नदी की आत्मकथा पर निबंध//Nadi ki aatmkatha per nibandh Hindi mein

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नदी की आत्मकथा पर निबंध//Nadi ki aatmkatha per nibandh Hindi mein

नदी की आत्मकथा पर निबंध//Nadi ki aatmkatha per nibandh Hindi mein

नमस्कार दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आप लोगों को बताएंगे नदी की आत्मकथा पर निबंध हिंदी में, नदी पर निबंध कैसे लिखें, सभी की जानकारी इस आर्टिकल के माध्यम से दी जाएगी तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़े और अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

नदी की आत्मकथा पर निबंध//Nadi ki aatmkatha per nibandh Hindi mein
नदी की आत्मकथा पर निबंध//Nadi ki aatmkatha per nibandh Hindi mein

Table of contents


नदी की आत्मकथा क्या है?

नदी पर निबंध कैसे लिखें?

नदी पर आत्मकथा कैसे लिखते हैं?

नदी की आत्मकथा 5-6 वाक्यों में लिखें।

नदी की आत्मकथा पर निबंध 400 शब्द में

नदी की आत्मकथा पर निबंध 600 शब्द में

नदी की आत्मकथा

Nadi ki aatmkatha per nibandh

Nadi ki aatmkatha

FAQ


400 शब्दों में नदी की आत्मकथा पर निबंध


मैं नदी हूं मुझे आप सभी जानते ही होंगे और मुझे बड़े प्यार से मेरे विकराल रूप अथवा शांत स्वभाव दोनों को देखा ही होगा। कहीं ना कहीं मेरा यह अलग-अलग रूप इंसान की गलतियों के कारण ही हुआ है।


मेरे दूसरे नाम भी शायद आप जानते ही होंगे। पर चलिए बताते हैं मुझे लोग सरिता वाहिनी नदी के नाम से भी जानते हैं। वैसे तो आप लोगों ने अपने अनुसार मेरे कई दूसरे नाम भी रख दिए हैं।


मेरा कोई निश्चित स्थानीय रहने का स्थान नहीं है। जहां से मैं अपने आप को पूर्ण कर लेती हूं। और अपने गंतव्य जिसका शुरुआत में मुझे भी पता नहीं रहता है। वहां के लिए निकल पड़ती हूं।


आमतौर पर मैं ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से छोटी-छोटी सरिताओ के रूप में निकलती हूं। और अपना धीरे-धीरे बड़ा रूप करते हुए जंगलों से गुजरते हुए कहीं महासागर में पहुंच जाती हूं।


अगर मेरे स्वभाव की तुम्हें बताऊं तो मैं काफी शांत रहती हूं। कल करते हुए मैं सिर्फ अपने मार्ग से निकल जाती हूं। लेकिन हां इन इंसानों ने मुझे अपना विकराल रूप ले लेने पर मजबूर कर दिया है मनुष्य अब धीरे-धीरे बदल रहा है शायद मुझे भी अब और बदलना पड़ेगा।


शायद इंसानियत भूलता जा रहा है कि मैं ही हूं जो इसके हर वक्त काम आती हूं प्यासे की प्यास बुझाती हूं और किसी प्यासे की प्यास को शांत कराने के दौरान मुझे जो सुकून प्राप्त होता है उसे शायद कहीं प्राप्त नहीं किया जा सकता है।


किसान अपनी फसल को तैयार करने के लिए वर्षा के पश्चात सबसे ज्यादा मुझ पर निर्भर रहता है लेकिन कहीं ना कहीं उनका कचरा फिर मुझे ही खिला देते हैं।


उद्योग में मेरा पानी का उपयोग करने के लिए बड़े प्यार से मेरे पानी को ले जाते हैं फिर कुछ समय पश्चात गंदे पानी को मुझे पिला देते हैं जैसे मैं कुछ समझती ही नहीं हूं।


देखने में मैं जितनी सुंदर और आकर्षक कारी हूं अंदर से उतनी ही भयानक भी हूं और शायद मुझे आशा है मेरे दोनों रूप आपने अवश्य देखे होंगे।


