विटामिन किसे कहते हैं, विटामिन के प्रकार || How many types of vitamin

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विटामिन किसे कहते हैं, विटामिन के प्रकार || How many types of vitamin

विटामिन किसे कहते हैं, विटामिन के प्रकार || How many types of vitamin

नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम आपको विटामिन से संबंधित प्रश्न विटामिन क्या है विटामिन के स्रोत क्या है, विटामिन की खोज किसने की, विटामिन कितने प्रकार के होते हैं और विटामिन की कमी से होने वाले रोग इन सबके बारे में आपको विस्तार से बताएंगे। दोस्तों अगर आपके लिए यह पोस्ट useful हो तो अपने सभी दोस्तों को share जरूर कर दीजिएगा।


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विटामिन किसे कहते हैं, विटामिन के प्रकार || How many types of vitamin

Table of contents –


विटामिन किसे कहते हैं

विटामिन की खोज किसने की

विटामिनों का वर्गीकरण

विटामिन कितने प्रकार के होते हैं

जल में घुलनशील विटामिन

वसा में घुलनशील विटामिन

विटामिन्स के स्रोत

विटामिंस के कार्य

विटामिंस की कमी से होने वाले रोग

FAQ Questions 


विटामिन किसे कहते हैं?


ऐसे कार्बनिक पदार्थ जो जीवन के लिए आवश्यक होते हैं।

वे कार्बनिक यौगिक जो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा से अलग हों तथा स्वास्थ्य व शारीरिक वृद्धि एवं पाचन क्षमता को बनाए रखने में सहायता करते हों, उन्हें विटामिन कहते हैं।

विटामिन की सूक्ष्म मात्रा जंतु शरीर के सामान्य उपापचय के लिए आवश्यक होती है।

विटामिन परिवार में उन कार्बनिक यौगिकों को सम्मिलित किया जाता है, जो मानव शरीर द्वारा संश्लेषित नहीं किए जा सकते हैं, परंतु सामान्यतः स्वास्थ्य तथा वृद्धि हेतु अत्यंत अल्प मात्रा में आवश्यक होते हैं, अतः इन्हें भोजन में अथवा टॉनिक के रूप में लेते रहना पड़ता है। विशिष्ट विटामिन की कमी से शरीर में विशिष्ट व्याधि अथवा रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। विटामिनों के संरचनात्मक सूत्र समान्यत: जटिल होते हैं इसलिए इनके नियमपरक रासायनिक नाम से जटिल होते हैं। अता विटामिनों को सुविधाजनक तथा प्रचलित नाम दिए गए हैं जैसे-विटामिन A, विटामिन B, विटामिन C, विटामिन D, विटामिन E, विटामिन K आदि।


विटामिन की खोज किसने की?


सन् 1881 ईसवी में एन.आई.लूनिन ने विटामिन की खोज की और बताया कि स्वस्थ शरीर के लिए भोजन में अन्य पदार्थों के अतिरिक्त इन पदार्थों का भी सूक्ष्म मात्रा में होना आवश्यक है।

इसके बाद वैज्ञानिक हप्किंस तथा फुंक ने विटामिन Theory प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने बताया कि प्रत्येक रोग आहार में किसी न किसी विशेष विटामिन की कमी से होता है।

विटामिन यादव स्वयं उपापचयी उत्प्रेरकों का काम करते हैं या सह एंजाइमों के संयोजन में भाग लेते हैं।


विटामिनों का वर्गीकरण –


विटामिनों के संरचनात्मक सूत्र एक दूसरे से सर्वदा भिन्न हैं अर्थात् ये कार्बनिक यौगिक भिन्न-भिन्न परिवारों से संबद्ध हैं। अतः इनका वर्गीकरण संरचनात्मक सूत्र के आधार पर नहीं किया जा सकता। इनको जल में विलेयता या अविलेयता के आधार पर साधारणतया निम्न दो समूहों में विभाजित किया जाता है–


I. जल में अविलेय विटामिन (Water insoluble vitamins) –


ये सामान्यता प्राकृतिक भोजन के लिपिड के सहचर्य में पाए जाते हैं। ये जल में अविलेय परंतु वसा में विलेय होते हैं; जैसे – विटामिन A, D, E, K आदि।


