कबीर साहेब जी चारों युगों में आते हैं // Kabir Sahib comes in all the four ages

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कबीर साहेब जी चारों युगों में आते हैं // Kabir Sahib comes in all the four ages

कबीर साहेब जी चारों युगों में आते हैं


Kabir Sahib comes in all the four ages


"नीरू-नीमा को जुलाहे की उपाधि तथा परमेश्वर प्राप्ति"


बेचारे गौरी शंकर तथा सरस्वती विवश हो गए। मुसलमानों ने पुरुष का नाम नीरू तथा स्त्री का नाम नीमा रखा। पहले उनके पास जो पूजा आती थी उससे उनकी रोजी-रोटी चल रही थी और जो कोई रुपया-पैसा बच जाता था वे उसका दुरूपयोग नहीं करते थे। उस बचे धन से धर्म-भण्डारा कर देते थे। पूजा आनी भी बंद हो गई। उन्होंने सोचा अब क्या काम करें? उन्होंने एक कपड़ा बुनने की खड्डी लगा ली और जुलाहे का कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। कपड़ा बुन कर निर्वाह करने लगे कपड़े की बुनाई से घर के खर्च के पश्चात् जो पैसा बच जाता था उसको भण्डारों में लगा देते थे। हिन्दू ब्राह्मणों ने नीरू-नीमा का गंगा घाट पर गंगा दरिया में स्नान करना बंद कर दिया था। कहते थे कि अब तुम मुसलमान हो गए हो।

सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अंतर्ध्यान हो जाते हैं।


गंगा दरिया का ही पानी लहरों के द्वारा उछल कर काशी में एक लहरतारा नामक बहुत बड़े सरोवर को भरकर रखता था। बहुत निर्मल जल भरा रहता था। उसमें कमल के फूल उगे हुए थे। सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास शुद्धी पूर्णमासी को ब्रह्ममुहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पहले) में अपने सत्यलोक (ऋतधाम) से सशरीर आकर परमेश्वर कबीर (कविर्देव) बालक रूप बनाकर लहर तारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए। उसी लहर तारा तालाब पर नीरू-नीमा सुबह-सुबह ब्रह्ममुहुर्त में स्नान करने के लिए प्रतिदिन जाया करते थे। (ब्रह्ममुहुर्त कहते हैं सूर्योदय होने से डेढ घण्टा पूर्व) एक बहुत तेजपुंज का चमकीला गोला (बालक रूप में परमेश्वर कबीर साहेब जी तेजोमय शरीर युक्त आए थे, दूरी के कारण प्रकाश पुंज ही नजर आता है) ऊपर से (सत्यलोक से) आया और कमल के फूल पर सिमट गया। जिससे सारा लहर तारा तालाब जगमग जगमग हो गया था और फिर एक कोने में जाकर वह अदृश्य हो गया। इस दृश्य को स्वामी रामानन्द जी के एक शिष्य ऋषि अष्टानन्द जी आँखों देख रहे थे। अष्टानंद जी भी स्नान करने के लिए एकांत स्थान पर उसी लहर तारा तालाब पर प्रतिदिन जाया करते थे। वहाँ बैठकर अपनी साधना गुरुदेव ने जो मंत्र दिए थे उसका जाप करते थे और प्रकृति का आनन्द लिया करते थे। स्वामी अष्टानंद जी ने जब देखा कि इतना तेज प्रकाश जिससे आँखे भी चौंधिया गई। ऋषि जी ने सोचा कि ये कोई मेरी भक्ति की उपलब्धि है या मेरा धोखा है। यह सोचकर कारण पूछने के लिए अपने गुरुदेव के पास गए।


