"तुमुल" खंडकाव्य ( tumul Khand ka Vikas saransh sargo ka Saran)

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"तुमुल" खंडकाव्य ( tumul Khand ka Vikas saransh sargo ka Saran)

"तुमुल" खंडकाव्य ( tumul Khand ka Vikas saransh sargo ka Saran)

हेलो जो आप सभी का स्वागत है एक और नया आर्टिकल में तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपको तुमुल खंडकाव्य की कथावस्तु सारांश बिल्कुल आसान भाषा में बताने वाले हैं तो अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आए तो अपने दोस्तों और मित्रों में जरूर शेयर करें और पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।


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"तुमुल" खंडकाव्य ( tumul Khand ka Vikas saransh sargo ka Saran)


प्रश्न -1  'तुमुल'  खंडकाव्य का कथानक ( कथावस्तु या सारांश) संक्षेप में लिखिए! 


                              अथवा

'तुमुल 'खंडकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए! 

                              अथवा

'तुमुल'  खंडकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु लिखिए! 

                              अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए! 

                               अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य  की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए! 


                                अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के आधार पर ' युद्भासन्न सौमित्री खंड की कथा संक्षेप में लिखिए! 


इस प्रकार खंडकाव्य की कथा 15 वर्गों में विभक्त होकर समाप्त होती है। प्रथम सर्ग (ईश-स्तवन) इस सर्ग में कवि ने मंगलाचरण के रूप में ईश्वर की स्तुति की है, जिसमें निराकार, निर्गुण और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला गया है।


उत्तर - श्री श्यामनारायण पांडेय  द्वारा रचित 'तुमुल' खंडकाव्य कथानक पौराणिक आख्यान के आधार पर लिखा गया है! इसमें लक्ष्मण मेघनाथ के युद्ध का वर्णन है ! जिसे पन्दृह सगो  में विभक्त किया गया है! कथानक का सर्गानुसार सक्षेंप निम्नलिखित है! 


प्रथम सर्ग (ईश स्तवन)  मैं कभी ने मंगलाचरण के रूप में ईश्वर की स्तुति की है! जिसमें निराकार निर्गुण और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सर्वव्यापकता  पर प्रकाश डाला गया है! 


द्वितीय सर्ग  (दशरथ - पुत्रों का जन्म एवं बालकाल)  मैं कवि ने राजा दशरथ के चार पुत्रों के जन्म एवं बाल्यकाल का वर्णन किया है! राजा दशरथ के राम भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न चार पुत्र उत्पन्न हुए! इन भाइयों  में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था इनके बचपन की लीलाएं राज महल की शोभा को द्विगुणित कर देती हैं! राम एवं लक्ष्मण का जन्म राक्षसों के विनाश एवं साधु-संतों को अभयदान देने के लिए ही हुआ था ! राजा दशरथ नित्य सुख शांति में विश्वास रखने वाले तथा सत्चरित्र थे! 


तृतीय (सर्ग मेघनाद) मैं रावण की पराक्रमी पुत्र मेघनाद की व्यक्तित्व का वर्णन किया गया है! वह अत्यंत संयमी धीर पराक्रमी उदार और शीलवान था! युद्ध में उसके सामने टिकने का किसी के साथ ना था! 


चतुर्थ सर्ग ( मकराक्ष - वध)  में 'मखराज के वध' की कथा और रावण द्वारा मेघनाद की शौर्य गाथा वर्णित है! राम से संग्राम में मगराज मारा गया था इससे रावण बहुत भयभीत और चिंतित हुआ! उसी समय उसे महाबली मेघनाद का स्मरण आता है ! क्योंकि मेघनाद भी उसके समान ही पराक्रमी और वीर था! 


पंचम सर्ग  (रावण का आदेश) मैं रावण मेघनाद को बुलाकर मगराज की मृत्यु का बदला लेने का आदेश देता है तथा मेघनाद के अतुल शौर्य का वर्णन करता है! उसके तेज से सारा सदन प्रकाशित हो रहा है! रावण बड़ी कठिनता से मेघनाद के सम्मुख अपनी व्यथा प्रकट करता हुआ कहता है कि एक पुत्र राम से बदला ना लेने में हमारी कायरता है इसलिए मेरा आदेश है! कि तुम युद्ध में लक्ष्मण को मृत्यु की गोद में सुला दो और राम को अपना बल दिखा दो तथा वानर सेना को बाणो से बींध दो! 


