Up board class 12th hindi live solutionश्रवण कुमार का चरित्र चित्रण

Ticker

Up board class 12th hindi live solutionश्रवण कुमार का चरित्र चित्रण

 Up board class 12th hindi live solution

श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण



 प्रश्न- श्रवण कुमार खंडकाव्य की कथावस्तु /कथानक पर संक्षेप में प्रकाश डालिए|


 अथवा


श्रवण कुमार खंडकाव्य के जो कारूणिक प्रसंग जनमानस को बहुत प्रभावित करते हैं ,उन पर प्रकाश डालिए|


 अथवा श्रवण कुमार खंडकाव्य की कथावस्तु का सारांश अपने शब्दों में लिखिए|


 अथवा- श्रवण कुमार खंडकाव्य किसी सर्वाधिक मार्मिक प्रसंग की कथा अपने शब्दों में लिखिए|


 अथवा -श्रवण कुमार खंडकाव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखिए|


श्रवण कुमार खंडकाव्य के प्रमुख कारूणिक प्रसंगों का वर्णन कीजिए|


 उत्तर- डॉक्टर शिव बालक शुक्ल द्वारा रचित खंड का श्रवण कुमार एक पौराणिक कथा पर आधारित है| किंतु कवि ने अपनी कल्पना शक्ति के द्वारा सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से उसे प्रत्येक देश काल के लिए प्रसांगिक बना दिया है| अर्थात उसमें पौराणिक ता और वर्तमान सामाजिक यथार्थ दोनों है| इसके चतुर्थ सर्ग से लेकर अष्टम सर्ग तक खण्ड कावय कार ने अनेक मार्मिक स्थलों को प्रयत्न पूर्वक उकेरा रहा है| सप्तम सर्ग में तो करुण रस की भावना भावात्मक अभिव्यक्ति अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई है| श्रवण के माता-पिता का करूण विलाप किसी भी सा हृदय को द्रवित करने में समर्थ है| इस खंड काव्य का सरगानुसार संक्षिप्त कथानक इस प्रकार है_


 प्रथम सर्ग अयोध्या

(2011, 13,15,16,17) 


अयोध्या का गौरवशाली इतिहास अपने भीतर अपने महान राजाओं की गौरव गाथा छुपाए हुए हैं| पृथु, इक्ष्वाकु, ध्रुव ,सागर, दिलीप ,रघु आदि| राजाओं ने अयोध्या के नाम को प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुंचाया| इसी अयोध्या में सत्यवादी हरिश्चंद्र और गंगा को भूतल पर लाने वाले राजा भागीरथ ने शासन किया| राजा रघु के नाम पर ही इस कुल का नाम रघुवंश पड़ा महाराजा दशरथ राजा अज के पुत्र थे|

राजा दशरथ अयोध्या के प्रतापी शासक थे उनके राज्य में सरवत शांति थी वहां कोई भी दृष्ट पापी नीच नहीं था| अयोध्या नगरी में चारों ओर कला कौशल उपासना स्वयं तथा धर्म साधना का साम्राज्य था| श्रमिकों को उचित वेतन मिलता था सभी वर्ग संतुष्ट थे महाराज दशरथ स्वयं एक महान धनुर्धर थे वह शब्दभेदी बाण चलाने में सिद्ध फर्स्ट थे|


 द्वितीय सर्ग :आश्रम


सरयू नदी के तट पर एक आश्रम था उस आश्रम में श्रवण कुमार अपने वृद्ध अंधे माता पिता के साथ सुख शांति पूर्वक निवास करता था|

आश्रम में रहने वाले अंधे मुनि और उनकी पत्नी श्रवण जैसा आज्ञाकारी और मातृ पितृ भक्त पुत्र पाकर अपने को धन्य मानते थे| उनकी तपस्या के प्रभाव से हिंसक पशु भी अपनी हिंसा भूल गए थे|


 तृतीय सर्ग :आखेट


एक दिन गोधूलि बेला में महाराज दशरथ भोजन करने के बाद विश्राम कर रहे थे कि उनके मन में आखेट की इच्छा जागृत हुई |उन्होंने अपने सारिथ को बुला भेजा और रात्रि के चतुर्थ प्रहर में प्रस्थान करने की इच्छा प्रकट की| रात्रि में सोते समय राजा ने सपने में देखा कि एक हिरण का बच्चा उनके बाढ़ से मर गया है और हिरनी खड़ी हुई आंसू बहा रही है|


