स्कंदगुप्त का जीवन परिचय व इतिहास | skandgupt history biography Hindi
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स्कंदगुप्त का जीवन परिचय व इतिहास | skandgupt history biography Hindi |
Table of contents
स्कंद गुप्त का जीवन परिचय
स्कंद गुप्त कुमारगुप्त प्रथम का पुत्र था। कुमारगुप्त प्रथम के 3 पुत्र थे स्कंद गुप्त गुप्त एवं तृतीय बुध गुप्त स्कंद गुप्त ने 455 ईसा से 467 साल तक राज्य किया. गढ़वा अभिलेख से जो चांदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं, उसमें 467 ऐसा की तिथि तय हुई है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह सिक्के उसके शासन के अंतिम समय के थे।
स्कंद गुप्त का शासन (reign of skandgupt) |
गिटारी अभिलेख के मुताबिक स्कंद गुप्त के पिता के देहांत हो जाने के बाद उसने 445 456 ईसवी (136 वां गुप्त वर्ष) को गुप्त वंश की राजगद्दी पर बैठा।
राजा बनने की शुरुआती समय में ही उसे हूण जातियों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। हूण उस समय बहुत शक्तिशाली और धनवान बन गए थे। जो समुद्रगुप्त के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुके थे।
उन्होंने उसके पिता कुमारगुप्त प्रथम के शासन के समय है राज्य की कुछ भागों पर अधिकार कर लिया था। वह राज्य के उन भावों को वापस पाना चाहता था।
स्कंद गुप्त ने एक रात नग्न धरती पर बिताई और अगले दिन भयंकर युद्ध करके उसने हूणो को हरा दिया। इस विजय के बाद वह अपनी विधवा मां से मिलने गया।
हूणो को पुष्यमित्र या म्लेच्छ भी कहा गया है। पुराणों के अनुसार हूण नर्मदा नदी के किनारों के क्षेत्र में रहते थे। कुछ मतों के अनुसार स्कंद गुप्त ने अपने पिता की मृत्यु के बाद सैन्य बल से राज सिंहासन पर अधिकार कर लिया। तथा उसने खुद को गुप्त साम्राज्य का सम्राट घोषित किया।
स्कंद गुप्त व हूणो के मध्य युद्ध (battle between skandgupt & Hunas)
कुमारगुप्त प्रथम के शासन किया अंतिम वर्षों में हूणो ने अपना विद्रोह तेज कर दिया था उस समय स्कंदगुप्त राजकुमार था। उन्होंने आक्रमण की योजना बना ली थी।
एक धारणा के मुताबिक, स्कंद गुप्त को होणो को दबाने के लिए भेजा गया था। पीछे से राजधानी में उसके पिता कुमारगुप्त प्रथम का देहांत हो गया। जिसकी वजह से उसे वापस राजधानी जाकर राज सिंहासन पर अधिकार जमाना पड़ा।
उसने हूणो को अपनी भयंकर प्रताप और वीरता से कुचल दिया इस विजय के बाद वह सीधा अपनी माता से मिलने गया था। हूणो का आक्रमण लगभग 455-456 ईशा को हुआ था। यानी कि उसकी राजा बनने से पहले.
स्कंद गुप्त ने सौर आप ताकत से हूणो को हराकर अपने शासन को ही नहीं बल्कि राज्य की प्रजा को भी भयंकर अन्याय व अशांति से बचा लिया। जूनागढ़ अभिलेख पर भी हूणो के इस आक्रमण का पता चलता है।
साम्राज्य विस्तार
स्कंद गुप्त को अपने पिता एवं पिता महा से जो एक विशाल साम्राज्य प्राप्त हुआ था। उसने अपने बाहुबल से उसे अक्षुण्ण बनाए रखा। इतना ही नहीं बराबर एवं म्लेच्छ हूणो को पराजित कर देश से बाहर निकालने के लिए विवश कर दिया। स्कंद गुप्त का साम्राज्य पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। स्कंद गुप्त की मृत्यु के पश्चात गुप्त वंश के कोई ऐसे शासक ना हुए जो इस विस्तृत साम्राज्य की रक्षा कर सकें।
वाकाटको के साथ युद्ध
कालाघाट ताम्रपत्र व वाकाटक नरेश नरेंद्र सिंह का मालवा का अधिपति कहां गया, इस आधार पर कुछ विद्वानों ने यह मत प्रतिपादित किया है। कि जिस समय स्कंद गुप्त पुष्य मित्रों एवं हूणो के विरुद्ध लड़ रहा था तो इस अवसर का लाभ उठाकर वकाटक नरेश नरेंद्र सेन ने गुप्त साम्राज्य के मालवा प्रांत पर अधिकार कर लिया। परंतु यह मत उचित नहीं प्रतीत होता क्योंकि इस समय वाकाटक नरेश नरेंद्र सेन एवं वस्तर राज्य के नरेश भगत वर्मन के आक्रमणों से परेशान था। दूसरे गुप्त अभिलेख पुरुष मित्रों एवं हूणो के आक्रमण का तो वर्णन करते हैं, परंतु वाकाटको के साथ युद्ध का कहीं उल्लेख नहीं मिलता।
