Up board live class 12th Hindi solution
(खंडकाव्य) त्यागपथी
खंडकाव्य
त्यागपथी
1. त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा संक्षेप में कीजिए।
अथवा
त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर=रामेश्वर शुक्ल अंचल द्वारा रचित त्यागपथी खंडकाव्य एक ऐतिहासिक काव्य जिसमें छठी शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्धन के त्याग तप का वर्णन किया गया है। सम्राट हर्ष की वीरता का वर्णन करते हुए कवि ने इसमें राजनैतिक एकता और विदेशी आक्रन्ताओ के भारत से भागने का भी वर्णन किया है इस खंडकाव्य का संपूर्ण कथानक 5 सर्गों में विभक्त है जिनकी क्रमवार संक्षिप्त कथावस्तु इस प्रकार है।
प्रथम सर्ग
हर्षवर्धन शिकार खेलने में व्यस्त थे तभी उन्हें अपने पिता के रोग ग्रस्त होने का समाचार मिला समाचार पाते ही वे लौट आए पिता को स्वस्थ करने के लिए उन्होंने बहुत उपचार कराएं परंतु सब उपाय असफल रहे उधर उनके बड़े भाई राज्यवर्धन उत्तरा पथ पर हूणो के आक्रमण को विफल करने में लगे थे। हर्ष ने दूत भेजकर पिता की अस्वस्थता का समाचार उन तक पहुंचाया। इधर हर्ष की माता ने पति की अस्वस्थता को बढ़ता हुआ देखकर आत्मदाह करने का निश्चय किया हर्ष के बहुत समझाने पर भी उन्होंने अपना निर्णय नहीं बदला और पति की मृत्यु से पूर्व भी बस में मौत हो गई कुछ समय बाद हर्ष की पिता की मृत्यु हो गई पिता का अंतिम संस्कार करके हर्ज दुखी मन से राज महल में लौट आए।
द्वितीय सर्ग
पिता की अवस्था का समाचार सुनकर राजवर्धन भी वापस लौट आए किंतु माता पिता की मृत्यु के दुखद समाचार को सुनकर उन्होंने बैराग धारण करने का निश्चय किया हर्ष ने उन्हें बहुत समझाया कि वह अकेले रह जाएंगे दोनों भाइयों का वार्तालाप चल ही रहा था कि मालव राज द्वारा राज्यश्री को बंदी बनाने और उसके पति ग्रह वर्मन को मार डालने का समाचार मिला राज्यवर्धन ने वैराग्य भाव बोलकर कन्नौज की ओर प्रस्थान किया वहां पहुंच कर उन्होंने कांग्रेस को पराजित किया परंतु लौटते समय मार्ग में उनकी हत्या कर दी गई हर्षवर्धन को जब यह सूचना मिली कि कांग्रेस द्वारा छल पूर्वक राजवर्धन का वध कर दिया गया है तो भी विशाल सेना लेकर उससे लड़ने के लिए चल पड़े परंतु कवि सेनापति भिंडी से उन्हे अपनी बहन के बन में जाने का समाचार मिला यह समाचार पाकर हादसा अपनी बहन को खोजने के लिए 1 की ओर चल पड़े वहां एक बिच्छू द्वारा उन्हें राज्यश्री की अग्नि प्रवेश के लिए उद्धत का होने का समाचार मिला सीकरी वहां पहुंचकर हर्ष ने राज्यश्री को बचा लिया और कन्नौज लौटकर अपनी बहन के नाम पर शासन चलाया।
तृतीय सर्ग
इसमें इतिहास प्रसिद्ध दिग्विजय का वर्णन किया गया है 6 वर्षों तक निरंतर युद्ध करते हुए हर्ष ने नर्मदा तट तक समस्त उत्तराखंड को जीत लिया मिथिला बिहार गोंड उत्कल आदि पूर्वांचल के सभी देश उसके अधीन हो गए हर्ष या 1 गुण और अन्य विदेशी शत्रुओं का नाश करके तथा देश को अखंड और शक्तिशाली बना कर शांति स्थापित करना चाहते थे उन्होंने अपनी बहन के प्रेम के कारण थानेश्वर के स्थान पर कन्नौज को अपने विशाल साम्राज्य की राजधानी बनाया उनकी राज्य में प्रजा सुखी थी तथा धर्म संस्कृति और कला की भी पर्याप्त उन्नति हो रही थी।
चतुर्थ सर्ग
इसमें राज्य श्री हर्ष और आचार्य दिवाकर के वार्तालाप का वर्णन किया गया है यद्यपि राजश्री भी अपने भाई के साथ ही कन्नौज के राज्य के संयुक्त रूप से सांस्कृतिक तथा पर मन से तथागत के उपासक आते-आते का याद वस्त्र धारण कर वह बीच में बनना चाहते थे परंतु हर्ष इसके लिए तैयार नहीं थे बाद में आचार्य दिवाकर ने सन्यास धर्म का तात्विक विवेचन करते हुए राज्यश्री को मानव कल्याण में लगने का उपदेश दिया उनके उपदेशों का पालन करते हुए राज्य श्री मानव सेवा में लग गई।
