्रिया आरंभ किस प्रकार होती है प्रसव के कारणों का पता लगाने के लिए समय-समय पर अनेक परीक्षण के गए परंतु अभी तक प्रक्रिया आरंभ होने का कारण ज्ञात नहीं हो सका जो पूर्णरूपेण प्रक्रिया के आरंभ को उचित नहीं समझा सके लेकिन प्रक्रिया आरंभ होने के लिए निम्न कारण उत्तरदाई माने जाते हैं।-


1.Uterine distention- गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय के आकार में वृद्धि होती है। गर्भाशय की यह वृद्धि इस में उपस्थित भ्रूण के विकास का परिणाम होती है ।साधारणतया यह माना जाता है कि गर्भाशय की mayometrium की पेशियों में खिंचाव होने के कारण यह विरोध पर दबाव लगाता है ।एवं इसी कारण प्रसव क्रिया आरंभ होती है।

परंतु यह सिद्धांत यह समझाने में असफल है कि यह क्रिया 9 माह पर ही क्यों आरंभ होती है इससे पूर्व के पश्चात क्यों नहीं इसी प्रकार जुड़वा बच्चों एवं polyhydromnios में गर्भाशय की पेशियों में तुलनात्मक अधिक खिंचाव आता है। परंतु इन का

Case में भी प्रसव 9 माह पूर्ण होने पर ही होता है। एवं यह सिद्धांत अपरिपक्व शिशु के जन्म को भी उचित नहीं समझा पाता है।


2.Hormonal effect- इस सिद्धांत के अनुसार प्रसव क्रिया आरंभ होने का कारण निम्नलिखित हारमोंस का प्रभाव होता है।


 oestrogen- यह हार्मोन पिट्यूटरी ग्रंथि से ऑक्सीटॉसिन स्त्रावण को प्रेरित करता है।

यह गर्भाशय की mayometrium में ऑक्सीटॉसिन की  के प्रति संवेदनशीलता बढ़ने से गर्भाशय में संकुचन प्रारंभ हो जाते हैं।


Progesterone- इन्हें गर्भाशय को बनाए रखने वाला हार्मोन होता है। इसका स्तर गर्भा अवधि के समाप्त होने पर कम हो जाता है।एवं एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। इन दोनों हारमोंस के स्तर में यह परिवर्तन प्रोस्टाग्लैंडइन स्थित निर्माण को प्रेरित करता है।


 oxytocin- यह हार्मोन प्रसव का मुख्य हार्मोन होता है यह गर्भाशय में संकुचन प्रेरित करता है। इस हार्मोन की सांद्रता से शिशु  जन्म के समय उच्चतम होती है।


Neurological factors- गर्भाशय की mayometrium परत में क्रमश alpha एवम beta -adrenergic संवेदी तंत्रिका तंतु उपस्थित होते हैं।यह दोनों तंतु एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन के प्रभाव के परिणाम स्वरुप उद्दीपितहो जाते हैं।


 एवं यह संवेदनाएं तंत्रकीए गुच्छुक से होती हुए मेरुदंड तक पहुंचते हैं ।जिसके परिणाम स्वरूप uterus एवं cervix में संकुचन आरंभ हो जाते हैं। अतः इन सभी कारकों के सम्मिलित प्रभाव के परिणाम स्वरूप प्रसव क्रिया  आरंभ होती है।


(सामान्य प्रसव की क्रिया विधि) Mechanism of Normal Labour-


शिशु के जन्म के दौरान इसके सिर की स्थिति में होने वाले क्रमिक परिवर्तन जो pelvis से गुजरते समय होते हैं, सम्मिलित रूप से प्रसव की क्रियाविधि कहलाती है।


इसमें निम्न चरण होते हैं


नीचे की ओर गति (Descend)


यह प्रायः प्रसव आरंभ होने से पूर्व आरंभ हो जाता है। इनमें fetal head लगातार pelvic क्षेत्र में नीचे की ओर गति करता है।


Fetal head की नीचे की ओर होने वाली यह गति शिशु के जन्म पश्चात् ही समाप्त होती है। गर्भाशय में होने वाले संकुचन एवं स्त्री द्वारा लगाए गए “Bearing down efforts” descent में सहायक होते हैं।


अनुबंधन (Engagement) 

Engagement एक अवस्था है, जिससे शिशु के head का अधिकतम व्यास (जो कि biparital diameter होता है) स्त्री की pelvis की inlet में आ जाता है


आकुंचन (Flexion )


