जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी
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जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी |
चिपको आंदोलन
पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि हमारा जीवन पूरी तरह से पर्यावरण पर ही आश्रित है। वहीं अगर हमारी जलवायु में थोड़ा सा भी बदलाव होता है।तो इसका सीधा असर हमारे शरीर पर पड़ता है।इसलिए पर्यावरण को सुरक्षित करना हम सभी का कर्तव्य है।
इसलिए हमें पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने और जंगलों के दहन के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रकृति की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन चलाया गया था।
जिसमें पेड़ों की हो रही कटाई का विरोध किया गया था। वही इस आंदोलन की खास बात यह थी कि महात्मा गांधी जी का अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए इस आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से किया गया था।
वहीं कब हुई चिपको आंदोलन की शुरुआत इस आंदोलन से क्या प्रभाव पड़ा और क्या रहे इस आंदोलन की उपलब्धियां समेत तमाम जानकारी हम आपको अपने इस आर्टिकल में देंगे लेकिन सबसे पहले हम आपको चिपको आंदोलन के स्लोगन के बारे में बताएंगे,
"क्या है जंगल के उपकार मिट्टी पानी और व्यास मिट्टी प्राणी और व्यास जिंदा रहने के आधार।"
इसी स्लोगन को चिपको आंदोलन के दौरान आधार बनाया गया। इसके साथ ही पर्यावरण को मानव जीवन से जोड़ते हुए चिपको आंदोलन की शुरुआत की गई।
जानिए चिपको आंदोलन का इतिहास और पूरी जानकारी-
चिपको का मतलब है।चिपकना इसलिए चिपको आंदोलन का सांकेतिक अर्थ है कि पेड़ों से चिपक जाना या गले लगाना और पेड़ों को बचाने के लिए प्राण दे देना इसके साथ ही चिपको आंदोलन से मतलब इस बात से भी है कि किसी भी हाल में प्राकृतिक संपदा पेड़ को नहीं काटने देना है अर्थात जान की परवाह किए बिना पेड़ों की रक्षा करना।
क्या है चिपको आंदोलन-
चिपको आंदोलन एक इकोफेमिनिस्ट आंदोलन था जिसका पूरा ताना-बाना महिलाओं ने ही बुना था। पर्यावरण की रक्षा के लिए चलाए गए आंदोलन को चिपको आंदोलन कहा गया पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और लगातार नष्ट हो रही वन संपदा के विरोध में उत्तराखंड के चमोली जिलों के किसानों ने यह आंदोलन चलाया था।
जब यह आंदोलन चलाया गया था तब उत्तराखंड के वन विभाग के ठेकेदार वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परंपरागत अधिकार जता रहे थे इसके बाद इस आंदोलन की जड़ पूरे भारत में तेजी से फैल गई शांति के मार्ग पर चलकर चिपको आंदोलन शुरू किया गया था।
चिपको आंदोलन की शुरुआत किसने की-
इस तरह पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रमुख रूप से इस आंदोलन को चलाया गया था। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि चिपको आंदोलन में गौरा देवी,सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट ने मुख्य भूमिका निभाई थी इसी वजह से गौरा देवी को हम चिपको विमान और सुंदरलाल बहुगुणा को वृक्ष मित्र के नाम से भी जाना जाता है।
चिपको आंदोलन की शुरुआत कब हुई-
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के विरोध में शुरू हुआ चिपको आंदोलन को अहिंसक सामाजिक और पारिस्थितिक आंदोलन भी कहा जाता है। इस आंदोलन को ग्रामीण इलाकों में मुख्य रूप से महिलाओं ने चलाया था पेड़ों की रक्षा के लिए इस आंदोलन का पूरा ताना-बाना महिलाओं नहीं बुना था।
इस आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले में साल 1973 में हुई थी। इस दौरान जंगल में करीब ढाई हजार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई थी तभी गौरा देवी नामक महिला ने अन्य महिलाओं के साथ इस नीलामी का विरोध किया था ।इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के फैसले में कोई बदलाव नहीं गया। लेकिन जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुंचे तो गौरा देवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को भी काट लेना इसके बाद पेड़ काटने आए ठेकेदारों को वापस जाना पड़ा था।
चिपको आंदोलन का विस्तार-
पर्यावरण और गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता चंडी प्रसाद भट्ट जिनको चिपको आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने साल 1964 में गांव के लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कुछ स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल कर एक सहकारी संगठन दशाओली ग्राम स्वराज संघ की स्थापना की।
जिससे यहां की लघु उद्योगों को भी बढ़ावा मिला वहीं जब सरकार ने सामान बनाने वाली कंपनी के लिए एक बड़ी जगह दे दी तब गांव वालों ने कृषि उपकरण बनाने के लिए पेड़ों को काटने से मना कर दिया। और जब गांव वालों की इस अपील को स्वीकार नहीं किया गया तब चंडी प्रसाद भट्ट ग्रामीणों के समर्थन में उतर गए और जंगल में आ गए ताकि वे लोग पढ़ना काट सके।
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