Up board live solution class 12th hindiसूत- पुत्र का नाटक

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Up board live solution class 12th hindiसूत- पुत्र का नाटक

 





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 सूत- पुत्र का नाटक



 प्रश्न- सूत् -पुत्र नाटक का कथानक (कथासार /कथावस्तु /कथा तत्व )को अपने शब्दों में लिखिए|


 अथवा


सूत- पुत्र नाटक की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डालिए|


 अथवा


सूत -पुत्र नाटक के आधार पर कर्ण की कथा कथा का सारांश लिखिए|


 उत्तर- प्रथम अंक के कथानक का सार



 नाटक की ऐतिहासिकता- सूत- पुत्र नाटक का कथानक भारत के अति प्राचीन इतिहास से लिया गया है| महाभारत के प्रसिद्ध ऐतिहासिक प्रसंग में से नाटककार ने महाभारत के विशिष्ट चरित्र कार्ड को लेकर इस नाटक की रचना की है| भारत की इस ऐतिहासिक घटना के मूल में कर्ण प्रभाव कथा अपमान और तिरस्कार के परिणाम स्वरूप उत्पन्न उसके प्रतिशोध और अंतर्द्वंद भी मुख्य कारण है| महाभारत कालीन सामाजिक राजनैतिक और जातिगत व्यवस्थाओं का लेखा-जोखा भी इस नाटक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है|


 डॉ गंगा सहाय- प्रेमी द्वारा रचित नाटक सूत पुत्र के प्रथम अंक का प्रारंभ इस दृश्य से होता है| धनुर्विद्या के आचार्य एवं श्रेष्ठ धनुर्धर परशुराम उत्तराखंड में पर्वतों के बीच तपस्या लीन है| यही उनका आश्रम है |परशुराम जी का व्रत है कि वह धनुर्विद्या केवल ब्राह्मणों को ही सिखाएंगे| कर्ण की हार्दिक कामना थी कि वह एक कुशल लक्ष्य भेदीधनुर्धारी बने इस उद्देश को लेकर वह परशुराम जी के आश्रम में पहुंचता है| और अपने को ब्राह्मण बताकर धनुर्विद्या की शिक्षा प्राप्त करने लगता है|



एक दिन कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सोए हुए परशुराम कर्ण की जंघा से निकले हुए रक्त एवं कर्ण की ढेर भाव से उसके चरित्र छतरी होने की संभावना व्यक्त करते हैं| वे कर्ण से स्पष्ट पूछते हैं कि तुम कौन हो कर्ण सारी बात सच सच बता देता है परसु राम शब्द होकर कर्ण को श्राप देते हैं कि तुम अपने अंतिम समय में इस विद्या को भूल जाओगे और असफल रहोगे|




द्वितीय अंक के कथानक का सार


प्रश्न -सूत- पुत्र नाटक के आधार पर द्रोपती स्वयंबर का वर्णन कीजिए|


सूत- पुत्र नाटक का द्वितीय अंक द्रोपती के स्वयंबर से आरंभ होता है |राजकुमार और दर्शक एक सुंदर मंडप के नीचे अपने-अपने आसनों पर विराजमान है| खोलते तेल कडाह के ऊपर एक खंबे पर नियंत्रण घूमते चक्र के ऊपर एक मछली है, तेल में देखकर जिसकी आंख बेधनी है |राजा द्रुपद अपने पुत्र के साथ मंडल में आते है| और उनकी आदेशानुसार सेवक राजकुमारी कृष्णा के स्वयंबर की घोषणा करता है कि जो काला के तेल में देखकर मछली की आंख बेध देगा उसके साथ ही कृष्णा का विवाह होगा|


अनेक राजकुमार लक्ष्य भेद के लिए उठते हैं और असफल होकर बैठ जाते हैं तभी कर्ण कड़ाह के पास पहुंचता है| तभी कर्ण का परिचय पूछता है कर्ण के परिचय से राजा द्रुपद संतुष्ट नहीं होते और कर्ण को प्रतियोगिता के लिए आयोग्य घोषित कर देते हैं| यद्यपि दुर्योधन उसी समय कर्ण को अंग देश का राजा घोषित कर देता है |परंतु उसके चरित्र एवं पात्रता को सिद्ध नहीं कर पाता आता कर निराश होकर चला जाता है|


उसी समय ब्राह्मण वेश में अर्जुन और भीम सभा मंडप में प्रवेश करते हैं राजा द्रुपद ब्राह्मण वेश धारी अर्जुन को लक्ष्य भेद करने की अनुमति देते हैं| अर्जुन कड़ाह के खौलते तेल में देखकर मछली की आंख बेध देता है| राजकुमारी कृष्णा सखियों के साथ आती है |और अर्जुन को वरमाला पहना देती है|


अर्जुन द्रोपती को लेकर चले जाते हैं सूने सभा -मंडल में दुर्योधन और कर्ण रह जाते हैं| दोनों में बातचीत होती है दुर्योधन ब्राह्मण वेश धारी अर्जुन से द्रोपती को बलपूर्वक छीन लेने की बात कर्ण से कहता हैं परंतु कर्ण दुर्योधन के इस कथन से सहमत नहीं है |वह कहता है_