शरीर के किसी अंग की इसकी उत्पत्ति स्थल की ओर गति flexion कहलाती है। 

उदाहरण- हाथ की कोहनी की ओर गति इस प्रकार head की उत्पत्ति neck से होती है। अतः head का neck की ओर गमन भी flexion का उदाहरण है। इसमें शिशु की ठोडी गर्दन की ओरगति करती है एवं head flexed अवस्था में आ जाता है।


Flexion के कारण शिशु के head का अनुकूल व्यास pelvic cavity में आ जाता है । यह सामान्यतः SOB (Sub occipito bregmatic) होता है, इसकी माप लगभग 9.5 cm होती है। यह pelvic cavity में होकर आसानी से गुजर जाता है एवं इस प्रकार descend जारी रहता है।


आंतरिक घूर्णन ( Internal rotation )


Pelvic cavity से गुजरते समय fetal head में आंतरिक घूर्णन होता है। यह प्रसव की प्रगति के लिए आवश्यक है। इसमें सिर 45° कोण पर घूम 

जाता है। एवं इसके परिणामस्वरूप सिर का occiput भाग pubis symphysis के ठीक पीछे आ जाता है । यह स्थिति शिशु की सामान्य स्थिति L.O.A. (Left occipition anterior) में होती है। इस समय fetus का face स्त्री के कशेरूक दंड ( vertebral column) की ओर होता है ।

 इस घूर्णन के कारण शिशु की गर्दन में घुमाव आ जाता है। इसे कम करने के लिए गर्दन एवं कंधे भी सिर की घूर्णन की दिशा में ही हल्के से घूम जाते हैं, यह घटना “Torsion of the neck" कहलाती है।


सिर का बाहर उभरना(Crowning of head) 


आंतरिक घूर्णन हो जाने के बाद head का biparital diameter pelvic cavity के outlet से बाहर आ

जाता है एवं सिर लगातार नीचे की ओर गति करता रहता है। इस प्रकार जन्म लेते समय शिशु का सिर इसी स्थिति में रहता है एवं जन्म के समय शिशु का मुख माँ की anus की ओर होता है । यह “Crowning of head" कहलाता है।


विस्तारण (Extension)


इस अवस्था में head की flexion स्थिति समाप्त हो जाती है एवं head सामान्य अवस्था में आ जाता है।


जैसा कि हम पूर्व में अध्ययन कर चुके हैं कि शिशु का जन्म ‘‘युग्म बल सिद्धान्त (Couple force theory)" द्वारा होता है एवं जन्म के समय शिशु का चेहरा माँ के anus की ओर होता है। Extension का सामान्य अर्थ शरीर के किसी अंग का इसके उत्पत्ति स्थल से वितरीत दिशा में गमन होता है। अतः इस स्थिति में शिशु की ठोडी गर्दन से दूर हो जाती है।


प्रत्यर्पण (Restitution )


यह internal rotation के प्रभाव को समाप्त करने के लिए होने वाली गति है। यह internal rotation के विपरीत दिशा में होती है। इसमें शिशु का सिर आंतरिक घूर्णन की विपरीत दिशा में 45° कोण पर घूम जाता है। अब शिशु का occiput माँ की एक जांघ की, जबकि चेहरा दूसरी जांघ की दिशा में होता है। यह बाहर से दिखाई देने वाली गति है।


बाह्य घूर्णन (External Rotation) 


यह head एवं shoulder द्वारा की गयी गति है, यह शिशु को engagement के समय होने वाली स्थिति में लाने के लिए होती है। इसमें शिशु की गर्दन एवं कंधे internal rotation की विपरीत दिशा में घूम जाते हैं। अब शिशु की स्थिति गर्भाशय में स्थिति के समान हो जाती है।


Head की delivery के पश्चात solder and trunk की डिलीवरी lateral flexion द्वारा हो जाती है। 


FAQS -


1. लेबर पेन कितने दिन पहले शुरू होता है?

उत्तर-37 वें सप्ताह से 40 सप्ताह के बीच लेबर पेन शुरू होता है।


2. लेवर की स्टेज कितनी होती हैं?

उत्तर- प्रसव के 3 चरणों में विभाजित किया गया है, गर्भाशय ग्रीवा का छोटा होना और फैलना, शिशु का बाहर निकलना और शिशु जन्म,और गर्भनाल का बाहर निकलना।


3. नॉरमल लेबर को क्या कहा जाता है।

उत्तर- यूटोसिया




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