मैं इस स्वार्थी इंसान के लिए इतनी उपयोगी हूं कि यह मुझे रोकने के लिए क्या-क्या नहीं करते हैं। कभी मेरे रास्ते में बड़े-बड़े बांध बनाते हैं तो कभी मेरे मार्ग बदलने का प्रयास करते हैं। लेकिन मेरी मंजिल निश्चित है मैं अपना छोटा रूप बड़ा करती हूं और फिर वहां से भी निकल जाती हूं।


कई परेशानियों का सामना करने पर भी मैं कभी रुकती नहीं हूं और ना ही कभी थकती हूं मैं तो कहती हूं इस पापी और नीरज्ज व्यक्तियों को मुझसे कुछ सीखना चाहिए जो हर छोटी-छोटी में मुश्किलों में अपनी किस्मत को कोसता है।


इसको मुझसे सीखना चाहिए कि अगर मंजिल निश्चित है और यदि अपने मार्ग में हम निरंतर चलते रहे अर्थात लगातार प्रयास करते रहे तो हम एक दिन अवश्य सफल होंगे।


क्या आप जानते हैं मुझमें इतनी क्षमता है। कि मैं जहां से भी गुजरती हूं उस स्थान को हरा भरा कर देती हूं जिसे कोई नहीं कर सकता है वहीं दूसरी ओर हरे-भरे क्षेत्र को भी बंजर भी बना सकती हूं।


इंसानों के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ में कई हजारों प्रकार के छोटे-छोटे जीव-जंतुओं को रहने के लिए आश्रय देती हूं। और वह मेरी नीर का उपयोग करते हैं तथा जीवित रहते हैं। कभी-कभी मस्जिद गर्म होता है कि प्रकृति ने मुझे इस पर्यावरण के लिए इतना सब कुछ करने का मौका प्रदान किया है इसके लिए मुझे खुद पर बहुत गर्व भी है।


नदी की आत्मकथा पर बड़ा निबंध 600 शब्द में


मेरा कोई स्थान निश्चित नहीं है दरअसल मेरा जन्म पहाड़ों में हुआ है शुरुआत में मैं छोटी-छोटी झरनों के रूप में जमीन पर पहुंचती हूं और फिर सारे झरनों का एक रूप होकर नदी के रूप में तब्दील हो जाती हूं।


अगर मैं आपसे पूछो कि मैं कौन हूं तो शायद आप बताएंगे कि मैं निर्जीव नदी हूं और पानी को अपने साथ लिए बहती हूं। सही भी है लेकिन मैं सब समझती हूं इंसानों द्वारा मेरा उपयोग करना और फिर मुझे ही गंदा कर देना पर मैं कुछ नहीं कहती और शायद कुछ कह भी नहीं सकती क्योंकि प्रकृति ने मुझे ऐसा ही बनाया है चुपचाप सब सह लेती हूं।


दरअसल मैं बड़ी चंचल हूं और शांत स्वभाव की भी कल कल की आवाज करते हुए बस चलती जाती हूं शायद मुझे कभी प्रकृति ने रुकना सिखाया ही नहीं है।


मैं स्वतंत्र होकर बैठी हूं मेरे लिए कोई राष्ट्र देश स्थानीय बोली का महत्व नहीं है मैं अपनी आजादी के साथ कहीं से भी गुजर सकती हूं।


मेरी एक निश्चित मंजिल है मुझे पता है पहाड़ों से निकलकर फिर मुझे महासागरों में जाकर मिलना है लेकिन जिस तरह आपका एक निश्चित मार्ग होता है उस तरह मेरा कोई रास्ता नहीं है पहाड़ों से निकलकर ढलान की ओर बढ़ते हुए मैदान से होते हुए जिधर मुझे मेरा रास्ता आसान लगता है उधर मैं अपना मार्ग बना लेती हूं।


