class 12 chemistry chapter 09 covalent compound notes in hindi / उपसहसंयोजक यौगिक ncert notes

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class 12 chemistry chapter 09 covalent compound notes in hindi / उपसहसंयोजक यौगिक ncert notes

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covalent compound class 12 notes


कक्षा 12 रसायन विज्ञान अध्याय 09 उपसहसंयोजक यौगिक




द्विक् लवण


ये ठोस यौगिक जो जल में घोलने पर अपने घटक आयनों में वियोजित हो जाते हैं अर्थात् विलयन में अपनी पहचान खो देते हैं, द्विक् लवण कहलाते हैं। 


उदाहरण पोटाश ऐलम [K₂SO₄. Al₂(SO₄)₃.  24H₂O] एक द्विक लवण है। जल में घोलने पर यह अपने अवयवी आयनों K⁺, AI³⁺ तथा SO₄²⁻ में वियोजित हो जाता है। 



उपसहसंयोजक अथवा संकुल यौगिक


वे यौगिक जो जल में या अन्य किसी विलायक में घोलने पर अपने अवयवी आयनों में वियोजित नहीं होते तथा इनके गुण पूर्णतया अवयवों के गुणों से भिन्न होते हैं, उपसहसंयोजक यौगिक कहलाते हैं। 


उदाहरण K₄[Fe(CN)₆ ] ,   [Cu(NH₃)₄ ]²⁺ आदि।



उपसहसंयोजक संकुलों के प्रकार


(i) ॠणायनिक संकुल 


K₃[Fe(C₂O₄)₃]   → 3K⁺   + [Fe(C₂O₄)₃]³⁻


(ii) धनायनिक संकुल


[CoCl₂(en)₂]CI   →  [CoCl₂(en)₂]⁺  + Cr⁻



 (iii) उदासीन संकुल 


[Ni (CO)₄], [Fe(CO)₅]



उपसहसंयोजन यौगिकों से सम्बन्धित कुछ प्रमुख परिभाषित शब्द


लिगण्ड


कोई भी परमाणु या आयन जिसमें केन्द्रीय परमाणु को इलेक्ट्रॉन युग्म देने की क्षमता होती है, लिगैण्ड कहलाता है। आवेश के आधार पर लिगैण्ड ऋणायन, उदासीन अणु अथवा धनायन (जिनके पास देने के लिए कम से कम एक इलेक्ट्रॉन युग्म) हो सकते हैं। 


उदाहरण ऋणायन लिगैण्ड CN⁻, NO⁻₂: उदासीन अणु H₂O, NH₃ तथा धनायन लिगैण्ड NO⁺₂ NO⁺, NH⁺₄, आदि।




लिगैण्ड के प्रकार


ये निम्न प्रकार के होते हैं


(i) एकदन्ती लिगैण्ड वे लिगैण्ड जिनके पास केवल एक दाता परमाणु होता है, जो एक इलेक्ट्रॉन युग्म का दान, धातु परमाणु को करने में सक्षम होता है, एकदन्ती लिगैण्ड कहलाते हैं।


उदाहरण F⁻  CI⁻ , Br⁻. I⁻. CN⁻, NH₃. H₂O, OH⁻, आदि।


 (ii) द्विदन्ती लिगैण्ड वे लिगैण्ड जिनके पास दो दाता परमाणु होते हैं, ये दो इलेक्ट्रॉन युग्म, धातु आयन को प्रदान करते हैं, द्विदन्ती लिगैण्ड कहलाते हैं।


 उदाहरण एथिलीन डाइऐमीन, ऑक्सेलेट आयन, आदि।


(iii) बहुदन्ती लिगैण्ड वे लिगैण्ड जिनके पास दो या दो से अधिक ऐसे परमाणु होते हैं, जो केन्द्रीय धातु परमाणु से संलग्न होते हैं, बहुदन्ती यौगिक कहलाते हैं। 


