ठोस अवस्था नोट्स // Chemistry class 12th chapter 1 solid state notes

Ticker

ठोस अवस्था नोट्स // Chemistry class 12th chapter 1 solid state notes

ठोस अवस्था नोट्स // Chemistry class 12th chapter 1 solid state notes


Class 12th chemistry chapter 1 solid state notes in Hindi 

Class 12th chemistry chapter 1 solid state notes in Hindi


अध्याय 01 ठोस अवस्था 


 ठोस अवस्था – द्रव्य की वह अवस्था, जिसमें अवयवी कण प्रबल अन्तराअणुक बलों द्वारा जालक में संवृत संकुलित रहते हैं तथा जिस कारण गति करने में असमर्थ रहते हैं, ठोस अवस्था कहलाती है।


ठोसों का वर्गीकरण


ठोसों को मुख्यतया दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जोकि निम्नलिखित हैं


(i) क्रिस्टलीय ठोस


इसमें संरचनात्मक इकाई (अणु, परमाणु या आयन) एक निश्चित प्रकार से व्यवस्थित रहते हैं तथा इस निश्चित प्रकार की इकाई की लगातार पुनरावृत्ति होती है, अतः क्रिस्टलीय ठोसों में कणों की दीर्घ परासी व्यवस्था होती है तथा इनके ज्यामितीय अभिविन्यास निश्चित होते हैं, क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं।


क्रिस्टलीय ठोसों को वास्तविक ठोस माना जा सकता है। साधारण नमक (NaCl),सुक्रोस (C₁₂H₂₂O₁₁), हीरा, क्वार्ट्ज, सिल्वर, ग्रेफाइट, आदि क्रिस्टलीय ठोसों के उदाहरण हैं। 


अवयवी कणों के मध्य बन्धन-बलों के आधार पर क्रिस्टलीय ठोसों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है


(a) आण्विक ठोस इनमें अणुओं के मध्य वाण्डर वाल्स बल उपस्थित होने के कारण ये मृदु तथा निम्न गलनांक वाले होते हैं। ये विद्युत के कुचालक होते हैं। उदाहरण CCl₄ (S), I₂(s) आदि


(b) आयनिक ठोस इनमें धनायनों तथा ऋणायनों (अवयवी कणों) के मध्य प्रबल विद्युत स्थैतिक बल उपस्थित होते हैं, जिस कारण ये कठोर होते हैं तथा इनके गलनांक उच्च होते हैं। गलित अवस्था या जलीय विलयन में ये विद्युत के चालक होते हैं। उदाहरण NaCl, KNO₃, आदि ।


(c) धात्विक ठोस ये विद्युत के चालक, आघातवर्धनीय और तन्य होते हैं। धातुओं

की विद्युत चालकता, चमक, रंग, आदि गुण इनमें उपस्थित मुक्त इलेक्ट्रॉनों के कारण होते हैं। उदाहरण Ag, Fe, Cu आदि।


(d) सहसंयोजक ठोस अधात्विक क्रिस्टलीय ठोसों के क्रिस्टल में निकटवर्ती परमाणुओं के मध्य प्रबल तथा दिशात्मक सहसंयोजक बन्ध होते हैं, अतः इन्हें सहसंयोजक अथवा क्रिस्टल ठोस कहते हैं। इनके गलनांक उच्च होते हैं तथा गलित अवस्था में ये विद्युतरोधी होते हैं। उदाहरण हीरा, सिलिकॉन कार्बाइड, ग्रेफाइट (परन्तु विद्युत का चालक), आदि।


(i) अक्रिस्टलीय ठोस


इनमें संरचनात्मक इकाइयों की व्यवस्था केवल लघु परासी होती है, अर्थात् इनमें कणों के व्यवस्था क्रम अनियमित होते हैं, अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं।


उदाहरण काँच, रबड़, प्लास्टिक, आदि।


क्रिस्टल जालक या त्रिविम जालक


क्रिस्टलीय ठोसों में अवयवी कणों (परमाणु, अणु अथवा आयन) की एक निश्चित ज्यामिति में त्रिविम व्यवस्था होती है। इस त्रिविम व्यवस्था को ही क्रिस्टल जालक कहते हैं, अर्थात् त्रिविम आकाश में क्रिस्टल इकाइयों (अवयवी कणों) की नियमित व्यवस्था को क्रिस्टल जालक या त्रिविम जालक कहते हैं। ये क्रिस्टलीय जालक एक विमीय, द्विविमीय या त्रिविमीय हो सकते हैं।


(i) यदि अवयवी कण एक निश्चित दूरी पर सरल रेखा में पुनरावृत्ति करते हैं, तो एकविमीय जालक बनता है। 


