UP Board Live for Class 10 Hindi Chapter 4 भारतीय संस्कृति (गद्य खंड) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
पाठ-4 भारतीय संस्कृति( डॉ राजेंद्र प्रसाद)
-लेखक संबंधी प्रश्न|
(1) डॉ राजेंद्र प्रसाद जी का जीवन परिचय देते
हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएं एवं कृतियों पर प्रकाश डालिए|
(2) डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय
देते हुए उनकी साहित्य की विशेषताओं एवं कृतियों पर प्रकाश डालिए| डॉक्टर राजेंद्र
प्रसाद का जीवन परिचय देते हुए उनकी करते हुए और भाषा शैली पर प्रकाश डालिए
(3) डॉ राजेश प्रसाद का साहित्य परिचय लिखिए|
(घ) डॉ राजेंद्र प्रसाद की भाषा शैली की विशेषताओं
पर प्रकाश डालिए|
(4)डॉ राजेंद्र प्रसाद की भाषा शैली की विशेषता
पर प्रकाश डालिए|
जीवन परिचय- देश रतन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म सन
1884 ई० में बिहार राज्य के छपरा जिले के जीरादेई नामक ग्राम में हुआ था उनके पिता
का नाम महादेव सहाय उनका परिवार गांव के संपन्न और प्रतिष्ठित कृषक परिवारो रूम में
था |उन्होंने कोलकाता (कोलकाता) विश्वविद्यालय में एम०एल० बी० की परीक्षा उत्तीर्ण
की थी| प्रतिभा संपन्न और मेधावी छात्र थे और परीक्षा में सर्वप्रथम आते थे कुछ समय
तक मुजफ्फरपुर कॉलेज में अध्ययन कार्य करने के पश्चात यह पटना और कोलकाता हाई कोर्ट
में वकील भी रहे इनका झुकाव प्रारंभ से ही राष्ट्र सेवा की ओर था सन 1917 ई० में गांधीजी
के आदर्शों और सिद्धांतों से प्रभावित होकर इन्होंने चंपारन के आंदोलन में सक्रिय भाग
लिया और वकालत छोड़ कर पूर्ण रूप से राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े अनेक
बार जेल की यातनाएं भी होगी उन्होंने विदेश जाकर भारत के पक्ष को विश्व के सम्मुख रखा
है यह तीन बार अखिल भारतीय कांग्रेस के सभापति तथा भारत के संविधान का निर्माण करने
संभाग पति चुने गए| राजनीतिक जीवन के अतिरिक्त बंगाल और बिहार में बाढ़ और भूकंप के
समय की गई इनकी सामाजिक सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता सदा जीवन उच्च विचार इनके जीवन
का पूर्ण आदर्श था इनकी प्रतिभा का कर्तव्य निष्ठा ईमानदारी और निष्पक्षता से प्रभावित
होकर इनको भारत गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया इस पद को यह सन 1952 से सन
1962 ईस्वी तक सुशोभित करते रहे भारत सरकार ने उनकी मान्यताओं के सम्मान स्वरूप देश
की सर्वोच्च उपाधि भारत रत्न से सन 1962 ईस्वी में इनको अलंकृत किया जीवन भर राष्ट्र
की सेवा करते हुए 28 फरवरी 1963 ईस्वी को स्वर्गवास हो गई|
रचनाएँ- राजेंद्र बाबू की प्रमुख रचनाओं का विवरण
निम्ननिम्नवत है!
1) -
चंपारण में महात्मा गांधी( 2) बापू के कदमों (3) मेरी आत्मकथा (4) मेरे यूरोप के अनुभव
(5) शिक्षा और संस्कृति (6) भारतीय शिक्षा (7) गांधी जी की देन (8) साहित्य (9) संस्कृति
का अध्ययन (10) खादी का अर्थशास्त्र आदि इनके प्रमुख रचनाएं है!
साहित्य में स्थान- डॉ राजेंद्र प्रसाद सुलझे हुए राजनेता होने
के साथ-साथ उच्च कोटि के विचारक साहित्य साधक और शुक्ला थे यह सादी भाषा और गहन विचारक
के रूप में सदैव स्मरण किए जाएंगे हिंदी की आत्मकथा विधा में लिखी पुस्तक मेरी आत्मकथा
का उल्लेख निस्ताने हिंदी के अन्य सेवक और राजनेता के रूप में सम्मानित स्थान पर विराजमान
होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य में दिए का अति विशिष्ट स्थान है!
