वीरांगना रानी अवंतिका बाई का जीवन परिचय//virangana Avanti Bai ki biography

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वीरांगना रानी अवंतिका बाई का जीवन परिचय//virangana Avanti Bai ki biography

वीरांगना रानी अवंतिका बाई का जीवन परिचय//virangana Avanti Bai ki biography

हमारे भारत देश में ऐसी बहुत सी वीरांगना हुई है जिन की कहानी सुन सुन के अच्छे-अच्छे वीर के रगों में खून उबलने लगता है उनमें से एक वीरांगना रानी अवंतिका बाई की कहानी बताने जा रहा हूं उनका जीवन परिचय और महत्वपूर्ण जानकारी इस आर्टिकल मिलेगी तो इस आर्टिकल  को पूरा पढ़ें।

वीरांगना रानी अवंतिका बाई का जीवन परिचय//virangana Avanti Bai ki biography
वीरांगना रानी अवंतिका बाई का जीवन परिचय//virangana Avanti Bai ki biography


Table of contents


रानी अवंतिका बाई का जीवन परिचय

रानी अवंतिका बाई के बारे में क्या जानते हैं?

रानी अवंतिका बाई का नारा क्या था?

रानी अवंतिका बाई कैसे मरी।

रानी अवंतिका बाई का किला क्यों प्रसिद्ध है?

रानी अवंतिका बाई का जन्म

रानी अवंतिका बाई पर निबंध

Rani Avantika Bai ka jivan Parichay

Rani Avantika bai par nibandh 

FAQ


जीवन परिचय

रानी अवंतिका बाई लोधी जी का जन्म 16 अगस्त 1831 को हुआ था, भारतीय राजपूत रानी शासक और स्वतंत्रता सेनानी थी। वह मध्यप्रदेश में रामगढ़ (अब डिंडोरी) की रानी थी। 18 57 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की एक विद्रोही के तहत उनके बारे में जानकारी कम है और लोक कथाओं में गाथाएं मिलती है।


जन्म स्थल ग्राम मनकेड़ी, जिला सिवनी मध्य प्रदेश

मृत्यु स्थल: देवहारगढ़, मध्य प्रदेश

आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम


रानी अवंतिका बाई मध्य भारत के रामगढ़ की रानी थी, 18 57 की क्रांति में ब्रिटिश के खिलाफ साहस भरे अंदाज से लड़ने और ब्रिटिश ओ की नाक में दम कर देने के लिए उन्हें याद किया जाता है, उन्होंने अपनी मातृभूमि पर देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।


अवंतिका बाई सन 1857 की अग्रणी थी। तत्कालीन रामगढ़ वर्तमान मध्यप्रदेश के मंडला जिले के अंतर्गत 4000 वर्ग मील में फैला हुआ था। सन 1850 ईस्वी में विक्रमाजीत सिंह रामगढ़ की गद्दी पर बैठे। राजा विक्रमाजीत का विवाह सिवनी जिले के मनेकहडि के जागीरदार राव झुझारसिंह की पुत्री अवंतिकाबाई से हुआ था। विक्रमाजीत भाऊजी योग्य और कुशल शासक थे। लेकिन धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण व राजकाज में कम धार्मिक कार्यों में ज्यादा समय देते थे। उनके दो पुत्र शेर सिंह और अमन सिंह छोटे ही थे कि विक्रमाजीत विलुप्त हो गए और राज्य का सारा भार अवंतिकाबाई के कंधों पर आ गया।


जब यह समाचार गोरी सरकार को मिला तो उसने 13 सितंबर 1851 को रामगढ़ राज की कोर्ट ऑफ वार्डस के अधीन कर दिया। इस अपमान से रानी उस समय तो खून का घूंट पीकर रह गई किंतु उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वह इसका बदला लेकर रहेगी। और तब तक चैन से नहीं बैठेगी जब तक देश को स्वाधीन ना करा लेगी, इसी बीच अचानक राजा विक्रमाजीत की मृत्यु हो गई। लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति का पूरे देश में तेजी से चलने लगा तो कई राज-रजवाड़े और जागीरदार अंग्रेजो के खिलाफ संगठित होने लगे।


रानी अवंतिका बाई ने आसपास के ठाकुरों रा जागीरदारों और राजाओं को एकत्र कर अंग्रेजों के विरोध का फैसला। गढ़ा मंडला के शासक शंकर शाह के नेतृत्व में विद्रोह के लिए विजयादशमी का दिन निश्चित किया। क्रांति का संदेश गांव गांव पहुंचने के लिए अवंतिका बाई ने अपने हाथ का लिखा परिचय भिजवाया, देश और आन के लिए मर मिटो या फिर चूड़ियां पहनो तुम्हें धर्म इंसान की सौगंध है जो इस कागज का पता दुश्मन को दो


20 मार्च 2858 को इस वीरांगना ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए युद्ध लड़ते हुए अपने आपको चारों तरफ से गिरजा देख स्वयं तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान बलिदान दे दिया।


उन्होंने अपने सीने में तलवार भोंकते वक्त कहा कि हमारी दुर्गावती ने जीते जी वेरी के हाथ से अंग न छुए जाने का प्रण लिया था, इसे ना भूलना बढ़ो उसकी अब बात भी भविष्य के लिए अनुकरणीय बन गई वीरांगना अवंती का भाई का अनुकरण करते हुए उनकी दासी ने भी तलवार भोग कर अपना बलिदान दे दिया और भारत के इतिहास में इस वीरांगना अवंतीबाई का ने सुनहरे अक्षरों में अपना नाम लिखा दिया।


