भ्रष्टाचार की समस्या पर निबंध // Corruption essay in Hindi
Bhrashtachar ki paribhasha
Bhrashtachar ki samasya aur samadhan
भारत में भ्रष्टाचार की समस्या
प्रस्तावना
भ्रष्टाचार देश की संपत्ति का आपराधिक दुरुपयोग है। 'भ्रष्टाचार' का अर्थ है - 'भ्रष्ट आचरण' अर्थात नैतिकता और कानून के विरुद्ध आचरण। जब व्यक्ति को ना तो अंदर की लज्जा या धर्माधर्म का ध्यान रहता है (जो अनैतिकता है ) और ना बाहर गार्डन रहता है (जो कानून की अवहेलना है) तो वह संसार में जगन से जगन ने पाप कर सकता है, अपने देश, जाति व समाज को बड़ी से बड़ी हानि पहुंचा सकता है, यहां तक कि मानवता को भी कलंकित कर सकता है। दुर्भाग्य से आज भारत इस भ्रष्टाचार रूपी शहरों मुख वाले दानों की जड़ों में फस कर बहुत तेजी से विनाश की ओर बढ़ता जा रहा है। अतः इस दारुण समस्या के कारणों एवं समाधान पर विचार करना आवश्यक है।
भ्रष्टाचार के विविध रूप
पहले किसी घोटाले की बात सुनकर देशवासी चौक जाते थे, आज नहीं चौंकते। पहले घोटालों के आरोपी लोक लज्जा के कारण अपना पद छोड़ देते थे, किंतु आज पकड़े जाने पर भी वह कुछ राजनेता इस शान से जेल जाते हैं जैसे वे किसी राष्ट्र सेवा के मिशन पर जा रहे हो। इसीलिए समूह प्रशासन तंत्र में भ्रष्ट आचरण धीरे-धीरे सामान बनता जा रहा है। आज भारतीय जीवन का कोई भी क्षेत्र सरकारी या गैर सरकारी, सार्वजनिक या निजी - ऐसा नहीं , जो भ्रष्टाचार से अछूता हो। इसीलिए भ्रष्टाचार इतने आ गणित रूपों में मिलता है कि उसे वर्गीकृत करना सरल नहीं है। फिर भी उसे हैं मुख्यत: 4 वर्गों में बांटा जा सकता है- (1) राजनीतिक,. (2) प्रशासनिक, (3) व्यवसायिक एवं (4) शैक्षणिक।
राजनीतिक भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार का सबसे प्रमुख रूप यही है जिसकी छत्रछाया में भ्रष्टाचार के शेष सारे रूप पनपते और संरक्षण पाते हैं। इसके अंतर्गत मुख्यता लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव जीतने के लिए अपनाया गया भ्रष्ट आचरण आता है। संसार में ऐसा कोई भी कुकृत्य, अनाचार या हथकंडा नहीं है जो भारतवर्ष में चुनाव जीतने के लिए ना अपनाया जाता हो। यही कारण है कि चुनावों में विजई दल ही सरकार बनाता है, जिससे केंद्र और प्रदेशों की सारी राजसत्ता उसी के हाथ में आ जाती है। इसलिए 'येन- केन- प्रकारेण' अपने दल को विजयी बनाना ही राजनीतिज्ञों का एकमात्र लक्ष्य बन गया है। इन राजनेताओं की शनि दृष्टि ही देश में जातीय प्रवृत्तियों को उभारती एवं देशद्रोहियों को पनपाती है। देश की वर्तमान दुरावस्था के लिए यह भ्रष्ट राजनेता ही दोषी हैं। आने के कारण देश में अनेकानेक घोटाले हुए हैं।
प्रशासनिक भ्रष्टाचार
इसके अंतर्गत सरकारी, अर्ध सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं , संस्थानों, प्रतिष्ठानों या सेवाओं (नौकरियों) में बैठे हुए सारे अधिकारी आते हैं जो जातिवाद, भाई- भतीजावाद, किसी प्रकार के दबाव या कामिनी - कांचनी के लोबिया अन्याय किसी कारण से अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्तियां करते हैं, उन्हें पदोन्नत करते हैं, स्वयं अपने कर्तव्य की अवहेलना करते हैं और ऐसा करने वाले अधीनस्थ कर्मचारियों को आश्रय देते हैं या अपने किसी भी कार्य आचरण से देश को किसी मोर्चे पर कमजोर बनाते हैं। चाहे वह गलत कोटा - परमिट देने वाला अफसर हो या सेना के रहस्य विदेशों के हाथ बेचने वाला सेना अधिकारी या ठेकेदारों से रिश्वत खाकर शीघ्र ढह जाने वाले सेतु, सरकारी भवनों आदि का निर्माण करने वाला इंजीनियर या अन्याय पूर्ण फैसले करने वाला न्यायाधीश या अपराधी को आश्रय देने वालों वाला पुलिस अफसर, भी इसी प्रकार के भ्रष्टाचार के अंतर्गत आते हैं।
