Up board live hindi class 12th नाटक राजमुकुट ( व्यथित हृदय)

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Up board live hindi class 12th नाटक राजमुकुट ( व्यथित हृदय)

Up board live hindi class 12th नाटक राजमुकुट ( व्यथित हृदय)


नाटक

 राजमुकुट ( व्यथित हृदय)


1. राजमुकुट नाटक की कथा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।

             

  अथवा

राजमुकुट नाटक की कथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर= व्यथित हृदय द्वारा रचित राजमुकुट नाटक के कथानक का सारांश इस प्रकार है।

         प्रथम अंक के कथानक का सार

मेवाड़ का राणा जगमल अपने वंश की मर्यादा का निरवाना करके सारा सुर-सुंदरी में डूबा हुआ थाlप्रजा का उसे ध्यान ना था। उसका शोषण किया जा रहा था। राणा जगमल अपने भोग विलास एवं आनंद में किसी भी प्रकार की बाधा सहन नहीं करता था। अतः वह एक क्रूर शासक बन गया था। अपने चाटुकारो के कहने पर उसने प्रजा के हित में लगी रहनेवाली निरपराध विधवा प्रजापति की नृशंस हत्या करवा दी।

       प्रजावती की हत्या से प्रजा में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी। प्रजावती के शव को लेकर प्रजा राष्ट्र नायक चंदावत के घर पहुंचे। प्रजावति की हत्या के समाचार से चंदावत भी क्षुब्ध होते इसी समय कुमार शक्ति सिंह राणा जगमल के क्रूर सैनिकों के हाथों से एक भिखारिन की प्राण रक्षा की शक्ति सिंह भी जगमल की वास्तविक रूप को जानता था। जगमल के कार्यों से खिन्न शक्ति सिंह को चंदावत में कर्म पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी।

       एक दिन जगमल राज्यसभा में बैठा हुआ आनंद मना रहा था। उसी समय राष्ट्र नायक चंदावत वहां आए ।उन्होंने जगमल को उसके घृणित कार्यों के प्रति सचेत किया और प्रजा से क्षमा याचना करने के लिए कहा उन्होंने जगमाल से मेवाड़ के मुकुट को उचित पात्र को सौंप देने का आग्रह भी किया। जगमल ने उनकी बात स्वीकार की तथा अपनी तलवार और राजमुकुट उन्हें सौंप दिया उसने चंदावत से योग उत्तराधिकारी को चुनने के लिए कहा ।चंदावत ने प्रताप को जगमल का उत्तराधिकारी बनाया। और उसे राष्ट्र मुकुट राजमुकुट तथा राणा की तलवार सौंप दी प्रताप मेवाड़ के राणा बन गए सुरा-सुंदरी के स्थान पर स्वर एवं त्याग भावना की प्रतिष्ठा हुई प्रजा प्रसन्नता पूर्वक राणा प्रताप की जय जय कार करने लगी।


             द्वितीय अंक के कथानक का सार

मेवाड़ के राणा बनकर प्रताप ने अपनी प्रजा को खोए हुए सम्मान को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रजा में विरत्व का संचार करने के उद्देश्य से उन्होंने अहेरिया उत्सव का आयोजन किया। इस उत्सव में प्रत्येक क्षत्रिय को एक वन्य पशु का आखेट करना अनिवार्य थी ।आखिर में एक जंगली सूअर के आदेश को लेकर राणा प्रताप और शक्ति सिंह में विवाद उत्पन्न हो गया विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों भाई सत्र निकाल कर एक दूसरे पर झपट पड़े ।

              भावी अनिष्ट की आशंका से राजपुरोहित ने उन दोनों का बीच बचाव करने का प्रयत्न किया परंतु दोनों ही नहीं माने। राजकुल को अमंगल से बचाने के लिए राजपुरोहित ने अपने ही हाथो अपनी कटार अपनी छाती में भोंक ली। और वही प्राण त्याग दिए। प्रताप ने शक्ति सिंह को आदेश से निर्वासित कर दिया ।शक्ति सिंह अकबर की सेना में जा मिले।

       तृतीय अंक के कथानक का सार

राजा मानसिंह राणा प्रताप के चरित्र से बहुत प्रभावित थे। वह राणा प्रताप से मिलने आए ।राजा मानसिंह की बुआ का सम्राट अकबर से विवाह हुआ था ।राणा ने उसे विधर्मी एवं पतित समझकर उससे भेंट नही की। उन्होंने मानसिंह की स्वागतार्थ अपने पुत्र अमर सिंह को नियुक्त किया। मानसिंह ने स्वयं  को अपमानित अनुभव किया और उत्तेजित हो उठे। वह अपने अपमान का बदला चुकाने की बात कहकर वहां से चले गए।

   दिल्ली सम्राट अकबर मेवाड़ सपने देख रहा था वह ऐसे ही किसी उचित अवसर की प्रतीक्षा में था उसने सलीम, मानसिंह व शक्ति सिंह के नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेज दी।हल्दीघाटी के मैदान में भीषण युद्ध हुआ। मानसिंह से बदला लेने के उद्देश्य से राणा प्रताप मुगल सेना के बीच पहुंच गए। वहां पे मुगलों के व्यूह मे फंस गए।