II. जल में विलेय विटामिन (Water soluble vitamins) –


ये विटामिन जल में विलेय होते हैं। इसमें विटामिन B- कांप्लेक्स तथा विटामिन C आते हैं।


जल में अविलेय विटामिन (Water insoluble vitamins) –


ये जल में अविलेय हैं परंतु वसा में विलेय होते हैं। अतः ये शरीर द्वारा उत्सर्जित नहीं हो पाते। शरीर में इनका भंडारण हो जाने के कारण, इन्हें अधिक मात्रा में नियमित रूप में लेने पर अतिविटामिनता के कारण आविषालुता हो सकती है। विभिन्न प्रकार के वसा विलेय विटामिन के सामान्य नाम, संरचनात्मक सूत्र, प्राप्ति, स्थान, कार्यों तथा अभाव रोग का वर्णन निम्न प्रकार है–


1. विटामिन A –


विटामिन A एक जटिल प्राथमिक अल्कोहल, रेटिनोल है, इसे एक्जेरोफ्थॉल भी कहते हैं जो प्राणी शरीर में वसीय अम्लों, वर्णनात्मक रूप से पामिटिक अम्ल के संयोजन में संग्रहित रहता है। विटामिन ए के उपापचयी मध्यवर्ती एल्डिहाइड रेटिनल्स के रूप में पाए जाते हैं। जो दृष्टि को प्रभावित करते हैं।


स्रोत (Sources) –


मछलियों के यकृत से प्राप्त होने वाले तेल, मक्खन, संपूर्ण दूध तथा अंडपीतक प्राणी उद्भव के भोजन है जो विटामिन A की आपूर्ति करते हैं। सभी वर्णकयुक्त विशेष रुप से पीले रंग की सब्जियां तथा फल (उदाहरण – शकरकंद, गाजर, काशीफल, पपीता, टमाटर तथा हरी पत्तेदार सब्जियां) भोजन में प्रोविटामिन ए की पूर्ति करते हैं। प्राणी शरीर में कैरोटिन्स विटामिन ए की पूर्ति कारक होते हैं।


कार्य (Functions) –


एपिथीलियल ऊतक की अखंडता का अनुरक्षण विटामिन ए का महत्वपूर्ण कार्य है।

यह वृद्धि के लिए अनिवार्य होता है। कंकाल तथा अन्य संयोजी उतको के लिए यह विशेष रूप से आवश्यक है।

विटामिन ए संक्रमण को रोकता है।

विटामिन ए, सामान्य उर्वरता के अनुरक्षण में सहायक होता है।

विटामिन ए, सामान्य दृष्टि तथा नेत्र रक्षा में सहायक हैं क्योंकि यह दृश्य नील लोहित अथवा रोडॉप्सिन की रचना करता है।


न्यूनता (Deficiency) –


(i) रतौंधी अथवा रात्रिअंधता (Night blindness or nyctalopia) – विटामिन ए की न्यूनता के कारण यह रोग उत्पन्न होता है।


(ii) जीरोफ्थैलमिया (Xerophthalmia) – विटामिन ए की न्यूनता के समयोत्तर परिणाम के रूप में रोग नेत्रीय ऊतक का कठोरीकरण हो जाता है जो आगे चलकर अंधता का एक प्रमुख कारण है।

(iii) विटामिन ए की कमी से कंकाल तथा उसके पश्चात मृदु ऊतक प्रभावित होता है।

(iv) वृद्धिशील प्राणी में विटामिन ए की न्यूनता कोलैजन ऊतक विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।


2. विटामिन D –


कॉडलिवर तेल में एक पदार्थ पाया जाता है जो रिकेट्स के निरोध में सक्षम होता है। सन् 1924 ईस्वी में स्टीनबॉक तथा हेस ने बताया कि पराबैंगनी विकिरण के उद्भासन के पश्चात अनेक भोज्य पदार्थ विटामिन D की सक्रियता प्राप्त कर लेते हैं।


स्रोत (Sources) –


इस विटामिन के स्रोत दूध, मक्खन, घी, अंडा आदि हैं। त्वचा भी धूप से इसे संश्लेषित करती है जिससे यह शरीर में स्वयं बनता है।


