Up board live class 12th Hindi solution (खंडकाव्य) सत्य की जीत

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Up board live class 12th Hindi solution (खंडकाव्य) सत्य की जीत

 Up board live class 12th Hindi solution (खंडकाव्य) सत्य की जीत


 खंडकाव्य 


सत्य की जीत


1. सत्य की जीत खंडकाव्य का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।

                   अथवा

सत्य की जीत खंड काव्य में वर्णित चीर हरण प्रसंग एक मार्मिक घटना है स्पष्ट कीजिए।

                      अथवा

सत्य की जीत के आधार पर चीर हरण प्रसंग का वर्णन कीजिए।


उत्तर= द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित सत्य की जीत खंडकाव्य  का कथानक महाभारत के सभा पर्व से लिया गया है।यद्यपि कथानक का मुख्य रस वीर रस है। तथापि माहेश्वरी जी ने अपने कवि प्रतिभा के द्वारा द्रौपदी की प्रताड़ना के प्रसंग में अनेक मार्मिक स्थलों की सर्जना की है। इन मार्मिक स्थलों की भी अपनी विशेषता स्थल कहीं भी व्यक्ति के प्रति अन्य लोगों के हृदय में करुणा नहीं हो जाते वर्णन सत्य-असत्य और न्याय -अन्याय में से किसी एक का पक्ष लेने के प्रत्येक पात्र की व्यवस्था का मनोविश्लेषण करते हैं दिए गए कथानक  से यह भली-भांति स्पष्ट हो जाता है।


        सत्य की जीत का कथानक

 दुर्योधन पांडवों को धूर्त क्रीडा का निमंत्रण देता है।पांडवों के निमंत्रण को स्वीकार कर लेते हैं। और जुआ खेलते हैं युधिष्ठिर जुए में निरंतर हारते रहते हैं। अंत में युधिष्ठिर द्रौपदी को भी दांव पर लगा देते हैं। और हार जाते हैं प्रतिशोध की अग्नि में जलता हुआ दुर्योधन द्रोपती को भरी सभा में अपमानित करना चाहता है। अतः वह दुशासन को भरी सभा में द्रोपदी को वस्त्रहीन करने का आदेश देता है। इस घटना को भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य धृतराष्ट्र एवं विदुर जैसे ज्ञानी जन भी मूकदर्शक बने देखते रहते हैं। केश पकड़कर द्रोपती को सभा में लाया जाता है। इस अपमान को शुद्ध होकर वह एक सिंहनी के समान गर्जना करती हुई दुशासन को ललकारती है सभी सभासद उसकी ललकार सुनकर स्तब्ध रह जाते हैं कहती है-

      अरे ओ!दुशासन निर्लज्ज!

         देख तू नारी का भी क्रोध।

          किसे कहते हैं उसका अपमान

           कर आऊंगी मैं उसका बोध।।

द्रोपती द्वारा नारी जाति पर पुरुषों के अत्याचार का विरोध किया जाता है। दुशासन नारी को अबला, तुच्छ महत्वहीन एवं पुरुष की आश्रिता बताता है।परंतु द्रोपदी उसे नारी से दूर रहने को कहती है। द्रोपदी कहती है। कि संसार के कल्याण के लिए नारी को महत्व दिया जाना आवश्यक है।द्रौपदी और दुशासन दोनों धर्म-अधर्म, न्याय -अन्याय, सत्य- असत्य, पर तर्क -वितर्क करते हैं। द्रोपदी उपस्थित सभासदों से तथा नित्य विद्वान और प्रतापी व्यक्तियों से पूछती है। कि जुए में हारे हुए युधिष्ठिर को मुझे दाव पर लगा देने का अधिकार कैसे हो सकता है? यदि युधिष्ठिर को मुझे दांव पर लगाने का अधिकार नहीं है तो मुझे विजित कैसे मनाया गया और मुझे इस सभा में अपमानित करने का किसी को क्या अधिकार है। द्रोपदी के इस कथन के प्रति सभी अपनी सहमति व्यक्त करते हैं भीष्म पितामह इसका निर्णय युधिष्ठिर पर छोड़ते हैं।