(ii) यदि अवयवी कणों की किसी तल में पुनरावृत्ति होती है, तो द्विविमीय जालक बनता है।


(iii) यदि अवयवी कणों की त्रिविम में पुनरावृत्ति होती है, तो त्रिविम जालक बनता है।


इकाई सेल या मात्रक कोष्ठिका


इकाई सेल या मात्रक कोष्ठिका किसी क्रिस्टल में सूक्ष्मतम जालक बिन्दुओं का वह समूह है, जिसकी त्रिआयामी पुनरावृत्ति करने पर क्रिस्टल का सम्पूर्ण जालक प्राप्त होता है।


इकाई सेल (एकक कोष्ठिका) मुख्यतया निम्नलिखित दो प्रकार की होती है


(i) आद्य या सरल या मूलभूत एकक कोष्ठिका


वह एकक कोष्ठिका जिसमें अवयवी कण केवल कोष्ठिका के कोनों पर ही उपस्थित होते हैं, आद्य एकक कोष्ठिका कहलाती है।


(ii) केन्द्रित एकक कोष्ठिका


वह एकक कोष्ठिका जिसमें अवयवी कण कोनों के अतिरिक्त अन्य स्थितियों पर भी स्थित होते हैं, केन्द्रित एकक कोष्ठिका कहलाती है। केन्द्रित एकक कोष्ठिका पुनः निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है


(a) अन्तः (काय) केन्द्रित एकक कोष्ठिका यदि अवयवी कण कोनों के अतिरिक्त एकक कोष्ठिका के केन्द्र में भी उपस्थित हों, तो यह अन्तः (काय) केन्द्रित एकक कोष्ठिका कहलाती है।


(b) फलक केन्द्रित एकक कोष्ठिका यदि अवयवी कण एकक कोष्ठिका के कोनों के अतिरिक्त प्रत्येक फलकों के केन्द्र पर भी स्थित हों, तो यह फलक केन्द्रित एकक कोष्ठिका कहलाती है।


(c) अन्त्य (आधार) केन्द्रित एकक कोष्ठिका इस प्रकार की एकक कोष्ठिका में अवयवी कण कोनों के अतिरिक्त किन्हीं दो विपरीत फलकों के केन्द्र पर भी स्थित रहते हैं।


ठोसों में संकुलन


 ठोसों में अवयवी कण इस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं, कि उनके मध्य रिक्त स्थान कम हो। इस व्यवस्था से जो संरचना निर्मित होती है, उसे निबिड़ संकुलित संरचना (Close packed structure) कहते हैं।







बिन्दु दोष


घटक कणों की सामान्य आवर्ती व्यवस्था में विचलन से उत्पन्न दोष बिन्दु दोष कहलाते हैं। ये निम्न दो प्रकार के होते हैं



(i) रससमीकरणमितीय दोष



इसके कारण क्रिस्टल में धनायनों व ऋणायनों का अनुपात परिवर्तित नहीं होता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं



(a) शॉट्की दोष – वह दोष जो क्रिस्टल में धनायन तथा ऋणायन के समान संख्या में अपने स्थानों से लुप्त होने के कारण निर्मित रिक्त स्थानों के कारण होता है, शॉट्की दोष कहलाता है। इस प्रकार के दोष के उत्पन्न होने के लिए यह आवश्यक है, कि यौगिक उच्च आयनिक हो, उसकी समन्वय संख्या उच्च हो एवं धनायनों व ऋणायनों का आकार लगभग समान हो।



(b) रिक्तिका दोष –  यदि क्रिस्टल जालक से अवयवी कण अपने नियमित स्थान (जालक बिन्दु) से बाहर निकल जाते हैं, तो उत्पन्न दोष को रिक्तिका दोष कहते हैं। इस दोष के कारण पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है।साधारणतया पदार्थ को गर्म करने पर इस प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं। इस कारण इसे ऊष्मागतिकी दोष (Thermodynamic defect) नाम भी दिया गया है। 



 उदाहरण NaCl, KCI, CSCI, AgBr, आदि।



(c) फ्रेंकेल दोष –  यह दोष भी साधारणतया आयनिक ठोसों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसमें लघुत्तर आयन (साधारणतया धनायन) अपने वास्तविक स्थान से लुप्त होकर अन्तराकाश में चला जाता है, जिससे वास्तविक स्थान पर रिक्तिक दोष तथा नए स्थान पर अन्तराकाशी दोष उत्पन्न हो जाते हैं, अतः इसे विस्थापन दोष भी कहते हैं। यह ठोस के घनत्व को परिवर्तित नहीं करता है। यह दोष उन आयनिक यौगिकों द्वारा दर्शाया जाता है, जिनमें आयनों के आकार में अधिक अन्तर होता है। 