राजा दशरथ बहुत सवेरे रथ पर सवार होकर शिकार के लिए चल दिए वे शीघ्र ही अपने इच्छित स्थान पर पहुंच गए| रथ से उतरकर वे घने वन में एक अंधकार में स्थान में छुप कर बैठ गए| धनुष बाण संभाले हुए वे किसी वंय पशु की प्रतीक्षा करने लगे|

इधर श्रवण कुमार के माता-पिता को प्यास लगी उन्होंने श्रवण कुमार से जल लाने को कहा| श्रवण जल लेने के लिए नदी के तट पर गया और जल भरने के लिए कलश नदी के जल में डुबोया| घड़े के शब्द को राजा दशरथ ने किसी वन पशु की आवाज समझा और उन्होंने तुरंत शब्दभेदी बाण चला दिया| बाढ़ श्रवण कुमार को लगा श्रवण कुमार चीत्कार करता हुआ धरती पर गिर पड़ा| मानव स्वर सुनकर राजा दशरथ चिंतित हो उठे| और 'प्रभु कल्याण कर' कहते हुए नदी के किनारे पर जा पहुंचे|


 चतुर्थ सर्ग : श्रवण


राजा दशरथ के बाढ़ से घायल हुआ श्रवण कुमार नदी के तट पर पड़ा था| वह अपने माता-पिता की चिंता से व्याकुल था और बिलक बिलक कर कह रहा था कि अब मेरे असहाय अंधे माता पिता का भविष्य क्या होगा|

 श्रवण ने दुखी मन से राजा से कहा कि तुमने श्रवण को ही नहीं मारा है| अपितु उसके माता-पिता की भी हत्या कर दी है| उसके माता पिता अंधे हैं और वह उसके बिना जीवित नहीं रह सकते| उसने राजा से आग्रह किया कि वह उसके माता-पिता को जल पिला आये| राजा अपनी भूल के कारण आत्मग्लानि से भर उठे| माता-पिता को जल पिलाकर आने का आग्रह करके श्रवण के प्राण पखेरू उड़ गए| राजा दशरथ बहुत दुखी हुए उन्होंने अपने सारथि को तो श्रवण को पास छोड़ा और स्वयं जल लेकर श्रवण के माता पिता के पास गए|


 पंचम सर्ग :दशरथ


दशरथ दुखी एवं चिंतित भाव में सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे थे और सोच रहे थे कि इस घटना के कारण हृदय पर लगे घाव को लिए वह किस प्रकार प्रायश्चित करें| इस संपूर्ण सर्ग में दशरथ के आंतरिक द्वंद का चित्रण हुआ है| पश्चाताप ,आशंका, भय ,करूणा आदि से भरे हुए आश्रम में पहुंचते हैं|


 षष्ठ सर्ग :संदेश (मार्मिक प्रसंग) 


 आश्रम में श्रवण के प्यासे से माता-पिता श्रवण के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे| उनका मन बार-बार शंका से भर जाता था कि कितनी देर होने पर भी श्रवण अभी तक लौटकर क्यों नहीं आया| उसी समय दशरथ ने आश्रम में प्रवेश किया दशरथ के पैरों की आहट पाकर श्रवण के पिता कह उठे


 सप्तम सर्ग :अभिशाप


(करुण रस की भावात्मक अभिव्यक्ति) 


श्रवण के माता पिता पुत्र शोक से व्याकुल थे| वे करूण विलाप करते हुए ,आंसू बहाते हुए ,दशरथ के साथ सरयू नदी पर पहुंचे| पुत्र के शरीर को छूकर दोनों मूर्छित हो गए| चेतना आने पर वे तरह-तरह से विलाप करने लगे| राजा दशरथ को संबोधित करते हुए श्रवण के पिता ने कहा हे राजन यदि तुम जानबूझकर यह कृतय करते तो पूरा रघुकुल ही दंड भोगता परंतु यह सब कुछ तुमसे अनजाने में ही हुआ है अतः केवल तुम अकेले ही इसका दंड भोगोगे उन्होंने दशरथ को श्राप दे दिया_ जिस प्रकार पुत्र शोक में मैं प्राण त्याग रहा हूं उसी प्रकार हे दशरथ! एक दिन तुम भी पुत्र वियोग में तड़प तड़प कर अपने प्राण त्याग ओगे दशरथ इस शराब को सुनकर कांप उठे