द्रोपदी भीष्म पितामह के वचन सुनकर कहती है कि दुर्योधन ने छल प्रपंच करके सरल हृदय वाली युधिष्ठिर को अपने जाल में फंसा लिया है।अतः धर्म एवं नीति के ज्ञाता स्वयं निर्णय लें कि उन्हें छल कपट एवं असत्य की विजय स्वीकार है। अथवा धर्म सत्य एवं सरलता की द्रौपदी की बात सुनकर दुशासन कहता है कि कौरवों को अपने शस्त्र बल पर भरोसा है। ना कि शास्त्र बल पर कर्ण शकुनि और दुर्योधन दुशासन के इस कथन का पूर्ण समर्थन करते हैं।सभा में उपस्थित एक सभासद विकर्ण को यह बात बुरी लगती है।वह कहता है कि यदि शास्त्र बल के शस्त्र बल ऊंचा और महत्वपूर्ण है। तो मानवता का विकास संभव नहीं है।क्योंकि शस्त्र बल मानवता को पशुता में बदल देता है। वह कहता है कि सभी विद्वान एवं धर्म शास्त्रों के ज्ञाता ओं को द्रौपदी के कथन का उत्तर अवश्य देना चाहिए नहीं तो वह बड़ा अनर्थ होगा विकर्ण द्रोपदी को विजित नहीं मानता भी करने की घोषणा सुनकर सभी सभासद दुर्योधन दुशासन आदि की निंदा करने लगते हैं। परंतु उत्तेजित होकर कौरवों का पूर्ण समर्थन करता है और द्रोपती को निर्वस्त्र करने के लिए शासन को आज्ञा देता है सभा स्तब्ध रह जाती है प्रस्तुत करता है और रोकने के लिए हाथ बढ़ाता है खंडकाव्य का सर्वाधिक मार्मिक प्रसंग उपस्थित होता है। जब द्रोपदी और अपने पूर्ण बल के साथ शासन को रोकती है। कि मैं किसी भी तरह नहीं तथा वह उसके प्राण रहते उसका चीरहरण नहीं कर सकता क्योंकि आता है। दुर्गा का रूप धारण कर लेती है। जिसे देखकर दुशासन जाता है। तथा अपने आप को चीर हरण में अनुभव को चीर हरण की चेतावनी द्रोपती की रौद्र रूप से आता है तभी गौरव और सत्य के आगे कांति इन हो जाते हैं गौरव को अनीति की राह पर चलता देखकर सभी सभासद उनकी निंदा करने लगते हैं राज मदान दुर्योधन दुशासन कर्ण आदि को द्रोपती फिर ललकार की घोषणा करती है 

         और तुमने देखा यह स्वयं

         की होते जिधर सत्य औ न्याय

         जीत होती उन्की ही सदा

          समय चाहे जितना लग जाए।

सभी सभासद कौरवों की निंदा करते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि यदि पांडवों के प्रति होते हुए इस अन्याय को नहीं रोका गया तो प्रलय हो जाएगा अंत में धृतराष्ट्र उठते हैं।और सभा को शांत करते हैं अभी अपने पुत्र दुर्योधन की भूल को स्वीकार करते हैं। दृष्ट राष्ट्र पांडवों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं।कि उन्होंने सत्य धर्म एवं न्याय का मार्ग नहीं छोड़ा वे दुर्योधन को आदेश देते हैं।कि पांडवों का राज लौटा दिया जाए तथा उन्हें मुक्त कर दिया जाए।

          नीति समझो मेरी यह स्पष्ट,

            जिए हम और जिए सब लोग।

धृतराष्ट्र द्रोपदी के विचारों को उचित ठहराते हैं।वे उसके प्रति किए गए दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगते हैं। तथा पांडवों के गौरवपूर्ण व सुखद भविष्य की कामना करते हुए कहते हैं।

           जहां है सत्य जहां है धर्म ,

         जहां  है न्याय , वहा है जीत।

         तुम्हारे यह गौरव के दिग-

          दिगंत में रहेंगे स्वर गीत।।

 इस प्रकार सत्य की जीत खंड का की कथा द्रोपदी चीर हरण की अत्यंत संक्षिप्त किंतु मार्मिक घटना पर आधारित है कवि ने इस कथा को अत्यधिक प्रभावी और युवानुकूल बनाकर नारी के सम्मान की रक्षा करने का अपना संकल्प दोहराया है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि शस्त्र बल और शास्त्र बल में  शास्त्रबल ही अधिक महत्वपूर्ण है।