उदाहरण एथिलीन डाइऐमीन टेट्राऐसीटेट आयन षट्दन्ती लिगैण्ड है। 



(iv) कीलेट लिगैण्ड बहुदन्ती लिगैण्ड जब केन्द्रीय धातु आयन से दो या दो से अधिक दाता परमाणुओं द्वारा जुड़ते हैं, तब एक चक्रीय वलय बनता है, जिसे कीलेट कहते हैं तथा लिगैण्ड कीलेट लिगैण्ड कहलाते हैं। उदाहरण ऑक्सेलेट, एथिलीन-1,2 डाइऐमीन, आदि।


(v) उभयदन्ती लिगैण्ड वे लिगैण्ड जिसमें दो दाता परमाणु होते हैं, किन्तु संकुल बनाते समय यह केवल एक परमाणु का ही उपयोग करते हैं, उभयदन्ती लिगैण्ड कहलाते हैं।



उदाहरण NO⁻₂ (नाइट्रो), ONO⁻ (नाइट्राइटो), CN⁻ (सायनो), NC⁻ (आइसो सायनो), आदि। 



उपसहसंयोजन संख्या


धातु आयन से जुड़े हुए दाता परमाणुओं की संख्या, उपसहसंयोजन संख्या के बराबर होती है। 


उदाहरण [Co(NH₃ )₆]Cl₂ में Co की उपसहसंयोजक संख्या 6 NH₆, जुड़े होने के कारण 6 है। 



केन्द्रीय परमाणु की ऑक्सीकरण संख्या


एक संकुल में केन्द्रीय परमाणु से जुड़े सभी लिंगैण्डों को यदि उनके साझे किए गए इलेक्ट्रॉन युग्मों सहित हटा लिया जाए, तो केन्द्रीय परमाणु पर उपस्थित आवेश को उसकी ऑक्सीकरण संख्या कहते हैं।


उदाहरण [Cu(NH₃)₄ ] SO₄में Cu की ऑक्सीकरण संख्या +2 है।


होमोलेप्टिक तथा हेट्रोलेप्टिक संकर


होमोलेप्टिक संकर में धातु परमाणु केवल एक प्रकार के दाता समूह से जुड़ा होता है।


 उदाहरण [Co(NH₃)₆]³⁺



 हेट्रोलेप्टिक संकर में धातु परमाणु एक से अधिक प्रकार के दाता समूहों से जुड़ा होता है।


 उदाहरण [Co(NH₃)₅SO₄]⁺ 



संकुल आयन पर आवेश


किसी संकुल आयन पर उपस्थित आवेश का परिमाण, केन्द्रीय परमाणु आयन तथा लिगण्ड अणुओं पर उपस्थित आवेशों का बीजगणितीय योग होता है।


संयोजकता का वर्नर सिद्धान्त


इस सिद्धान्त की मुख्य अवधारणाएँ निम्न हैं


 (i) संकुलों में धातुएँ दो प्रकार की संयोजकताएँ प्रदर्शित करती हैं।


(a) प्राथमिक संयोजकता यह दिशाहीन तथा आयनित होती है। यह प्रायः ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती है।


(b) द्वितीयक संयोजकता यह दिशात्मक तथा अन-आयनित होती हैं। यह धातु से जुड़े लिगैण्ड परमाणुओं की संख्या अर्थात् उपसहसंयोजन संख्या के बराबर होती है।


(ii) σ आबन्ध बनाने के लिए धातु के रिक्त संकर कक्षक, दाता समूहों के भरे हुए कक्षकों के साथ अतिव्यापन करते हैं।


प्रभावी परमाणु संख्या नियम


एक धातु परमाणु या आयन दाता समूहों के साथ इतनी संख्या में आबन्ध बनाएगा, जिससे संकुल में धातु के चारों ओर कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या निकटतम निष्क्रिय गैस के विन्यास के समान हो जाए, वह संख्या, प्रभावी परमाणु संख्या कहलाती है।


उपसहसंयोजक यौगिकों के नामकरण की IUPAC पद्धति


उपसहंयोजक यौगिकों के नामकरण की IUPAC पद्धति निम्न प्रकार होती है


(i) आयनों के नामकरण का क्रम आयनिक संकुलों में पहले धनायन तत्पश्चात् ऋणायन का नाम लिखा जाता है।



