'लाटी' कहानी का सारांश || Lati Kahani ka Saransh in Hindi

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'लाटी' कहानी का सारांश || Lati Kahani ka Saransh in Hindi

'लाटी' कहानी का सारांश || Lati Kahani ka Saransh in Hindi

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी website पर। आज की इस पोस्ट में हम आपको लाटी कहानी का सारांश बताएंगे। दोस्तों अगर आपको यह post पसंद आए तो अपने दोस्तों और मित्रों में जरूर share करें और comment box में जरूर बताएं कि आपको यह post कैसी लगी।

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'लाटी' कहानी का सारांश || Lati Kahani ka Saransh in Hindi

Table of contents –

लाटी कहानी का सारांश

लाटी कहानी की समीक्षा

लाटी कहानी का उद्देश्य

FAQ

प्रश्न - 'लाटी' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर - 'लाटी' कहानी की रचयिता प्रसिद्ध कहानीकार शिवानी हैं। उन्होंने इस कहानी को पहाड़ी रंग दिया है। काठगोदाम से कुछ ही मील दूर एक ऊंचे पहाड़ पर गोठिया का सेनिटोरियम था जिसका नाम उस समय भुवाली से भी अधिक था। वहीं तीन नंबर के बंगले में कप्तान जोशी अपनी बीमार पत्नी का इलाज कराने आकर ठहरा हुआ था। उसकी पत्नी का नाम बानो था, उसका विवाह 14 वर्ष की उम्र में कैप्टन जोशी से हो गया था। बानो से विवाह के ठीक तीसरे दिन उसे बसरा जाना पड़ा, जहां 2 वर्षों तक कप्तान युद्ध की विभीषिका में भटक गया था। 2 साल बाद घर पहुंचा तो दुनिया बदल चुकी थी। 2 वर्षों में बानो ने सात-सात नंदों के ताने सुने, भतीजों के कपड़े धोए, ससुर के होज बिने, पहाड़ की नुकीली छतों पर पांच-पांच सेर उड़द की बड़ियां तोड़ी। कभी वह सुनती उसके पति को जापानियों ने कैद कर लिया है। उसकी सास तथा चचिया सास उस पर नित्य व्यंग बाण चलाती रहतीं। इस प्रकार उसे क्षय रोग हो गया तथा उसे सेनिटोरियम भेज दिया गया। जैसे ही कप्तान जोशी लौटा और उसे बानो की बीमारी का पता लगा तो वह सीधा गोठिया सेनिटोरियम जा पहुंचा जहां प्राइवेट वार्ड में उसकी बीमारी का इलाज चल रहा था, 2 वर्ष की बीमारी के कारण वह और छोटी लगने लगी थी। सेनिटोरियम से मृत्यु से पूर्व निकाल दिया जाता था, बानों को भी दस्त लग गए थे, टी०बी० में दस्त खतरे की घंटी होते हैं। डॉक्टर दलाल आया और उसने देखा तो उसने कमरा खाली करने का नोटिस कप्तान जोशी को देते हुए कहा– कल ही ले जाना होगा, यह दो-तीन दिन से ज्यादा नहीं बचेगी। कप्तान का चेहरा फक पड़ गया। रात को उसने बानो के समक्ष अन्यत्र जाने का प्रस्ताव रखा और गीत गुनगुनाते हुए उसे सुला दिया तथा स्वयं भी सो गया। बानो यह समझ गई थी कि नोटिस मिल गया है। वह निकल गई। सुबह कप्तान उठा, उसने सोचा बानो बाथरूम तक गई होगी, लेकिन जब वह नहीं लौटी तो वह भागकर मरीजों तक गया। डॉक्टर आया, नर्सें आयीं, चौकीदार आया, लेकिन बानो नहीं आई। दूसरे दिन रथीघाट पर उसकी साड़ी मिली। बानो ने पानी में डूबकर आत्महत्या कर ली थी। शोक में पागल कप्तान साड़ी छाती से चिपकाए फिरता रहा।


    ‌ एक ही साल में उसका विवाह प्रभा से हो गया। वह गोरी, एम०ए० पास थी तथा मेजर जनरल की बेटी थी। उसके सौ-सौ नखरे उठाता हुआ कप्तान हंसना-खिलखिलाना सब भूल गया। 4 साल में कप्तान से दो बेटे, एक बेटी पाकर प्रभा ने धन संचय किया। 16 साल बाद कप्तान का अच्छा बैंक बैलेंस हो गया। 2 लड़कों को कमीशन मिल गया, लड़की मिरांडा हाउस में पढ़ रही थी। नैनीताल घूमने आने पर कप्तान के मन में टीस उठी, काठगोदाम से चलकर गोठिया दिखाई दिया और वह दुखी हो गया।

