मेवाड़ मुकुट खंड काव्य की कथावस्तु का सारांश || (mewad mukut Khand ka ki kathavastu)

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मेवाड़ मुकुट खंड काव्य की कथावस्तु का सारांश || (mewad mukut Khand ka ki kathavastu)

मेवाड़ मुकुट खंड काव्य की कथावस्तु का सारांश || (mewad mukut Khand ki kathavastu)

नमस्कार दोस्तो स्वागत है आप सभी का हमारे इस पोस्ट में तू इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य की कथावस्तु बिल्कुल आसान भाषा में बताने वाले हैं तो आपको पोस्ट के अंत तक बने रहना है अगर आपको यह पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तों और मित्रों में जरूर शेयर करें।

मेवाड़ मुकुट खंड काव्य की कथावस्तु का सारांश || (mewad mukut Khand ka ki kathavastu)

Table of contents 

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए! 

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए! 

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के नायक कौन हैं?

मेवाड़ का इतिहास क्या है?

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के प्रथम और द्वितीय सर्ग की कथा लिखिए! 

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के प्रथम सर्ग अरावली का सारांश कथा संक्षेप में लिखिए! 

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के लक्ष्मी सर्ग (तृतीय सर्ग) की कथा संक्षेप में लिखिए!

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के दौलत सर्ग (चतुर्थ सर्ग) की कथावस्तु लिखिए! 

मेवाड़ मुकुट के आधार पर महाराणा प्रताप (नायक) का चरित्र चित्रण कीजिए! 

FAQ-question 


प्रश्न - 1  मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य की कथावस्तु कथासार संक्षेप में लिखिए! 


                             अथवा

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए! 


                             अथवा

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य  की घटनाओं पर प्रकाश डालिए! 

                              अथवा

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के प्रथम और द्वितीय सर्ग की कथा लिखिए! 


                               अथवा

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के प्रथम सर्ग अरावली का सारांश कथा संक्षेप में लिखिए! 


उत्तर -  गंगा रत्न पांडे द्वारा रचित मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य में महाराणा प्रताप के त्याग और साहित्य एवं बलिदान पूर्ण जीवन के एक मार्मिक कालखंड का चित्रण है! स्वतंत्रा प्रेमी प्रताप दिल्ली स्वर अकबर के युद्ध में पराजित होकर अरावली के जंगल में भटकते फिरते हैं! यहीं से कब का प्रारंभ होता है प्रस्तुत काव्य की कथावस्तु सात वर्गों में विभाजित है! 


अरावली सर्ग - की रचना पूर्व पीठिका  के रूप में की गई है हल्दीघाटी के मैदान में बड़ी वीरता से युद्ध करने के बाद भी महाराणा प्रताप की सेना पराजित हो जाती है ! उस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप सादनहीन होकर  अरावली के जंगलों में भटकते हैं! अरावली एक पर्वत श्रृंखला है जो राजस्थान के दक्षिण पूर्वी अंचल  में गौरव से सिर उठाए खड़ी है! महाराणा प्रताप शत्रु की कन्या दौलत को अपनी शरण में रख उससे पुत्रीवत् व्यवहार करता है! उनकी पत्नी लक्ष्मी अपने पुत्र को गोद में लिए वनवास में सीता के समान एक वृक्ष के नीचे बैठी है अरावली स्वतंत्रता के उपासक प्रताप की रक्षा में सन्नद्व हैं!


द्वितीय सर्ग -  का नामकरण महाराणा प्रताप की पत्नी लक्ष्मी के नाम पर हुआ है! इस वर्ग में उस दिन का चरित्र अंकित हुआ है ! रानी लक्ष्मी ने वैभव के दिन देखे हैं! और अब उसे निर्धनता का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है! लेकिन सच्ची भारतीय पत्नी और वीर क्षत्राणी के रूप में उसे अपने कष्टों की चिंता नहीं है ! वह कंदमूल फल खाकर व पृथ्वी पर सो कर धैर्य पूर्वक अपने दिन गुजार देती है ! उसके ह्रदय में उथल-पुथल मची हुई है! अपने बच्चे की दयनीय दशा देखकर वह कभी-कभी धीरज खो बैठती है! वह सोचती है कि राणा ने स्वतंत्रता नहीं भेजी इसलिए दुख मिल रहा है! वह उत्साहित होकर कह उठती है! " हमको नहीं डुबा पाएगा यह कष्टों का सागर ! "

तभी राणा कुटी के बाहर आकर रानी के जगाते रहने का कारण पूछते हैं! रानी की मनोदशा समझकर राणा प्रताप सजल नेत्र हो जाते हैं! 