दुर्योधन ब्राह्मण वेषधारी अर्जुन तथा दिन से संघर्ष करता है| परंतु घायल होकर कर्ण के पास वापस लौट आता है| और बताता है कि ब्राह्मण वेश धारी और कोई नहीं अर्जुन और भीम ही है| दुर्योधन को इस बात का संदेह हो जाता है कि पांडवों को लाक्षागृह में जलाकर मार डालने की उसकी योजना असफल हो गई है| कर्ण पांडवों को बड़ा भाग्यशाली बनाता है यहीं पर नाटक का दूसरा अंक समाप्त हो जाता हैं|



तृतीय अंक के कथानक का सार


प्रश्न- इंद्र ने कर्ण से कवच और कुंडल किस प्रकार प्राप्त किए स्पष्ट कीजिए|


 अथवा


सूत पुत्र नाटक के आधार पर कुंती और कर्ण के संवाद का सारांश लिखिए|



प्रस्तुत नाटक के तृतीय अंक की कथा नदी के तट पर कर्ण कि सूर्योपासना से प्रारंभ होती है|कर्ण सूर्य देव की स्तुति करके पुष्पांजलि अर्पित करता है| तभी सूर्यदेव दिव्य पुरुष के रूप में अवतरित होते हैं वे कर्ण को उसके भावी संकट के प्रति सचेत करते हैं|कर्ण की सुरक्षा के लिए सूर्य देव उसे स्वर्ण के दिव्य कवच और कुंडल प्रदान करते हैं और कहते हैं_


जब तक यह तुम्हारे शरीर पर रहेंगे तब तक कोई तुम्हारा बध नहीं कर सकता|


 सूर्य देव चलते-चलते कर्ण को सावधान करते हैं कि मेरे यहां आने की बात इंद्र को विदित हो गई है| वह तुमसे इन कवच कुंडल को किसी भी तरह प्राप्त करने की पूरी कोशिश करेगा |सूर्य कर्ण को उसके पूर्व वृतांत से अवगत करा देते हैं| परंतु उसे उसकी माता का नाम नहीं बताते हुए उसे आशीर्वाद देकर वहां से चले जाते हैं|


कुछ समय पश्चात इंद्र अपने पुत्र अर्जुन की रक्षा के लिए ब्राह्मण वेश में कर्ण के पास पहुंचते हैं और कर्ण से कवच कुंडल दान में मांग लेते हैं कर्ण इंद्र से पूछता है कि वे कवच कुंडल ही क्यों चाहते हैं इस पर इंद्र कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाते|कर्ण इंद्र को कवच कुंडल का दान दे देता है इंद्र कर्ण को एक अमोघ शक्ति प्रदान करते हैं जिसका वार कभी खाली नहीं जाता|


कवच कुंडल लेकर चले जाने के बाद गंगा तट पर कुंती आती है| यह कर्ण को बताती है कि वह उसका श्रेष्ठ पुत्र है| वह कर्ण से रणभूमि में पांडवों को ना मारने का वचन चाहती है, परंतु कर्ण ऐसा करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करता है लेकिन कुंती को यह आश्वासन देता है कि वह अर्जुन के सिवाय अन्य किसी पांडव को नहीं मारेगा| कुंती कर्ण से दुर्योधन का पक्ष छोड़ने को भी कहती है, परंतु कर्ण उसका अनुरोध स्वीकार नहीं करता| अंत में कुंती कर्ण को आशीर्वाद देकर चली जाती है| नाटक का तीसरा अंक यहीं समाप्त हो जाता है|



चतुर्थ अंक के कथानक का सार



 प्रश्न- सूत पुत्र नाटक के चतुर्थ अंक में वर्णित श्री कृष्ण और कर्ण के संवाद के माध्यम से दानवीर कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालिए|


 अथवा


 सूत पुत्र नाटक के आधार पर अर्जुन की चारित्रिक विशेषताएं निरूपित कीजिए|


सूत पुत्र नाटक के चतुर्थ अंक की कथा का प्रारंभ कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि से होता है| पिया नाटक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है| इसमें नाटक के नायक कर्ण की दानवीरता बाहुबल और दृढ़ प्रतिज्ञा जैसे गुणों का उद्घाटन हुआ है| अंक के प्रारंभ में एक और श्री कृष्ण और अर्जुन तथा दूसरी ओर कर्ण और शल्य दिखाई देते हैं शल्य और कर्ण में वाद विवाद होता है शल्य कर्ण को उचित सम्मान नहीं देता और युद्ध क्षेत्र में कर्ण को उत्साहित करने के स्थान पर हस्तो साहित्य करता है|


इस प्रकार हम देखते हैं कि कर्ण ने जन्म से लेकर मृत्यु तक भयंकर शारीरिक और मानसिक पीड़ा को सहन किया है| स्वयं कभी नहीं उसके जीवन की इस विडंबना पर टिप्पणी करते हुए लिखा है_ सूत- पुत्र नाटक के पात्र कर्ण का जीवन फूलों की सयया नहीं कांटों की सेज रही है|