            राणा प्रताप को मुगलों से घिरा देखकर चंदावत उनके सिर पर मुकुट पकड़कर अपने सिर पर पहन लिया और युद्ध भूमि में अपने प्राण का बलिदान कर दिया ।और प्रताप बच गए। उन्होंने युद्ध भूमि छोड़ दी। दो मुगल सैनिकों ने प्रताप का पीछा किया। शक्ति सिंह ने उन सैनिकों का पीछा किया। और उन दोनों को मार गिराया। शक्ति सिंह और प्रताप एक दूसरों के गले मिले और प्रसन्नता के आंसुओं से उनका समस्त क्रोध धुल गया ।उसी समय राणा प्रताप के घोड़े चेतक में प्राण त्याग दिए चेतक की मृत्यु के राणा प्रताप को अपार दुख हुआ।


         चतुर्थ अंक के कथानक का सार

प्रश्न=राजमुकुट नाटक के आधार पर मुगल सम्राट अकबर का चित्रांकन कीजिए।

हल्दीघाटी का युद्ध समाप्त हो जाने पर भी राणा ने अकबर से हार नहीं माने अकबर ने प्रताप की देशभक्ति आत्महत्या एवं शौर्य से प्रभावित होकर उसने भेंट करने की इच्छा प्रकट की शक्ति सिंह साधु के वेश में देश में विचरण कर प्रजा में देश प्रेम की भावना तथा एकता जागृत करने का प्रयास कर रहा था। शक्ति सिंह अकबर की मानवीय गुणों से परिचित था। उसने प्रताप से अकबर की भेंट को बुरा या छल प्रपंच नहीं माना उसका विचार था। कि इन दोनों के मेल से देश में शांति एवं एकता की स्थापना होगी।

1 दिन प्रताप के पास बन में एक सन्यासी आया प्रताप सन्यासी का यथोचित सत्कार ना कर पाने के कारण खेलने हुए अतिथि को भोजन देने की सोच ही रहे थे कि उनकी बेटी चंपा तिथि के लिए घास के बीजों की बनी हुई रोटी लेकर आए उसी समय कोई बन बिलाव चंपा के हाथ से रोटी छीन कर भाग गया चंपा गिर गई और सिर में गहरी चोट लग जाने के कारण स्वर्ग सिधार गई। कुछ समय पश्चात अकबर सन्यासी के वेश में वहां आए और बोले-

"आप उस अकबर से तो संधि कर सकते हैं जो भारत माता को अपनी मां समझता है जो आपकी भारतीय उसकी जय बोलता है!"


              राजमुकुट का उद्देश्य

राजमुकुट नाटक में रचयिता श्री व्यथित हृदय का उद्देश्य ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित मार्मिक ,सजीव, सशक्त तथा प्रभाव उत्पादक अंशो एवं प्रसंगों का वर्णन करके देश प्रेम की भावना को बलवती करना रहा है। स्वतंत्रता ,धर्म निरपेक्षता एवं हिंदू मुस्लिम एकता की भावना का सशक्त प्रचार करना भी उनका उद्देश्य अकबर का सन्यासी देश में महाराणा प्रताप के पास जाना और उनको यह वचन देना इसी भावना का पोशक है।

"महाराज! में प्रतिज्ञा करता हूं आपके देश की स्वतंत्रता का अपहरण ना करूंगा मैं इस देश का नागरिक इस देश की संतति बन कर ही रहूंगा आज से महाराणा भारत मां मेरी मां है और इस देश के निवासी मेरे भाई हैं हम सब भाई भाई हैं महाराणा! ना हम सब एक हैं।"

आज हमारे देश में इसी भावना का अभाव होता जा रहा है अपने इस नाटक के माध्यम से व्यथित हृदय जी इस विशिष्ट संदेश को पाठकों तथा सभी दर्शकों तक पहुंचाने में पूर्णतया सफल रहे।.


2. महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह में से किसी एक का चरित्र चित्रण राजमुकुट नाटक के आधार पर कीजिए।


उत्तर= महाराणा प्रताप का चरित्र चित्रण

श्री व्यथित हृदय द्वारा रचित राजमुकुट नाटक के प्रधान पात्र महाराणा प्रताप निवेश नाटक के नायक है नाटक का सारा कथानक प्रताप को ही केंद्र मानकर आगे  बढ़ता है।

1. आदर्श भारतीय नायक =राणा प्रताप सच्चे अर्थों में आदर्श भारतीय नायक के मेवाड़ की जनता महाराणा को उनके अपूर्व गुणों के कारण जनप्रिय नेता मानते हुए उच्च कुल में उत्पन्न क्षत्रिय एवं मानवीय गुणों से परिपूर्ण नायक हैं।

2. स्वतंत्रता प्रेमी= प्रताप जीवन पर्यंत देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे हल्दीघाटी के युद्ध में अपना सब कुछ खोकर भी प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की भूखे प्यासे राणा प्रताप 111 दे रहे उनके बच्चों को भी भोजन प्राप्त नहीं हुआ परंतु प्रताप ने अपने स्वाधीनता को अकबर के हाथों नहीं बेचा वर्णन मृत्यु शैया पर पड़े पड़े भी उनके मन में स्वतंत्रता की ज्वाला धधकती रही।