षष्ठ सर्ग ( मेघनाद -  प्रतिज्ञा)  में मेघनाद सिंहनाद करता हुआ युद्ध में विजई होने की प्रतिज्ञा करता है! मेघनाद की गर्दन से पूरा स्वर्ग महल उठता है! वह अपने पिता को अस्वस्थ करता हुआ कहता है कि हे पिता मेरे होते हुए आप इसी प्रकार का शौक ना करें मैं अधिक ना कह कर केवल इतना कहता हूं कि यदि मैं आपके कष्ट को दूर ना कर सकूं तो मैं कभी धनुष को हाथ भी नहीं लगाऊंगा अभी मैं युद्ध में विजय ना हुआ तो कभी जीवन में युद्ध का नाम ना लूंगा! 


सप्तम सर्ग (मेघनाद का अभियान) में मेघनाद के युद्ध के लिए प्रस्थान करने का वर्णन है! रावण के सम्मुख प्रतिज्ञा करके मेघनाद जब युद्ध क्षेत्र की ओर चलने लगा तो देव लोक के सभी देवता भय से कापने लगे! मेघनाद ने युद्ध का रथ सजवाया तो पवन द्रवित हो गया पर्वत कापने लगा पृथ्वी शोकाकुल हो गई और सूर त्रस्त हो गया! युद्ध हेतु प्रस्थान करने से पूर्व मेघनाद में यज्ञ किया और उसके बाद रथ पर बैठकर शत्रुओं से लोहा लेने चल पड़ा और रणभूमि में पहुंचकर सिंह की तरह गर्जना की! 


अष्टम सर्ग (योद्धासन्न सौमित्र) में युद्ध के लिए प्रस्तुत लक्ष्मण का चित्रण है! मेघनाद की जड़ गर्जना शंकर शत्रु सेना भी भयंकर याद करने लगी राम की आज्ञा लेकर लक्ष्मण भी युद्ध के लिए तैयार होने लगे युद्ध लक्ष्मण को देखकर अनुमान आदि वीर भी युद्ध हेतु तत्पर हो गए! लक्ष्मण ने छण भर में ही मेघनाद के सम्मुख मोर्चा ले लिया शत्रु को सम्मुख देखकर मेघनाद युद्ध करने की ठानता है! 


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नवम सर्ग (लक्ष्मण - मेघनाथ युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्छा) 

में लक्ष्मण - मेघनाद युद्ध और लक्ष्मण के मूर्छित होने का वर्णन है! मेघनाथ ने नम्र भाव से लक्ष्मण से कहा कि तुम्हारी अवस्था देखकर मैं तुम से युद्ध करना नहीं चाहता फिर भी आज मैं विवश हूं क्योंकि मैं अपने पिता से यह प्रतिज्ञा करके आया हूं कि युद्ध में समस्त शत्रुओं का संघार करूंगा अता युद्ध के लिए तैयार हो जाओ ! यह सुनकर लक्ष्मण क्रोध हो गए उनके क्रोध युक्त वचनों को सुनकर मेघनाद हंस पड़ा मेघनाद की उसने पर मानव लक्ष्मण के क्रोध को अग्नि में भी पड़ गया! दोनों ओर से भयंकर युद्ध होने लगा लक्ष्मण के भी सवारों से मेघनाद की सेना के छक्के छूट गए इसके बाद मेघनाद ने भीषण युद्ध किया और लक्ष्मण के द्वारा छोड़े गए सभी बड़ों को नष्ट कर दिया दोनों वीर सिंह के समांतर गए थे लक्ष्मण को कुछ शिथिल देखकर मेघनाद ने उन पर शक्ति बाण का प्रयोग कर दिया, जिससे लक्ष्मण मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े! 


दशम सर्ग (हनुमान द्वारा उपदेश) में अनुमान द्वारा दुखी वानरो को समझाने का वर्णन है! लक्ष्मण के शक्ति बाण लगने और उनके मूर्छित होने से देवताओं में खलबली मच गई वानर सेना अत्यधिक व्याकुल हो विलाप करने लगी ! हनुमान ने वानरों को समझाया कि लक्ष्मण अचेत हुए हैं! वीरों का विलाप करना उचित नहीं होता हनुमान के उपदेश का सभी पर प्रभाव पड़ा और वे शोकरहित हो गए !दूसरी ओर कुटी में बैठे हुए श्री राम का मन कुछ उदास था ! उसी समय कुछ अपशकुन होने लगे, जिससे राम चिंतित हो गए! 


एकादश सर्ग (उन्मन राम) मैं राम की व्याकुलता का चित्रण है कुटिया में बैठे श्री राम विचार कर रहे हैं! कि आज व्यर्थ ही मन में  क्यों जन्म  ले रही है! उसी समय अगर हनुमान सुग्रीव आदि मूर्छित लक्ष्मण को लेकर वहां आते हैं ! लक्ष्मण को देखते ही राम पछाड़ खाकर गिर पड़ते हैं! 


