पाठ-योजना निर्माण की आवश्यकता व महत्व / Teaching Lesson Plan's importance

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पाठ-योजना निर्माण की आवश्यकता व महत्व / Teaching Lesson Plan's importance

पाठ-योजना निर्माण की आवश्यकता व महत्व / Teaching Lesson Plan's importance


पाठ-योजना निर्माण की आवश्यकता व महत्व // पाठ - योजना निर्माण के प्रकार




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पाठ-योजना निर्माण, पाठ योजना निर्माण के सिद्धांत, 


Need and Importance of Lesson Plan //  Lesson - Types of Planning




पाठ-योजना निर्माण 


(formation of lesson plan) - किसी भी प्रक्रण या विषय को सरलतम, सुव्यवस्थित तथा  क्रमबद्ध ज्ञान प्रदान करने की उद्देश्य से बनाई गई पूर्व योजना ही पाठ योजना कहलाती है ।


पाठ - योजना निर्माण का उद्देश्य व्यवस्थित ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ अध्यापको को विषय क्षेत्र से बाहर जाने से रोकता है।


पाठ - योजना निर्माण की विशेषताएँ :


● पाठ - योजना में प्रकरण को सदैव सरल से जटिल की ओर ले जाना चाहिए।


•पाठ - योजना सदैव बालको की आयु तथा उनके कक्षा के स्तर के अनुकूल होनी चाहिए।


•पाठ- योजना में व्यक्तिगत विभिन्नाओं को ध्यान में रखते  हुए विविध प्रकार के प्रश्नों का प्रयोग किया जाना चाहिए |


•पाठ - योजना बनाते समय उदाहरण के रूप में सदैव उन्हीं वस्तुओं तथा तथ्यों का प्रयोग किया जाना चाहिए जिसके बारे में बालको को पहले से ही जानकारी हो ।


•पाठ - योजना में ज्ञात से अज्ञात की ओर आगे बढ़ना चाहिए अर्थात् नवीन अधिगम की प्रक्रिया को बालको के पूर्व ज्ञान से जोड़ते हुए आगे बढ़ना चाहिए ।



पाठ- योजना निर्माण चार प्रकार से किया जाता है -


 अर्थात पाठ - योजना को चार तरह से बनाया जाता है।


1- हरबर्ट उपागम (Herbertian approch)


2- मॉरिशन उपागम / इकाई योजना ( Unit plan)


3- R.C.E.M. उपागम / Reginal college of Education) मैसूर


4- N.C.E.R.T. उपागम / ब्लूम की टैक्सोनॉमी ( National Council of Education reseach an traning )



हरबर्ट उपागम (Herbertian)-



यह सबसे प्राचीन उपागम है। जिसके आधार पर पाठ योजना बनाई जाती है हरबर्ट ने अपनी पाठ-योजना को पांच पदो में विभाजित किया है ।


इसी लिए इन्हें पंचपदीय प्रणाली का जनक माना जाता है। हरबर्ट ने अपनी पंचपदीय प्रणाली के पांचो पदों को एक क्रम से प्रस्तुत किया है -


1- तैयारी (Preparation)


2-प्रस्तुतीकरण (Presentantian)


3- तुलना (Comparison ) 


4- सामान्यीकरण  (Generalization) 


5- अनुप्रयोग/ प्रयोग/ पुनरावृत्ति (Application)


1- तैयारी (Preparation) :-  तैयारी के अन्तर्गत शिक्षण विधियों का चयन, प्रकरण का चयन, पाठ- योजना निर्माण ,प्रस्तुतीकरण, उपयुक्त T.L.M. का चयन, चार्ट, मॉडल, ग्लोब इत्यादि । के प्रयोग द्वारा प्रस्तावना प्रश्नों की सहायता से बालको के पूर्व ज्ञान को जांच कर नवीन ज्ञान ग्रहण करने के लिए उन्हें मानसिक रूप से तैयार करना है ।


2. प्रस्तुतीकरण  ( Presentation) :- प्रस्तुतीकरण सहायता से अध्यापक शिक्षण कौशलों का चयन कर अपने प्रकरण को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते है । प्रस्तुतीकरण इतना प्रभावी होना चाहिए कि सभी छात्र उसे आसानी से समझकर उसे अपने शब्दों में अभिव्यक्त कर सकें।


 3. तुलना ( Comparison): - इसके अन्तर्गत शिक्षण के सत्यता की जांच की जाती है कि शिक्षण कितना प्रभावी है । बालक तथा शिक्षक दोनों अपनी पूर्व एवं वर्तमान स्थिति के बीच तुलना करते है ।


