भारत में आरक्षण की समस्या पर निबंध | problem of Reservation system in Hindi Essay
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट पर आज यहां हम आरक्षण की समस्या पर निबंध सरल भाषा में बता रहे हैं और अगर इस लेख को पढ़ने के बाद हम जान पाएंगे कि आरक्षण क्या है आरक्षण की क्या समस्या है क्या हानि है क्या लाभ है इस पर चर्चा करेंगे तो आप पोस्ट के अंत तक जरूर बन रहे और अगर आपको यह पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तों में शेयर करना बिल्कुल भी ना भूले।
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भारत में आरक्षण की समस्या पर निबंध | problem of Reservation system in Hindi Essay |
Table of contents
आरक्षण क्या है?
आरक्षण अपने अधिकारों की ऐसी लड़ाई थी जिसके लिए आवाज उठानी जरूरी हो गई थी पुराने समय से विभाजित कर वर्गों में से एक शूद्र वर्ग तथा महिलाओं की सुरक्षा को देखते हुए, और भी ऐसे कई मुख्य आधार थे जिससे कुछ लोग जो बहुत पिछड़ते जा रहे थे उन लोगों के लिए आरक्षण का एक सुरक्षा कवच था। आरक्षण एक तरीके से विशेष अधिकार है उन लोगों के लिए जिन पर शोषण हो रहा था सभी को सामान्य व स्वतंत्रता से जीवन जीने के लिए आरक्षण की आवश्यकता पड़ी।
शिक्षा प्रणाली में आरक्षण
वंचित समूहों के लिए पहुंच और प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लक्ष्य के साथ, भारत में शिक्षा प्रणाली में आरक्षण भी लागू किया गया है। ये आरक्षण अक्सर कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर प्रदान किए जाते हैं, और जाति, जनजाति और सामाजिक आर्थिक स्थिति सहित विभिन्न कारकों पर आधारित हो सकते हैं।
हाल के वर्षों में, भारत में आरक्षण की प्रभावशीलता और निष्पक्षता के बारे में और अन्य समूहों पर अनपेक्षित परिणामों या नकारात्मक प्रभावों की संभावना के बारे में बहस और चर्चा चल रही है। आरक्षण का मुद्दा जटिल और बहुआयामी है, और इसका कोई आसान समाधान या एक आकार-फिट-सभी दृष्टिकोण नहीं है।
आरक्षण का इतिहास (Reservation History )
भारत मे, आरक्षण की प्रथा सदियों पुरानी थी . कभी किसी रूप मे तो, कभी किसी रूप मे, दलितों का शोषण होता है. दलित वर्ग के लोगो को, कभी सम्मान नही देना उनका अपमान करना . उन्हें आजादी से, उठने बैठने तक की स्वतंत्रता नही थी . इसके लिये डॉ भीमराव अम्बेडकर ने, सबसे पहले दलितों के लिये आवाज उठाई और उनके हक़ की लड़ाई लड़ी, तथा उनके लिये कानून बनाने की मांग की, व उनके लिये कानून बनाये गये. ऐतिहासिक तथ्यों और पुरातात्विक स्त्रोतों के माध्यम से, पता चलता है भारत से, आरक्षण का सम्बन्ध बहुत ही पुराना है . बस फर्क सिर्फ इतना है कि, समय के साथ इसके रूप बदलते गये. आखिर ये आरक्षण था क्या, और कहा से इसकी उपज हुई इसके मुख्य आधार क्या थे . क्या यह सिर्फ जाति के आधार पर था ? ऐसे बहुत सारे प्रश्न है जिसे हर कोई जानना चाहता है.
पहले के समय मे धर्म, मूलवंश,जाति, व लिंग यह सभी मूल आधार थे आरक्षण के. हमने बहुत सी बाते , कहानी के रूप मे सुनी है कुछ तो देखी भी है, जैसे – प्राचीन प्रथाओ के अनुसार, पंडित का बेटा पंडित ही बनेगा , डॉक्टर का बेटा डॉक्टर ही बनेगा, और साहूकार का साहूकार ऐसी, प्रथा चली आ रही थी. यह निर्धारण जाति का, उस व्यक्ति के कुल के आधार पर था. ठीक उसी प्रकार, एक महिला वर्ग जिसे, सिर्फ पर्दा प्रथा का पालन करना पड़ता था वो, अपनी जिन्दगी खुल कर नही जी सकती थी , एक महिला हर चीज़ के लिये, किसी न किसी पर निर्भर हुआ करती थी. शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र मे, भी उच्च वर्ग का वर्चस्व फैलने लगा . इसका बहुत ही सामान्य उदहारण, हमारे घरों मे, कई बार देखने को मिलता है यदि कोई, कामवाली या नौकर भी रखा जाता है तो, रखने के पहले सबसे पहले उसकी जाति पुछी जाती है ,ऐसा क्यों ? क्या वह मनुष्य नही है ? क्या उन्हें , समानता व स्वतंत्रता का अधिकार नही है ? यह सभी आरक्षण का मूल आधार बने .