आदरणीय रामानन्द जी से अष्टानन्द जी ने पूछा कि हे गुरुदेव! मैंने आज ऐसी रोशनी देखी है जो कि जिन्दगी में कभी नहीं देखी। सर्व वृतांत बताया कि आकाश से एक प्रकाश समूह आ रहा था। मैंने देखा तो मेरी आँखें उस रोशनी को सहन नहीं कर सकी। इस लिए बन्द हो गई, बंद आँखों में एक शिशु का रूप दिखाई दिया। (जैसे सूर्य की तरफ देखने के पश्चात सूर्य का एक गोला-सा ही दिखाई देता है, ऐसे बालक दिखाई देने लगा। क्या यह मेरी भक्ति की कोई उपलब्धि है या मेरा दृष्टिदोष था? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि पुत्र ऐसे लक्षण तब होते हैं जब ऊपर के लोकों से कोई अवतारगण आते हैं। वे किसी के यहाँ प्रकट होंगे, किसी माँ के जन्म लेंगे और फिर लीला करेंगे। क्योंकि इन ऋषियों को इतना ही ज्ञान है कि माँ से ही जन्म होता है)



जितना ऋषि को ज्ञान था अपने शिष्य का शंका समाधान कर दिया। "नीरू व नीमा प्रतिदिन की तरह उस दिन भी स्नान करने जा रहे थे। रास्ते में भीमा ने प्रभु से प्रार्थना की कि हे भगवान शिव (क्योंकि ये भले ही मुस्लमान बन गए थे लेकिन अपनी यह साधना हृदय से नहीं भूल पा रहे थे जो इतने वर्षों से कर रहे थे।) क्या आपके घर में हमारे लिए एक बच्चे की कभी पड़ गई? हमें भी एक लाल दे देते. हमारा जीवन भी सफल हो जाता। ऐसा कहकर फूट-फूट कर रोने लगी। उसके पति नीरू ने कहा कि नीमा प्रभु की इच्छा पर प्रसन्न रहने में ही हित होता है। यदि ऐसे रोती रहेगी तो तेरा शरीर कमजोर हो जायेगा, आँखों से दिखना बंद हो जायेगा। हमारे भाग्य में संतान नहीं है। ऐसे कहते-कहते लहरतारा तालाब पर पहुँच गए। थोड़ा-थोड़ा अंधेरा था। नीमा स्नान करके बाहर आई। अपने कपड़े बदले। नीरू स्नान करने के लिए तालाब में प्रवेश करके गोते मार-मार कर नहाने लगा। नीमा जब स्नान करते समय पहना हुआ कपड़ा धोने के लिए दोबारा तालाब के किनारे पर गई, तब तक अंधेरा हट गया था। सूर्य उदय होने वाला ही था। नीमा ने तालाब में देखा कि सामने कमल के फूल पर कोई वस्तु हिल रही है। कबीर साहेब ने बच्चे के रूप में एक पैर का अंगूठा मुख में दे रखा था और एक पैर को हिला रहे थे। पहले तो नीमा ने सोचा कि शायद कोई सर्प न हो और मेरे पति की तरफ आ रहा हो। फिर ध्यान से देखा तो समझते देर न लगी कि ये तो कोई बच्चा है। बच्चा और कमल के फूल पर। एकदम अपने पति को आवाज लगाई कि देखना जी बच्चा डूबेगा, बच्चा डूबेगा । नीरू बोला कि नादान तू बच्चों के चक्कर में पागल हो गई है। पानी में भी तुझे बच्चा नजर आने लगा। नीमा ने कहा हाँ, वह सामने कमल के फूल पर देखो। नीमा की जोरदार आवाज से प्रभावित होकर जिस तरफ हाथ से संकेत कर रही थी नीरू ने उधर देखा, एक कमल के फूल पर नवजात शिशु लेटा हुआ था। नीरू उस बच्चे को फूल समेत उठा लाए और नीमा को दे दिया। स्वयं स्नान करने लगा। नीरू स्नान करके बाहर आया नीमा बच्चे के रूप में आए परमेश्वर को बहुत प्यार कर रही थी तथा शिव प्रभु की प्रसंसा तथा स्तुति कर रही थी कि हे प्रभु आपने मेरी वर्षों की मनोकामना पूर्ण कर दी (क्योंकि वह शिव की पुजारिन थी) कह रही थी हे शिव प्रभु! आज ही हृदय से पुकार की थी. आज ही सुन ली।