तृतीय सर्गसर्ग-  का नामकरण काव्य के नाम पर हुआ है इसमें प्रताप के अंतर्द्वंद का चित्रण है! राणा प्रताप के सामने मेवाड़ की मुक्ति की विकराल समस्या है! वे अपने  भाई शक्ति सिंह के विश्वासघात से आहेत हैं! और उसके अकबर से मिल जाने का उन्हें दुख भी है! यह सोचकर भी उनका उत्साह कम नहीं होता वह जानते हैं! कि जब उसकी आत्मा अधिकारी की तो वह अवश्य ही लौट कर वापस आएगा वह मन ही मन प्रतिज्ञा करते हैं! कि वे मेवाड़ को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राण तक दे देंगे वह चेतक की संपत्ति तथा शत्रु पक्ष की कन्या दौलत के विषय में भी विचार करते हैं! तथा अनायास दौलत से मिलने के लिए चल देते हैं! 


चतुर्थ सर्ग - का नामकरण बालिका दौलत के नाम पर हुआ है! दौलत अकबर के मामा की बेटी है वह पण कुटी के पीछे एक वृक्ष की छाया में बैठी अपने विगत जीवन के बारे में विचार करती हुई कहती है! कि उस भोग विलास भरे जीवन में कटुता ही थी प्रति नहीं अकबर के साम्राज्यवादी की लिप्सा उसके कोमल हृदय में घृणा के बीज बो देती है! किंतु राणा प्रताप के प्रति उसके विचार पिता जैसी श्रद्धा से युक्त है!

 राणा के भाई सख्त सिंह पर दौलत का मन है! किंतु वह राणा के सम्मुख अपनी कहानी कहकर उनके दुख को और नहीं बढ़ाना चाहती! शक्तिसिंह और प्रताप की तुलना करती हुई कहती है! कि यह सूर्य है वह दीपक है दौलत को उसी समय बच्चों के पीछे से किसी की पदचाप सुनाई पड़ती है यहीं पर इस सर्ग का समापन हो जाता है! 

 

पंचम सर्ग - का शीर्षक चिंता है! दौलत के पास पहुंचकर राणा उसके एकांत चिंतन का कारण पूछते हैं! दौलत अपने को परम सुखी और निश्चिंत बताती हुई स्वयं राणा के रात दिन चिंतित रहने को ही अपनी चिंता का कारण बताती है! इसी प्रसंग में राणा प्रताप कहते हैं! कि वे रानी लक्ष्मी की आंखों में आंसू देख कर कुछ विचलित है! अत: दौलत राणा के साथ लक्ष्मी के पास जाकर उसके मन की पीड़ा को जानने और यथाशक्ति उसे दूर करने के लिए तत्पर हो जाती है! 

अपने पुत्र को गोद में लिटाये आए हुए रानी लक्ष्मी सोच रही है कि उसके कारण ही राणा अपने देश को त्यागकर जंगल में भटक रहे हैं! उसी समय दौलत का मीठा स्वर उसके कानों में गूंज उठता है! रानी और दौलत के वार्तालाप के इसी अवसर पर महाराणा प्रताप रानी को सूचना देते है! 


छठे सर्ग -  का शीर्षक पृथ्वीराज सर्ग है क्षितिज में अरूणाभा फैल जाने पर राणा सभी को यात्रा के लिए तैयार कर देते हैं उसी समय एक अनुच्छेद अकबर के दरबारी कवि पृथ्वीराज का पत्र लाकर राणा को दे देता है! वह पुत्र पढ़कर पृथ्वीराज से मिलने जाते हैं! पृथ्वीराज अपने और अपने जैसे अन्य राजपूत नरेश  स्वार्थ पूर्ण व्यवहार पर दुख प्रकट करते हुए कहते हैं! कि उन्होंने अपनी राजपूती मर्यादा को भूलकर अकबर का साथ दिया था! अब हम अकबर से प्रतिशोध लेकर मेवाड़ को पुनः प्राप्त करेंगे पृथ्वीराज यह भी बताता है कि भामाशाह सेना का प्रबंध करने के लिए साधन प्रस्तुत करेंगे! 


सप्तम सर्ग - का शीर्षक  भामाशाह के नाम पर है! राणा प्रताप एकांत में बैठकर बदली हुई परिस्थिति पर विचार करते हैं उसी समय भामाशाह पृथ्वीराज के साथ आकर जय जय कर करते हुए नतमस्तक हो जाते हैं! भामाशाह अपने पूर्वजों द्वारा सूचित अपार निधि राणा के चरणों में अर्पित करना चाहते हैं! परंतु राणा प्रताप दी हुई वस्तु को वापस लेना मर्यादा के अनुकूल नहीं मानते! 