कृतियां- राजेंद्र जी ने अपने जीवन काल में विशेष के
रचनाएं रचित की |अखिल भारतीय' शिक्षा" शिक्षा और संस्कृति 'साहित्य 'मेरी आत्मकथा
'बापूजी के कदमों में "गांधी जी की देन 'संस्कृत का अध्ययन' मेरी यूरोप यात्रा"
चंपारण में महात्मा 'गांधी तथा खादी का अर्थशास्त्र और इसके अलावा उनके भाषणों के भी
कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं|
भाषा- डॉ राजेंद्र प्रसाद की भाषा सुबोध सहज
सरल तथा व्यवहारिक है इनकी बहुत से निबंधों में अंग्रेजी उर्दू बिहार की तथा संस्कृत
शब्दों का प्रयोग हमें स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है इन्होंने कहीं-कहीं ग्रामीण कहावतों
और शब्दों का भी प्रयोग किया है इनकी भाषा में अलंकार यदि कहीं भी दिखाई नहीं पड़ती
है उन्होंने छोटे-छोटे भावात्मक वाक्यों का प्रयोग भी किया है उनकी भाषा में बनावटी
पर नहीं है|
शैली- डॉ राजेंद्र प्रसाद की शैली भी उनकी भाषा की तरह ही एंड बाधित रही
थी इसमें उन्होंने आवश्यकतानुसार छोटे-बड़े वाक्यों का प्रयोग किया है| इनकी सैलरी
के मुख्य रूप से दो रूप प्राप्त होते हैं|
1- साहित्यिक शैली- उनकी इस शैली में वाक्यों
की रचना सुंदर है! तत्सम शब्दों की अधिकता है| विचारों के अनुकूल उनकी शैली में कहीं-कहीं
परिवर्तन भी दिखाई देता है|
2- भाषण शैली- राजनीति से जुड़े होने के कारण
उन्हें अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने के लिए प्राया भाषण देने पड़ते थे जिनमें यह
बोलचाल की साधारण भाषा का ही प्रयोग करते थे| तथा उसमें उर्दू अंग्रेजी व देशी भाषा
के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है| इनके भाषण पर यारा सरल भाषा में होते थे| इसके अतिरिक्त
राजेश प्रसाद की रचनाओं में कहीं-कहीं विवेचनात्मक भावात्मक और आत्मकथात्मक शैली के
भी दर्शन होते हैं|
हिंदी साहित्य में योगदान- डॉ राजेंद्र प्रसाद हिंदी के विशेष के सेवक
एवं प्रचारक थे| उन्होंने हिंदी भाषा की आजीवन सेवा की यह ग्रहण विचारक के रूप में
सदैव स्मरण किए जाएंगे हिंदी की आत्म कथा साहित्य में उनके प्रसिद्ध पुस्तक मेरी आत्मकथा
का विशेष स्थान है| इनकी सेवाओं के लिए हिंदी साहित्य में सदैव इनका नाम अमर रहेगा
(1)- यह केवल एक गांव की भावना नहीं है, बल्कि
एक ऐतिहासिक साथ है जो हजारों वर्षों से अलग अलग अस्तित्व में रखते हुए अनेकानेक जल
प्रवाह दो और प्रभावों का संगम स्थल बनकर एक प्रकार और प्रगाढ़ समुद्र के रूप में भारत
में व्यापार जिसे भारतीय संसद का नाम दे सकते हैं, इन अलग-अलग नदियों के उद्गम भिन्न
भिन्न हो सकते हैं और रहे हैं| इनकी धाराएं भी अलग-अलग बहती है| और प्रदेश के अनुसार
भिन्न भिन्न प्रकार की और फल फूल पैदा करती रहती है पर सब से एक ही शुद्ध सुंदर स्वस्थ
और शीतल जल बहता रहा है| जो उद्गम और संगम में एक ही हो जाता है|
(1) - प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए|
(2)- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए|
(3) -भारतीय संस्कृत का नाम किसे दिया जाता
है|
(1)उत्तर- संदर्भ- प्रस्तुत गंदा हमारी पाठ्य -पुस्तक' हिन्दी' के गद्य खंड में संकलित डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद
द्वारा लिखित भारतीय संस्कृति नामक निबंध से उद्धृत है|
(2)- रेखांकित अंश की व्याख्या- डॉ राजेंद्र प्रसाद जी कहते हैं कि हर एक
नदी का उद्गम स्थल अलग-अलग होता है| उसका मार्ग भी दूसरे से भिन्न होता है| और हर नदी
के किनारे की भूमि में प्रदेश की जलवायु और मिट्टी के अनुसार अलग-अलग प्रकार की फसलें
पैदा होती हैं| पर इन सभी नदियों में एक ही पानी है| जो सागर में एक साथ मिलता है और
फिर बादल के रूप में एक जैसा बरसता है| जिस प्रकार नदियों का जल निगम बादल और संगम
सागर पर एक जैसा हो जाता है| उसी प्रकार भिन्न स्थानों से आई हुई संस्कृति अपने संगम
स्थल भारतीय संस्कृति में एक ही सुख और कल्याणकारी हो गई है!
(3) - भारत के विभिन्न धर्म विचार धारा और जाति
रूप भी जल प्रभात और हजारों वर्षों से आकर भारत में व्यापा है| इसकी विस्तृत और सागर
के सम्मान ग्रहण और गंभीर भारती संस्था के नाम दिया जा सकता है|
Roshani Kushwaha
एक टिप्पणी भेजें