कार्य (Functions) –


विटामिन D का प्रधान कार्य कैल्शियम तथा फास्फोरस के अवशोषण तथा उपयोग का नियमन है। इसका कैल्सीकरण प्रक्रिया पर भी प्रत्यक्ष प्रभाव होता है। अतः यह दांत व हड्डियों के निर्माण में सहायक है।


न्यूनता (Deficiency) –


(i) बच्चों का सूखा रोग अथवा रिकेट्स (Rickets) –


इस रोग के मुख्य लक्षण मंदबुद्धि, अपभ्रंश कैल्शियम उपापचय तथा विकृत अस्थियां हैं। रिकेट्स की पहचान धनुपाद अघात घुटने आदि हैं।


(ii) वयस्कों में अस्थि मृदुता (Osteomalacia) –


यह रोग कुछ स्त्रियों में गर्भावस्था की अवधि में पाया जाता है।


3. विटामिन E –


सन् 1946 में इवान्स तथा एमरसन ने गेहूं भ्रूण के तेल से विटामिन E पृथक किया। विटामिन E को टोकोफेरॉल कहते हैं।


स्रोत (Sources) –


टोकोफेरॉल के सर्वाधिक समृद्ध स्रोत पादप तेल जैसे गेहूं के भ्रूण, चावल, कपास के बीज, हरी पत्तियों से प्राप्त होने वाले लिपिड होते हैं। अंडे, पेशी मांस, यकृत, मछली तथा मुर्गी विटामिन E के अच्छे स्रोत हैं।


कार्य (Functions) –


(i) विटामिन E, प्रति ऑक्सीकारक गुणधर्म है। बहु असंतृप्त वसीय अम्ल आणविक ऑक्सीजन द्वारा सरलता से खंडित हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप पर ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं। टोकोफेरॉल इस अभिक्रिया का विरोध करते हैं।

(ii) विटामिन E चूहों में सामान्य जनन कार्यों के लिए आवश्यक होता है। अतः इसे बंध्यतारोधी रोधी विटामिन भी कहा जाता है।

(iii) खरगोश में विटामिन E की कमी से पेशी दुष्पोषण उत्पन्न हो जाता है।


न्यूनता (Deficiency) –


विटामिन E की अनुपस्थिति में हीनताजन्य रोग जैसे – प्रजनन शक्ति का क्षय, रक्ताल्पता आदि उत्पन्न हो जाते हैं।


4. विटामिन K –


विटामिन K की पहचान सन् 1935 ईस्वी में डैम द्वारा हरी पत्तियों में विद्यमान स्राव को रोकने वाले एक कारक के रूप में की गई।

एल्फाल्फा से पृथक किया जाने वाला विटामिन K, फाइलोक्विनोन कहलाता है।


स्रोत (Sources) –


विटामिन K एल्फाल्फा तथा पालक और बंदगोभी आदि पत्तेदार सब्जियों में पाया जाता है। फूलगोभी, हरी मटर, टमाटर, पनीर, अंडपीतक तथा यकृत आदि इस विटामिन के प्रमुख स्रोत हैं। फलों तथा यीस्ट में यह बहुत कम मात्रा में मिलता है।


कार्य (Functions) –


विटामिन K का प्रमुख कार्य यकृत में प्रोथ्रोम्बिन के संरचना संश्लेषण का उत्प्रेरण है। अतः यह विटामिन रक्त के स्कंदन में सहायक होता है जिसके कारण इसे प्रतिरक्तस्रावी विटामिन कहते हैं।


न्यूनता (Deficiency) –


विटामिन K की अनुपस्थिति में अवप्रोथ्रोम्बिनरक्तता उत्पन्न हो जाती है जिससे रक्त स्कंदन समय में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है और हेमरेज हो जाता है। 


II. जल में विलेय विटामिन (Water soluble vitamins) –


1. B कांप्लेक्स के विटामिन –


यह लगभग 15 विटामिनों का जटिल मिश्रण है।


(i) थायमीन अथवा विटामिन B1


इस विटामिन को प्रति बेरी-बेरी पदार्थ अथवा तंत्रिकाशोध रोधी भी कहा जाता है।


स्रोत (Sources) –


दूध, सोयाबीन, अंडे, हरी सब्जियां, अनाज, चावल आदि विटामिन B1 के प्रमुख स्रोत हैं।


कार्य (Functions) –


यह सह एंजाइम थायमीन पाइरोफॉस्फेट की रचना करता है तथा कार्बोहाइड्रेट उपापचयन के लिए आवश्यक होता है जो शरीर के विकास में सहायक है।