उस कबीर परमेश्वर को जिसका नाम लेने से हमारे हृदय में एक विशेष हलचल सी होती है, उसके प्रेम में रोम-रोम खड़ा हो जाता है, आत्मा भर कर आती है। और जिस माता-बहन ने सीने से लगाकर पुत्रवत प्यार किया जो आनन्द उस माई को हुआ होगा। वह अवर्णनीय है। जैसे व्यक्ति गुड़ खा कर अन्य को उस के आनन्द को नहीं बता सकता खाने वाला ही जान सकता है। जैसे माँ प्यार करती है ऐसे शिशु रूपधारी परमेश्वर के कभी मुख को चूमा, कभी सीने से लगा रही थी और फिर बार बार उसके मुख को देख रही थी। इतने में नीरू स्नान करके बाहर आया (क्योंकि मनुष्य समाज की तरफ ज्यादा देखता है) उसने विचार लगाया कि न तो अ मुस्लमानों से हमारा कोई विशेष प्यार बना है और हिन्दू ब्राह्मण हमारे से द्वेष करते हैं। पहले इसी अवसर का लाभ मुस्लमानों ने उठाया कि हमें मुस्लमान बना दिया। हमारा कोई साथी नहीं है। यदि हम इस बच्चे को ले जायेंगे तो लोग पूछेंगे कि बताओ इस 


बच्चे के माता-पिता कौन है? तुम किसी का बच्चा उठा कर लाए हो। इसकी माँ रो रही होगी। हम क्या जवाब देंगे, कैसे बतायेंगे? कमल के फूल पर बतायेंगे तो कोई मानेगा। नहीं। यह सर्व विचार करके नीरू ने कहा कि नीमा इस बच्चे को यहीं छोड़ दे। नीमा ने कहा कि जी मैं इस बच्चे को नहीं छोड़ सकती। मेरे प्राण जा सकते हैं, मैं तड़फ कर मर जाऊँगी। न जाने मेरे ऊपर इस बालक ने क्या जादू कर दिया? मैं इसको नहीं छोड सकती। नीरू ने नीमा को सारी बात समझाई कि हमारे साथ ऐसा बन सकता है। नीमा ने कहा कि इस बच्चे के लिए मैं देश निकाला भी ले सकती हूँ परन्तु इसको नहीं छोडूंगी। नीरू ने उसकी नादानी को देख कर सोचा कि यह तो पागल हो गई, समाज को ही नहीं देख रही है। नीरू ने भीमा से कहा कि मैंने आज तक तेरी बात की अवहेलना नहीं की थी क्योंकि हमारे बच्चे नहीं थे। जो तू कहती रही मैं स्वीकार करता रहा। परन्तु आज मैं तेरी यह बात नहीं मानूंगा। या तो इस बालक को यहीं पर रख दे, नहीं तो तुझे अभी दो थप्पड़ लगाता हूँ। उस महापुरुष ने पहली बार अपनी पत्नी की तरफ हाथ किया था। उसी समय शिशु रूप में कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने कहा कि ठीक मुझे घर ले चलो। तुम्हें कोई आपत्ति नहीं आयेगी। शिशु रूप में परमेश्वर के वचन सुनकर नीरू घबरा गया कहीं यह बालक कोई फरिश्ता हो अथवा कोई सिद्ध पुरुष हो और तेरे ऊपर कोई आपत्ति न आ जाए। चुप करके चल पड़ा।


जब बच्चे को लेकर घर आ गए तो सभी यह पूछना तो भूल गये कि कहाँ से लाए हो? काशी के स्त्री तथा पुरुष लड़के को देखने आए तथा कहने लगे कि यह तो कोई देवता नजर आता है। इतना सुन्दर शरीर ऐसा तेजोमय बच्चा पहले कभी हमने नहीं देखा। कोई कहे यह तो ब्रह्मा-विष्णु-महेश में से कोई प्रभु है। ब्रह्मा-विष्णु-महेश कहते हैं कि यह तो कोई ऊपर के लोकों से आई हुई शक्ति है। ऐसे सब अपनी-अपनी टिप्पणी कर रहे थे।