2. सत्य की जीत खंड काव्य के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।

                  अथवा

सत्य की जीत खंडकाव्य के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।


उत्तर =सत्य की जीत: शीर्षक की सार्थकता

श्री द्वारका प्रसाद माहेश्वरी कृत सत्य की जीत खंडकाव्य में द्रोपदी चीर हरण का प्रसंग वर्णित किया गया है किंतु इसमें कथा का रूप सर्वदा मौलिक है। अत्याचारी के दमन चक्र को द्रोपदी जो कर स्वीकार नहीं करती उसका पक्ष सत्य एवं न्याय का पक्ष है। और वह पूर्ण आत्मबल से अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करता जीत उसकी होती है।और पूरी राज्यसभा उसके पक्ष में हो जाती है कवि का उद्देश सत्य को असत्य पर विजय प्राप्त करते हुए दिखाना है। खंडकाव्य का मुख्य आध्यात्मिक भाव सत्य की असत्य पर विजय है। इस दृष्टिकोण से इस खंड काव्य का शीर्षक उपयुक्त है।


    सत्य की जीत खंड काव्य का उद्देश्य

सत्य की जीत खंडकाव्य के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि कवि ने अपने काव्य का नामकरण भी असत्य पर सत्य को प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य किया है ।इस खंडकाव्य का मूल उद्देश्य मानवीय सद्गुणों एवं उद्धत भावनाओं को चित्रित करके समाज में इनकी स्थापना करना और नर नारी का समान रूप से समाज उत्थान में सहयोग देना  ही है। आज का मानव स्वार्थ व ईर्ष्या के चंगुल में फंसा है। स्वार्थ भावनाएं संघर्ष को जन्म देती है।इर्स्यागनी क्या-क्या करा देती है, इस बात को कवि ने द्रौपदी चीरहरण की घटना के माध्यम से दर्शाया है।दुर्योधन पांडवों के प्रति वैर एवं ईर्ष्या भाव रखता है। तथा उन्हें धूर्त क्रीडा में छल से पराजित करके उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना और द्रौपदी को निर्वस्त्र कर अपमानित करना चाहता है। कभी संदेश देता है कि स्वार्थपरता बैर भाव ईर्ष्या व द्वेष की समाप्ति और मैत्री, सत्य, प्रेम ,त्याग एवं सेवा भावना का प्रसार लोकमंगल के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है।

द्रौपदी के अनुसार नारी केवल श्रृंगार एवं कोमलता की ही मूर्ति नहीं व्यस्त समय पड़ने पर कठोरता को भी वर्णन कर सकती है कभी ने स्वीकार किया कि भरी सभा में द्रोपती का चीर हरण पूर्णतया अनैतिक कार्य के द्वारा यह बताना चाहता है कि वह सत्ता निरंकुश हो जाती है जो वह अनैतिक कार्य करने में कोई संकोच नहीं करते कभी का विचार है। कि यदि व्यक्तियों विभिन्न समाजों एवं राष्ट्रीय के मध्य से अस्तित्व में आए मैत्री सहयोग एवं ममता अधिक मूल्यों की प्रतिष्ठा हो तो मनुष्य को घर समाज देश का संसार व कुटुंब की भांति प्रतीत होने लगती है।

 वस्तुतः एक विचार प्रधान खंड काव्य खंड का में कवि ने नैतिक मूल्यों की स्थापना करते हुए स्वार्थ वेश्या के समापन की कामना की है उसका उद्देश्य विश्व बंधुत्व की भावना एवं जी हम और यह सब लोग के सिद्धांत का प्रसार अपने से देश में कभी को पूरी सफलता प्राप्त हुई।


3. सत्य की जीत खंड काव्या आधार पर संक्षेप में द्रोपदी का चरित्र चित्रण कीजिए।

                       अथवा

सत्य की जीत खंडकाव्य के आधार पर प्रमुख नारी पात्र नायिका का चरित्र चित्रण कीजिए।


उत्तर. द्वारका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित खंड का सत्य की जीत की नायिका द्रोपदी है।कवि ने उसे महाभारत की द्रोपदी के समान स कुमार एवं करूण रूप में प्रस्तुत ना करके आत्मबल एवं आत्म सम्मान संयुक्त ओजस्वी सशक्त एवं वाकपटु वीरांगना के रूप में चित्रित किया है। द्रोपती के चरित्र में वर्तमान युग के नारी जागरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित है।