न्यूनता (Deficiency) –


थायमीन की कमी के कारण बेरी-बेरी नामक रोग हो जाता है। इसके कारण पेशी क्षय, पेशी दुर्बलता हो जाती है और भूख कम लगने लगती है।


(ii) राइबोफ्लैविन अथवा विटामिन B2


इसे सन् 1932 ईस्वी में यीस्ट से पृथक किया गया। इसको विटामिन G भी कहते हैं।


स्रोत (Sources) –


यह दूध, हरी सब्जी, टमाटर, पत्तागोभी, केला, चैरी, किशमिश आदि में बहुतायत से मिलता है किंतु अनाज के दानों में यह अपेक्षाकृत कम पाया जाता है।


कार्य (Functions) –


कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन उपापचय, त्वचा की रक्षा आदि सभी जैविक कार्य राइबोफ्लैविन द्वारा संचालित होते हैं। यह शारीरिक वृद्धि के लिए आवश्यक है।


न्यूनता (Deficiency) –


मानव में राइबोफ्लैविन के कारण जिह्वाशोथ, मुंह तथा होंठ के किनारे पर दरारें, चेहरे पर स्थानगत तैल ग्रंथि त्वचा शोथ तथा कॉर्निया का संवहनी भवन जैसे विकार उत्पन्न हो जाते हैं।


(iii) विटामिन B3 पेंटोथीनिक अम्ल –


इसका अणु सूत्र C9H17O5N है।


स्रोत (Sources) –


मुख्य स्रोत यकृत, वृक्क, यीस्ट इत्यादि हैं। यद्यपि यह है सभी सामान्य खाद्य पदार्थों में भी पाया जाता है।


कार्य (Functions) –


इसके मनुष्यों की कार्यिकी पर प्रभाव के विषय में अधिक ज्ञान नहीं है। यह कोशीय ऑक्सीकरण में आवश्यक सहएंजाइम का आवश्यक घटक है।

  

न्यूनता (Deficiency) –


इसकी न्यूनता से मुर्गियों में डर्मेटाइटिस होता है तथा पंखों में वृद्धि घट जाती हैं और जनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।


(iv) नियासिन अथवा विटामिन B5


निकोटिनिक अम्ल अथवा पिरीडीन-3- कार्बोक्सिलिक अम्ल को नियासिन अथवा विटामिन B5 कहते हैं।


स्रोत (Sources) –


अंजीर, मशरूम, मूंगफली, चावल, खमीर, दूध, मछली आदि में यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहता है।


कार्य (Functions) –


यह विटामिन निकोटिनेमाइड में परिवर्तित होने के कारण दो सहएंजाइमों निकोटिनेमाइड एडीनीन डाई न्यूक्लियोटाइड तथा निकोटिनेमाइड एडिनीन डाई न्यूक्लियोटाइड फास्फेट एक घटक के रूप में उपापचयिक रूप से महत्वपूर्ण होता है। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र में ATP का निर्माण होगा।


न्यूनता (Deficiency) –


इसकी कमी से पेलाग्रा रोग हो जाता है। इस रोग के तीन प्रमुख लक्षण प्रवाहिका, सूर्य के प्रकाश में उद्भासित अंगों में त्वचा शोथ तथा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में विक्षोभ के कारण मनोभ्रंश हो जाता है।


(v) पाइरिडॉक्सिन अथवा विटामिन B6


पाइरिडॉक्सिन,पाइरिडॉक्सल तथा पाइरिडॉक्सेमिन को संयुक्त रूप में विटामिन B6 कहते हैं।


स्रोत (Sources) –


साबुत अनाज, दालें, आलू अंडपीतक, यीस्ट, मांस आदि इसके प्रमुख स्रोत हैं।


कार्य (Functions) –


यह हिमोग्लोबिन तथा साइटोक्रोमों में पाए जाने वाले हीम में संश्लेषण का कार्य करता है। यह एमीनो अम्ल के अनऑक्सीकारक निम्नीकरण तथा वि कार्बोक्सिलीकरण का कार्य करता है।