 (ii) लिगैण्डों के नाम ऋणात्मक लिगण्डों के नाम के अन्त में 'ओ' आता है (जैसे सायनो, क्लोराइडो)। उदासीन तथा धनात्मक लिगण्डों के नाम नहीं बदले जाते हैं। H₂O के लिए ऐक्वा NH₃ के लिए ऐमीन, CO के लिए कार्बोनिल तथा NO के लिए नाइट्रोसिल लिखा जाता है।


(iii) लिगैण्डों के नामकरण का क्रम यदि किसी संकुल में एक से अधिक लिगैण्ड उपस्थित हों, तो उसको नामांकित करने के लिए अंग्रेजी वर्णमाला क्रम का उपयोग किया जाता है।


(iv) लिगैण्डों की संख्या का विवरण यदि संकुल से जुड़े लिंगैण्ड सरल हैं


जैसे- क्लोराइडो, कार्बोनेटो, सल्फेटो, आदि, तो उनकी संख्या उनके नाम से पहले डाइ, ट्राइ, टेट्रा, पेन्टा, हेक्सा, आदि जोड़कर प्रदर्शित करते हैं अन्यथा बिस, ट्रिस, आदि प्रयुक्त किए जाते हैं।



 (v) केन्द्रीय धातु आयन का नामकरण


(a) ऋणायन संकुल इस प्रकार के संकुल जैसे— [Pt(NH₃)Cl₅]⁻ में पहले लिगैण्ड को नामांकित करते हैं और उसके बाद केन्द्रीय परमाणु को नामांकित किया जाता है। केन्द्रीय धातु आयन के नाम के बाद ऐट' (ate) लगा देते हैं तथा उसकी ऑक्सीकरण अवस्था रोमन अंकों में कोष्टक में संकुल के नाम से ठीक बाद बिना जगह छोड़े लिख देते हैं।



 (b) धनायनिक तथा उदासीन संकुल इस प्रकार के संकुलों जैसे- [Cr(H₂O)₄,Cl₂]⁺    [Cu(NH₃)₄]²⁺ तथा (Co(NO₃)₃ (NH₃)₃] में भी पहले लिगैण्ड तथा बाद में केन्द्रीय परमाणु का नाम लिखते हैं।


निम्न उदाहरण उपसहसंयोजक यौगिकों की नामकरण प्रणाली को स्पष्ट करते हैं


(i) K[Pt(Br)₃(NH₃)] का नाम


पोटैशियम ऐमीनट्राइब्रोमिडोप्लेटिनेट (II) है।


(ii) [Ag(NH₃)₂] [Ag(CN)₂ ] का नाम डाइऐमीनसिल्वर (I) डाइसायनो अर्जेन्टेट (I) है। 



(iii) [Fe(H₂O)₆ ] Cl₃का नाम हेक्साऐक्याआयरन (III) क्लोराइड है।


(iv) [Ni(CO)₄ ] का नाम टेट्राकार्बोनिलनिकैल (0) है।



उपसहसंयोजक यौगिकों के सूत्र लिखना 


उपसहसंयोजक यौगिकों का सूत्र लेखन निम्न प्रकार से होते हैं


(i) उपसहसंयोजक यौगिकों के सूत्र लेखन में सर्वप्रथम धनायन का सूत्र व उसके पश्चात् ऋणायन का सूत्र लिखा जाता है। 


(ii) सरल आयन (अर्थात् जो संकुल आयन नहीं है), चाहे वे धनायन हों, या ऋणायन, साधारण लवणों से प्राप्त आयनों की भाँति लिखे जाते हैं।


 एक संकुल आयन या अणु का सूत्र लिखते समय लिगैण्ड तथा धातु आयनों को उल्टे क्रम में रखा जाता है अर्थात् धातु का संकेत लिखने के पश्चात् लिगैण्ड के सूत्र (या संकेत) लिखते हैं। लिगैण्डों के सूत्र (या संकेत) लिखते समय निम्न तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए। 


(a) लिगैण्डों को उनके दाता परमाणु के अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में लिखा जाता है।


 (b) लिगैण्ड का वह परमाणु पहले लिखा जाता है, जिससे वह केन्द्रीय धातु आयन के साथ आबन्ध बनाता है।


 (iii) सम्पूर्ण संकुल आयन को एक वर्गाकार कोष्ठक में बन्द कर देते हैं।


(iv) धातु की ऑक्सीकरण अवस्था का सामान्यतया वर्णन नहीं किया जाता है।


(v) संकुल आयन पर उपस्थित आवेश की गणना करने के लिए संकुल आयन पर आवेश = धातु की ऑक्सीकरण अवस्था + लिगैण्डों पर उपस्थित कुल आवेश


उपसहसंयोजक यौगिकों में बन्धता


उपसहसंयोजक यौगिकों में बन्धता (आबन्धन) को स्पष्ट करने के लिए निम्न सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए हैं. 



1. संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त इस सिद्धान्त के अनुसार, के अनुशार


(i) लिगैण्डों के प्रभाव में धातु परमाणु या आयन अपने (n-1)d, ns. np अथवा ns, np, nd कक्षकों का उपयोग संकरण के लिए कर सकते हैं। sp³d² या d²sp³ संकरण होने पर ज्यामिति अष्टफलकीय, sp³ होने पर चतुष्फलकीय तथा dsp² होने पर वर्ग समतलीय होती है। ये संकरित कक्षक उन लिगैण्ड कक्षकों के साथ अतिव्यापन करते हैं, जो अपना इलेक्ट्रॉन युग्म बन्धों के लिए। दान कर सकता हो।


(ii) केन्द्रीय धातु के d-कक्षक में उपस्थित इलेक्ट्रॉन यौगिक के संकरण तथा ज्यामितियों के अनुसार पुनः व्यवस्थित हो जाते हैं। संयोजकता बन्ध सिद्धान्त के आधार पर संकुल के चुम्बकीय व्यवहार से सामान्यतया इसकी ज्यामिति ज्ञात की जा सकती है। 


(iii) यदि संकुल के निर्माण में संकरण में आन्तरिक d कक्षक (3d) प्रयुक्त होते हैं, तो संकुल आन्तरिक कक्षक संकुल या निम्न प्रचक्रण संकुल कहलाता है। यदि संकुल के निर्माण में संकरण में बाह्य d कक्षक (4d) प्रयुक्त होते हैं, तो संकुल बाह्य कक्षक या उच्च प्रचक्रण संकुल कहलाता है।


2. क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त


इस सिद्धान्त के अनुसार, धातु लिगैण्ड आबन्ध आयनिक होते हैं, जो केवल धातु आयन तथा लिगैण्ड के मध्य स्थिर विद्युत क्रियाओं के द्वारा उत्पन्न होते हैं। इसके अनुसार, (d-उपकोश के पाँचों समभ्रंश कक्षकों का लिगैण्ड के प्रहार द्वारा विपाटन हो जाता है, जिसे क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहा जाता है। यह विपाटन क्रिस्टल क्षेत्र की प्रकृति पर निर्भर करता है, जो दो प्रकार के होते हैं। 


(i) अष्टफलकीय संकुलों का क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन


(ii) चतुष्फलकीय संकुलों का क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन


उपसहसंयोजक यौगिकों के रंग


क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के अनुसार, संकुलों में यदि d कक्षकों के दो समुच्चयों में ऊर्जा स्तर सामान्यतया कम होता है, तो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन दृश्य क्षेत्र के विकिरणों का कुछ भाग अवशोषित करके आसानी से निम्न ऊर्जा स्तर से उच्च ऊर्जा स्तर पर d-d संक्रमण द्वारा चले जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप संकुल का वह रंग दिखायी देता है, जो उसके द्वारा अवशोषित रंग का पूरक होता है।


 d⁰ व d¹⁰ इलेक्ट्रॉनिक विन्यास वाले संकुलों में d-d संक्रमण सम्भव नहीं है। अतः इस प्रकार के आयनों वाले उपसहसंयोजक यौगिक रंगहीन होते हैं। 



उपसहसंयोजक यौगिकों के चुम्बकीय गुण


अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त उपसहसंयोजक यौगिक अनुचुम्बकीय होते हैं, जबकि युग्मित इलेक्ट्रॉन वाले उपसहसंयोजक यौगिक प्रतिचुम्बकीय होते हैं। चुम्बकीय आघूर्ण, μ = √n(n+ 2) BM