नैनीताल के ग्रांड होटल में दोनों टिके थे। प्रभा बोली–चलो डार्लिंग, इंटीरियर देखा जाए। भुवाली चलें। भोजन पैक कराकर फियेट गाड़ी भुवाली की ओर छोड़ दी। भुवाली की छोटी सी दुकान देख प्रभा ने गाड़ी रूकवाई और जूतियां चटकाती दुकान में घुस गई। बैंच झाड़कर दोनों बैठ गए, दुकानदार भौंचक्का सा रह गया। "खूब गर्म दो गिलास चाय लाओ प्रदान!" सुनकर वह चाय बनाने लगा।

इतनी ही देर में वैष्णवियों के एक दल ने भीतर घुसकर दुकान को घेर लिया तथा वैष्णवियों के हैड ने 16 गिलास चाय का आर्डर दिया। हैड वैष्णवी बड़ी ही मुखर एवं मर्दानी थी, वह मर्दाने स्वर में बोल रही थी– "सोचा, बामण जू की ही दुकान की चाय छोरियों को पिलाऊंगी, आज एकादशी है।"      "क्यों नहीं, क्यों नहीं" दुकानदार बोला– "अरे! लाटी भी आई है?" वैष्णवी बोली– "अभागी, कहां जाएगी?" तभी प्रभा तथा कप्तान ने उसकी ओर देखा। कुत्सित बूढ़ी अधेड़ वैष्णवियों में देवांगना-सी सुंदर लाटी, सफेद दांत निकालकर हंस दी। वही स्वस्थ बानो थी–गालों पर लालिमा, कान तक फैली आंखें, गूंगी, भोली। प्रभा ने देखते ही कहा–माई गॉड, व्हाट ए ब्यूटी! दुकानदार बोला–सरकार, इसका नाम लाटी है। हैड वैष्णवी ने भी कहा, नाम जो हो वह तो बह गया मेमसाहब, अब तो लाटी ही इसका नाम है। उसने आगे कहा–गुरु महाराज को इसकी देह नदी में तैरती मिली, इसकी जीभडी़ कहीं कटकर गिर गई थी, गले में मंगलसूत्र था, हमारे गुरु महाराज ने इसे गुरुमंत्र दिया। इसे भयंकर 'क्षयरोग' था। एक बार में सेर खून उगलता था, गुरु की शरण में आने पर ठीक हो गई। रोग ठीक होने पर उन्होंने इसका नाम लाटी रख दिया। लाटी जीभ दिखा। और लाटी मुस्कुरा दी। पैसा चुकाकर हैड वैष्णवी उठी, लाटी बैठी ही रही। मेजर उसे अपलक देख रहा था, यह वही बानो है जिसे डॉक्टर दलाल एवं कक्कड़ जैसे डॉक्टरों की दवा ठीक नहीं कर सकी थी। हैड वैष्णवी बोली–'उठ साली लाटी' और ठोकर से लाटी को उठाया। लाटी हंसी। उसने मेजर के ह्रदय को बींध दिया। वह दल के पीछे-पीछे चल दी। मेजर जीवन में बहुत आगे बढ़ चुका था, वह बिछड़ी गूंगी लाटी को लाने में मूर्खता समझने लगा, प्रभा भी इसे सहन नहीं कर सकती थी। बानो मर गई, अब तो वह लाटी थी। प्रभु ही अब उसका मालिक और प्रभु ही उसका सहारा था।

इस प्रकार कहानी के कथानक में दो स्थितियों का बड़ा ही आकर्षक एवं सहज वर्णन किया गया है। कथानक भले ही छोटा है लेकिन इसमें उत्सुकता आदि से अंत तक बनी रहती है। कथानक की मोहकता एवं पहाड़ी वातावरण में पाठक का मन हो जाता है।


प्रश्न - 'लाटी' कहानी की समीक्षा कीजिए।

उत्तर - सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी ने अपनी कहानियों में भावात्मक और सामाजिक आर्थिक समस्याओं से जो जूझती-टकराती नारी को बड़े रोचक एवं मार्मिक रूप से अभिचित्रित किया है। शिवानी द्वारा रचित 'लाटी' कहानी एक घटना प्रधान मार्मिक कहानी है। यह कहानी महिला त्रासदी पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि एक 16 वर्षीय खूबसूरत लड़की ससुराल में किस तरह सास-ननद के तानों और अत्यधिक काम के बोझ तले दबकर क्षयरोग (टी.बी.) का शिकार हो जाती है। कहानी की समीक्षा इस प्रकार है–