 अष्टम सर्ग :निर्वाण


श्रवण के पिता द्वारा दिए गए शाप से दशरथ व्याकुल हो उठे| श्रवण के माता-पिता भी अत्यधिक अधीर थे| वे रोधोकर कुछ शांत से हुए| तब श्रवण कुमार के पिता का ध्यान दशरथ की ओर गया तो उन्हें शाप देने का दुख हुआ| उन्होंने शाप लौटाना चाहा ,परंतु अब यह संभव नहीं था| तभी श्रवण कुमार अपने दिव्य रूप में प्रकट हुआ और अपने माता पिता को सांत्वना दी| उसने सांसारिक आवागमन से मुक्त होने तथा स्वर्ग पहुंचने का समाचार उन्हें दिया| इस समाचार को सुनकर श्रवण के माता-पिता ने भी प्राण त्याग दिए|


 नवम सर्ग: उपसंहार


राजा दशरथ दुखी मन से अयोध्या लौट आए लोक लाज के कारण उन्होंने इस घटना का उल्लेख किसी से नहीं किया| अपने यौवन काल में वे इसे भूल गए परंतु जब राम वन को जाने लगे तो उन्हें वह शाप याद आया और तब उन्होंने इस घटना तथा शाप की बात अपनी रानियों को बताई


 श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण


प्रस्तुत खंडकाव्य में श्रवण कुमार की चारित्रिक विशेषताएं इस प्रकार प्रस्तुत हुई हैं_


1- मातृ पितृ भक्त- श्रवण कुमार एक आदर्श पुत्र हैं वह अपने माता पिता को ही परमेश्वर मानकर पूछता है| प्रातः काल से ही वह माता पिता की सेवा प्रारंभ कर देता है| कांवर में बैठाकर व उन्हें देव ग्रहों और विभिन्न तीर्थों की यात्रा कर आता है|


2- सत्यवादी-श्रवण की माता शूद्र व पिता वैशव थे| दशरथ द्वारा ब्रह्मा हत्या की संभावना प्रकट करने पर वह स्पष्ट बता देता है कि वह ब्रह्माकुमार नहीं श्रवण कहता है_


3- संस्कारों को महत्व देने वाला -



 श्रवण कुमार किसी के भी प्रति भेदभाव नहीं रखता वह सच्चे अर्थों में समदर्शी है| वह कर्मशील एवं संस्कारों को महत्व देता है वह अपने जीवन की पवित्रता का रहस्य संस्कारों के प्रभाव को ही मानता है_


4- सरल स्वभाव एवं क्षमाशील-


श्रवण कुमार स्वभाव से सरल है उसके मन में किसी के प्रति ईर्ष्या द्वेष का भाव नहीं है| दशरथ के बाढ़ से घायल होने पर भी पास आए हुए दशरथ का वह सम्मान करता है|


5- भाग्यवादी श्रवण कुमार पूर्णता भाग वादी है किसी भी अच्छी बुरी घटना को वह भाग का ही खेल मानता है|बाण से घातक रूप से घायल होने को भी वह भाग का दोस्त मानता है|


6- आत्म- संतोषी- श्रवण कुमार का जीवन के प्रति कोई मोह नहीं है|वह स्वभाव स्वभाव से ही संतोषी है उसे भोग व ऐश्वर्य लेश मात्र की कामना नहीं है| उसके मन में किसी को पीड़ा पहुंचाने का भाव ही जागृत नहीं होता उसका कथन है_



वन पदार्थों से ही होता

रहता मम जीवन -निर्वाह|

ऋषि हूं नहीं किसी को पीड़ा

 पहुंचाने की उर में चाह||


 निष्कर्ष - निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि श्रवण कुमार के चरित्र से मानवता के सभी उच्च आदर्शों का समन्वय में हुआ है| वह सत्यवादी क्षमाशील संतोषी सरल स्वभाव वाला मातृ पितृ भक्त दयालु त्यागी तपस्वी भाग वादी एवं भारतीय संस्कृति का प्रतीक है| इस प्रकार श्रवण कुमार खंडकाव्य का नायक भारतीय सदाचार और मर्यादा का ज्वलंत आदर्श है|


 writer name - dipaka kushwaha



Post a Comment

और नया पुराने

inside

inside 2