जहाँ n= अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या

 BM= बोर मैग्नेटॉन (चुम्बकीय आघूर्ण का मात्रक)





उपसहसंयोजक यौगिकों का स्थायित्व 




 विलयन में उपसहसंयोजक यौगिकों का स्थायित्व वास्तव में साम्यावस्था में उपस्थित स्पीशीजो के मध्य संयोजन की दर है। संयोजन के लिए साम्यावस्था स्थिरांक का मान (स्थायित्व अथवा निर्माण परिणामात्मक रूप से स्थायित्व को प्रदर्शित करता है।



धातु कार्बोनिलों में आबन्धन


#.धातु कार्बोनिलों में धातु की ऑक्सीकरण संख्या शून्य होती है।


#.धातु कार्बोनिलों में धातु तथा CO के मध्य सिग्मा के साथ-साथ पाई बन्ध भी उपस्थित होते हैं।


क्रिस्टल क्षेत्र स्थायीकरण ऊर्जा


क्रिस्टल क्षेत्र स्थायीकरण ऊर्जा (CFSE) ≺ लिगैण्डों की सामर्थ्य ऊर्जा,


E ≺(1/तरंगदैर्ध्य)





बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. निम्न में से कौन-सा लिगैण्ड कीलेट बनाता है? 


(a) ऐसीटेट 


(b) ऑक्सेलेट 


(c) ऐमीन


(d) सायनाइड


उत्तर (b)


प्रश्न 2. निम्नलिखित में कौन-सा आयन उपसहसंयोजक यौगिक नहीं बनाता है


 (a) Na⁺


(b) Cr²⁺


(c) Co²⁺


(d) Cr³⁺



Ans (a)


प्रश्न 3. [Co(NH₃)]CI₂ में उपसहसंयोजन संख्या है


(a) 2


(b) 3


(c)   5


(d) 6



 उत्तर (d) 6 



प्रश्न 4. हेट्रोलेप्टिक संकर हैं



 (a) [Fe(CN)₆]⁴⁻


(b) [Co(NH₃)₅SO₄]⁺


(c) [Hgl₄]²⁻ 


(d) [Co(NH₄)₆]³⁺


उत्तर (b) 



प्रश्न 5. [Co(en)₂Cl₂] CI में Co की समन्वय संख्या है।



(a) 3


(b) 4


(c) 5


(d) 6


उत्तर (d) 


प्रश्न 6. [Co (NH₃)₅ Cl] Cl₂में Co की ऑक्सीकरण अवस्था है


(a) + 1


(b) + 2


(c) + 3


(d) + 4


उत्तर (c)



अतिलघु उत्तरीय प्रश्न    2 अंक


प्रश्न 1. एकदन्ती ( एकदन्तुक) लिगैण्ड क्या हैं? उदाहरण द्वारा समझाइए।


 उत्तर ऐसे लिगैण्ड जिनके पास केवल एक दाता परमाणु होता है, एकदन्तुक लिगैण्ड कहलाते हैं। 


उदाहरण H₂O (ऐक्वा) उदासीन एक दन्ती लिगैण्ड है, F⁻ (फ्लुओराइडो) ऋणायनिक एकदन्ती लिगैण्ड है तथा NO⁺ नाइट्रोसिलियम धनायनिक एकदन्ती लिगैण्ड है।


प्रश्न 2. ऐम्बिडेन्टेट (उभयदन्तुक) लिगैण्ड को उदाहरण सहित समझाइए।


उत्तर उभयदन्तुक लिगैण्ड वे लिगण्ड जिसमें दो दाता परमाणु होते हैं, किन्तु संकुल बनाते समय ये केवल एक परमाणु का ही उपयोग करते हैं, उभयदन्ती लिगैण्ड कहलाते है।


उदाहरण


(i) NO⁻₂ (नाइट्रो), ONO⁻ (नाइट्राइटो) 


(ii) CN⁻ (सायनों), NC⁻(आइसोसायनो)



प्रश्न 3.  [Fe(C₂O₄)₃]³⁻में केन्द्रीय धातु आयन की उपसहसंयोजकता (समन्वय संख्या) ज्ञात कीजिए।