पंचम सर्ग
इसमें हर्ष के त्यागी और वृत्ति जीवन का वर्णन किया गया हर्ष ने प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर त्याग व्रत का महत्व बनाने का निश्चय किया उन्होंने देश के सभी ब्राह्मणों श्रवण बिच्छू धार्मिक व्यक्तियों आदि को वहां आने के लिए निमंत्रण दिया।
प्रतिवर्ष माघ के महीने में त्रिवेणी तट पर विशाल मेला लगता था और इस अवसर पर हर्ष सर्वस्व दान कर देते थे तथा अपनी बहन राजश्री से मांग कर वस्त्र धारण करते थे तत्पश्चात एक साधारण व्यक्ति के रूप में ही वे अपनी राजधानी वापस लौटते थे।
2. त्यागपथी खंडकाव्य के आधार पर सम्राट हर्षवर्धन की चारित्रिक विशेषताएं /चित्रांकन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर=
सम्राट हर्षवर्धन का चरित्र चित्रण
1. आदर्श पुत्र एवं भाई=सम्राट हर्षवर्धन सर्वप्रथम आदर्श पुत्र एवं भाई के रूप में हमारे समूह का आते हैं अपने पिता की अस्वस्थता का समाचार पाकर भी सीख रही शिकार से लौट आते हैं और उनका यथासंभव उपचार करवाते हैं दूसरी ओर वे अपनी माता के आत्मदाह का समाचार सुनकर व्याकुल हो उठते हैं। मां से याचनापूर्ण शब्दों में वे कहते हैं।
मुझे मंद पुण्य को छोड़ न मां तुम भी जाओ, छोड़ो विचार यह,मुझे चरणों से लिपटाओ।
इसी प्रकार बहन राजश्री को भी वे अग्नि दया से बचाते हैं और उसे सारा राज्य सरकार बहन के प्रति अपने प्रेम का परिचय देते हैं बड़े भाई राजवर्धन के प्रति भी उनके मन में अपार स्नेह हैं।
बाहर चले जब राजवर्धन हर्ष पीछे चल पड़े, ज्यों वन गमन में राम के पीछे चले लक्ष्मण अड़े।
2. योग एवं कुशल शासक= पिता और भाई की मृत्यु के पश्चात हर्ष राजा बने उनका शासन सुख समृद्धि और शांति से परिपूर्ण था वे सदैव प्रजा कल्याण में लगे रहते थे हर्षवर्धन ने अनेक धर्म सभा और विचार गोष्ठियों का आयोजन करके समाज के विभिन्न वर्गों धर्म संप्रदाय और विचारधाराओं में भावात्मक समन्वय किया।
3. साहसी, पराक्रमी एवं धैर्य शाली=सम्राट हर्षवर्धन अपने साहस और एवं डर के कारण विख्यात है विदेशी आक्रांता में मातृभूमि की रक्षा करके उन्होंने अपने अपूर्व साहस का परिचय दिया था संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधकर उन्होंने अपना पराक्रमी रूप प्रस्तुत किया था पिता की मृत्यु मां की अग्नि दे बहनोई की मृत्यु और प्रिय भाई राजवर्धन की मृत्यु आदि सभी महान संकटों को और स्नेह अकेले झेला था।
4. कर्तव्यनिष्ठ एवं धर्म परायण= सम्राट हर्ष ने आजीवन अपने कर्तव्य का पालन किया।प्रारंभ में इच्छा ना होते हुए भी उन्होंने अपने भाई के कहने पर राज्य का भार संभाला और प्रत्येक संकट में स्थिति में अपने कर्तव्य को निभाया अंत में समस्त धर्मों के मध्य एकता स्थापित की थी।
निष्कर्ष= इस प्रकार हर्ष का चरित्र एक वीर योद्धा आदर्श पुत्र आदर्श भाई त्याग भावना से युक्त एक ऐसे महान शासक का है जिसके लिए प्रजा की सुख सुविधा सर्वोपरि है और वह अपने मानवीय कर्तव्यों के प्रति भी निष्ठावान ए डॉक्टर राम राधाकुमुद मुखर्जी ने हर्ष के संबंध में पूर्णता उपयुक्त लिखा है। "उसकी सत्य धर्म परायणता, विधान उराग सभ्यता और संस्कृति का सतत पोषण , उज्जवल चरित्र और जीव मात्र के प्रति करुण भाव आदि गुण आज की तरुण और किशोरों को जीवन के सत्य सत्य पथ और मानव जीवन की चारों के प्रति निष्ठा की प्रेरणा दे सकते हैं।"