4- सामान्यीकरण (Generalization ) : - इस चरण में बालक अपने प्रकरण को सीखकर उसे किसी भी परिस्थिति में प्रयोग करने के योग्य बन जाता है । अर्थात उसमें उस प्रकरण के प्रति समझ विकसित हो जाती है।


5- अनुप्रयोग / प्रयोग / पुनरावृत्ति (Application):

इसके अन्तर्गत छात्रों को लिखित प्रश्न, गृहकार्य, प्रोजेक्ट वर्क इत्यादि दिया जाता है । ताकि वे अपने ज्ञान का प्रयोग या प्रकरण की पुनरावृत्ति कर सकें।


मॉरिशन उपागम या इकाई योजना (Unit plan) 



मॉरिशन उपागम को इकाई पाठ योजना के नाम से जाना जाता है। इस उपागम के प्रवर्तक शिकागो यूनिवर्सिटी कैलीफोर्निया के प्रोफेसर डा० H.C. मॉरिशन थे। इन्होंने 1926 में इस उपागम को प्रस्तुत किया । इन्होने ने यह माना कि शिक्षण प्रक्रिया में यदि विषय वस्तुओं को इकाईयो तथा उपइकाइयों में विभाजित कर पढ़ाया जाएं तो उसे समझना और भी अधिक आसान हो जाता है।


इसी लिए इन्होंने अपनी पाठ्य योजना को 5 इकाइ‌यों में विभाजित किया है-



1- खोज (Exploration)


 2-प्रस्तुतिकरण (presentation)


3- आत्मीकरण  (Assimilation)


4- संगठन (organisation)


5- वाचन (Recitation)



1- खोज (exploration):- मॉरिशन उपागम की इस इकाई में अध्यापक और छात्र दोनो परस्पर मिलकर अपने पूर्व ज्ञान विचारों, तथा अनुभवों को एक दूसरे के साथ साझा करते हैं। अध्यापक शिक्षण के दौरान इस प्रकार से प्रश्नों को प्रस्तुत करते है कि बालक में खोज तथा जिज्ञासा की भावना को विकसित किया जा सकें।


2- प्रस्तुतिकरण (presentation): इस इकाई के अन्तर्गत अध्यापक अपनी पाठ्य योजना के एक इकाई को छात्रों के मध्य प्रस्तुत करते है । इसमें शिक्षण कौशलो का प्रयोग, दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग तथा T.L.M.  को इतने प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाता है कि छात्र उस इकाई को आसानी से समझ लेते है। 


3 -आत्मीकरण / आत्मसातीकरण (Assimilation)-


 इस इकाई में छात्रों को कक्षागत परिस्थितियों में पस्पर वार्तालाप, विचार -विमर्श प्रश्न पूछना तथा इकाइयों को लिखना इत्यादि का अवसर दिया जाता है। ताकि छात्र उस सम्पूर्ण इकाई को आत्मसात या ग्रहण कर सके ।


4.संगठन ( organization):-. संगठन से तात्पर्य क्रमबद्ध या व्यवस्थित ज्ञान से होता है इस इकाई में छात्र अपने संगठित ज्ञान अपने शब्दों में या नई परिस्थितियों में प्रयोग करना सीख जाते है ।


5 .वाचन (Recitation) : वाचन को इकाई पाठ्य योजना का अंतिम चरण माना गया माना गया है। वाचन को दो उपइकाइयों में विभाजित किया गया है।


आदर्श वाचन- इसमें छात्र किसी इकाई को बिल्कुल उसी प्रकार पढ़ते है जिस प्रकार अध्यापक ने पढ़ा होता है।


वास्तविक वाचन : वास्तविक वाचन छात्रों के स्वयं के अनुभवों व विचारों पर आधारित होता है। इसमें छात्र उस इकाई को समझकर अर्थपूर्ण ढंग से उसे प्रस्तुत करते है।


R.C.E.M. उपागम ( Regianal college of education Masoor


 इस उपागम के प्रवर्तक Regional College of Education Maysoor के प्रो. डॉ. दबे थे।


इन्होंने यह माना कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त अधिक प्रभावी नहीं होता है बल्कि इसमें मानसिक क्रियाओं का सक्रिय प्रयोग किया जाना चाहिए।


इन्होंने तकनीकि शिक्षण के प्रभाव को अधिक महत्व दिया तथा अपने उपागम को तीन चरणों में विभाजित किया - 


1- अदा (input) -


 2- प्रक्रिया  (Process) -


3- प्रदा (out put )