उत्तर  [Fe(C₂O₄)₃]³⁻ में केन्द्रीय धातु आयन की उपसहसंयोजकता (समन्वय संख्या) 6 है, क्योंकि इस संकुल में Fe से 3C₂O₄, (द्विदन्तुक लिगेण्ड) जुड़े हैं।


प्रश्न 4. [Cu(NH₃)₄]SO₄, में Cu की ऑक्सीकरण संख्या ज्ञात कीजिए।


 उत्तर माना, Cu की ऑक्सीकरण संख्या है


x+4x(0)+(-2)=0 


x-2=0= X= + 2



प्रश्न 5. सिडविक के प्रभावी परमाणु क्रमांक नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। 


अथवा प्रभावी परमाणु क्रमांक क्या है? उदाहरण द्वारा समझाइए। 


उत्तर 


प्रभावी परमाणु क्रमांक उपसहसंयोजक यौगिकों के निर्माण को इलेक्ट्रॉनो की भाषा में समझाने के लिए सर्वप्रथम एक सफल प्रयास सिडविक ने 1928 में किया था। इसके अनुसार, "एक धातु परमाणु या आयन दाता समूहों के साथ इतनी संख्या में आबन्ध बनाता है, जिससे संकुल में धातु के चारों ओर कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या, जिसे प्रभावी परमाणु संख्या कहते हैं, आगामी अक्रिय गैस के इलेक्ट्रॉनों की जितनी हो जाए।" 



प्रभावी परमाणु क्रमांक (EAN) = धातु का परमाणु क्रमांक - ऑक्सीकरण संख्या + 2 x एकदन्तुक लिगैण्डों की संख्या = निकटतम उत्कृष्ट गैस का विन्यास धातु की


प्रश्न 6. निम्नलिखित यौगिकों के सूत्र लिखिए।



(i) ट्रिस (एथिलीन डाइऐमीन) कोबाल्ट (III) नाइट्रेट


(ii) डाइक्लोरो टेट्राऐक्वा क्रोमियम (III) नाइट्रेट


उत्तर


 (i) [ Co(en)₃ ]NO₃


 (ii) [Cr(H₂O)₆Cl₂] NO₃


 


प्रश्न 7. हेक्साऐमीन कोबाल्ट (III) क्लोराइड का सूत्र लिखिए। 


उत्तर (Co(NH₃)₆]Cl₃


प्रश्न 8. निम्नलिखित उपसहसंयोजन यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए।


(i) [Fe(H₂O)₆]Cl₃ 


(ii) [CO(NH₃)₄SO₄]NO₃


उत्तर (i) हेक्साऐक्वा आयरन (III) क्लोराइड


(ii) टेट्राऐमीन सल्फेटो कोबाल्ट (III) नाइट्रेट


प्रश्न 8. निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए।


(i) [Co(NH₃)₄ (H₂O)₂] Cl₃


(ii) Fe₄ [Fe (CN)₆]₃


उत्तर 


(i) टेट्राऐमीन डाइऐक्वा कोबाल्ट (III) क्लोराइड


(ii) आयरन हेक्सा सायनो फैरेट (II)


प्रश्न 9. निम्नलिखित यौगिकों के सूत्र लिखिए।


 

(i) ट्राइऐमीन ट्राइक्लोरोक्रोमियम (III)


 (ii) पोटैशियम हेक्सासायनो आयरन (III)


उत्तर (i) [Cr(NH₃)₃ Cl₃]


 (ii) [K₃Fe(CN)₆]



प्रश्न 10. निम्नलिखित का IUPAC नाम लिखिए।



(i) [ CoCl₂ (en)₂ ] SO₄


 (ii) Na₃[Cr(NO₂)₆ ]


उत्तर (i) डाइक्लोरोबिस (एथिलीन डाइऐमीन) कोबाल्ट (IV) सल्फेट


(ii) सोडियम हेक्सानाइट्राइटो-N क्रोमेट (III) 



प्रश्न 11. निम्नलिखित उपसहसंयोजक यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए।


(i) [Cr(H₂O)₄Cl₂] NO₃


(ii) K₂ [Ni(CN)₄] 