कथानक 


'लाटी' कहानी का कथानक मध्यमवर्गीय पहाड़ी परिवार से संबंधित है। कथानक में नई नवेली दुल्हन बानों के जीवन की त्रासदी को उकेरा गया है, जिसके पति कप्तान जोशी विवाह के तीसरे दिन ही उसे छोड़कर युद्ध भूमि में चले जाते हैं और 2 वर्षों के बाद लौटते हैं।


इन 2 वर्षों में बानों ने सास-ननद के ताने सुने, सास के व्यंग बाण सहे। ससुराल में काम के बोझ तले दबकर सन्त्रास भरी जिंदगी जीने के कारण वह क्षयरोग का शिकार हो जाती है और उसे गोठिया सैनिटोरियम में भर्ती कर दिया जाता है। अब कप्तान आता है और उसे पता चलता है कि बानो क्षय रोग की शिकार है, तो वह बानो के पास रहकर उसकी जी जान से सेवा करता है, किंतु एक दिन डॉक्टर से घर ले जाने के लिए कहते हैं, क्योंकि अब उसका इलाज संभव नहीं है।


कप्तान उसे घर लाने की जगह भुवाली में किराए के मकान में ले जाना चाहता है, किंतु वह रात में ही नदी में कूदकर आत्महत्या का प्रयास करती है। कप्तान को जब नदी किनारे उसकी साड़ी मिलती है, तो वह उसे मृत समझकर घर लौट आता है। और एक वर्ष बाद वह दूसरा विवाह कर लेता है।


उधर, बानो को एक संत बचा लेता है और उसका क्षयरोग भी ठीक कर देता है, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी आवाज और स्मृति दोनों चली जाती है। 16 वर्ष बाद अपनी पत्नी के साथ नैनीताल में घूमने के दौरान एक दिन भुवाली में चाय की दुकान पर कप्तान, जो अब मेजर बन चुका है, की भेंट लाटी से होती है।


मेजर उसे पहचान लेता है लेकिन बानो उसे नहीं पहचानती। मेजर उसे स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी जिंदगी अब काफी आगे बढ़ गई है। अब उसके बच्चे काफी बड़े हो गए हैं और पत्नी बानो जैसी भोली नहीं है। इस प्रकार 'लाटी' कहानी एक महिला की त्रासद भरी जिंदगी का कारूणिक कहानी है। इस कहानी के माध्यम से यह बताया गया है कि महिला ही महिला के शोषण का मुख्य कारण है। पति के बिना स्त्री की ससुराल में कोई इज्जत नहीं होती। उसे शारीरिक-मानसिक यातनाओं का शिकार होना पड़ता है।


पात्र और चरित्र चित्रण


पात्रों की दृष्टि से यह एक संतुलित कहानी है। कहानी के सभी पात्र कथानक के विकास में सहायक हैं। कप्तान जोशी, बानो (लाटी), नेपाली भाभी, प्रभा एवं वैष्णवी इसके मुख्य पात्र हैं, लेकिन लेखिका ने बानो (लाटी) एवं कप्तान जोशी के चरित्र को विशेष रूप से संवारा है। इस कहानी में कप्तान जोशी का चरित्र अत्यधिक अंतर्धन से भरा हुआ है। नेपाली भाभी के चरित्र के माध्यम से कथानक को गतिशील बनाया गया है। कहानी में सभी पात्रों की सृष्टि सौद्देश्य की गई है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पात्र एवं चरित्र चित्रण की दृष्टि से 'लाटी' एक सफल कहानी है।


कथोपकथन या संवाद


इस कहानी में संवादों की भरमार नहीं है, लेकिन जो भी हैं, वे सभी अत्यंत प्रभावपूर्ण, भावात्मक पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाले और रोचक हैं। कहानी के संवाद संक्षिप्त, सरल, सारगर्भित, स्वभाविक, स्पष्ट, सार्थक और गतिशील हैं। पात्रों के चरित्र के अनुसार सटीक हैं।


देश काल और वातावरण


आलोच्य कहानी में देश काल और वातावरण को ध्यान हर जगह रखा गया है। कहानी की पृष्ठभूमि पहाड़ी क्षेत्र की है अतः पहाड़ी शब्द जैसे -  युद्धज्यू, तिथण आदि का प्रयोग पहाड़ी वातावरण बनाने के लिए किया गया है। सेनेटोरियम के वातावरण में भी लेखिका नेपाली चित्रों का साकार कर दिया है।