उदाहरण  – ZnS, AgCI, AgBr, Agl, आदि। 



AgBr फ्रेंकेल और शॉट्की दोनों ही दोष दर्शाता है।



(d) अन्तराकाशी दोष – जब कुछ अवयवी कण (परमाणु अथवा अणु) अन्तराकाशी स्थल पर पाए जाते हैं, तब उत्पन्न दोष अन्तराकाशी दोष कहलाता है। यह दोष पदार्थ के घनत्व को बढ़ा देता है। आयनिक ठोसों में सदैव विद्युत उदासीनता बनी रहती है, अतः यह दोष दिखाई नहीं देता है। यह दोष अनआयनिक ठोसों में दिखाई देता है।



(ii) अरस-समीकरणमितीय दोष


इनमें धनायनों व ऋणायनों का अनुपात परिवर्तित हो जाता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं


(a) धातु आधिक्य दोष – जब किसी क्षारीय हैलाइड, जैसे-NaCl को क्षार धातु की वाष्प में गर्म किया जाता है, तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं। क्लोराइड आयन क्रिस्टल की सतह में से विसरित हो जाते हैं और Na परमाणुओं के साथ मिलकर NaCl देते हैं। ऐसा Na आयन प्राप्त करने के लिए Na परमाणु से इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाने से होता है। मुक्त इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल के ऋणायनिक स्थान को अध्यासित कर लेता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरी जाने वाली इन ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F-केन्द्र कहते हैं। ये NaCl क्रिस्टलो को पीला रंग प्रदान करती हैं। यह रंग इन इलेक्ट्रॉनों द्वारा क्रिस्टल पर पड़ने वाले प्रकाश से ऊर्जा अवशोषित करके उत्तेजित होने के परिणामस्वरूप दिखाई पड़ता है। इससे क्रिस्टल में धातु (सोडियम) का आधिक्य हो जाता है, अतः इसे धातु आधिक्य दोष भी कहते हैं।



(b) धातु न्यूनता दोष – यह दोष परिवर्ती संयोजकता दर्शाने वाली धातुओं के यौगिकों, जैसे- FeO, FeS, NiO द्वारा दर्शाया जाता है।



(c) अशुद्धि दोष – यह दोष किसी बाह्य (भिन्न प्रकार के) आयन की उपस्थिति के कारण होता है। उदाहरण NaCl में SrCl, की सूक्ष्म मात्रा मिलाने पर कुछ Sr आयन Na+ का स्थान ले लेते हैं, अतः उत्पन्न रिक्तियों की संख्या SrCl₂मात्रा (मोलों की संख्या) के बराबर होती है।


अतः निबिड़ संकुलित संरचनाओं के निर्माण हेतु निम्नलिखित पद प्रयुक्त होते हैं


(i) एक विमीय निबिड़ संकुलन


(ii) द्विविमीय निबिड़ संकुलन


(iii) त्रिविमीय निबिड़ संकुलन


नोट समन्वय संख्या या उपसहसंयोजन संख्या किसी ठोस में किसी कण विशेष के सम्पर्क में स्थित कणों की संख्या को उस कण की समन्वय संख्या या उपसहसंयोजन संख्या कहते हैं।



संकुलन क्षमता किसी क्रिस्टल जालक में उपस्थित अवयवी कण जालक के कुल आयतन का जितना भाग घेरते हैं, उसे क्रिस्टल जालक की संकुलन क्षमता कहते हैं। 


संकुलन क्षमता =क्रिस्टल जालक के अवयवी कण का आयतन /क्रिस्टल जालक का कुल आयतन



रिक्तियाँ


यद्यपि क्रिस्टल जालक सघन संकुलित होते हैं, फिर भी गोलों के मध्य कुछ रिक्त स्थान रह जाते हैं, जिन्हें अन्तराल छिद्र या रिक्तियाँ कहते हैं।


(i) चार स्पर्शी गोलों के मध्य स्थित रिक्ति चतुष्फलकीय रिक्ति तथा छः गोलों के मध्य स्थित रिक्ति अष्टफलकीय रिक्ति कहलाती है।


(ii) यदि सघन संकुलित संरचना में गोलों की संख्या N हो, तो अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्या N तथा चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्या 2N होती है।




बहुविकल्पीय प्रश्न 1 अंक


प्रश्न 1. एक क्रिस्टलीय ठोस में होती है



(a) दीर्घ परास कोटि


(b) लघु परास कोटि


(c) अनिश्चित व्यवस्था


(d) उपरोक्त में से कोई नहीं


उत्तर (a) 