            द्रौपदी का चरित्र चित्रण


स्वाभिमानी -द्रोपती एक वीरांगना है। अयाज

अतःउसमें स्वाभिमान की उदात्त भावना का होना स्वभाविक है। उसे अपमान सहन नहीं है। वह नारी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाली किसी भी बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। अपने स्वाभिमान के कारण ही अपनी रक्षा के लिए वे स्वयं को समर्थ मानती है वह दुशासन को लललल करती हुई कहती है-

                  मौन हो जा ,मैं सह सकती न

                   कभी भी नारी का अपमान।


 सत्य निष्ठा एवं न्याय प्रियनारी -द्रोपदी सत्य और न्याय के प्रति पूर्णता निष्ठावान हैं। वह अपने प्राण देकर भी न्याय और सत्य का पालन करने की पक्षधर है। जब दुशासन पाशविक बल का प्रदर्शन कर द्रोपदी की लज्जा एवं शील का हरण करना चाहता है। तो वह दुशासन को ललकारती हुई कहती है-

          न्याय में रहा मुझे विश्वास

          सत्य में शक्ति अनंत महान।

          मानती आई हूं मैं सतत,

           सत्य ही है ईश्वर, भगवान।


 वाकपटु -द्रोपती के कथन उसकी वाकपटुता एवं योग्यता के परिचायक हैं। चीरहरण के समय कौरवों की सभा में वह अकाट्य तर्क प्रस्तुत करके सभी सभासदों को निरुत्तर कर देती है। वह दुशासन को न्याय -अन्याय, सत्य -असत्य, धर्म -अधर्म आदि विवाद करती है।


 नारी जाति का आदर्श -द्रोपदी संपूर्ण नारी जाति के लिए एक आदर्श है। दुशासन जब नारी को केवल वासना एवं भोग की वस्तु कहता है। तो वह बताती है कि नारी वह शक्ति है जो विशाल चट्टान को भी हिला देती है या कभी वह कली के समान कोमल है, तथापि पापियों के सहार के लिए वह भैरवी भी बन जाती है। वह नारी जाति के लिए गौरव की घोषणा करती है-

        पुरुष की  पौरुष से ही सिर्फ,

       बनेगी धरा नहीं यह स्वर्ग। 

       चाहिए नारी का नारीत्व,

       तभी होगा यह पूरा सर्ग।।


 निर्भीक एवं साहसी -द्रौपदी के बाल खींच कर दुशासन उसे भरी सभा में ले आता है।और उसे अपमानित करना चाहता है। परंतु द्रौपदी बडे साहस एवं निर्भीकता के साथ दुशासन को निर्लज्ज और पापी कहकर पुकारती है।-

          अरे ओ! दुशासन निर्लज्ज!

          देख तू नारी का भी क्रोध।

         किसे कहते हैं उसका अपमान

        कर आऊंगी मैं इसका बोध।।


धर्म नष्ट नारी- कवि ने द्रौपदी के चरित्र को एक भारतीय सती साध्वी नारी के आदर्श चरित्र के रूप में चित्रित किया है। जो भारत माता का प्रतीक है ।कवि ने द्रौपदी के चरित्र के माध्यम से सत्य ,न्याय ,धर्म, विवेक क्षमता और समष्टि आदि मानवीय आदर्शों को भली प्रकार उजागर किया द्रोपदी के इस रूप में भारत माता की प्रतिमा साकार हो उठी। द्रौपदी के गुण , शील एवं धर्म निष्ठ की प्रशंसा स्वयं धृतराष्ट्र को भी करनी पडी।

        सार रूप में कहा जा सकता है कि द्रोपती पांडव कुलवधू वीरांगना स्वाभिमानी आत्म गौरव संपन्न सत्य और न्याय की पक्षधर साथ सती साध्वी नारीत्व के स्वाभिमान में मंडित एवं नारी जाति का आदर्श है उसका चरित्र निसंदेह भारतीय नारियों के लिए अनुकरणीय है।

4. सत्य की जीत खंड का के आधार पर दुर्योधन की चरित्र संबंधी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

