परिश्रम सफलता की कुंजी है' पर निबंध / parishram saphalata ki kunjee hai par nibandh in hindi

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परिश्रम सफलता की कुंजी है' पर निबंध / parishram saphalata ki kunjee hai par nibandh in hindi

'परिश्रम सफलता की कुंजी है' पर निबंध / parishram saphalata ki kunjee hai par nibandh in hindi


'परिश्रम सफलता की कुंजी है' पर निबंध / parishram saphalata ki kunjee hai par nibandh


Essay on 'importance of hard work' in Hindi / परिश्रम का महत्त्व पर निबंध



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परिश्रम सफलता की कुंजी है 

या 

परिश्रम का महत्त्व


(2019, 20)


रूपरेखा - (1) प्रस्तावना, (2) स्वावलम्बी की विशेषताएँ, (3) स्वावलम्बन के लाभ, (4) स्वावलम्बियों के उदाहरण (5) स्वावलम्बन की शिक्षा, (6) उपसंहार।


प्रस्तावना - स्वावलम्बन जीवन के लिए परमावश्यक है। यह प्रतिभावान मनुष्य का लक्षण है, उन्नति का मूल है, बड़प्पन का साधन है और सुखमय जीवन का स्रोत है। स्वावलम्बन का अर्थ अपना सहारा या अपने ऊपर निर्भर होना है। स्वावलम्बी व्यक्ति या राष्ट्र ही स्वतन्त्र रह सकता है। जो देश या व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरों का मुँह ताकते हैं, वे स्वतन्त्र नहीं रह सकते। यह शारीरिक तथा आध्यात्मिक उन्नति का साधन है। अंग्रेजी की एक प्रसिद्ध कहावत है- "God helps those who help themselves." अर्थात् ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। प्रसिद्ध कहावत बिना मरे स्वर्ग किसने देखा' भी सही अर्थों में स्वावलम्बन की ही शिक्षा देती है।


स्वावलम्बी की विशेषताएँ- स्वावलम्बी व्यक्ति स्वतन्त्र होता है। उसका अपने पर अधिकार होता है। वह बड़े-बड़े धनिकों तथा शक्तिवानों की भी परवाह नहीं करता । तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास ने 'सन्तन को कहा सीकरी सो काम' कहकर अकबर का निमन्त्रण ठुकरा दिया था। स्वावलम्बी व्यक्ति सबके साथ विनम्रता का व्यवहार करके अपने काम में संलग्न रहता है। उस पर चाहे कितनी भी विपत्ति क्यों न आ जाए, किसी भी बाधा के सामने वह हार नहीं मानता तथा हमेशा अपने कार्य में सफल होता है। स्वावलम्बी सरलता का व्यवहार करता है, किसी के साथ छल-कपट नहीं करता। उसमें त्याग, तपस्या और सेवाभाव होता है, लालच नहीं होता। वह स्वाभिमान की रक्षा के लिए बड़े-से-बड़े वैभव को तिनके के समान त्याग देता है। उसमें असीम उत्साह और आत्मविश्वास होता है।


स्वावलम्बन के लाभ- स्वावलम्बन का गुण प्रत्येक परिस्थिति में लाभकारी होता है। स्वावलम्बी व्यक्ति आत्मविश्वास के कारण उन्नति कर सकता है। उसमें स्वयं काम करने एवं सोचने-विचारने की सामथ्यं होती है। वह किसी भी काम को करने के लिए किसी के सहारे की प्रतीक्षा नहीं करता। वह अकेला ही कार्य करने के लिए आगे बढ़ता है। उसे अपना काम करने में सच्चा आनन्द मिलता है। जिस प्रकार बैसाखी के सहारे चलने वाले व्यक्ति की बैसाखी छीन ली जाए तो उसका चलना बन्द हो जाता है उसी प्रकार जो व्यक्ति दूसरों के सहारे की आशा करता है, उसका मार्ग निश्चित ही अवरुद्ध होता है।


नेपोलियन बोनापार्ट के कथनानुसार, 'असम्भव शब्द मूर्खों के शब्दकोश में होता है।' विघ्न-बाधाएँ स्वावलम्बियों के मार्ग को अवरुद्ध नहीं कर पातीं। महापुरुषों ने स्वावलम्बन के कारण ही उन्नति की है। स्वावलम्बी की सभी प्रशंसा करते हैं। उसे यश और गौरव की प्राप्ति होती है।


स्वावलम्बियों के उदाहरण-संसार के सभी महापुरुष स्वावलम्बन के कारण ही महान् बने हैं। छत्रपति शिवाजी ने थोड़े-से मराठों को एकत्र कर हिन्दुओं की निराशा से रक्षा की थी। एक लकड़हारे का लड़का अब्राहम लिंकन स्वावलम्बन से ही अमेरिका का राष्ट्रपति बना था। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने स्वावलम्बन का पाठ पढ़ा और विज्ञान के क्षेत्र में नाम कमाया। माइकल फैराडे प्रारम्भ में जिल्दसाजी का कार्य किया करते थे, पर स्वावलम्बन के बल पर ही वे संसार के महान् वैज्ञानिक बने। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर दीन ब्राह्मण की सन्तान थे, किन्तु भारत में उन्होंने जो यश अर्जित किया, उसका रहस्य स्वावलम्बन ही है। कवीन्द्र रवीन्द्र ने नदी के तट पर मात्र दस विद्यार्थियों को बैठाकर ही शान्ति निकेतन की स्थापना की थी। गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में स्वावलम्बन के बल पर गोरे शासकों के अत्याचारों का दमन किया था। उन्होंने आत्मबल के द्वारा ही भारत को परतन्त्रता के पाश से मुक्त कराया था। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज' का संगठन करके अंग्रेजों के छक्के छुड़ाये थे।


स्वावलम्बन की शिक्षा-स्वावलम्बन का गुण वैसे तो किसी भी आयु में हो सकता है, परन्तु बालकों में यह शीघ्र उत्पन्न किया जा सकता है। उन्हें ऐसी परिस्थिति में डालकर जहाँ कोई सहारा देने वाला न हो, स्वावलम्बन का पाठ सिखाया जा सकता है। आजकल स्वावलम्बन की विशेष आवश्यकता है। प्रकृति से भी हमें स्वावलम्बन की शिक्षा मिलती है। पशु-पक्षियों के बच्चे जैसे हो चलने-फिरने लगते हैं, वे अपना रास्ता स्वयं खोज लेते हैं और अपना घर स्वयं बनाते हैं। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम बात-बात में सरकार का मुँह ताकते हैं और आवश्यकता की पूर्ति न होने पर हम उसे दोषी तो ठहराते हैं, पर अपनी उन्नति के लिए स्वयं कुछ नहीं करते। किसी विचारक ने ठीक ही कहा है कि "पतन से भी महत्त्वपूर्ण पतन यह है कि किसी को स्वयं पर ही भरोसा न हो।"


उपसंहार- इस प्रकार स्वावलम्बन उन्नति की प्रथम सीढ़ी है। स्वावलम्बन से जीवन-भर शान्ति और सन्तोष प्राप्त होता है। इससे निडरता, परिश्रम और धैर्य आदि गुणों का विकास होता है। इसी से समाज और राष्ट्र की उन्नति होती है। स्वावलम्बन पर सब प्रकार का वैभव निछावर किया जा सकता है। गुप्त जी ने कहा भी है—


'स्वावलम्बन की एक झलक पर, निछावर है कुबेर का कोष।'

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