आरक्षण के उद्देश्य
जब व्यक्ति को अपने समान अधिकार भी ना मिले तब वह अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करता है। आरक्षण का मुख्य उद्देश्य ही सभी को सभी क्षेत्र में समानता का अधिकार दिलाना है किसी भी रूप से किसी के अधिकारों का हनन न हो पाए। और कोई अपने अधिकारों का दुरुपयोग भी ना करें, यह आरक्षण का मुख्य आधार है।
आरक्षण: लाभ और हानि
आरक्षण को भारतीय समाज का सबसे अधिक ज्वलंत मुद्दा कहा जा सकता है। प्रायः विद्वानों ने समय-समय पर इसके महत्व को और इसके दुष्प्रभाव को रेखांकित किया है। आरक्षण का सवाल सर्वप्रथम भारतीय समाज में डॉ। भीमराव अम्बेडकर के द्वारा उठाया गया। उन्होंने अपनी प्रबल बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए नाना प्रकार से उसके परिवर्तनकारी स्वरूप का उद्घाटन किया और उसी समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसकी परिवर्तनकारी भूमिका में अपनी ऐतिहासिक आशंकाएं भी व्यक्त की थीं। इस प्रकार की परस्पर प्रतिकूल विचार-विमर्श की स्थिति भारतीय समाज, राजनीति और इतिहास में निरन्तर बनीं रहीं है।
सर्वप्रथम, हम आरक्षण की मूल अवधारणा को स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं। इसके बाद हम उसके लाभ और हानि पर विचार सहजता से कर सकेगें। आप सभी इस तथ्य से पूर्णत: परिचित होंगे कि भारतीय समाज प्राचीन समय से ही एक धार्मिक और जाति-आधारित व्यवस्था को स्वीकार करने वाला समाज रहा है। प्रायः विद्वानों ने भारतीय समाज को जातियों का समाज कहा है। हम भी इस वास्तविकता से अपना मुँह नहीं फेर सकते हैं। भारतीय समाज और सभ्यता के निर्माणक ऋषि-मुनियों ने मानव समाज को चार प्रमुख वर्षों में विभाजित किया था जिन्हें ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कहकर प्रायः सम्बोधित किया जाता है। इन संज्ञाओं को तात्विक रूप से वर्ण कहा जाता है, जाति नहीं। जाति इन वर्गों का विस्तृत रूप है।
एक ही वर्ण के लोगों में कई-कई जातियां हो सकती हैं, ऐसा हम प्राय: अपने हिन्दू समाज में देखते ही हैं। इसी कारण समय अति दीर्घ प्रवाह के उपरांत हमारा समाज हजारों जातियों वाला एक अत्यधिक संश्लिष्ट और भीतर से विभाजित समाज बन गया। आपने स्वयं भी कई बार अपने निवास स्थन के आस-पास या कुछ दूरी पर ऐसी छोटी-छोटी बस्तियों को अवश्य देखा होगा, जो गंदगी से बुरी तरह से भरे होते हैं और वहां रहने वाले लोगों ऐसे कार्यों में संलग्न देखा होगा जिन्हें आप कभी भी नही करना चाहेंगे। ये बस्तियों अछूतों, दलितों और शूद्रों की बस्तियां होती हैं। जिस समय भारतीय राजनीति में डॉ भीमराव अम्बेडकर का आविर्भाव हुआ, तो उन्होंने समग्र भारतीय समाज के समक्ष इन अछतों, दलितों और शद्रों की अत्यंत अभावग्रस्त और शोचनीय स्थिति को प्रस्तुत किया। उन्होंने इस समाज की दरिद्रता को देश के अन्य बड़े-बड़े नेताओं के समक्ष विचार हेतु रखा और प्रस्तावित किया। डॉ भीमराव अम्बेडकर ने इस समाज की दरिद्रता के प्रधान कारक के रूप में जिसका उल्लेख किया वह थी जाति । डॉ अम्बेडकर का यह स्पष्ट मानना था कि इस अछत समाज का जो भयावह आर्थिक शोषण आज तक होता रहा है, इस शोषण का प्रधान आधार जाति व्यवस्था ही रही है। अत: इस अछूत समाज में व्याप्त विकराल दरिद्रता को तोड़ने और समाप्त करने के लिए उन्हें उनकी इस जातिगत पहचान के रूप में ही संवैधानिक आरक्षण प्रदान किया जाए, ताकि दलितों और अछूत समाज के विकास को संवैधानिक और प्रशासनिक रूप से सुनिश्चित किया जा सके।
निष्कर्ष
आरक्षण की बैसाखी के सहारे यदि कोई आयोग व्यक्ति किसी पद पर पहुंचता है तो उस देश का विकास नहीं हो सकता देश का विकास तभी होगा तब जब योग व्यक्ति पद पर आएगी और यह तभी संभव है जब इस आरक्षण को हटाया जाए या तो आर्थिक आधार पर लागू किया जाए। ताकि सभी जातियों के लिए एक समान तरीके से रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सके और योग व्यक्ति का चयन हो सके।
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