न्यूनता (Deficiency) –


प्राकृतिक रूप से मिलने वाले भोज्य पदार्थों द्वारा संतुलित आहार में विटामिन B6 की न्यूनता नहीं होती है परंतु अपावशोषण, मदिरोन्मत्तता तथा दवाओं के विरोध की स्थितियों में B6 न्यूनता उत्पन्न हो जाती है। मनुष्यों में पाइरिडॉक्सिन की न्यूनता का संबंध उत्क्रमणीय हाइपोक्रोमिक सूक्ष्मलोहित अरक्तता से होता है जिसमें सीरम लौह उच्च मात्रा में विद्यमान होता है।


(vi) सायनोकोबाल्मिन अथवा विटामिन B12


विटामिन B12 एक गहरे लाल रंग का योगिक है। इसमें कोबाल्ट पाया जाता है। 


स्रोत (Sources) –


दूध, पनीर, अंडा, मछली, यकृत, वृक्क आदि में मिलता है।


कार्य (Functions) –


यह लाल अस्थि मज्जा में लाल रुधिर कणिकाओं की परिपक्वता के लिए आवश्यक होता है। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के कुछ विभागों की सक्रियता के लिए महत्वपूर्ण है।


न्यूनता (Deficiency) –


मनुष्य में विटामिन B12  की न्यूनता के कारण प्रणाशी अरक्तता का उत्पन्न होना है। इसके अतिरिक्त, स्थूलाणुक अरक्तता के कारण हाथ तथा पैरों में चेतना, शून्यता, झनझनाहट, घबराहट तथा अल्प क्षुधा आदि होते हैं।


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(vii) विटामिन H या बायोटिन –


बायोटीन का अणुसूत्र C10H16O3N2S है।


स्रोत (Sources) –


खमीर, अंडे की जर्दी, वृक्क , मूंगफली , चॉकलेट आदि।


कार्य (Functions) –


यह वसा अम्लों का संश्लेषण कार्बन डाइऑक्साइड में स्थिरीकरण को प्रेरित करता है।


न्यूनता (Deficiency) –


इसकी न्यूनता से बालों का गिरना, त्वचा रोग, विलंबित वृद्धि, अंगघात आदि होते हैं।


(viii) फॉलिक अम्ल


फॉलिक अम्ल को टेरोइल अम्ल (PGA) भी कहते हैं।


स्रोत (Sources) –


यीस्ट , डेयरी उत्पाद, हरी सब्जी , संतरा, यकृत, वृक्क आदि।


कार्य (Functions) –


यह लाल रुधिर कोशिकाओं के उत्पादन तथा परिपक्वन में भाग लेता है। यह उन अभिक्रियाओं में भाग लेता है जिनके फलस्वरूप DNA  संश्लेषण के लिए आवश्यक प्यूरीन्स तथा थायमीन का संश्लेषण होता है।


न्यूनता (Deficiency) –


इसकी कमी से रक्ताल्पता हो जाती है।


2. ऐस्कॉबिक अम्ल अथवा विटामिन C


रासायनिक रचना में विटामिन सी मोनोसैकेराइड के सदृश है। यह शीघ्रता से डिहाईड्रो एस्कोरबिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है।


स्रोत (Sources) –


नींबू, संतरा, मौसमी, आंवला, पत्तागोभी, बेर, अमरुद, हरी मिर्च आदि में होता है।


कार्य (Functions) –


विटामिन सी कार्टिलेज, डेंटाइन तथा अस्थि के अंतराकोशी पदार्थ एवं कोशिका भित्ति की अखंडता से अनुरक्षित रखता है।

विटामिन सी रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है।

यह घावों के भरने में सहायक है। यह लौह तत्व का अवशोषण करता है।


न्यूनता (Deficiency) –


विटामिन सी की कमी से स्कर्वी रोग हो जाता है। इस रोग के विकृतिजन्य लक्षण त्वचा उदगार, मसूड़ो में सूजन तथा रक्तस्राव, दातों का शिथलन, नस का फटना, घावों का अल्पभराव आदि है।