3. त्यागपथी के प्रमुख की नारी पात्र राज्यश्री की चारित्रिक विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर मां की ममता की मूर्ति माता पिता की पुराणों कम प्यारी कन्नौज की समाधि और तथागत की अनन्य उपासक का राज्य श्री रामेश्वर शुक्ल अंचल कृत्य त्यागपथी खंडकाव्य की स्त्री पात्रों में प्रमुख है त्यागपथी का कथा सूत्र उसी के आधार पर आगे बढ़ता है।वह महाराज प्रभाकर वर्धन की पुत्री एवं सम्राट हर्षवर्धन की छोटी बहन विवाह के कुछ समय पश्चात ही उसे विधवा रूप स्वीकार करना पड़ा।फिर भी सात्विक वृत्ति वाली यह नारी निरंतर लोक कल्याण में संलग्न रही।
राज्यश्री का चरित्र चित्रण
आदर्श नारी= राजश्री आदर्श पुत्री वन एवं पत्नी के रूप में हमारे समूह खाते हैं माता-पिता की है लाडली बेटी जब विधवा होती है। तो कैद कर ली जाती है।परंतु भाई राजवर्धन की मृत्यु के समाचार से पीड़ित होकर वह क्या दिखाने से भाग निकलती है। वन में भटकती हुई व अग्नि प्रवेश को उद्धत होती है।परंतु सीकरी भाई हर्षवर्धन द्वारा आकर बचा ली जाती है। हर्षवर्धन द्वारा बाद में राजस्व पर जाने पर भी वह राज्य को स्वीकार नहीं करती है और तन मन से प्रजा की सेवा में लग जाती है।
धर्म परायण एवं त्यागी तपस्विनी= तथागत की सु पावन प्रेरणा प्राप्त करके राज्यश्री अपने मन वचन और आत्मा से उनकी शरण में चली जाती हैं उसने राज्य वैभव का परित्याग करके कठोर संयम एवं नियम का मार्ग स्वीकार कर लिया।
देशभक्त एवं जन सेविका= राज्यश्री जनसेवा का व्रत लेती है। और इस व्रत को पूर्ण करके वह अपनी देशभक्ति का परिचय देती है। मैं प्रतिज्ञा करती है कि अपने भाई हर्ष के साथ देश सेवा में लगी रहेगी।
शास्त्र ज्ञान से संपन्न= राजश्री स्वच्छता एवं शास्त्रों के ज्ञान से संपन्न है आचार्य दिवाकर मित्र सन्यास धर्म का तात्विक विवेचन करते हुए उसे मानव कल्याण के कार्यों में लगने का उपदेश देते हैं राज्यश्री एसी स्वीकार कर लेती है और आचार्य की पूर्णरूपेण आज्ञा का पालन करती है।
निष्कर्ष= इस प्रकार राजश्री एक ऐसी आदर्श भारतीय नारी है जो त्याग तपस्या कर्तव्य निष्ठा धर्म परायणता और जन सेवा जैसे पवित्र बाबू से सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है कवि ने त्याग पति की भूमिका में स्पष्ट लिखा है।
" राज्यश्री एक आदर्श राजकुमारी थी जिसने पूर्ण पवित्रता और सात्विकता के साथ अपना जीवन बिताया खंडकाव्य में हर्ष के समांतर ही राज्यश्री का विमल चरित्र भी उन सब आदर्शों से अनु प्रेरित होकर विचित्र हुआ है।"
4. त्यागपथी खंडकाव्य के नाम की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर =त्यागपथी नाम की सार्थकता प्रस्तुत खंडकाव्य का उद्देश्य सम्राट हर्ष की त्याग पूर्ण व्यक्तित्व की विशेषताओं का प्रकाशन करना है।अतः इस त्याग में व्यक्तित्व के आधार पर ही इसका नाम त्यागपत्र रखा गया है। जो एक सार्थक शीर्षक है।यह स्पष्ट करता है कि प्रस्तुत खंडकाव्य महान पुरुष के जीवन पर आधारित है जो त्यागी मार्ग पर चलने वाला था और यही इस खंडकाव्य का विषय है इसलिए खंड का विषय वस्तु के अनुरूप एक उपयुक्त शीर्षक है।
त्यागपथी खंडकाव्य का उद्देश्य= किसी भी साहित्यिक कृति में जब किसी सद्गुणी सदाचारी और महान व्यक्तित्व रखने वाली ऐतिहासिक पुरुष को चारित्रिक किया जाता है तो इसका एकमात्र उद्देश्य जनसाधारण में सद्गुणों के प्रति भावात्मक संवेदना जागृत करना होता है।प्रस्तुत करने का त्यागपथी का उद्देश्य भी यही है। इसमें हर्षवर्धन की महान गुणों को भावात्मक अभिव्यक्ति देकर उसके साथ असाधारण व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है। सभी का उद्देश्य जनचेतना में विशेष रूप से युवा चेतना में सद्गुणों के प्रति भावात्मक संवेदना उत्पन्न करना है। आपकी भाषा शैली व्यंजना शक्ति एवं उदात रस योजना के उद्देश्य करने की दृष्टि से पूर्णता सफल हुई है। गुणों के प्रति मन में उत्पन्न करने में सक्षम और सफल खंडकाव्य है।
Ritu kushwaha
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