व्यावसायिक भ्रष्टाचार
इसके अंतर्गत विभिन्न पदार्थों में मिलावट करने वाले, घटिया माल तैयार करके बढ़िया के मोल बेचने वाले, निर्धारित दर से अधिक मूल्य वसूलने वाले, वस्तु विशेष का कृत्रिम अब आओ पैदा करके जनता को दोनों हाथों से लूटने वाले, कर चोरी करने वाले एवं अन्याय भ्रष्ट तौर- तरीके अपनाकर देश और समाज को छीन एवं कमजोर बनाने वाले व्यवसाई आते हैं।
शैक्षणिक भ्रष्टाचार
शिक्षा जैसा पवित्र क्षेत्र भी भ्रष्टाचार के संक्रमण से अछूता नहीं रहा। अतः आज डिग्री से अधिक सिफारिश, योग्यता से अधिक चापलूसी का बोलबाला है। परिश्रम से अधिक बल धन में होने के कारण शिक्षा का निरंतर पतन हो रहा है।
भ्रष्टाचार के कारण
भ्रष्टाचार की गति नीचे से ऊपर को ना होकर ऊपर से नीचे को होती है अर्थात भ्रष्टाचार सबसे पहले उच्चतम स्तर पर पनपता है और फिर क्रमशः नीचे की ओर फैलता जाता है। यह कहावत है - 'यथा राजा तथा प्रजा'। इसका यह हास्य कदापि नहीं है कि भारत में प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचारी है। लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि भ्रष्टाचार से मुक्त व्यक्ति इस देश में अपवाद स्वरूप ही मिलते हैं।
इसका कारण है वह भौतिकवादी जीवन दर्शन, जो अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से पश्चिम से आया है। यह जीवन पद्धति विशुद्ध भोगवादी है- 'खाओ, पियो और मौज करो' ही इसका मूल मंत्र है। यह परम्परागत भारतीय जीवन दर्शन के पूरी तरह विपरीत है। भारतीय मनीषियों ने चार पुरुषार्थों - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि को ही मानव जीवन का लक्ष्य बताया है। मानव धर्म पूर्वक अर्थ और काम का सेवन करते हुए मोक्ष का अधिकारी बनता है। पश्चिम मैं धर्म और मोक्ष को कोई जानता तक नहीं। वहां तो बस अर्थ (धन- वैभव) और काम (सांसारिक सुख - भोग या विषय- वासनाओं की तृप्ति) ही जीवन का परम पुरुषार्थ माना जाता है। पश्चिम मैं जितनी भी वैज्ञानिक प्रगति हुई है, उस सब का लक्ष्य भी मनुष्य के लिए सांसारिक सुख भोग के साधनों का अधिकाधिक विकास ही है।
भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय
भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए।
प्राचीन भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहन
जब तक अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से भोगवादी पाश्चात्य संस्कृति प्रचारित होती रहेगी, भ्रष्टाचार कम नहीं हो सकता। अतः सबसे पहले देशी भाषाओं, विशेषकर संस्कृत की शिक्षा अनिवार्य करनी होगी। भारतीय भाषाएं जीवन मूल्यों की प्रचारक और पृष्ठ पोषक हैं। उनसे भारतीयों में धर्म का भाव सुधार होगा और लोग धर्म भीरु बनेंगे।
चुनाव- प्रक्रिया में बदलाव या परिवर्तन
वर्तमान चुनाव पद्धति के स्थान पर ऐसी पद्धति अपनानी पड़ेगी, जिसमें जनता स्वयं अपनी इच्छा से भारतीय जीवन मूल्यों के प्रति समर्पित ईमानदार व्यक्तियों को खड़ा करके बिना धन व्यय के चुन सके। ऐसे लोग जब विधायक या संसद सदस्य बनेंगे तो ईमानदारी और देशभक्ति का आदर्श जनता के सामने रखकर स्वच्छ शासन प्रशासन दे सकेंगे। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और जो विधायक या सांसद अवसरवादीता के कारण दल या पार्टी बदले, उन्हें की सदस्यता समाप्त कर दोबारा से चुनाव में खड़े होने की व्यवस्था पर रोक लगानी होगी। जाति और धर्म के नाम का सहारा लेकर वोट मांगने वालों को चुनाव प्रक्रिया से ही प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। जब जब चपरासी और चौकीदारों के लिए भी योग्यता निर्धारित होती है तब, विधायकों और सांसदों के लिए क्यों नहीं ?