उत्तर (i) डाइक्लोरो टेट्राऐक्वाक्रोमियम (III) नाइट्रेट


(ii) पोटैशियम टेट्रासायनोनिकिलेट (II)



प्रश्न 12. निम्नलिखित के IUPAC नाम लिखिए।


(i) [Ni(NH₃) ]Cl₂


 (ii) Mn(H₂O)²⁺₆



 उत्तर (i) हेक्साऐमीन निकिल (II) क्लोराइड



(ii) हेक्साऐक्वा मैग्नीज (II) आयन 



प्रश्न 13. निम्न का IUPAC नाम लिखिए।


(i) [Cr(CI) (H₂O)₅Cl₂


(ii) [ Co(CO₃) (NH₃)₅Cl ] 


(iii) K₃[Fe(CN)₅ NO].2H₂O


(iv) K₄[Fe (CN)₆]



उत्तर (i) पेन्टाऐक्वाक्लोराइडोक्रोमेट (III) क्लोराइड


(ii) पेन्टाऐमीनकार्बोनिटोकोबाल्ट (III) क्लोराइड


(iii) पोटैशियम पेन्टासायनोनाइट्रोसिल आयरन (II) हाइड्रेट


 (iv) पोटैशियम हेक्सासायनोफेरेट (III)


प्रश्न 14. निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए।



(i) K₃[(Cr(CN)₆ ]


(ii) [Co(NH₃ )₆] CISO₄


उत्तर (i) पोटैशियम हेक्सासायनो क्रोमेट (III) 


(ii) हेक्साऐमीन कोबाल्ट (III) क्लोरो सल्फेट


प्रश्न 15. अष्टफलकीय संकरों के निर्माण की व्याख्या VBT किस प्रकार करती है?



 उत्तर VBT के अनुसार, [Co(H₂O)₆]²⁺में sp³d² संकरण पाया जाता है तथा इसकी संरचना अष्टफलकीय होती है।


यह बाह्य कक्षक संकुल है, क्योंकि इसमें दो बाह्य d-कक्षक (nd) संकरण में भाग लेते हैं तथा इसमें तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं। इसमें दुर्बल लिगैण्ड (H₂O) उपस्थित है और इसकी प्रकृति अनुचुम्बकीय है।



प्रश्न 16. [Fe(CN)₆]⁴⁻ तथा [Fe(H₂O)₆]²⁺के तनु विलयनों के रंग भिन्न होते हैं क्यों?


उत्तर दोनों संकुल यौगिकों में Fe की ऑक्सीकरण अवस्था + 2 तथा विन्यास 3d⁶ है। अर्थात् इनके पास चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है। दुर्बल क्षेत्र लिगैण्ड, H₂O की उपस्थिति में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं हो पाता है जबकि प्रबल क्षेत्र लिगैण्ड, CN⁻ की उपस्थिति में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है। अतः कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं रहता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में अंतर के कारण दोनों संकुल आयन भिन्न रंग देते हैं।


प्रश्न 17. धातु कार्बोनिलों में आबंध की प्रकृति की विवेचना कीजिए ।



उत्तर धातु कार्बोनिलों के धातु-कार्बन आबंध में s-तथा p-दोनों के गुण पाए जाते हैं। M-Cσआबंध कार्बोनिल समूह के कार्बन पर उपस्थित इलेक्ट्रॉन युग्म को धातु के रिक्त कक्षक में दान करने से बनता है। M-Cπआबंध धातु के पूरित d-कक्षकों में से एक इलेक्ट्रॉन युग्म को कार्बन मोनोऑक्साइड के रिक्त प्रतिआबंधन π-कक्षक में दान करने से बनता है। धातु से लिगैण्ड का आबंध एक सहक्रियाशीलता का प्रभाव उत्पन्न करता है जो CO व धातु के मध्य आबंध को मजबूत बनाता है।


प्रश्न 18. CuSO₄. 5H₂O का रंग नीला है जबकि CuSO₄ रंगहीन क्यों?