द्वादश सर्ग ( राम विलाप और सौमित्र का उपचार)  में राम के विलाप और लक्ष्मण के उपचार का वर्णन है! लक्ष्मण की दशा को देखकर राम विलाप करने लगे उन्होंने कहा है! लक्ष्मण मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता राम की दुखी दशा देखकर जामवंत जी ने बताया कि लंका ने तो सिर्फ नाम के कुशलबाग हैं! आप उन्हें सरदार बुला ले अनुमान हर बार में ही सुषेण वैद्य को लेकर आते हैं सुषेण वैद्य कहते हैं कि संजीवनी बूटी के बिना लक्ष्मण की चिकित्सा नहीं हो सकती हनुमान वायु के वेग से संजीवनी बूटी लाने के लिए चल पड़ते हैं ! और बूटी की पहचान ना होने से अनुमान पूरे पर्वत को ही भी उठा लाते हैं वैद्य के उपचार से लक्ष्मण पुनः सचेत होकर मुस्कुराते उठ जाते हैं! 


त्रयोदश सर्ग (विभीषण की मंत्रणा) में विभीषण द्वारा राम को दिए गए परामर्श का वर्णन है! वह आकार राम को सूचना देता है! कि मेघनाद निकुम्भला पर्वत पर यज्ञ कर रहा है! यदि अब पूर्ण हो गया तो वह युद्ध में आगे हो जाएगा इसलिए लक्ष्मण को यज्ञ करते हुए मेघनाद पर तुरंत आक्रमण कर देना चाहिए राम के चरण छूकर लक्ष्मण ने मेघनाद का वध करने की प्रतिज्ञा की और ससैन्य  युद्ध के लिए प्रस्थान किया! 


चतुर्दश सर्ग ( यज्ञ विध्वंस और मेघनाद - वध)  मैं यज्ञ विध्वंस और मेघनाद के बाद का वर्णन है! लक्ष्मण ने ससैन्य ने यज्ञ स्थल पर पहुंचकर मेघनाद पर बाण वर्षा कर दी लक्ष्मण के तीव्र  बाण प्रहार से मेघनाद का रूधिर यज्ञ - भूमि में बहने लगा! उसके शरीर से इतना रक्त बहा की यज्ञ की अग्नि भी मुश्किल प्रतीत हुई लक्ष्मण को बाणों की वर्षा करता देखकर मेघनाद कहने लगा कि इस प्रकार छल कपट से युद्ध करना वीरता का लक्ष्मण नहीं है! मुझसे सम्मुख युद्ध में एक बार पराजित होने पर तुमने जो यह  ध्रणित कार्य किया है ! वह  सर्वथा नंदिनीय है! मेघनाद की यह धिक्कार सुनकर एक बार प्रत्यंचा पर आया हुआ लक्ष्मण का बाण रुक गया और फिर जो गया परंतु विभीषण के उकसाने पर लक्ष्मण के  तीक्षण प्रहार  से मेघनाथ यज्ञ- भूमि  में मारा गया! 


पंचाग सर्ग ( राम की वंदना) मैं राम की वंदना की गई है मेघनाद के शव को यज्ञ भूमि में ही छोड़कर वानर सेना राम की ओर चली ! युद्ध में लक्ष्मण की विजय का समाचार विभीषण ने राम को दिया! 

लक्ष्मण अपनी प्रशंसा सुनकर राम की वंदना करते हुए कहते हैं ! कि हे राम जिस पर आपकी कृपा हो जाती है वह तो जग विजेता हो ही जाता है! इस प्रकार खंड काव्य की कथा पन्दृह सर्गो में विभक्त होकर समाप्त होती है! 


प्रश्न -2  'तुमुल' खंडकाव्य के आधार पर मेघनाथ प्रतिज्ञा नामक षष्ठ सर्ग का सारांश लिखिए! 


                            अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के मेघनाद प्रतिज्ञा' सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए! 


उत्तर-                 षष्ठ सर्ग ( मेघनाद प्रतिज्ञा) 


इस सर्ग में मेघनाद सिंहनाद करता हुआ युद्ध में विजयी होने की प्रतिज्ञा करता है! मेघनाद के कर्जन से पूरा स्वर्ग महल हिल उठता है! वह अपने पिता को आश्वस्त करता हुआ कहता है कि पिता  मेरी हेतु हुए आप किसी भी प्रकार का शौक ना करें मैं अधिक ना कह कर केवल इतना कहता हूं कि यदि मैं आपके कष्ट को दूर ना कर सकूं तो मैं कभी धनुष को हाथ भी नहीं लगाऊंगा मैं राम के सम्मुख होकर युद्ध करूंगा और लक्ष्मण की शक्ति को भी देख लूंगा यदि शत्रु आकाश में भी बात करने लगे अथवा पाताल में भी जाकर छिप जाए तो भी उसके प्राणों की रक्षा ना हो सकेगी मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं अवश्य ही विजयश्री को प्राप्त करूंगा यदि मैं युद्ध में विजय ना हुआ तो कभी जीवन में युद्ध का नाम ना लूंगा! 


