Up board live class- 10th hindi solution पद्य खंड (पाठ-5) चींटी चंद्रलोक में प्रथम बार (सुमित्रानंदन पंत)
पद्य खंड
पाठ- 5 चींटी चंद्रलोक में प्रथम बार (सुमित्रानंदन पंत)
प्रश्न- लेखक संबंधी प्रश्न
1- सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए|
2- सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों और भाषा शैली पर प्रकाश डालिए|
3- सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय दीजिए|
4- सुमित्रानंदन पंत की रचना शैली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए|
जीवन परिचय- कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा के निकट कौसनी ग्राम में हुआ था |इनके पिता का नाम पंडित गंगाधर तथा जन्म के छंं घंटे पश्चात ही इनकी माता स्वर्ग सिधार गग |अतः इनका लालन-पालन पिता तथा दादी ने किया इनकी प्रारंभिक शिक्षा कौसोनी गांव में तथा उच्च शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में और बाद में बनारस के क्वींस कॉलेज से हुई | इनका काव्यगत सृजन यहीं से प्रारंभ हुआ |उन्होंने स्वयं ही अपना नाम गुसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया |काशी में पंत जी का परिचय सरोजनी नायडू तथा रविंद्र नाथ ठाकुर के काव्य के साथ-साथ अंग्रेजी की रोमांटिक कविता से हुआ और यहीं पर इन्होंने कविता प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रशंसा प्राप्त की सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित होने पर इनकी रचनाओं ने काव्य मर्मज्ञो के ह्रदय में अपनी धाक जमा ली |1950 ई० में ऑल इंडिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और 1957 ई० तक के प्रत्यक्ष रुप से रेडियो से सम्बद्व है |ये छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे |इन्होंने वर्ष 1916 - 1977 तक साहित्य सेवा कि | 28 दिसंबर 1977 को प्रकृति का यह सुकुमार कवि पंचतत्व में विलीन हो गई|
साहित्यिक परिचय- सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के महान कवियों में से एक माने जाते हैं| सात वर्ष की अल्पायु से ही इन्होंने कविताएं लिखना प्रारंभ कर दिया था| 1916 ई० में इन्होंने गिरजे का घंटा नामक सर्वप्रथम रचना लिखी |इलाहाबाद के म्योर कॉलेज में प्रवेश लेने के उपरांत इनकी साहित्यक रुचि और भी अधिक विकसित हो गई |1920 ई० में इनकी रचनाएं और ग्रंथि में प्रकाशित हुई |इनके उपरांत 1927 ई० में इनके वीणा और पल्लव नामक दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए |उन्होंने रूपाभा नामक एक प्रगतिशील विचारों वाले पत्र का संपादन भी किया |1942 ई० में इनका संपर्क महर्षि अरविंद घोष से हुआ| इन्हें कला और बूढ़ा चांद पर साहित्य अकादमी पुरस्कार लोकायतन पर सोवियत भूमि पुरस्कार और चिदंबरा पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला |भारत सरकार ने पंत जी को पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया|
कृतियां -
1- लोकायतन- इस महाकाव्य में कवि की संस्कृति और दार्शनिक विचारधारा व्यक्ति हुई है |इसमें कवि ने ग्राम्य जीवन और जन - भावना को भी छन्दोंबद्व किया है|
2- वीणा- इसमें पंत जी के प्रारंभिक गीत संग्रहीत है |तथा इसमें प्रकृति के अपूर्व सौन्दर्य को प्रदर्शित करने वाले दृश्यों का चित्रण भी हुआ है|
3- पल्लव - इस काव्य संग्रह की रचनाओं ने पंत जी को छायावादी कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया इस संग्रह में प्रेम प्रकृति और सौन्दर्य पर आधारित व्यापक चित्र प्रस्तुत किए गए हैं| इसके अंतर्गत बसंत श्री परिवर्तन मौन निमंत्रण बादल आदि श्रेष्ठ कविताओं को संकलित किया गया है|
