UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 6 निन्दा रस

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 6 निन्दा रस

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 6 निन्दा रस


 

पाठ 6 निंदा रस (श्री हरिशंकर परसाई)

 

1.बहुविकल्पीय प्रश्न

1.हरिशंकर परसाई का जन्म किस प्रदेश में हुआ था

(क)आंध्र प्रदेश

(ख)उत्तर प्रदेश

(ग)मध्य प्रदेश

(घ)हिमाचल प्रदेश

(ग)मध्य प्रदेश

 

2.शुक्लोत्तरयुग के श्रेष्ठ व्यंग्यकार हैं

(क)यशपाल

(ख)प्रेमचंद

(ग)हरिशंकर परसाई

(घ)हजारी प्रसाद द्विवेदी

(ग)हरिशंकर परसाई

 

3.निंदा रस के लेखक हैं

(क)भगवती चरण वर्मा

(ख)रामधारी सिंह दिनकर

(ग)वासुदेव शरण अग्रवाल

(घ)हरिशंकर परसाई

(घ) हरिशंकर परसाई

 

4.रानी नागफनी की कहानी की रचना विधा है

(क)आत्मकथा

(ख)जीवनी

(ग) कहानी

(घ)उपन्यास

(घ) उपन्यास

 

2. हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए। 13, 14, 15, 16, 17, 18]

                  अथवा

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएं और कृतियों पर प्रकाश डालिए।

                         अथवा

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों और भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।

 

उत्तर-जीवन परिचय (हरिशंकर परसाई)

हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जनपद में इटारसी के निकट स्थित जमानी नामक ग्राम में 22 अगस्त सन 1924 ईस्वी को हुआ था ।उनकी प्रारंभिक शिक्षा से स्नातक तक की शिक्षा मध्यप्रदेश में हुई ।परंतु उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से m.a. हिंदी की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात कुछ वर्षों तक उन्होंने अध्यापन कार्य किया उन्होंने बाल अवस्था से कला एवं साहित्य में रुचि लेना प्रारंभ कर दिया था। वे अध्यापन के साथ-साथ साहित्य सृजन भी करते रहे दोनों कार्य साथ साथ ना चलने के कारण अध्यापन कार्य छोड़कर साहित्य साधना की।उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया जबलपुर में "वसुधा" नामक पत्रिका के संपादन एवं प्रकाशन का कार्य प्रारंभ किया।लेकिन अर्थ के अभाव के कारण इसे बंद करना पड़ा उनके और व्यंग पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे ।लेकिन उन्होंने नियमित रूप से धर्म और सप्ताहिक हिंदुस्तान के लिए अपनी रचनाएं लिखी 10 अगस्त सन 1995ई० को उनका स्वर्गवास हो गया हिंदी गद्य साहित्य कारों में हरिशंकर परसाई थे उनके सामाजिक एवं राजनीतिक अतिरिक्त उन्होंने साहित्य की अन्य विधाओं भी अपनी लेखनी चलाई थी परंतु के रूप में हुई।

साहित्यिक सेवाएं,

व्यक्ति और समाज के नैतिक एवं सामाजिक दोषों पर मार्मिक प्रहार करने वाले व्यंग प्रदान निबंधों के लेखन में अग्रणी शब्द और उसके भाव के पार की परसाई जी की दृष्टि लेखन में बड़ी सुक्षमता के साथ उतरती थी । साहित्य सेवा के लिए उन्होंने नौकरी को भी त्याग दिया। यह स्वतंत्र लेखन कोई अपने जीवन का उद्देश्य बनाकर साहित्य साधना में जुटे रहे वर्षों तक आर्थिक विषमताओं को झेलते हुए भी यह वसुधा नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का प्रकाशन एवं संपादन करते रहे।

कृतियां,

परसाई जी ने अनेक विषयों पर रचनाएं लिखी इनकी रचनाएं देश की प्रमुख साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित होती रही इन्होंने कहानी उपन्यास निबंध आदि सभी विधाओं में लेखन कार्य किया परसाई जी की रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार है।=

 कहानी संग्रह- हंसते हैं रोते हैं ,जैसे उनके दिन फिरे।

उपन्यास -रानी नागफनी की कहानी ,तट की खोज

निबंध संग्रह- तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे ,बेईमान की परत ,पगडंडियों का जमाना, सदाचार का ताबीज ,शिकायत मुझे भी है, और अंत में।

 

भाषा शैली,

परसाई जी ने प्राय: सरल स्वभाव में एवं बोलचाल की भाषा को अपनाया है ।यह सरल एवं व्यवहारिक भाषा के पक्षपाती थे। व्यवहारिक भाषा के कारण साधारण पाठक भी उनकी साहित्यिक परिस्थितियों को आसानी से समझ सकता है। इनकी भाषा गंभीर ना होकर शुद्ध सरल तथा व्यवहारिक है।

 