प्रश्न 2. ग्रेफाइट है


(a) आयनिक ठोस


(c) सहसंयोजी ठोस


(b) धात्विक ठोस


(d) आण्विक ठोस


उत्तर (c) 



प्रश्न 3. पोटैशियम सल्फेट है 


(a) आयनिक ठोस


(c) सहसंयोजक ठोस


(b) धात्विक ठोस


 (d) आण्विक ठोस


उत्तर (a) 


प्रश्न 4. सोडियम क्लोराइड क्रिस्टल की संरचना है 


(a) फलक केन्द्रित घन


 (c) विषमलम्बाक्ष (ऑथोरॉम्बिक) 


(d) चतुष्कोणीय


(b) एकनताक्ष (मोनोक्लीनिक)


उत्तर (a) 


प्रश्न 5. घनीय क्रिस्टलों में अक्षीय दूरियाँ अथवा कोर लम्बाई होती है 


(a) a = b = c


 (c) a≠ b≠ c


(b) a = b ≠ c


(d) a = β = λ = 120°


उत्तर (a) 


प्रश्न 6. निम्नलिखित में से किसमें प्रति एकक कोष्ठिका परमाणुओं की कुल संख्या 2 होती है?



(a) फलक केन्द्रित घनीय एकक कोष्ठिका 


(b) अन्तः केन्द्रित घनीय एकक कोष्ठिका


(c) आद्य घनीय एकक कोष्ठिका


(d) उपरोक्त में से कोई नहीं


उत्तर (b) 



प्रश्न 7. धातु न्यूनता दोष वाला क्रिस्टल है


(a) NaCl


(b) FeO


(c) KCI


(d) ZnO


उत्तर (b) 


प्रश्न 8. फ्रेंकेल तथा शॉट्की दोनों ही दोष प्रदर्शित करने वाला यौगिक है


(a) NaCl


(b) KCl


(c) CaCl


(d) AgBr


उत्तर (d) 



प्रश्न 9. शॉट्की दोष पाया जाता है


(a) NaCl में


(c) KBr में


(b) AgBr में


(d) इन सभी में


उत्तर (d) 



प्रश्न 1. जिन आयनिक ठोसों में धातु आधिक्य दोष के कारण ऋणायनिक रिक्तिका होती हैं, वे रंगीन होते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरण की सहायता से समझाइए ।


उत्तर हम धातु आधिक्य दोष की सोडियम क्लोराइड क्रिस्टल के उदाहरण द्वारा व्याख्या कर सकते हैं। जब NaCl के क्रिस्टल को सोडियम वाष्प के वातावरण में गर्म किया जाता है तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं। CI⁻आयन क्रिस्टल की सतह में विसरित हो जाते हैं तथा Na परमाणुओं के साथ जुड़कर NaCl देते हैं। ऐसा Na⁺ आयन बनाने के लिए Na परमाणु से इलेक्ट्रॉन के निकल जाने से होता है।



प्रश्न 2. साधारण नमक कभी-कभी पीले रंग का दिखाई देता है, क्यों?


 उत्तर NaCl में पीला रंग धातु आधिक्य दोष के कारण होता है जिसके कारण अयुग्मित इलेक्ट्रॉन ऋणायनिक रिक्तिकाओं को भर देते हैं। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरी ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F केन्द्र कहते हैं। ये इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होने के लिए प्रकाश से ऊर्जा अवशोषित करते हैं जो क्रिस्टल को दिखने में पीला बनाता है।


लघु उत्तरीय प्रश्न 4 अंक


प्रश्न 1. निम्न पदों को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।


(i) अन्तरकाशी दोष


(ii) F - केन्द्र



उत्तर (i) अन्तरकाशी दोष जब कुछ अवयवी कण (परमाणु अथवा अणु) अन्तरकाशी स्थल पर पाए जाते हैं, तब उत्पन्न दोष अन्तरकाशी दोष कहलाता है। यह दोष पदार्थ के घनत्व को बढ़ा देता है। आयनिक ठोसों में सदैव विद्युत उदासीनता बनी रहती है, अतः यह दोष दिखाई नहीं देता है। यह दोष अनआयनिक ठोसों में दिखाई देता है। 