स्कंद गुप्त का धर्म एवं धार्मिक नीति (religion and Resilious policy of skandgupta)
अपने पूर्वजों की भांति स्कंद गुप्त भी एक धर्मनिष्ठ वैष्णव था , तथा उसकी उपाधि परम भागवत की थी। उसने भितरी में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। गिरनार में चक्र पाल इतने भी सुदर्शन झील के तट पर विष्णु की मूर्ति स्थापित करवाई। परंतु स्कंद गुप्त धार्मिक मामलों में पूर्णरूपेण उदार एवं सहिष्णु था।
उसने अपने साम्राज्य में अन्य धर्मों को विकसित होने का भी अवसर दिया। उसकी प्रजा का दृष्टिकोण भी उसी के सामने उधार था। इंदौर में लेख में सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। कहौम से पता चलता है, मद नामक एक व्यक्ति ने पांच जैन तीर्थ करो कि पाषाण प्रतिमाओं का निर्माण करवाया था। यद्यपि वह एक जैन था तथापि ब्राह्मणों श्रमिकों एवं गुरुओं का सम्मान करता था। इस प्रकार स्कंद गुप्त का शासन धार्मिक सहयोग एवं उदारता का काल रहा।
उत्तराधिकारी (Successor)
स्कंदगुप्त ने 467-468 ईस्वी (गुप्त वंश का 148 वें वर्ष) तक शासन किया। स्कंदगुप्त के बाद उसका भाई पुरुगुप्त गुप्त साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा जो उसका सौतेला भाई था। पुरुगुप्त कुमारगुप्त प्रथम व अनंता देवी का पुत्र था।
ऐसा कहा जाता है कि पूरुगुप्त की माता एक विशिष्ट रानी थी जिसके कारण पुरुगुप्त राजा बन पाया। पिता कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु के समय संभवतया पूरुगुप्त एक छोटा बालक था जिसकी वजह से स्कंदगुप्त (Skandagupta) सम्राट बना था।
पुरुगुप्त (467 ई.-473 ई.), कुमारगुप्त द्वितीय (473 ई.-476 ई.), बुद्धगुप्त (476 ई.-495 ई.?) और नरसिम्हागुप्त जैसे दुर्बल शासकों ने गुप्त साम्राज्य को विघटन की ओर पहुंचाया।
स्कंदगुप्त का जीवन परिचय व इतिहास | skandgupt history biography Hindi |
सम्राट स्कंदगुप्त (Skandagupta) गुप्त साम्राज्य का एक अमूल्य सम्राट था जिसके अंदर एक प्रतापी शासक के गुण थे। उसको खोने के बाद गुप्त साम्राज्य विघटन की ओर चलता गया। लगभग 50 वर्षों के बाद हूणों ने भारत पर लगातार आक्रमण किए जिससे गुप्त साम्राज्य लुप्त हो गया।
स्कंद गुप्त की मृत्यु (death of skandgupt)
स्कंद गुप्त की मृत्यु 467 ईशा के बाद हुई थी। उसकी मृत्यु की निश्चित वर्ष का ही कहीं उल्लेख नहीं है। उसने 467 इ. गुप्त साम्राज्य पर शासन किया था, उसके बाद उसने शासन छोड़ दिया था।
कुछ इतिहासकार यह भी बताते हैं कि उसने 467 ईसवी के बाद तक भी शासन किया था परंतु इस बात का कहीं साक्ष्य नहीं मिले हैं।
FAQ-question
Q. स्कंद गुप्त का पुत्र कौन था?
Ans- स्कंद गुप्त के पिता कुमारगुप्त प्रथम थे जो कि गुप्त साम्राज्य के एक सम्राट थे। उसकी माता राज्य की एक छोटी रानी थी । स्कंद गुप्त का एक अर्ध (सौतेला) भाई था जिसका नाम पूर्रुगुप्त था।
Q.गुप्त वंश के अंतिम शासक कौन था?
Ans- कुमारगुप्त वह 24 वा शासक बना। कुमारगुप्त यदि गुप्त वंश का अंतिम शासक था।
Q. गुप्त वंश का प्रथम सम्राट कौन था?
Ans-साम्राज्य का पहला शासक चंद्रगुप्त प्रथम था, जिसने विवाह के द्वारा गुप्तों को लक्ष्यों के साथ जोड़ा. उनके पुत्र प्रसिद्ध समुद्रगुप्त की विजय के माध्यम से साम्राज्य का विस्तार किया.
Q. गुप्त वंश का पहला राजा कौन था?
Ans-चंद्रगुप्त प्रथम (319 -334) ऐसा गुप्त वंश का प्रथम महान शासक चंद्रगुप्त प्रथम था.
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