प्रताप का यह वचन सुनकर भामाशाह कहता है कि क्या यह प्रत्येक नागरिक का पवन कर्तव्य नहीं है! कि वह देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दें ? भामाशाह की इस विनय पूर्ण अकाट्य तर्क को राणा प्रताप अस्वीकार नहीं कर पाते और भामाशाह को गले से लगा लेते हैं! या मेवाड़ मुकुट खंड काव्य की समाप्ति हो जाती! 


प्रश्न - 2 मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के लक्ष्मी सर्ग (तृतीय सर्ग) की कथा संक्षेप में लिखिए! 


                          अथवा

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश (कथानक) लिखिए


उत्तर- द्वितीय सर्ग का नामकरण महाराणा प्रताप की पत्नी लक्ष्मी के नाम पर हुआ है! इस वर्ग में उसी का चरित्र अंकित हुआ है रानी लक्ष्मी ने वैभव के दिन देखे हैं !और अब उसे निर्धांता का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है! लेकिन सच्ची भारतीय पत्नी और वीर क्षत्राणी के रूप में उसे अपने कष्टों की चिंता नहीं है वह कंदमूल फल खाकर व पृथ्वी पर सोकर देर पूर्वक अपने दिन गुजार देती है! 


प्रश्न - 3 मेवाड़ मुकुट  खंडकाव्य की तृतीय सर्ग प्रताप सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए! 


उत्तर- तृतीय सर्ग का नामकरण काव्य के नायक के नाम पर हुआ है! इसमें प्रताप के अंतदृंन्दृ का चित्रण है! राणा प्रताप के सामने मेवाड़ की मुक्ति की विकराल समस्या है! वह विचार मगन होकर एक पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगते हैं! कि उनकी पत्नी लक्ष्मी ने उनके साथ क्या-क्या कष्ट नहीं सहे हैं वह वन-वन मारी फिर रही है ! फिर भी वह अपने कर्तव्य पालन से विचलित नहीं हुई मुझे भी अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए वे अपने भाई शक्ति सिंह के विश्वासघात से आहत थे और उसके अकबर से मिल जाने को उन्हें दुख भी है! वे कहते है! 


शक्ति सिंह जिसको मैंने था बंधु बनाकर पाला! 


वह भी मुझसे दो्ह  कर गया निकला विषधर काला!! 


प्रश्न - 4  मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के दौलत सर्ग (चतुर्थ सर्ग) की कथावस्तु लिखिए! 


उत्तर- चतुर्थ सर्ग का नामकरण बालिका  दौलत के नाम पर हुआ है ! दौलत अकबर के मामा की बेटी है वह पूर्ण कुटी के पीछे एक वृक्ष की छाया में बैठी अपने विगत जीवन को याद कर रही है! वह अकबर के दरबार की और अपने विगत जीवन के बारे में विचार करती हुई कहती है! कि उस भोग विलास भरे जीवन में कटुता ही थी प्रति नहीं उसे बीते जीवन की तुलना में अपना वर्तमान जीवन अधिक सुखद मालूम होता है! 

मेवाड़ मुकुट खंड काव्य की कथावस्तु का सारांश || (mewad mukut Khand ka ki kathavastu)

प्रश्न -5 मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के आधार पर राणा प्रताप और भामाशाह के मध्य हुए वार्तालाप का वर्णन कीजिए! 


                                   अथवा

मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के सातवें में सर्ग भामाशाह का सारांश लिखिए! 


उत्तर - राणा प्रताप एकांत में बैठकर बदली हुई परिस्थिति पर विचार करते हैं! उन्हें लगता है कि उनके जीवन पथ में नीति अब नया मोड़ लाना चाहती है! तभी तो अकबर के मित्र कभी उनकी खोज करते हुए भामाशाह के साथ अरावली में आ पहुंचे हैं! उसी समय भामाशाह पृथ्वीराज के साथ आकर जय जयकार करते हुए नत मस्तक हो जाते हैं! भामाशाह अपने पूर्वजों द्वारा संचिता अपार निधि राणा के चरणों में अर्पित करना चाहते हैं! 


राजवंश ने जिनको जो कुछ दिया ना वापस लूंगा ! 


शेष प्राण है अभी देश हित हंस-हंस होम करूंगा!! 


प्रताप का यह वचन सुनकर भामाशाह कहता है! कि क्या देश हित में त्याग और बलिदान का अधिकार केवल राजवंश को ही है! क्या यह प्रत्येक नागरिक का पावन कर्तव्य नहीं है कि वह देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दें! भामाशाह के इस विनयपूर्ण को राणा प्रताप अस्वीकार नहीं कर पाते और एक क्षण को मौन रह जाते है! 