मेरी सर्प रूपी संरचना का यही कारण है।


मनुष्य की प्यास बुझाने उसके सैकड़ों कार्यों को आसान करने के साथ-साथ कई प्रकार के जीव जंतु पेड़ पौधों को अपने अंदर आश्रय देती हूं। मैदानों से गुजरने के दौरान मैं कई समय से वीरान पड़े सूखे क्षेत्रों को भी हरा भरा कर देती हूं अर्थात में हरियाली उगाने की सख्त भी रखती हूं।


क्या आप जानते हैं पर्यावरण संतुलन के लिए भी मेरा महत्वपूर्ण योगदान है जीव जंतु पशु पक्षियों को पेड़ पौधों को हमेशा सजीव बनाए रखती हूं।


मेरे रास्ते में आने वाली समस्याएं


हर कोई सोचता है मेरी जिंदगी कितनी अच्छी है पर ऐसा कुछ नहीं है दोस्तों मुझे कई ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिन को देखते ही मुझे लगता है कि मुझे भी अपना विकराल रूप ले लेना चाहिए लेकिन मैं फिर सोचती हूं मुझे रुकना नहीं है इन परेशानियों को हल करना होगा और मैं 1 दिन सफल भी होती हूं।


क्या आप मेरी परेशानियां सुनना चाहते हैं चलिए कुछ सुनाती हूं मैं इंसानों की इतनी सेवा करती हूं हर वक्त हर पल उनके लिए उपलब्ध रहती हूं लेकिन कुछ लालच के कारण यह मुझे अपने वश में करने का प्रयास कर रहा है।


जगह-जगह बांध बनाता है मेरे रास्ते को रोकने का प्रयास करते हैं जिस कारण मुझे अपने मार्ग को बदलना पड़ता है क्योंकि रुकना तो मुझे सिखाया ही नहीं गया है।


मेरा उपयोग करने के दौरान मीठे मीठे वचनों का अच्छे स्वभाव के साथ मुझे अपना लेते हैं लेकिन फिर मुझे गंदा करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।


प्रतिदिन हजारों टन कचरा प्लास्टिक कूड़ा मेरे अंदर निस्वार्थ होकर छोड़ दिया जाता है इसका दोष भी आगे चलकर मुझे ही मिलता है यह कितनी गंदी है लेकिन कोई नहीं सब कुछ चुपचाप सुन लेती हूं और प्राकृतिक तरीके से अपनी यात्रा के दौरान अपने आप को साफ करने में लगी रहती हूं।


वाकई में मेरी जो पहले सुंदरता हुआ करती थी अब वह नहीं रही है पहले मैं स्वतंत्र बैठी थी कोई मेरे रास्ते में कोई नहीं आता था अब जगह-जगह रेत खनन का कार्य चलता रहता है तो कहीं बांध का निर्माण।।


FAQ


1-नदी की आत्मकथा क्या है?

 उत्तर मैं जहां भी बंजर भूमि से होकर बहती हूं वहां मुझमें हरा भरा बनाने की क्षमता है पहाड़ों से निकालकर समय मेरा रूप बहुत छोटा होता है लेकिन जैसे जैसे मैं आगे बढ़ती हूं मैं बड़ी होती जाती हूं और आखिरकार समुद्र में चली जाती हूं लेकिन समुद्र में शामिल होने से पहले मैं अपने आसपास की जमीन को हरा-भरा कर देती हूं।


2-नदी पर निबंध कैसे लिखें?

 उत्तर-नदी एक ऐसी प्रवाहित धारा जो न कृषि हेतु फसल उपजाति है बल्कि किसी भी सभ्यता के विकास में सहायक होती है पुरातन समय से मनुष्य नदी को देवी-देवताओं के रूप में पूजता आया है हम यह भी जानते हैं हमारे देश में बहुत से ऐसे ऋषि मुनि हुए हैं। जिन्होंने नदी किनारे कड़ी तपस्या कर अध्यात्म और मोक्ष से संबंधित ज्ञान प्राप्त किया है.


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