UP Board Live for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 1 अयोध्यासिंह उपाध्याय
काव्यांजलि
पाठ 1 पवन -दूतिका(अयोध्या सिंह उपाध्याय)
(1). अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का जीवन परिचय
देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अयोध्या
सिंह उपाध्याय हरिऔध का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों और साहित्यिक वित्त विशेषताओं
पर प्रकाश डालिए।
अथवा
अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध का जीवन परिचय देते हुए
उनके काव्य सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -जीवन परिचय- उपाध्याय जी का जन्म आजमगढ़ जिले की निजामाबाद गांव
में सन 1865 ईस्वी में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित भोलासिंह और माता का नाम रुकमणी
देवी था। उनके पूर्वज शुक्ल यजुर्वेदी ब्राह्मण थे ।जो कालांतर में सिक्ख हो गए थे।
मिडिल परीक्षण करने के पश्चात उन्होंने काशी के क्वींस कॉलेज में प्रवेश लिया किंतु
अस्वस्थता के कारण उन्हें बीच में ही अपना विद्यालयीय अध्ययन छोड़ देना पड़ा । तत्पश्चात
उन्होंने घर पर ही फारसी अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया 17 वर्ष की अवस्था
में उनका विवाह हुआ। कुछ वर्षों तक उन्होंने निजामाबाद के तहसील स्कूल में अध्यापन
कार्य किया। बाद में 20 वर्ष तक कानूनों के पद पर कार्य किया ।कानूनों को पद से अवकाश
प्राप्त करके हरिऔध ने "काशी हिंदू विश्वविद्यालय "में अवैतनिक रूप से अध्यापन
किया। उपाध्याय के जीवन का ध्येय का अध्यापन
ही रहा। उनका जीवन सरल विचार उदार और लक्ष्य महान था। सन 1947 ईस्वी में अपार यश प्राप्त
करें उपाध्याय जी ने अपना नश्वर शरीर त्याग दिया।
साहित्यिक परिचय- उपाध्याय जी द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि एवं गद्य लेखक थे।
उपाध्याय पहली ब्रज भाषा में कविता किया करते थे ।आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने
उन्हें खड़ी बोली में काव्य रचना की प्रेरणा दी। इसलिए आगे चलकर उन्होंने खड़ी बोली
में रचना की और हिंदी काव्य को अपनी प्रतिभा का अमूल्य योगदान दिया। हरिऔध जी को लोकगीत
एवं मानव कल्याण के प्रेरकीय साधन के रूप में स्वीकार करते थे।
कृतियां= खड़ी बोली को काम भाषा के पद पर प्रतिष्ठित
करने वाले कवियों में हरिऔध जी का नाम अत्याधिक सम्मान के साथ लिया जाता है उनकी प्रमुख
रचनाएं इस प्रकार हैं।
नाटक="प्रद्युम्न विजय" और" रुकमणी
परिणय"।
उपन्यास=उपाध्याय जी का प्रथम उपन्यास" प्रेम
कांता" है ।,ठेठ हिंदी का ठाठ और अधखिला फूल प्रारंभिक प्रयास की दृष्टि से उल्लेखनीय
है।
काव्य ग्रंथ= वस्तु का उपाध्याय जी की प्रतिभा का विकास
एक कवि के रूप में हुआ उन्होंने 15 से अधिक छोटे-बड़े काव्य की रचना की।
प्रियप्रवास=यह विप्रलभ श्रृंगार पर आधारित महाकाव्य है।
इसके नायक व नायिका एक अशुद्ध मानव रूप से रूप में सामने आए हैं नायक श्री कृष्ण लोक
संरक्षण तथा विश्व कल्याण की भावना से परिपूर्ण मनुष्य हैं।
रस कलश=इसमें उपाध्याय जी की आरंभिक स्स्फुटकविताएं
संकलित हैं ।यह कविताएं श्रृंगार प्रधान हैं तथा काव्य सिद्धांत निरूपण के लिए लिखी