प्रश्न - 6 मेवाड़ मुकुट के आधार पर महाराणा प्रताप (नायक) का चरित्र चित्रण कीजिए! 

                          अथवा


मेवाड़ मुकुट खंड काव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए! 

                           अथवा


मेवाड़ मुकुट का नायक कौन है उसके चरित्र की विशेषताएं बताइए! 


उत्तर- महाराणा प्रताप मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के नायक है कवि ने इस काव्य में भारतीय इतिहास के विख्यात महापुरुष महाराणा प्रताप के त्याग संघर्ष देशभक्त उदारता और बलिदान का चित्रण किया है! महाराणा प्रताप के चरित्र की विशेषताएं इस प्रकार हैं! 


1 स्वतंत्रता प्रेमी - स्वतंत्रता का प्रेम प्रताप के रोम रोम में व्याप्त है भारत के सभी शासक अकबर की अधीनता स्वीकार कर लेते हैं! परंतु वह जब तक सांस है  स्वतंत्रता रहूंगा नहीं हो सकता कहते हुए पराधीनता स्वीकार नहीं करते और पराजित होकर भी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए युक्ति सोचते रहते हैं! 

मैं मातृभूमि को अपनी पुनः स्वतंत्र करूंगा ! 


या स्वतंत्रता की वेदी पर लड़ता हुआ मारूंगा!! 


2 देशभक्त-  प्रताप में देश प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ है वह मेवाड़ की मुक्ति के लिए अरावली की घाटियों में भटकते हुए भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होते अपना सर्विस कब आकर भी वे अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा के लिए कृत संकल्प है! वह देश - सेवा का आममरण व्रत लिए हुए हैं


मैं स्वदेश के हित जीवित हूं उसके लिए मारूंगा


3 उदार हृदय - प्रताप का ह्रदय अत्यधिक उदार है ! वे शत्रु की कन्या दौलत को भी पुत्री पालते हैं ! शक्ति सिंह के अकबर से मिल जाने को उसकी मूर्खता मानते हैं! और उसे क्षमा कर देते हैं ! उनके निम्नलिखित शब्दों से भाई के प्रति उनकी सहायता झलकती है! 


मेरा ही है मुझसे दूर कहां जाएगा


4 त्यागशील- राणा प्रताप में क्षत्रिय योचित त्याग - भावना विद्यमान है ! इसलिए वह भामाशाह के द्वारा सैन्य संगठन के लिए दिए जाने वाले और अपरिमित को भी स्वीकार करना उचित नहीं मानते! 


5- दृढ़ प्रतिज्ञ -  राणा प्रताप दृढ़ प्रतिज्ञ हैं ! वह अपने संकल्प को बार-बार दोहराते हैं ! वह प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक शरीर में शवास है मेवाड़ की भूमि को स्वतंत्र करके रहूंगा


जब तक तन में प्राण ,लड़ेगा, पल भर चैन ना लेगा ! 


सूर्य चंद्र टल जाये, किंतु व्रत उसका नहीं डालेगा!! 


राणा प्रताप अपने संकल्प और प्रतिज्ञा को कार्य रूप देने के लिए सदैव चिंतित रहते हैं! 


FAQ-question 


प्रश्न-मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के नायक कौन हैं?

उत्तर-महाराणा प्रताप मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के नायक हैं। कवि ने इस गांव में भारतीय इतिहास के विख्यात महापुरुष महाराणा प्रताप के त्याग संघर्ष देशभक्ति उदारता और बलिदान का चित्रण किया है।


प्रश्न-मेवाड़ का इतिहास क्या है?

उत्तर- यह है भारत के राजपूताना क्षेत्र में एक स्वतंत्र राज्य था। यह उदयपुर के नागदा आहार क्षेत्र के छोटे शासकों के रूप में सातवीं शताब्दी के आसपास स्थापित किया गया था और बाद में 10 वीं शताब्दी में यह रावल भारतीय पट द्वितीय के तहत एक स्वतंत्र राज्य में परिवर्तित हो गया।


प्रश्न-मेवाड़ के संस्थापक कौन थे।

उत्तर-मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल हैं। बप्पा रावल ने मेवाड़ राज्य की स्थापना की थी।


प्रश्न-मेवाड़ का वर्तमान नाम क्या है?

उत्तर-इसे उदयपुर राज्य चित्तौड़गढ़ राज्य के नाम से भी जाना जाता है इसमें आधुनिक भारत के राजस्थान के उदयपुर भीलवाड़ा राजस्थान चित्तौड़गढ़ तथा प्रतापगढ़ जिले और मध्यप्रदेश के नीमच तथा मंदसौर जिले थे।






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