विटामिन, उनके रासायनिक नाम, प्रमुख स्रोत एवं कमी के प्रभाव की तालिका


विटामिन

रासायनिक नाम

प्रमुख स्रोत

कमी का प्रभाव

जल में घुलनशील विटामिन




B1

थायमिन

अनाज, फलियां, यीस्ट, अंडा, मांस।

बच्चों में बेरी-बेरी।

B2

राइबोक्लेविन

पनीर, अंडा, मांस, जिगर, गेहूं, पत्तेदार सब्जी।

कीलोसीस, कमजोर पाचन शक्ति।

B3

पैंटोथीनिक अम्ल 

गन्ना, दूध, टमाटर, यीस्ट, अंडा, मांस, मूंगफली।

चर्म रोग जनन क्षमता में कमी।

B4

नियासीन

आलू, टमाटर, मूंगफली, हरी सब्जी, मांस, मछली।

कमजोर पाचन शक्ति, प्लेग।

B6

पइरीडॉक्सिन 

दूध, अनाज, मांस, यीस्ट, जिगर।

रक्त की कमी, चर्म रोग, पेशीय ऐंठन।

B12

सायनोकोबालामीन 

मांस, मछली, दूध, अंडा एवं फल

अरक्तता, लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की कमी।

H

बायोटीन 

यीस्ट, गेहूं, अंडा,मूंगफली, सब्जी, फल।

चर्म रोग एवं बालों का झड़ना।

C

स्कॉबिक अम्ल

नींबू, टमाटर, संतरा, आंवला, अमरूद।

स्कर्वी रोग, फूले हुए मसूड़े।

फोलिक अम्ल 

फोलिक अम्ल 

हरी पत्तियां, जिगर,सोयाबीन, यीस्ट, गुर्दा।

रक्त की कमी, धीमी बुद्धि।

वसा में घुलनशील विटामिन




A

रेटिनॉल

पालक, गाजर, मक्खन,शकरकंद, अंडा, दूध।

कमजोर दृष्टि, खराब आंख, रतौंधी।

D

कैलिसफेरॉल

मछली का तेल, गुर्दा, सूर्य का प्रकाश, दूध।

बच्चों में रिकेट्स, व्यस्को में आस्टियोमेलेसिया।

E

टोकोफेरॉल

हरी पत्तियां, गेहूं, अंडे की जर्दी।

पेशियां कमजोर, नपुसंकता।

K

नैफ्थोक्विनोम

हरी पत्तियां, पनीर, अंडा, जिगर, मक्खन।

रक्त का थक्का नहीं जमना।

 

FAQ Questions –


प्रश्न - विटामिन किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर - विटामिन ऐसे पदार्थ है जो शरीर को स्वस्थ रखने और विकास के लिए जरूरी होते हैं। यह शरीर को ठीक तरह से कार्य करने में मदद करते हैं। मुख्य तौर पर 13 तरह के विटामिंस होते हैं।


प्रश्न - विटामिन की परिभाषा क्या है?

उत्तर - विटामिन या जीवन सत्व भोजन के अवयव हैं, जिनकी सभी जीवो को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। रासायनिक रूप से ये कार्बनिक यौगिक होते हैं। उस यौगिक को विटामिन कहा जाता है, जो शरीर द्वारा पर्याप्त मात्रा में स्वयं उत्पन्न नहीं किया जा सकता; बल्कि भोजन के रूप में लेना आवश्यक है।


प्रश्न - कुल कितने विटामिन पाए जाते हैं?

उत्तर - कुल 13 विटामिन पाए जाते हैं।


प्रश्न - विटामिन के कार्य क्या हैं?

उत्तर - शरीर के कार्यों जैसे संक्रमण से लड़ने में मदद, घाव भरने, हमारी हड्डियों को मजबूत बनाने और हार्मोन को नियंत्रित करने के लिए विटामिन और खनिज आवश्यक हैं। बड़ी मात्रा में सेवन करने पर विटामिन और खनिज विषाक्तता पैदा कर सकते हैं।


प्रश्न - विटामिन के खोजकर्ता कौन हैं?

उत्तर - कासिमिर फंक ने 1912 में विटामिन की खोज की थी।

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