गरीब, चौरासी बंधन काटन, कीनी कलप कबीर। 

'भवन चतुरदश लोक सब, टूटै जम जंजीर। 1376।। 

गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाय। 

सो तौ एक कबीर है. जननी जन्या न माय। 1377।। 

गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंघ सब माँहि ।

बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि । 1378।। 

गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक 

पूरणब्रह्म कबीर है, अविगत पुरूष अलेख | 1379 ।।

गरीब, सेवक होय करि उतरे, इस पृथ्वी के माँहि । 

जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांहि। 1380 ।। 

गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार । 

मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार । 1381।। 

गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि आसन अधर बिमान । 

परसत पूरणब्रह्म कूं शीतल पिंडरू प्राण। 1382।। 

गरीब, गोद लिया मुख चूंबि करि, हेम रूप झलकंत । 

जगर मगर काया करै, दमकै पदम अनंत । 1383।।


गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर । 

कोई कहे ब्रह्मा विष्णु हैं. कोई कहे इन्द्र कुबेर 1384|| 

गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहीं, कोई किंनर कहलाय। 

कोई कहै गण ईश का, ज्यू ज्यू मात रिसाय 1388 ।। 

गरीब, कोई कहै वरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश। 

सोलह कला सुभान गति, कोई कहै जगदीश 1385 ।। 

गरीब, भक्ति मुक्ति ले ऊतरे, मेटन तीनू ताप । 

मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप | 1386।। 

गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखे नहीं पलने झूलंत । 

अधर अमान धियान में कमल कला फूलत। 1387 ।। 

गरीब, काशी में अचरज भया, गई जगत की नींद । 

ऐसे दुल्हे ऊतरे, ज्यू कन्या वर बींद | 1389 ।। 

गरीब खलक मुलक देखन गया, राजा प्रजा रीत। 

जंबूदीप जिहोंन में उतरे शब्द अतीत | 1390 ।। 

गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश |

ईश कहै पारब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस। 1391 ।।


परमेश्वर कबीर जी ही अनादि परम गुरु हैं। वे ही रूपान्तर करके सन्त ऋषि देश में समय-समय पर (स्वयंभू) स्वयं प्रकट होते हैं। काल के दूतों (सन्तों) द्वारा बिगाड़े तत्वज्ञान को स्वस्थ करते हैं। कबीर साहेब ने ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवताओं, ऋषि मुनि व संतों को समय-२ पर अपने सतलोक से आकर नाम उपदेश दिया। आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने अपनी वाणी में लिखा है जो कबीर जी ने स्वयं बताया है :--


आदि अंत हमरा नहीं, मध्य मिलावा मूल। ब्रह्मा ज्ञान सुनाईया, घर पिंडा अस्थूल || 

श्वेत भूमिका हम गए, जहां विश्वम्भरनाथ हरियम हीरा नाम दे, अष्ट कमल दल स्वाति ।। 

हम बैरागी ब्रह्म पद, सन्यासी महादेव। सोह मंत्र दिया शंकर कूं करत हमारी सेव ||


हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।

जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहे कबीर हुआ।। 

सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा ।

द्वापर में करूणामय कहलाया, कलियुग में नाम कबीर धराया ।। चारों युगों में हम पुकारें, कूक कहे हम हेल रे ।

हीरे मानिक मोती बरसें, ये जग चुगता ढेल रे ।। 


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👉 कबीर साहेब जी चारों युगों में आते


उपरोक्त वाणी से सिद्ध है कि कबीर परमेश्वर ही अविनाशी परमात्मा है। यही अजरो-अमर है। यही परमात्मा चारों युगों में स्वयं अतिथि रूप में इस संसार में आकर अपना सतभक्ति मार्ग देते हैं।








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