                    अथवा

सत्य की जीत के नायक प्रमुख पात्र युधिष्ठिर का चरित्र चित्रण कीजिए।


उत्तर. कविवर द्वारका प्रसाद महेश्वरी कृत सत्य की जीत खंडकाव्य दो के प्रमुख पात्र हैं द्रोपदी और दुशासन इनके अतिरिक्त दुर्योधन विकर्ण, विदुर, युधिस्टर,और धृतराष्ट्र भी इसके उल्लेखनीय पात्र इन पात्रों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है।


द्रोपदी- प्रस्तुत खाने का पीने का द्रौपदी हैं सत्य की जीत में जिस द्रौपदी का चित्रण हुआ है वह सशक्त ओजस्वी आत्मसम्मान से युक्त है और वीरांगना नारी हैं वह महाभारत में प्रदर्शित सुकुमार और विवश नारी नहीं है ।उसके चरित्र पर आधुनिक नारी जागरण का प्रभाव है वह पुरुष की भांति समान अधिकारों की घोषणा करते हैं द्रोपदी के चरित्र द्वारा कवि ने अधर्म अन्याय और अत्याचार पर सत्य एवं न्याय की विजय दिखलायी है।


 दुशासन- दुशासन इस काव्य का प्रमुख पुरुष पात्र है वह अभिमानी विवेक हीन अनैतिकता का पोषक परंपरागत अहंकार युक्त मनोवृति से ग्रसित भौतिक शक्ति का पुजारी नारी के प्रति अनुदार तथा अशिष्ट और दुराचारी व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है उसका चरित्र भौतिक मद में चूर साम्राज्यवादी शासकों का चरित्र है।


 दुर्योधन.- दुशासन के समान है दुर्योधन को भी असत्य अन्याय और अनैतिकता का समर्थक चित्रित किया गया है वह इर्स्यालु है उसे छल कपट में विश्वास है वह पांडवों की समृद्धि और मान सम्मान को नहीं देख सका। इसलिए उसने कपट चाल से पांडवों को जीता और उनके राज्य को हड़प लिया ।इस प्रकार उसके चरित्र में वर्तमान समाजवादी शासकों को लोलुपता के झलक प्रस्तुत की गई।


 विकर्ण और विदुर- विकर्ण और विदुर अंधी शस्त्र शक्ति के विरोधी हैं केवल शस्त्र बल पर स्थापित शांति को वे भ्रांति मानते हैं दोनों पात्र न्याय प्रिय हैं तथा गौरव कुल के होते हुए भी वे द्रोपदी के सत्य पक्ष के समर्थक स्पष्ट वादी और निर्भीक हैं।


 युधिष्ठिर -युधिस्टर के दौरान एवं निश्चल चरित्र में कवि ने आदर्श राष्ट्र नायक की झलक प्रस्तुत की है। वे आरंभ से अंत तक मौन रहे कवि ने उनके मौन  चरित्र में ही गंभीरता, शालीनता,सत्य निष्ठता, न्याय प्रियता, विवेकशीलता और धर्म परायणता जैसी अमूल विशेषताएं प्रकट कर दी है।


 धृतराष्ट्र -प्रस्तुत काव्य के अंतिम अंत में धृतराष्ट्र का उल्लेख हुआ दोनों पक्षों की बात सुनकर भी सत्य को सत्य तथा असत्य को असत्य घोषित कर अपने नीर क्षीर विवेक का परिचय देते हैं। कौरवों तथा पांडवों के समक्ष इस सभा में वे अपने उदार और विवेक पूर्ण नीति की घोषणा इन शब्दों से करते हैं-

      निती समझो मेरी यह स्पष्ट,

      जिए हम जिए सब लोग।

      बांटकर आपस में, मिल सभी,

        धरा का करें बराबर भोग।।

 धृतराष्ट्र के इस चरित्र के माध्यम से कवि ने आज के शासन अध्यक्षों की जिस नीति का अनुसरण करने का संदेश दिया है ।उसमें आपाधापी से ग्रसित इस युग के लिए बड़े कल्याण का भाव छिपा है। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट है कि कवि न सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक सस्पर्सो के सहारे पात्रों को पूर्णता जीवंत और विश्वसनीय बना दिया है।


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Writer -Ritu kushwaha





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