पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते हैं || पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार
नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम आपको पर्यावरण प्रदूषण के बारे में जानकारी देंगे। दोस्तों अगर आप पर्यावरण प्रदूषण के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो यह पोस्ट आपके लिए useful साबित हो सकती है तो आप लोग पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़िएगा।
![]() |
पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते हैं || पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार |
अथवा प्रदूषण और मानव समाज (2017)
अथवा प्रदूषण की समस्या एवं समाधान (2019)
अथवा पर्यावरण प्रदूषण (2019, 17)
अथवा प्रदूषण : एक अभिशाप (2016)
अथवा पर्यावरण प्रदूषण : समस्या एवं रोकथाम (2018)
अन्य शीर्षक:- पर्यावरण प्रदूषण: समस्या एवं रोकथाम: पर्यावरण की सुरक्षा (2016, 14): प्रदूषण की समस्या (2019, 14,12,10)
संकेत बिंदु:- भूमिका, प्रदूषण के प्रकार और कारण, प्रदूषण से होने वाली हानियां, प्रदूषण को रोकने के उपाय, उपसंहार।
भूमिका:- प्रदूषण का अर्थ है-वायुमंडल या वातावरण का दूषित होना। पृथ्वी पर उपस्थित जीवो के लिए संतुलित वातावरण की आवश्यकता है, जिसमें हर तत्व एक निश्चित मात्रा में उपस्थित रहता है। यदि इनमें से किसी में जरा-सा भी असंतुलन हो जाए, तो वातावरण विषैला हो जाता है। यही प्रदूषण है।
प्रदूषण के प्रकार और कारण:- जनसंख्या और उद्योगों के बढ़ने के साथ-साथ प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। प्रदूषण तीन प्रकार का होता है-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण। जल प्रदूषण मुख्यत: नदियों, समुद्रों तथा अन्य जलाशयों में उद्योगों और शहरों की अन्य गंदी नालियों के दूषित जल के मिलने से होता है। उद्योगों से निकलने वाले दूषित जल में रसायनों की अधिकता कई गंभीर बीमारियों को जन्म देती हैं।
वायु प्रदूषण उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले जहरीले धुंए तथा सड़कों पर चलने वाले वाहनों से निकलने वाले दूषित धुंए के कारण होता है। विकास की अंधी दौड़ के कारण वनों की बेरहमी से कटाई भी वायु प्रदूषण को बढ़ाने में सहायता कर रही है। ध्वनि प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले शोर, घरों तथा सार्वजनिक स्थलों में बजने वाले टेप रिकॉर्डर आदि की आवाजों से होता है। इसके कारण बहरेपन की समस्या उत्पन्न हो रही है।
प्रदूषण से होने वाली हानियां:- प्रदूषण की समस्या के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार जनसंख्या वृद्धि है। इस जनवृद्धि के कारण ही ग्रामों, नगरों तथा महानगरों को विस्तार देने की आवश्यकता अनुभव हो रही है परिणाम स्वरूप जंगल काटकर वहां बस्तियां बसाई जा रही है। वृक्षों और वनस्पतियों की कमी के कारण प्रकृति की स्वाभाविक क्रिया में असंतुलन पैदा हो गया है। प्रकृति जो जीवनोपयोगी सामग्री जुटाती है, उसकी उपेक्षा हो रही है। प्रकृति का स्वस्थ वातावरण दोस्त पूर्ण हो गया है। यही पर्यावरण की सबसे बड़ी समस्या है। कारखानों की अधिकता के कारण वातावरण प्रदूषित हो रहा है साथ ही वाहनों तथा मशीनों से उत्पन्न होने वाला शोर ध्वनि प्रदूषण को जन्म देता है, जिससे मानसिक तनाव व श्रवण दोष तथा कान के अन्य कई रोग उत्पन्न होते हैं। इस शोर-गुल के कारण मनुष्य अनेक प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों का शिकार बनता जा रहा है।
जब तक मनुष्य प्रकृति के साथ अपना तालमेल व संतुलन स्थापित नहीं करता, तब तक उसकी औद्योगिक प्रगति व्यर्थ है। इस प्रगति को नियंत्रण में रखने की आवश्यकता है। हमें चाहिए की मशीनें हम पर शासन ना कर बैठें, बल्कि हम उन पर शासन करें। हम ऐसे औद्योगिक विकास से विमुख रहें, जो हमारे सहज जीवन में बाधा डालते हों। हम वनों, पर्वतों, जलाशयों और नदियों के वरदान से वंचित न हों। नगरों के साथ-साथ ग्राम भी संपन्न बने रहे, क्योंकि अनेक आयाम ऐसे हैं कि नगरों की आवश्यकताएं ग्रामों पर ही निर्भर हैं। नगर संस्कृति के साथ-साथ ग्रामीण संस्कृति का भी विकास होना आवश्यक है।
प्रदूषण को रोकने के उपाय:- समय रहते ही प्रदूषण से बचने के उपाय कर लिए जाने चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ियों को इसके खतरों से बचाया जा सके। इसके लिए जनसंख्या को नियंत्रित करना होगा। कारखानों के कचरे को नदियों में बहने से रोकना होगा। पेट्रोल में मिलाए जाने वाले सीसा की मात्रा कम करनी होगी। वृक्षारोपण पर जोर देना होगा।
![]() |
पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते हैं || पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार |
उपसंहार:- यद्यपि सरकारी स्तर पर पर्यावरण को सही रखने तथा प्रदूषण को रोकने के कई उपाय किए गए हैं, लेकिन प्रदूषण तब तक नहीं रूक सकेगा, जब तक यह जन-जन का आंदोलन न बन जाए। वस्तुत: पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है, जिससे वैश्विक स्तर पर ही निपटना संभव है, किंतु इसके लिए प्रयास स्थानीय स्तर पर भी किए जाने चाहिए।
विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं है, अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं। संतुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा। हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है। विकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी आवश्यक है, किंतु ऐसा करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि इससे पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान न हो।
एक टिप्पणी भेजें