भाषा शैली - 


प्रस्तुत कहानी में शिवानी ने सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। पहाड़ी वातावरण सृजित करने के लिए यथा स्थान पहाड़ी शब्दों का प्रयोग किया गया है। अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, अरबी, फारसी, तत्सम, तद्भव, देशज, आंचलिक सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया है। आधुनिक सभ्य समाज के इंग्लिश भाषा का एक उदाहरण देखिए - "चलो डार्लिंग, पहाड़ का इंटीरियर घुमा जाए। भूवानी चले"..." इसी दुकान में आज एकदम पहाड़ी स्टाइल से कलाई के गिलास में चाय पिएंगे हनी।" लेखिका ने शैली के रूप में चित्रात्मक, वर्णनात्मक, हास्य व्यंग्यात्मक, सूत्र आत्मक सबसे अधिक भावात्मक शैली का प्रयोग किया है।


उद्देश्य - 


कहानी का उद्देश्य मध्यम वर्गीय समाज में पति के बिना अकेले रहने वाली पत्नी के जीवन की त्रासदी को दिखाना है लेकिन यह भी संदेश दिया है कि महिला ही महिला का शोषण करती है। उन्हें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहिए तथा इसमें यह भी बताया गया है कि क्षय रोग असाध्य नहीं है परिजनों के सहयोग और प्रेम से लोगों को बचाया जा सकता है।


शीर्षक


प्रस्तुत कहानी का शीर्षक 'लाटी' बनो (लाटी) के जीवन की व्यथा को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सफल है, क्योंकि संपूर्ण कहानी बानो (लाटी) के इर्द-गिर्द घूमती है. अतः कहानी का शीर्षक चरित्र प्रधान है अपनी संक्षिप्तता, गौलिकता व कौतूहलता के चलते 'लाटी' शीर्षक पाठक के मन में आरंभ से अंत तक जिज्ञासा का प्रतिपादन करता है।


प्रश्न - 'लाटी' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर - शिवानी की सभी कहानियां उद्देश्यगर्भा हैं। प्रस्तुत कहानी लाटी भी अपना उद्देश रखती है। छोटी उम्र में विवाह करने अथवा बेमेल विवाह करने का क्या हश्र होता है, यही इस कहानी का उद्देश्य है। अपरिपक्व बुद्धि की बानो मृत्यु के भय से जल में डूबकर मृत्यु का वरण करती है। उसकी जीभ कहीं कटकर गिर जाती है। वह मूक हो जाती है और अपने मन की व्यथा को नहीं कह पाती है। हाय नारी की नियति! उसमें अप्रतिम सौंदर्य है लेकिन वाणीहीन सौंदर्य ठोकर और गाली ही खाता है। देवांगना तुल्य होने पर भी लाटी जीवनधारा के थपेड़े सहन करती है।


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Frequently asked questions –


प्रश्न - लाटी कहानी का क्या अर्थ है?

उत्तर - "लाटी" का शाब्दिक अर्थ है 'गूंगी'। यह एक पहाड़ी शब्द है। हमारे कुमाऊनी मूल के परम मित्र ने बताया कि मीठे ताने के रूप में किसी को मूढ़-बुद्धि कहने में भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। दादा-नानी अक्सर छेड़ में अपने नाती पोतों को लाटा (पुल्लिंग) या लाटी (स्त्रीलिंग) कहकर बुलाती है।


प्रश्न - लाटी कहानी के लेखक कौन है?

उत्तर - सुप्रसिद्ध कथा लेखिका शिवानी द्वारा लिखित लाटी घटना प्रधान कहानी है। कप्तान जोशी अपनी पत्नी बानो (लाटी) से अत्यधिक प्रेम करता है, जिसका प्रमाण उसके द्वारा की गई पत्नी की निश्छल सेवा से प्रतीत होता है।


प्रश्न - लाटी कहानी का क्या उद्देश्य है?

उत्तर - लाटी कहानी का मूल उद्देश्य समाज में पति के बिना अकेली रहने वाली पत्नी के जीवन की त्रासदी को दिखाना है, जिसमें लेखिका को सफलता मिली है। लेखिका ने यह संदेश भी दिया है कि महिला ही महिला का शोषण करती है। अतः उन्हें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहिए।


प्रश्न - लाटी कहानी के प्रमुख पात्र कौन-कौन हैं?

उत्तर - कप्तान जोशी, बानो (लाटी), नेपाली भाभी, प्रभा एवं वैष्णवी इसके प्रमुख पात्र हैं।


प्रश्न - लाटी कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।

उत्तर - लेखिका ने बानो (लाटी) एवं कप्तान जोशी के चरित्र को विशेष रुप से संवारा है। इस कहानी में कप्तान जोशी का चरित्र अत्यधिक अंतर्धन से भरा हुआ है। नेपाली भाभी के चरित्र के माध्यम से कथानक को गतिशील बनाया गया है।


आशा करता हूं दोस्तों कि आपको यह post पसंद आई होगी और हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए बहुत ही उपयोगी साबित हुई होगी।

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