सदाचार पर निबंध / Sadachar par nibandh
सदाचार पर निबंध / Sadachar par nibandh
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सदाचार
प्रस्तावना - कोई आपकी ईमानदारी, आपकी सच्चाई, आपकी बुद्धिमत्ता अथवा आपकी अच्छाई के बारे में नहीं जान पाता, जब तक आप अपने कार्य द्वारा उदाहरण प्रस्तुत न करें। प्रत्येक परिवार तथा उसके सदस्य एक समाज के अंग हैं। उस समाज से सम्बन्धित कुछ नियम तथा मर्यादाएँ हैं। इन मर्यादाओं का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी-न-किसी सीमा तक अनिवार्य होता है। सत्य बोलना, चोरी न करना, दूसरों का भला सोचना और करना, सबसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करना तथा स्त्रियों का सम्मान करना और उनकी ओर बुरी नजर न डालना आदि कुछ ऐसे गुण हैं जो सदाचार के अन्तर्गत आते हैं। सदाचार का सार यह है कि व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की स्वतन्त्रता का अतिक्रमण किए बिना अपना गौरव बनाए रहे।
सदाचार का अर्थ- सदाचार का अर्थ है- अच्छा नैतिक व्यवहार, व्यक्तिगत आचरण और चरित्र। दूसरे शब्दों में सदाचार, व्यवहार और कार्य करने का उचित और स्वीकृत तरीका हैं। सदाचार जीवन को सहज, आसान, सुखद और सार्थक बनाता है। मनुष्य भी एक जन्तु ही है लेकिन यह सदाचरण ही है, जो उसे बाकी जन्तुओं से अलग करता है।
सच्चरित्रता एक नैतिक गुण - सच्चरित्रता सदाचार का सबसे बड़ा गुण होता है। सदाचारी व्यक्ति का हर जगह गुणगान होता है। सच्चरित्र विशेषताएँ ही मानव को अलग और श्रेष्ठ बनाती हैं। तर्क और नैतिक आचरण ही ऐसे गुण हैं जो मनुष्यों को श्रेष्ठतम की श्रेणी में लाते हैं। तर्क और नैतिक निर्णय लेने की क्षमता जैसे असाधारण लक्षण केवल मनुष्यों में ही पाए जाते हैं।
समाज एक स्रोत–सच्चरित्रता एक नैतिक गुण होता हैं। हम समाजीकरण की प्रक्रिया के दौरान, अनेक नैतिक मानदंडों और मानकों का अधिग्रहण कर सकते हैं। बच्चे समाज के अन्य सदस्यों के साथ बातचीत करते समय नैतिक मूल्यों का अनुकरण कर सीख सकते हैं। इसके अतिरिक्त रीति-रिवाज भी नैतिक आचरण का एक स्रोत है, जिसे समाजीकरण की प्रक्रिया के दौरान विकसित किया जा सकता है।
जन्मजात गुण–पियाजे कोहलबर्ग आदि मनोवैज्ञानिकों के सिद्धांतों के अनुसार बच्चे नैतिक मानकों के साथ पैदा होते हैं और बड़े होने पर उन्हें विकसित करते हैं। ये वे नैतिक मूल्य होते हैं जो हमारे माता-पिता और परिवार से हमें विरासत में मिलते हैं।
मानव-जीवन में सदाचार का महत्व - मानव जीवन में सदाचार का बहुत महत्त्व होता है। इसमें सबसे प्रमुख वाणी की मधुरता मायने रखती है। क्योंकि आप लाख दिल के अच्छे हों, लेकिन अगर आपकी भाषा अच्छी नहीं, तो सब किए-कराए पर पानी फिर जाता है। हमें कई बार लोगों की बहुत सी बातें चुभती हैं जिन्हें नजरअंदाज करना ही अच्छा माना जाता है।
संयम सदाचार का गुण-अक्सर लोग हमारे साथ अच्छा आचरण नहीं करते। हमें शारीरिक और मानसिक यातना भी झेलनी पड़ सकती है, उस स्थिति में भी स्वयं पर संयम रखना सदाचरण कहलाता है।
सामाजिक नियम - हम मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं, अत: समाज के नियमों का पालन करना हमारा नैतिक एवं मौलिक कर्त्तव्य बनता है। हमने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ऐसा कहते हुए सुना है कि अगर समाज में रहना है तो सामाजिक नियमों को मानना ही पड़ता है।
सम्मान संस्कार का अभिन्न अंग-सदाचरण हमें सबका सम्मान करना सिखाता है। इज्जत और सम्मान हर किसी को अच्छा लगता है और यह हमारे संस्कार का अभिन्न हिस्सा भी है। बड़ों को ही नहीं वरन् छोटों को भी सम्मान देना चाहिए। क्योकि अगर आप उनके सम्मान की अपेक्षा रखते हैं तो आपको भी वही इज्जत उन्हें भी देनी होगी। सम्मान देने पर ही हमें भी सामने से सम्मान मिलता है। छोटों से तो विशेषकर अच्छे से बात करना चाहिए, क्योंकि वे बड़ों को देखकर ही अनुकरण करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन की यात्रा बिना बाधा के निरंतर चलती रहे, तो उसके लिए हम जैसे अपेक्षा स्वयं के लिए करते हैं वैसा ही दूसरों के साथ भी करना चाहिए।
सनातन धर्म की सीख-सच बोलना चाहिए किन्तु अप्रिय सत्य नहीं, यहीं सनातन धर्म है। किसी को मन, वचन और कर्म से दुःख नहीं पहुँचाना चाहिए। पुरुषों को पराई स्त्रियों को बुरी दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। उन्हें माता सरीखा आदर देना चाहिए। ये सभी बातें सदाचरण की सूची में आती हैं।
उपसंहार – एक अच्छा आचरण या व्यवहार ही सदाचरण की श्रेणी में आता है। अच्छे आचरण से आप सबका मन मोह सकते हैं। शिष्टाचार, सदाचार से थोड़ा भिन्न होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक दुराचारी व्यक्ति भी शिष्ट आचरण कर सकता है, किन्तु एक सदाचारी मनुष्य कभी अशिष्ट नहीं हो सकता है और न ही दुराचार कर सकता है। प्राय: लोग इसे एक ही समझते हैं और इसमें भेद नहीं कर पाते।
"इत्र से कपड़ों को महकाना कोई बड़ी बात नहीं, मजा तो तब है जब आपके किरदार से खुशबू आये।"
अच्छा आचरण ही ऐसा हथियार है जिसके प्रयोग से हम इस दुनिया से जाने के बाद भी लोगों की यादों में हमेशा जीवित रहते हैं। मनुष्य इस संसार में खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही चले जाना है। यह हमारे सत्कर्म और सदाचरण ही होते हैं जो हमें इस दुनिया में अमर करते हैं।
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