4- गुंजन- इसमें प्रकृति प्रेम और सुंदर से संबंधित कवि की गंभीर व प्रौढ रचनाएं संकलित हुई हैं |नौका विहार इस संकलन की सर्वश्रेष्ठ काव्य रचना है|
5- ग्रन्थि- इस काव्य -संग्रह में मुख्य रूप से वियोग का स्वर मुखरित हुआ है |प्रकृति यह भी कवि की सहचरी है|
6- अन्य कृतियां - स्वर्णधूलि ;स्वर्ण किरण ;युगपथ; उतरा तथा आत्मा में पंत जी महर्षि अरविंद के नवचेतनावाद से प्रभावित हैं| युगांत ; युगवाणी और ग्रांम्य में पंत जी समाजवाद और भौतिक दर्शन की ओर उन्मुख हुए हैं| इन रचनाओं में कवि ने दीन हीन और शोषित वर्ग को अपने काव्य का आधार बनाया है कला और बूढ़ा चांद ; चिदंबरा शिल्पी ; आदि रचनाएं बी पंत जी की महत्वपूर्ण कृतियां है|
भाषा शैली - पंत जी की शैली अत्यंत सरल एवं मधुर है बांग्ला तथा अंग्रेजी भाषा से प्रभावित होने के कारण उन्होंने गीतात्मक शैली अपनाई |सरलता मधुरता चित्रात्मक कोमलता था और संगीतात्मकत इन की शैली की मुख्य विशेषताएं हैं पंत जी ने खड़ी बोली को ब्रजभाषा जैसा मधुर एवं सरसता प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है पंत जी गंभीर विचारक उत्कृष्ट कवि और मानवता के सहज आस्थावन कुशल शिल्पी है जिन्होंने नवीन सृष्टि के अभ्युदय की कल्पना की है|
साहित्य में स्थान - पंत जी सौंदर्य के उपासक थे| प्रकृति नारी और कलात्मक सौंदर्य इनकी के तीन मुख्य केंद्र रहे इनके काव्य जीवन का आरंभ प्रकृति चित्रण से हुआ इनके प्रकृति एवं अन्य विभागों को चित्रण में कल्पना एवं भावो की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं |इसी कारण इन्हें प्रकृति का सुकुमार एवं कोमल भावनाओं से युक्त कभी कहा जाता है |पंत जी का संपूर्ण का आधुनिक साहित्य चेतना का प्रतीक है जिसमें धर्म-दर्शन नैतिकता सामाजिकता भौतिकता आध्यात्मिकता सभी का समावेश है|
1 चंद्रलोक में प्रथम बार,
मानव के आपदा पर,
छिनन हुए लो, देश काल के,
दुजय बांदा बंधन
देवजी मनु शुद्ध निश्चय,
यह महत्व ऐतिहासिक क्षण,
भू- विरोध को शांत
निकट आए सब देशों के जन|
संदर्भ- ऐसे पंक्तियां कविवर सुमित्रानंदन- पंत द्वारा रचित 'ऋता' नामक काव्य संग्रह के मालिक पाठ्यपुस्तक हिंदी के काव्य खंड में संकलित ' चंद्रलोक में प्रथम बार' शीर्षक कविता से अवतरित है!
प्रसंग -इन पंक्ति में कवि ने माना कि चंद्रमा पर पहुंचने की ऐतिहासिक घटना के महत्व को व्यक्त किया है यहां कभी ने उन संभावनाओं का वर्णन यह है जो मानव के चंद्रमा पर पैर रखने से साकार होती प्रतीत हो रही है|
व्याख्या कभी कहता है| कि जब चंद्रमा पर प्रथम बार मानव ने अपने कदम रखे तो ऐसा करके उसने देश काल के उन सारे बंधनों जिन पर विजय पाना कठिन माना जाता था छिन्न-भिन्न कर दिया मनुष्य को है| आशा बन गई है| कि इस ब्रह्मांड में कोई भी देश और गृह रक्षक दूरी नहीं है| कि यह निश्चय ही मनु के पुत्रों की वजह से आशा है| कि आप सभी देशों के निवासियों को परस्पर विरोध समाप्त करके एक दूसरे के निकट आना चाहिए और प्रेम से रहना चाहिए यह संपूर्ण विश्व ही एक देश में परिवर्तित हो गया है| सभी देशों के मनुष्य एक दूसरे के निकट आए कवि की आकांक्षा है
काव्यगत सौंद्रय-(1) प्रस्तुत कविता में कवि ने दार्शनिक विचारों की प्रस्तुति वैज्ञानिक पृष्ठभूमि में की है| (2) भाषा- साहित्य खड़ी बोली| (3) शैली- प्रतीकात्मक (4) रस- वीर| (5) छंद- तुकांत -मुक्त (6) गुण- ओज (7) - अलंकार -अनुप्रास और युद्ध प्रकाश (8) भावसामय- संस्कृत के अधोलिखित स्ट्रोक जैसी भावना भी कवि ने निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त की है
Writer Name- sandhya kushwaha
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