हिंदी साहित्य में स्थान,

हरिशंकर परसाई हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित व्यंग लेखक थे। मौलिक एवं अर्थ पूर्ण व्यंगो की रचना में परसाई जी सिद्धहस्त रहे। हास्य एवं व्यंग प्रधान निबंधों की रचना करके इन्होंने हिंदी साहित्य की एक विशिष्ट अभाव की पूर्ति इनके व्यांगो में समाज एवं व्यक्तियों की कमजोरियों पर तीखा प्रहार मिलता हैं।आधुनिक युग के मकानों में उनका सदैव स्मरणीय रहेगा।

 

3. गद्यांश संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।

(क) मेरे मन में गत रात्रि के उस निंदक मित्र के प्रति में नहीं रहा। दोनों एक हो गए । भेद तो रात्रि के अंधकार में ही मिटता हैं, दिन के उजाले में भेद स्पष्ट हो जाते है। निंदा का ऐसा भी भेदनाशक अंधेरा होता है 3-4 घंटे बाद, जब वह विदा हुआ तो हम उन लोगों ने मन में बड़ी शांति और तुष्टि थी।

संदर्भ=प्रस्तुत गद्य अवतरण प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित निंदा रस नामक व्यंगात्मक निबंध से उद्धृत है यह निबंध हमारे पाठ पुस्तक के गद्य खंड में संकलित है।

 

प्रसंग=यहां विरोधियों की निंदा करने में मिले आनंद का व्यंगात्मक चित्रण किया गया है।

 

व्याख्या=लेखक कहता है कि मेरा निंदक मित्र जब तक अपने परिचितों की निंदा करता रहा तब तक उसका व्यवहार मुझे उचित नहीं लगा। लेकिन जब उसने मेरे विरोधियों विरोधियों की निंदा करनी प्रारंभ की तब उसके प्रति में विनम्र हो गया। क्योंकि दोनों की भावनाएं समान हो गई और हमारा स्वभाविक भेदभाव समाप्त हो गया क्योंकि इस प्रकार की भेद दोषरूपी अंधकार में दिखाई नहीं देते और स्वच्छ आचरण रूपी दिन में स्पष्ट हो जाते हैं ।निंदा की वैचारिक क्षमता के कारण लोगों के मन शांत एवं तरफ तो हो ही जाते ।हैं यही कारण है कि निंदक मित्र वैचारिक भिन्नता होने पर भी वे अपने अपने विरोधियों की निंदा एक दूसरे से सुनते समय आपस में सहानुभूति का परिचय देते हैं।

 

साहित्यिक  सौंदर्य=(1)रात्रि के अंधकार की दोषो से और दिन के उजाले की स्वच्छ आचरण से तुलना की गई है।(2) भाषा =सरल ,सरस एवं प्रभावपूर्ण ( 3)शैली =व्यंग्यात्मक।

 

4. सूक्ति की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।

 

(क)भावना के अगर कांटे होते तो उसे मालूम होता कि वह नागफनी को कलेजे से चिपटाए हैं। छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करें तो पुतला ही आगे बढ़ाना चाहिए ।

छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करें तो पतला ही आगे बढ़ाना चाहिए।

 

उत्तर-संदर्भ=प्रस्तुत सूक्ति प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित निंदा रस नामक व्यंग्यात्मक निबंध से उद्धृत है यह निबंध हमारी पोस्ट पुस्तक के गद्य खंड में संकलित है।

प्रसंग=यहां यह स्पष्ट किया गया है कि छल करने वाले के साथ छल पूर्ण नीति का ही प्रयोग करना चाहिए।

व्याख्या=भावना व्यक्ति का ऐसा कौन है जिसका अनुमान केवल व्यक्ति को देखकर नहीं लगाया जा सकता पराया होता है। यह है कि व्यक्ति के मन में होती तो दुर्भावना है किंतु वह सामाजिक एवं नैतिक बाध्यताओ के कारण स्वयं को सद्भावना के पुतले के रूप में प्रस्तुत करता है ।अपने मित्र से मिलते समय लेखक ने भी ऐसा ही प्रदर्शन किया यदि भावना के कांटे होते तब उसके मित्र को यह पता चलता है ।कि वह अपने प्रिय मित्र को गले नहीं छिपता है। बल्कि नागफनी को अपने कलेजे से लगाए हैं कुछ व्यक्ति पारस्परिक संबंधों में भी छल पूर्ण नीति का प्रयोग करते हैं वे अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर स्नेह एवं प्रेम का ढोंग रचते तथा किसी भी अवसर पर दूसरों का आयत कर देते झूठा विश्वास और प्रेम प्रदर्शित कर दूसरे को धोखा देना और अपने स्वार्थ की पूर्ति करना इस प्रकार के व्यक्तियों का स्वभाव होता है। ऐसा व्यक्तियों के धोखे में आकर कभी भी उनके प्रति भावुक नहीं होना चाहिए ।उनके साथ सदैव ऊपरी मन से ठीक उसी प्रकार मिलना चाहिए। जिस प्रकार भीम ने धृतराष्ट्र को अपने शरीर सौंपने के स्थान पर अपना पुतला अशोक सौंपा अन्यथा से आलू तहत राष्ट्रपति गले लगाने के बाद उसकी हत्या ही कर डालता।

 

 Writter- Ritu kushwaha

 

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