प्रश्न -3  'तुमुल 'खंडकाव्य लक्ष्मण मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्छा नामक नवम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए! 

                             अथवा

'तुमुल 'खंडकाव्य के नवम सर्ग का सारांश लिखिए! 


                               अथवा

'तुमुल ' खंडकाव्य के आधार पर लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन कीजिए! 


उत्तर  इस सर्ग में लक्ष्मण मेघनाद युद्ध और लक्ष्मण के मूर्छित होने का वर्णन है ! मेघनाद में नम्र भाव से लक्ष्मण से कहा कि जो कुछ भी तुमने कहा है मैं उस सत्य की मानता हूं क्योंकि तुम नीतिज्ञ हो तथा सर्वज्ञ अवस्था देखकर मैं भी तुमसे युद्ध करना नहीं चाहता फिर भी आज मैं विवश हूं क्योंकि मैं अपने पिता से यह सिद्ध किया कर के आया हूं कि युद्ध में समस्त शत्रुओं का श्रंगार करूंगा तुम्हारी इच्छा लड़ने की हो या ना हो तुम मेरी प्रतिज्ञा को सफल करने में मेरी सहायता करो मैं बिना लड़े यहां से नहीं जाऊंगा आता युद्ध के लिए तैयार हो जाओ या सुनकर लक्ष्मण क्रोध हो गए उनके क्रोध को देख कर संपूर्ण संसार थराने लगा उन्होंने मेघनाद से का अरे अधम मैंने तुमसे अपने मन का भाव ना जाने क्यों कह दिया! जिस प्रकार दूध पीने पर भी सर्व अपना कुछ नहीं त्याग दे उसी प्रकार यह सत्य है! की मधुर वाणी से दुष्ट जन कभी नहीं सुधर ते उनके क्रोध युक्त वचनों को सुनकर मेघनाद हंस पड़ा मेघनाद व्यास ने परमाणु लक्ष्मण के क्रोध की अग्नि में घी पड़ गया दोनों ओर से भयंकर युद्ध होने लगा!  लक्ष्मण के विचारों से मेघनाद की सेना के छक्के छूट गए! भागते हुए सैनिकों को रोककर उनका उत्साह बढ़ाते हुए मेघनाद ने कहा कि मेरी युद्ध कौशल को भी देखो मैं  शीघ्र ही इनको परास्त कर दूंगा मैंने पिता के सम्मुख जो प्रतिज्ञा की है! उसे पूरा करूंगा इसके बाद मेघनाद ने भीषण युद्ध किया !और लक्ष्मण के द्वारा छोड़े गए सभी बड़ों को नष्ट कर दिया! दोनों वीर सिंह के समान लड़ रहे थे! दोनों के शरीर रक्त से लथपथ से लक्ष्मण को कुछ सिथिल देखकर मेघनाद ने उन पर शक्ति का प्रयोग कर दिया जिससे लक्ष्मण मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े पृथ्वी पर मूर्छित पड़े लक्ष्मण को देखकर मेघनाद सिंह गर्जना करता हुआ और भागती हुई कभी सेना को मारता हुआ लंका की ओर चल पड़ा! 


FAQ question 


प्रश्न-तुमुल खंडकाव्य के लेखक कौन है?

उत्तर- तुमुल खंड का आपके लेखक श्याम नारायण पांडे कविता कोश है।


प्रश्न-खंडकाव्य में जीवन के कितने पक्ष का चित्रण किया जाता है।

उत्तर- खंडकाव्य में जीवन के किसी एक पक्ष की झलक की व्याख्या की जाती है। खंडकाव्य के कथानक में संधियों की योजना अनिवार्य नहीं मानी जाती। इसमें वस्तु का वर्णन संक्षिप्त या छोटा होता है। किसी का भी खंड का कथानक इतिहास से संबंधित होता है।


प्रश्न-खंडकाव्य से आप क्या समझते हैं उदाहरण सहित समझाइए?

उत्तर-खंड काव्य साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप है जीवन की किसी घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खंडकाव्य। खंडकाव्य शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है जिसमें चरित नायक का जीवन संपूर्ण रूप में कभी को प्रभावित नहीं करता।


प्रश्न-खंडकाव्य की कथावस्तु क्या है?

उत्तर- खंडकाव्य में मुख्य रूप से किसी महापुरुष के जीवन की किसी विशेष घटना का वर्णन किया जाता है। इसमें मानव जीवन की किसी एक घटना की प्रधानता रहती है इसके अलावा खंडकाव्य को प्रबंध काव्य का एक भेद भी माना जाता है। इसमें मानव के जीवन की मार्मिक अनुभूति का पूर्णतः चित्रण किया जाता है।


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