 सूत पुत्र नाटक का उद्देश्य


नाटक का उद्देश्य महाभारत कालीन ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत करके वर्तमान भारतीय समाज की विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट कराना है| नाटककार ने इस उद्देश को दृष्टि में रखकर नाटक में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अपनी कल्पना का सुंदर समायोजन किया है|कर्ण परशुराम संवाद जाति एवं कर्ण व्यवस्था के कारण एक प्रतिभाशाली स्थिति की उन्नति के अफसरों को समाप्त कर देने एवं ज्ञानियों द्वारा भी अपने रूढि गत संस्कारों को ना छोड़ने की विडंबना को दर्शाता है| कर्ण दुपद संवाद भी जाति वर्ण व्यवस्था की विसंगतियों पर कुठाराघात करता है| कर्ण कुंती संवाद नारी की सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालता है तो कर्ण शल्य संवाद उच्च वर्ण मदानधता में डूबे व्यक्तित्व के दोषों को स्पष्ट करता है| इस प्रकार प्रस्तुत नाटककार नेम नाटक के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों पर करारी चोट की है| इस प्रकार प्रस्तुत नाटक की कथावस्तु देश आदि दृष्टिकों से सफलता की कसौटी पर खरी उतरती है|


 प्रश्न- सूत पुत्र नाटक के आधार पर कुंती अथवा कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए|


 अथवा


सूत पुत्र नाटक के आधार पर कुंती का चरित्र चित्रण चरित्रांकन कीजिए|


 अथवा


सूत -पुत्र के प्रमुख पात्र/ नायक (कर्ण )का चरित्र -चित्रण /चरित्रांकन कीजिए|


 अथवा

कर्ण सूत पुत्र की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए|



 कुंती की चारित्रिक विशेषताएं


1- व्यक्तित्व - प्रस्तुत नाटक के तीसरे अंक में कुंती के दर्शन उस समय होते हैं जब वह कर्ण को अपने पक्ष में करने के लिए उसके पास जाती है| उस समय उसे विधवा बेस में प्रस्तुत करते हुए नाटककार ने उसका विवरण इस प्रकार दिया है_



उसके काले लंबे बाल खुले हैं शरीर पर श्वेत रेशमी साड़ी और कंचुकी शोभा दे रही है| इस अवस्था में भी कुंती अत्यंत सुंदर लग रही है मुख मंडल पर सौम्यता विराज रही है| इस प्रकार उसका व्यक्तित्व भारतीय विधवा का पवित्र मनोहरी एवं तेजस्वी व्यक्तित्व है जो देखने वाले में मातृत्व एवं श्रद्धा की भावना उत्पन्न करता है|


2- मातृ भावना- कुंती का हृदय मात्र भावना में पर गुण है युद्ध का निश्चय सुनते ही वह अपने पुत्रों के कल्याण के लिए व्याकुल होती है| यद्यपि उसने कर्ण का परित्याग कर दिया था और किसी के सामने भी उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार नहीं किया था किंतु अपने मातृत्व के बल पर ही वह उसके पास जाती है और कर्ण से कहती है तो मेरी पहली संतान होकर मैंने लोका फवाद के भय से ही तुम्हारा क्या किया था|


वह कर्ण को अपने ममता का परिचय देते हुए कहती है_ जब मैंने पहली बार तुम्हें देखा तभी मेरे स्तनों में दूध सा उमड़ने लगा था|


3- स्पष्ट वादिता - कुंती के चरित्र का सबसे बड़ा गुण है_ स्पष्ट वादी था वह माता होकर भी पुत्र कर्ण के सामने उसकी उत्पत्ति और अपनी भूल की कथा स्पष्ट शब्दों में कह देती है| कर्ण के यह पूछने पर कि तुमने किस आवश्यक की पूर्ति के लिए सूर्य देव से संपर्क स्थापित किया था|




4- नीतिज्ञता - राज परिवार से संबंधित होने के कारण कुंती को राजनीति का सहज ज्ञान प्राप्त था वह महाभारत युद्ध की समस्त राजनीति भली-भांति समझ रही थी वह यह भी जानती थी कि दुर्योधन की हटवादिता कर्ण के बल पर टिकी हुई है और उसी के भरोसे वह पांडवों को वसूल नष्ट कर देना चाहता है|


5- सूक्ष्म दृष्टा- कुंती मैं प्रत्येक विषय को परखने और तद मुकुल कार्य करने की सूक्ष्म दृष्टि थी|वह कर्ण की बातों में निहित भावों को तत्काल समझ लेती है और उनका तर्कपूर्ण उत्तर भी प्रस्तुत कर देती है|


6- वाकपटु - कुंती वार्तालाप करने में भी कुशल है|वह कर्ण के सम्मुख अपने भावों को इस ढंग से प्रदर्शित करती है और उसकी बातों का इतनी कुशलता से उत्तर देती है कि कर्ण एक नारी की एक माँ की विवशता को समझकर उसकी फूलों पर ध्यान ना दें और उसकी बात मान ले|






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