गई है।
हिंदी साहित्य में स्थान,=काव्य के क्षेत्र में भाव, भाषा ,शैली, छंद
एवं अलंकारों की दृष्टि से उपाध्यायजी की काव्य साधना महान है। उन्हें हिंदी का सार्वभौम
कवि माना जाता है। उन्होंने खड़ी बोली व परिभाषा तथा सरल से सरल एवं जटिल से जटिल भाषा
में अपने काव्य की रचना की तथा भाव एवं भाषा दोनों क्षेत्रों में विलक्षण प्रयोग किए।
भावों की दृष्टि से उनकी भावनाएं पूर्णता मौलिक तथा उनकी काव्य कला मानव शहद की अपनी
और आकर्षित करने वाली है।
(2) पाद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
(क) बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थी अकेली।
आके आंसू दृग -युगल में थे धरा को भिगोते।।
आए
धीरे सदन में पुष्प सदगंध को ले।
प्रातः वाली सुपवन इसी कल वातायानो से।।१।।
संतापो को विपुल बढ़ता देख के दुखिता हो।
धीरे होली स-दुख उससे श्रीमती राधिका यों।।
प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे यह सताती।
क्यों तू भी कलुषित हुई काल की क्रूरता से।
उत्तर-संदर्भ= प्रस्तुत पद् पंक्तियां द्विवेदी युग के प्रसिद्ध
कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय द्वारा वितरित महाकाव्य प्रियप्रवास से हमारी पाठ पुस्तक
के काव्य खंड में संकलित पवन दूतिका काव्यांश से उद्धृत है।
प्रसंग= एक दिन राधा अपने घर में अकेली बैठी हुई थी।
उनकी आंखें आंसुओं से परिपूर्ण थी। तभी प्रातः कालीन पवन उनके दुख को बढ़ाने लगे तभी
पवन को फटकार लगाती हैं।
व्याख्या= एक
दिन राधा उदासी से परिपूर्ण घर में अकेली बैठी हुई थी। आंसू आ आकर उनकी दोनों आंखों से सजल बना रहे थे इसी समय
प्रातः कालीन सुगंधित पवन रोशनदान से होकर घर के भीतर आई। जब पवन के प्रभाव से राधा
का दुख बहुत बढ़ गया तो उन्होंने दुखी होकर धीरे-धीरे पवन से कहा कि हे प्रातः कालीन
पवन तू ! तू क्यों मुझे इस प्रकार सता रही
है?क्या तू भी समय की कठोरता से दूषित हो गई है? क्या तुझ पर भी समय की क्रूरता का
प्रभाव पड़ रहा है?
सौंदर्य = राधा की मनोदशा का भावपूर्ण चित्रण किया गया
है।,भाषा = खड़ी बोली।,अलंकार=
मानवी करण
शब्द शक्ति=अभिधा ,गुण = प्रसाद छंद=
मंदाक्रांता।
(3) सूक्ति की संदर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या
कीजिए।
(क) होने देना विकृत-बसना तो न तू सुंदरी को।
उत्तर= संदर्भ=प्रस्तुत सूक्ति पंक्ति हिंदी की सुप्रसिद्ध
कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय द्वारा रचित महाकाव्य "प्रियप्रवास" से पाठ के
काव्य खंड में संकलित" पवन दूतिका"
शीर्षक से उद्धृत है।
प्रसन्ग= राधिका पवन कुमार के से संबंधित आवश्यक दिशा
निर्देश देते हुए प्रस्तुत सूक्ति कहती हैं।
व्याख्या= राधिका पवन को समझाती हैं कि तुझे मार्ग में
ब्रजभूमि को की अत्यंत लज्जाशील महिला दिखाई होंगी ।अब तुझे उनका मान सम्मान करते हुए
ही आगे बढ़ना है। तू कहीं अपने चंचलता का प्रदर्शन करते हुए उनके वस्त्रों को उड़ा
कर उनके कोमल अंगों को अनावृत मत कर देना। ऐसी चंचलता किसी भी दृष्टि से ना तो उचित
है और ना ही क्षम्य।
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