3. आन के रक्षक= राणा प्रताप सच्चे क्षत्रिय थे उन्होंने अपनी आन बान और शान को भी सब कुछ माना उन्होंने अकबर से रोटी बेटी के संबंध को उचित नहीं माना उनकी मांग थी कि वे अकबर के सामने अपना सिर कभी नहीं झुकाएंगे और उन्होंने अंत तक अपनी इस प्रतिज्ञा का निर्वाह किया इसी आन के कारण उनके निकट शत्रु अकबर को भी उनके गुणों की प्रशंसा करनी पड़े और वह भी सन्यासी वेश धारण कर राणा के दर्शनों के लिए बन में आया।

4. अपार धीर=प्रताप ने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने राज्य इष्ट मित्र पुत्र पुत्री सारे सुखों और अपने जीवन को भी दांव पर लगा दिया उन्होंने स्वतंत्रता के लिए महान कष्ट सहन किया वे राज्य से वैभव को त्याग कर भूखे प्यासे जंगल-जंगल करते रहे भोजन के अभाव में उन्होंने घास की रोटियां तक खाई परंतु स्वाधीनता एवं स्वाभिमान की भावना को नहीं छोड़ा उन्होंने यह सब कष्ट बड़े धैर्य के साथ सेहन किए।

5. अतिथि सत्कार की भावना=भारतीय संस्कृति के उपासक राणा प्रताप मानवीय गुणों की साकार प्रतिमा थे सन्यासी उनके पास पहुंचता है तो अतिथि सत्कार के लिए उपयुक्त सामग्री ना देख कर उनके हृदय को चोट पहुंचती है निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि महाराणा प्रताप क्षत्रिय कुल में उत्पन्न ढेर सारी वीरता एवं शौर्य के प्रतीक स्वतंत्रता के परम उपासक एवं श्रेष्ठ आचरण वाले एक आदर्श भारतीय नायक थे उनकी महानता और वीरता की प्रशंसा उनका सबसे बड़ा शत्रु अकबर भी करता है।


3. मान सिंह का चरित्र चित्रण कीजिए।

उत्तर=मान सिंह का चरित्र चित्रण

मानसिंह अंबर का राजा है। उसकी बुआ जोधाबाई का मुगल सम्राट अकबर के साथ विवाह हुआ इस कारण वह अकबर का कृपा पात्र और विश्वासपात्र दोनों ही है चित्तौड़ के महाराणा महाराणा ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं किए था वह अकबर और मानसिक दोनों के शत्रु हैं मान सिंह महाराणा से मिलने जाता है किंतु महाराणा उससे नहीं मिलते जिससे वह अपना अपमान समझता है।

विदेशी चरणों पर देवगांव लुटाने वाला=मानसिंह में अपने देश और जाती है गौरव को बुलाकर अकबर की अधीनता स्वीकार की है और वह अपने देश अभिमान को अकबर के चरणों पर लुटा रहा है इसीलिए महाराणा जैसे देशभक्तों की दृष्टि में उसका कोई मान सम्मान नहीं है।

स्वार्थी=मानसिंह स्वार्थी राजा इसीलिए उसे देश के गौरव से कोई लेना देना नहीं है अपने स्वार्थों के कारण ही वह देश भक्त महाराणा प्रताप के विरुद्ध संघर्ष छेड़े हुए हैं।

देशभक्ति की भावना का सम्मान करने वाला=मानसिंह में देशभक्ति की भावना का अभाव है किंतु वह दूसरों की इस भावना का सम्मान अवश्य करता है वह महाराणा प्रताप से मिलने उनके समीर जाता है महाराणा उससे मिलना नहीं चाहते इसीलिए वह अपने बेटे अमर सिंह को उसके स्वागत के लिए नियुक्त करते हैं भोजन के समय अमर सिंह उससे कहता है कि हमारा यह भोजन तुम्हारे महलों के भोजन के समान सुस्वादु ना होगा।

मानी=मानसिंह बड़ा मानी व्यक्ति है यही कारण है कि वह महाराणा प्रताप द्वारा अपनी अगुवानी ना करने को अपना अपमान समझता है वह अपनी इस अपमान की ज्वाला में धड़कता हुआ देश को सर्वनाश की आग में झोंकने की चेतावनी अमर सिंह को देता है।

दर्प में चूर=मानसिंह अपनी शक्ति के दर्द में चूर है वह मुगल सेना का सेनापति और अंबर का राजा है इसीलिए वह संपूर्ण धरती को अपने क्रोध के समुद्र में डूबा देने का उद्घोष करता है ।इस प्रकार हम देखते हैं। कि मानसिंह ऐसा दंभी राजा है ।जो केवल स्वार्थ देखते स्वार्थ के आगे वह अपने देश जाति के गौरव और उसकी स्वाधीनता की भी चिंता ना करते हुए सबको दाव पर लगा देता है।


Writer Ritu kushwaha

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