अस्वाभाविक प्रतिबंधों की समाप्ति
सरकार ने कोटा - परमिट आदि के जो हजारों प्रतिबंध लगा रखे हैं, उनसे व्यापार बहुत कुप्रभावित हुआ है। फलत: व्यापारियों को विभिन्न विभागों में बैठे अफसरों को खुश करने के लिए भांति भांति के भ्रष्ट हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। ऐसी स्थिति में भले और ईमानदार लोग व्यापार की ओर उन्मुख नहीं हो पाते। इन प्रतिबंधों की समाप्ति से व्यापार में योग्य लोग आएंगे जिससे स्वस्थ प्रतियोगिता को बढ़ावा मिलेगा और जनता को अच्छा माल सस्ते दर पर मिल सकेगा।
कर प्रणाली का सरलीकरण
सरकार ने हजारों प्रकार के कर लगा रखे हैं, जिनके बोझ से व्यापार पनप नहीं पाता। इसके फलस्वरूप व्यापारी को अनैतिक हथकंडे अपनाने को विवश होना पड़ता है अतः सरकार को सैकड़ों करों को समाप्त करके कुछ गिने-चुने कर ही लगाने चाहिए। इन करों की वसूली प्रक्रिया भी इतनी सरल और सुगम हो कि अशिक्षित या अल्प शिक्षित व्यक्ति भी अपना कर सुविधा पूर्वक जमा कर सके और भ्रष्ट तरीके अपनाने को बाध्य ना हो। इसके लिए देशी भाषाओं का प्रत्येक स्तर पर प्रयोग नितांत वांछनीय है।
शासन और प्रशासन व्यय में कटौती
आज देश के शासन और प्रशासन (जिसमें विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास भी सम्मिलित है), पर इतना अंधाधुंध व्यय हो रहा है कि जनता की कमर टूटती जा रही है। इस व्यय में तत्काल बहुत अधिक कटौती करके सर्वत्र सादगी का आदर्श सामने रखा जाना चाहिए, जो प्राचीन काल से ही भारतीय जीवन पद्धति की विशेषता रही है। साथ ही केंद्रीय और प्रादेशिक सचिवालय और देश भर के प्रशासनिक तंत्र के बेहद भारी- भरकम ढांचे को छांट कर छोटा किया जाना चाहिए।
देशभक्ति की प्रेरणा देना
सबसे महत्वपूर्ण है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में आमूल- चूल परिवर्तन कर उसे देशभक्ति को केंद्र में रखकर पुनर्गठित किया जाए। विद्यार्थी को, चाहे वह किसी भी धर्म मत या संप्रदाय का अनुयायी हो, आरंभ से ही देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाए। इसके लिए प्राचीन भारतीय इतिहास ,संस्कृति, भारतीय महापुरुषों के जीवन चरित्र आदि पाठ्यक्रम में रहकर विद्यार्थी को अपने देश की मिट्टी, इसकी परंपराओं मान्यताओं एवं संस्कृति पर्व कर्म करना सिखाया जाना चाहिए।
कानून को अधिक कठोर बनाना
भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून को भी अधिक कठोर बनाया जाए। इसके लिए वर्षों से चर्चा का विषय बने 'लोकपाल विधेयक' को यद्यपि पास किया जा चुका है तथापि भारत जैसे देश; जहां प्रत्येक स्तरों पर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी ही व्याप्त है; के लिए यह अभी भी नाकाफी है।
सारांश या उपसंहार
भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे को आता है, इसलिए जब तक राजनेता देश भक्त और सदाचारी ना होंगे, भ्रष्टाचार का उन्मूलन असंभव है। उपयुक्त राजनेताओं के चुने जाने के बाद ही ऊपर बताए गए सारे उपाय अपनाए जा सकते हैं, जो भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने में पूर्णत: प्रभावी सिद्ध होंगे। आज प्रत्येक व्यक्ति की जुबान पर एक ही प्रश्न है कि क्या होगा इस महान सनातन राष्ट्र का ? कैसे मिटेगा यह भ्रष्टाचार अत्याचार और दुराचार? यह तभी संभव है जब चरित्रवान तथा सर्वस्व- त्याग और देश सेवा की भावना से भरे लोग राजनीति में आएंगे और लोक चेतना के साथ जीवन को जोड़ेंगे।
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