उत्तर CuSO₄ .5 H₂O में H₂O लिगण्ड है परिणामस्वरूप यह क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन करता है अत: d-d संक्रमण सम्भव है। इस प्रकार CuSO₄.5H₂O रंगीन है। निर्जल CuSO₄ में H₂O लिगैण्ड की अनुपस्थिति में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन सम्भव नहीं है। अतः यह रंगहीन है।



 प्रश्न 19. संकुल के द्वारा अवशोषित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य तथा संकुल के प्रेक्षित रंग में क्या सम्बन्ध है?



 उत्तर जब श्वेत प्रकाश संकुल यौगिक पर पड़ता है तो इसका कुछ अंश अवशोषित हो जाता है। क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा जितनी अधिक होगी, संकुल द्वारा अवशोषित तरंगदैर्ध्य उतनी ही होगी। प्रेक्षित रंग अवशेष तरंगदैर्ध्य द्वारा उत्पन्न होता है।


प्रश्न 20. VBT के आधार पर [FeF₆]⁻ से संकुल आयन की संरचना एवं चुम्बकीय प्रकृति बताइए। 



उत्तर VBT के अनुसार, [FeF₆]³⁻ में sp³d² संकरण पाया जाता है तथा इसकी संरचना अष्टफलकीय होती है। यह बाह्य कक्षक संकुल है क्योंकि इसमें दो बाह्य d-कक्षक (nd) संकरण में भाग लेते हैं तथा इसमें पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं। इसमें दुर्बल लिगैण्ड (F) उपस्थित है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण इसकी प्रकृति अनुचुम्बकीय होती है।


प्रश्न 21. एक संकुल यौगिक को जब सिल्वर नाइट्रेट के साथ अभिक्रिया करवाते हैं तो सिल्वर क्लोराइड का अवक्षेप प्राप्त होता है। इसके विलयन की मोलर चालकता कुल दो आयनो के संगत है। यौगिक का नाम तथा सूत्र दीजिए।



उत्तर AgNO₃ के साथ सफेद अवक्षेप का बनना दर्शाता है कि कम से कम एक CI आयन समन्वय मंडल के बाहर उपस्थित है। पुनश्चः केवल दो आयन विलयन में प्राप्त होते हैं अतः केवल एक CI⁻ समन्वय मंडल के बाहर होगा अतः संकुल का सूत्र [Co(H₂O)₄Cl₂] CI है तथा इसका नाम टेट्राएक्वाडाइक्लोरो कोबाल्ट (III) क्लोराइड है।




लघु उत्तरीय प्रश्न 3 अंक


प्रश्न 1. लिगैण्ड क्या है? आवेश के आधार पर इन्हें किस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है? दो उदाहरण दीजिए।


अथवा लिगैण्ड क्या है? दो उदाहरण दीजिए।


उत्तर 


लिगैण्ड कोई भी परमाणु या आयन जिसमें केन्द्रीय परमाणु को इलेक्ट्रॉन युग्म देने की क्षमता हो, लिगैण्ड कहलाता है।


आवेश के आधार पर लिगैण्ड, ऋणात्मक, उदासीन अणु अथवा धनात्मक (जिनके पास देने के लिए कम-से-कम एक इलेक्ट्रॉन युग्म हो) हो सकते हैं। 


उदाहरण ऋणात्मक लिगैण्ड—CN⁻  NO⁻₂ उदासीन लिगैण्ड-H₂O, NH₃, तथा धनात्मक लिगैण्ड — NO⁺₂, NO⁺, NH⁺₄ आदि ।


प्रश्न 2. संयोजकता बन्ध सिद्धान्त की क्या सीमाएँ हैं?


 उत्तर इस सिद्धान्त की सीमाए निम्नलिखित हैं



(i) इस सिद्धान्त में अनेक पूर्वानुमान करने पड़ते हैं। 


(ii) इससे समन्वयी संख्या 4 वाले संकुलों की संरचना की सही व्याख्या नहीं होती।


(iii) इस सिद्धान्त से चुम्बकीय आँकड़ों की मात्रात्मक व्याख्या नहीं की जा सकती है।


(iv) इससे उपसहसंयोजक यौगिकों के रंग की व्याख्या नहीं होती है।


(v) इससे उपसहसंयोजक यौगिकों के गतिक तथा ऊष्मागतिकीय स्थायित्व की मात्रात्मक व्याख्या नहीं की जा सकती है।

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