कहा जाता है कि वीरांगना अवंतीबाई लोधी 1857 के स्वाधीनता संग्राम के नेताओं में अत्यधिक योग्य थी कहा जाए तो वीरांगना अवंती का बाई लोधी का योगदान भी उतना ही है जितना 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का था।

वीरांगना रानी अवंतिका बाई का जीवन परिचय//virangana Avanti Bai ki biography
वीरांगना रानी अवंतिका बाई का जीवन परिचय//virangana Avanti Bai ki biography

पता पर्वत विकास संस्था के जबलपुर जिले में बने डैम को भी उन्हीं का नाम दिया गया है, पोस्ट डिपार्टमेंट ने भी रानी अवंतिका बाई के नाम का स्टैंम्प जारी किया है महाराष्ट्र सरकार ने भी रानी अवंतिका बाई के नाम का स्टैंम्प जारी किया है।


पूरे देश में क्रांति का शुभारंभ हो चुका था।

देश की कुछ क्षेत्रों में क्रांति का शुभारंभ हो चुका था 1857 में 52वीं देसी पैदल सेना जबलपुर सैनिक केंद्र की सबसे बड़ी शक्ति थी। 18 जून को इस सेना के एक सिपाही ने अंग्रेजी सेना के एक अधिकारी पर घातक हमला। जुलाई 18 57 में मंडला के परगनादार उमराव सिंह ठाकुर ने कर देने से इंकार कर दिया और इस बात का प्रचार करने लगा के अंग्रेजों का राज्य समाप्त हो गया, अंग्रेजी विद्रोहियों को डाकू और लुटेरे कहते थे मंडला के डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन ने मेजर इस्कान से सेना की मांग की। पूरे महाकौशल क्षेत्र में विद्रोहियों की हलचल बढ़ गई गुप्त सभाएं और प्रसाद की पुड़ियों का वितरण चलता रहा इस बीच राजा शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह को दिए गए मृत्युदंड से अंग्रेजों की नृशंसता की व्यापक प्रक्रिया हुई। वे इस क्षेत्र के राज्य वंश के प्रतीक थे। इसकी प्रथम प्रतिक्रिया रामगढ़ में हुई। रामगढ़ के सेनापति ने भुआ बिछिया थाना में चढ़ाई कर दी। जिसे थाने के सिपाही थाना छोड़कर भाग गए और विद्रोहियों ने थाने पर अधिकार कर लिया। रानी के सिपाहियों ने गोगरी पर चढ़ाई कर उस पर अपना अधिकार कर लिया और वहां के तालुके दार धन सिंह की सुरक्षा के लिए उमराव सी को जिम्मेदारी सौंपी। रामगढ़ के कुछ उपाय एवं विकास के जमीदार भी नारायणगंज पहुंच कर जबलपुर मंडला मार्ग बंद कर दिया इस प्रकार पूरा जिला और रामगढ़ राज्य में विद्रोह भड़क चुका था और वाडिंग्टन विद्रोहियों को कुचलने में असमर्थ हो गया था। वह विद्रोहियों की गतिविधियों से भयभीत हो चुका था।


महारानी अवंतिका बाई ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के साथ बैतूल से डटकर सामना किया था अवंतिका बाई ने अंग्रेजों से लंबा संघर्ष करते हुए अपने जीवन की आहुति दी थी।


FAQ

1-रानी अवंती बाई के बारे में आप क्या जानते हैं?

रानी अवंतीबाई लोधी (जन्म 16 अगस्त 1831) एक भारतीय राजपूत रानी-शासक और स्वतंत्रता सेनानी थीं। वो मध्य प्रदेश में रामगढ़ (अब डिंडोरी) की रानी थीं। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की एक विरोधी के तरह, उनके बारे में जानकारी कम है और लोककथाओं से ज़्यादातर वक्त आती है।


2-रानी अवंती बाई का नारा क्या था?

रानी के दो पुत्र हुए अमन सिंह व शेर सिंह। राजा विक्रमादित्य बीमार होने से वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी ने अंग्रेजों से स्वयं लड़ती रही। रानी ने जिगर में जान है लोधी की पहचान है का नारा देते हुए गुलामी नहीं बलिदानी सही कहते 20 मार्च 1858 को शहीद हो गई।


3-रानी अवंती बाई कैसे मरी?

अवंतीबाई ने अंग्रेजों से लम्बा सघर्ष करते हुए अपने जीवन की आहुति दी थी। 20 मार्च सन 1858 ई : को युद्ध में अपने -आपको चारों तरफ़ से अंग्रेज सेना से घिरा हुआ देख खुद को तलवार से जख्मी कर देश के लिए बलिदान दिया था।


4-रानी अवंती बाई किला क्यों प्रसिद्ध है?

20 मार्च, 1858 को अंग्रेजों की विशाल सेना से रानी अवंतीबाई ने अपने कुछ सैनिकों के साथ साहस और वीरता के साथ युद्ध किया, लेकिन जब रानी को आभास हुआ कि उनकी मृत्यु निकट है तो उन्होंने रानी दुर्गावती का स्मरण करके अपनी ही तलवार से स्वयं के प्राण मातृभूमि के रक्षार्थ अर्पण कर दिए!


5-रानी अवंती बाई का विवाह कब हुआ था?

1857 की क्रांति ओर रानी अवंती बाई लोधी

1850 ईस्वी में मोहन सिंह के वंशज विक्रमाजीत रामगढ़ की गद्दी पर बैठे। राजा विक्रमाजीत का विवाह सिवनी जिले के मनकेहड़ी के जागीरदार राव जुझार सिंह की पुत्री अवंती बाई के साथ हुआ।


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