(ii) F-केन्द्र जब किसी क्षारीय हैलाइड, जैसे- NaCl को क्षार धातु की वाष्प में गर्म किया जाता है, तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं। क्लोराइड आयन क्रिस्टल की सतह में से विसरित हो जाते हैं और Na परमाणुओं के साथ मिलकर NaCl देते हैं। ऐसा Na⁺ आयन प्राप्त करने के लिए Na परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाने से होता है। मुक्त इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल के ॠणायनिक स्थान को अध्यासित करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरी जाने वाली इन ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F - केन्द्र कहते हैं। ये NaCl क्रिस्टलों को पीला रंग प्रदान करती हैं। यह रंग इन इलेक्ट्रॉनों द्वारा क्रिस्टल पर पड़ने वाले प्रकाश से ऊर्जा अवशोषित करके उत्तेजित होने के परिणामस्वरूप दिखाई देता है। इससे क्रिस्टल में धातु (सोडियम) का आधिक्य हो जाता है, अत: इसे धातु आधिक्य दोष भी कहते हैं।




दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5 अंक


प्रश्न 1. (i) षट्कोणीय निबिड़ संकुलन तथा घनीय निबिड़ संकुलन से आप क्या समझते हैं?


(ii) चतुष्फलकीय रिक्ति तथा अष्टफलकीय रिक्ति की व्याख्या कीजिए।


उत्तर (i) षट्कोणीय निबिड़ संकुलन तथा घनीय निबिड़ संकुलन ये दोनों त्रिविमीय निबिड़ संकुलित संरचनाएँ द्विविम-षट्कोणीय निबिड़ संकुलित परतों को एक-दूसरे पर रखकर जनित की जाती हैं। षट्कोणीय निबिड़ संकुलन इस प्रकार की संरचना में द्वितीय परत की चतुष्फलकीय रिक्तियों को तृतीय परत के गोलों द्वारा आच्छादित किया जाता है। इस स्थिति में तृतीय परत के गोले प्रथम परत के गोलों के साथ पूर्णतया संरेखित होते हैं। इस प्रकार गोलों का पैटर्न एकान्तर पर्तो में पुनरावृत्त होता है। इस पैटर्न को प्राय: ABAB... लिखा जाता है। इस संरचना को षट्कोणीय निबिड़ संकुलित संरचना कहते हैं। यह Mg तथा Zn, आदि धातुओं में पायी जाती है।



(a) षट्कोणीय घनीय निबिड़ संकुलन का खण्डित दृश्य गोलों की परतों का संकुलन दर्शाते हुए


 (b) प्रत्येक स्थिति में चार परतें



घनीय निबिड़ संकुलन इस प्रकार की संरचना में तीसरी परत को दूसरी परत के ऊपर इस प्रकार रखते हैं, कि उसके गोले अष्टफलकीय रिक्तियों को आच्छादित करते हों। इस प्रकार की व्यवस्था को C प्रकार का कहा जाता है। केवल चौथी परत रखने पर उसके गोले प्रथम परत के गोलों के साथ संरेखित होते हैं।


इस प्रकार के पैटर्न को प्राय: ABC ABC... लिखा जाता है। इस संरचना को घनीय निबिड़ संकुलित संरचना (ccp) अथवा फलक केन्द्रित घनीय संरचना fcc कहा जाता है।


धातु, जैसे- ताँबा व चाँदी इस संरचना में क्रिस्टलीकृत होते हैं।


(ii) चतुष्फलकीय रिक्तियाँ ये रिक्तियाँ चार गोलों से घिरी रहती हैं, जो एक नियमित चतुष्फलक के शीर्ष पर स्थित होती हैं। जब भी द्वितीय परत का एक गोला प्रथम परत की रिक्ति के ऊपर होता है, तब एक चतुष्फलकीय रिक्ति बनती है। इन रिक्तियों को चतुष्फलकीय रिक्तियाँ इसलिए कहते हैं, क्योंकि जब इन चार गोलों के केन्द्रों को मिलाया जाता है,



तब एक चतुष्फलक बनता है। प्रति गोला चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्या 2 होती है। 


(ii) अष्टफलकीय रिक्तियाँ ये रिक्तियाँ सम्पर्क में स्थित तीन गोलों द्वारा संलग्नित रहती है। इसमें द्वितीय परत की त्रिकोणीय रिक्तियाँ, प्रथम परत की त्रिकोणीय रिक्तियों के ऊपर होती हैं तथा इनकी त्रिकोणीय आकृतियाँ अतिव्यापित नहीं होती हैं। उनमें से एक में त्रिकोण का शीर्ष ऊर्ध्वमुखी और दूसरे में अधोमुखी होता है। ये रिक्तियाँ 6 गोलों से घिरी रहती हैं, अत: इन्हें अष्टफलकीय रिक्तियाँ कहा जाता है। प्रति गोला अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्या 1 होती है।


Post a Comment

और नया पुराने

inside

inside 2