Up board live class- 10th hindi निबंध (मेरे प्रिय कवि तुलसीदास)
निबंध
मेरे प्रिय कवि तुलसीदास
(2011, 12,13,15,16,17)
प्रस्तावना - यदि मैंने बहुत अधिक अध्ययन नहीं किया है। तथापि भक्तिकालीन कवियों में कबीर सूर तुलसी और मेरा तथा आधुनिक कवियों में प्रसाद पंत और महादेवी के गांव का रसास्वादन आवश्य किया है। सभी कवियों मैं प्रसाद पंत और महादेवी के गांव का रसास्वादन अवश्य किया है इन सभी कवियों के काव्य का अध्ययन करते समय तुलसी के काव्य लगता के समक्ष में सदा नतमस्तक होता रहा हूं। उनकी भक्ति भावना समन्वय आत्मक दृष्टिकोण तथा काव्य में मुझे स्वभाविक रूप से आकृष्ट किया है।
तत्कालीन परिस्थितियों -
तुलसीदास का जन्म ऐसी विषम परिस्थितियों में हुआ था जब हिंदू समाज आसक्त होकर विदेशी चंगुल में फंस चुका था हिंदू समाज की संस्कृति और सभ्यता व्यायाम नष्ट हो चुकी थी और कहीं कोई पथ प्रदर्शक राहुल झा इस युग में जहां एक और मंदिरों का विध्वंस किया गया ग्रामीण व नगरों का विनाश हुआ वहीं संस्कारों की चरम सीमा पर पहुंच गई इसके अतिरिक्त तलवार के बल पर धर्मांतरण कराया जा रहा था। सिर्फ धार्मिक नेताओं का तांडव हो रहा था और विभिन्न संप्रदायों ने अपनी अपनी डफली अपना राग अलापना आरंभ कर दिया था। ऐसी बस्तियों में खोली वाले जनता यह समझने में असमर्थ थी कि वह किस संप्रदाय का आश्रम ले उस समय दृग विनंती जनता को ऐसे नाजुक की आवश्यकता थी, जो उसके नैतिक जीवन की नौका की पतवार संभाल ले।
गोस्वामी तुलसीदास ने अंधकार के गर्त में जो भी हो जनता की समझ भगवान राम का लुक मंगलकारी रूप प्रस्तुत किया और उसमें अ पूर्व पार्षद एवं रक्त का संचार किया युग दृष्टा तुलसी ने अपने अमरकांत, श्रीरामचरितमानस ,द्वारा भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न मतों ,संप्रदायों एवं ,धाराओं में समन्वय स्थापित किया उन्होंने अपने युग को नवीन दूसरा नई गति एवं नवीन प्रेरणा दी उन्होंने सत्य लोकनायक के सम्मान समाज में व्याप्त वैमनस्य की चौड़ी खाई को पाटने का सफल प्रयास किया।
तुलसीदास :एक लोक नायक के रूप में - आज हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन है। लोकनायक वही हो सकता है। जो समन्वय कर सके क्योंकि भारतीय समाज में नाना प्रकार की परस्पर विरोधी ,संस्कृतियों ,साधना ,जातियां ,अचार निष्ठा और विचार, पद्धतियां ,प्रचलित है। बुद्धदेव थे गीता ने समन्वय की चेष्टा की और तुलसीदास की समन्वय कारी थी।
तुलसी के राम - तुलसीराम के उपासक थे जो सच्चिदानंद परब्रह्मा है जिन्होंने भूमि का भार हार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया था तुलसी ने अपने काव्य में सभी देवी देवताओं के की स्तुति की है लेकिन अंत में वे यही कहते हैं।
मांग तुलसीदास कर जोरे । बशी रामसीय मानस मोरे॥
राम के प्रति उनकी अनन्य भक्ति अपनी चरण सीमा छूती है और वह कह उठते हैं कि
करूं कहां तक राम बड़ाई ।राम ना सके ,राम गुण गाए।।
तुलसी के समक्ष ऐसे राम का जीवन था! जो मर्यादा सीन थे और शक्ति एवं चंद्र के अवतार थे ।
तुलसी की निष्काम भक्ति भावना- सच्ची भक्ति वही है जिसमें लेनदेन का भाव नहीं होता भक्तों के लिए भक्ति का आनंद ही उसका फल है तुलसी के अनुसार
मौसम दीन न दीन हित तुम समान रघुबीर
बिचारी रघुवंश मणि ,,हरहु विषम भव भीनी
तुलसी की समन्वय साधना - तुलसी के काव्य की प्रमुख विशेषता उसमें नेतृत्व की प्रवृत्ति है। जिसके कारण ही वे वास्तविक अर्थों में लोकनायक कहलाए उनके काव्य सम्मेलन केंद्र के दृष्टिगत होते थे।
तुलसी के दर्शनिक विचार - तुलसी ने किसी विशेष बात को स्वीकार नहीं किया /उन्होंने वैष्णो धर्म को इतना व्यापक रूप प्रदान किया कि उसके अंतर्गत सशक्त साथी और पुष्ट भी सरलता से समूह वेस्ट हो गया तुलसी भक्त है। और इसी आधार पर वह अपना व्यवहार निश्चित करते हैं उनकी भक्ति सेवक सेवा भाव की है। वे स्वयं को राम का सेवक मानते हैं और राम को अपना स्वामी।
उपसंहार - तुलसी ने अपने योग और भविष्य देश और विश्व तथा व्यक्ति और समाज आदि सभी के लिए महत्वपूर्ण सामग्री दिए तुलसी को आधुनिक दृष्टि जीने की प्रत्येक युग की दृष्टि मूल्यवान मानेगी शिव की मणि की चमक अंदर से आती है वार्ड से नहीं तुलसी के संबंध में हरि ओम जी के हृदय में प्रताप फूट पड़ी स्थित अपनी समीक्षा में बेजोड़ है।
फेसबुक चेक कविता से तुलसी नहीं तुलसी से कविता गौरव वंती हुई उन 31 समर्थ लेखनी का संभल का प्राण धन लसीदास जी के इन्हीं सभी घोड़ों का ध्यान आते ही मन सदस्य परिपूर्ति हो उन्हें अपना भी कभी मानने को विवश हो जाता है।
Writer - roshani kushwaha
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