अदा (Input) : अदा के अन्तर्गत आपेक्षित व्यवहारिक परिवर्तनों को निर्धारित किया गया है । अर्थात् जिन उद्देश्यों को आधार मानकर शिक्षण कार्य किया जाता है । उसे अदा में रखते है।


प्रक्रिया (Process ):


उन निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षण कार्य किया जाता है। तथा छात्रों को स्व क्रिया द्वारा स्वयं सीखने तथा अनुभव करने का अवसर दिया जाता है।


इस चरण में अभिप्रेरणा का निरन्तर प्रयोग किया जाता है । अध्यापक तथा छात्र दोनों की क्रियायें इसमें शामिल होती है।


प्रदा (Output) - इसके अंतर्गत छात्रों के व्यवहारिक परिवर्तन को रखा गया है। इसे छात्र का अन्तिम व्यवहार भी कहते हैं


इसमें मापक उपकरणों द्वारा, या लिखित तथा मौखिक परीक्षाओं के द्वारा, छात्रों के अन्तिम व्यवहार को जाँचा जाता है।


 N.C.E.R.T उपागम / ब्लूम की टैक्सोनॉमी bloom taxonomy :


 प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ब्लूम ने शिक्षण उद्देश्यों को ध्यान में रखकर शिक्षण प्रक्रिया के तीन पक्ष मानें है।


1- संज्ञानात्मक पक्ष - (Cognitive domain)


2- भावात्मक पक्ष ( Affective domain )


3- क्रियात्मक पक्ष (Psychomotor damain)


संज्ञानात्मक पक्ष-


ब्लूम की टैक्सोनॉमी के अनुसार संज्ञानात्मक पक्ष के 6 चरण होते हैं -


1- ज्ञान (knowledge)


2- बोध/ अबोध (understanding)


3- अनुप्रयोग (implication)


4- विश्लेषण (analysis)


5- संश्लेषण (synthesis)


6. मूल्यांकन (Evaluation)




1- ज्ञान (knowledge):  पाठ योजना के इस चरण  में अध्यापक अपने छात्रों के पूर्व ज्ञान व अनुभवों को जाँच कर किसी प्रकरण या विषय वस्तु को इस प्रकार प्रस्तुतकर्ता करता है । कि वे उसे जान तथा पहचान सकें ।


2- बोध ( understanding): बोध का संबंधं समझ से होता है अर्थात इस चरण पर बालक किसी विषय वस्तु को | समझने का प्रयास करता है T


3-अनुप्रयोग (implication): इस चरण में बालक को अपने सीखें गये ज्ञान को प्रयोग करने का अवसर दिया जाता है । जिससे बालक व्यवहारिक परिस्थितियों में उस ज्ञान का प्रयोग करने में सफल हो जाता है।


4-विश्लेषण (analysis): विश्लेषण से तात्पर्य विस्तृत अध्ययन से है अर्थात् जब बालक के द्वारा प्रकरण के प्रत्येक बिन्दु का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। तो उसे विश्लेषण कहते हैं।


5-संश्लेषण( synthesis): संश्लेषण का अर्थ है संक्षिप्त करना अर्थात जब बालक किसी सम्पूर्ण प्रकरण के सार या अर्थ को समझ लेता है तो उसे संश्लेषण कहते है ।


6- मूल्यांकन (Evaluation)  : ज्ञानात्मक पक्ष का अन्तिम चरण मूल्यांकन होता है। जिसमें बालक अपने सीखे गए ज्ञान का तथा सीखने में रह कई कमियों का स्वयं मूल्यांकन करता है।


भावात्मक पक्ष. भावात्मक का सम्बन्ध हमारे हृदय से होता है जिसके अन्तर्गत हमारी आदतें, रुचियां संवेग, मूल्य आते हैं। ब्लूम की टैक्सोनॉमी के अनुसार भावात्मक पक्ष के 5 चरण है- 


1-आग्रहण (receiving)


2-अनुक्रिया करना/ प्रतिक्रिया करना( responding)


3- मूल्य निर्धारण (valuing)


4- व्यवस्थापन (organisation)


5- चरित्रीकरण  (characterization)


क्रियात्मक पक्ष-


क्रियात्मक पक्ष को भी 5 चरणों में विभाजित किया है क्रियात्मक पक्ष का संबंध हमारे हाथों से या शरीर की शक्रिय गतिशीलता से होता है, जिसमे लेखन, कला, पेटिंग आते है।



1- प्रत्यक्षीकरण (perception)


 2-मनोस्थिति (mentalset)


3-निर्देशित प्रतिक्रिया (guided response)


4-कार्य कौशल (mechanism)


5- जटिल वाह्य व्यवहार  (complex external behaviour)







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