UP board live solution for class 12th sahityik Hindi पद्द chapter-6 रामधारी सिंह "दिनकर"
कक्षा-12 हिंदी
पाठ-6 पूरूरवा, उर्वशी, अभिनव- मनुष्य
लेखक का नाम- रामधारी सिंह "दिनकर"
प्रश्न- रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
रामधारी सिंह दिनकर के जीवन परिचय एवं कृतियों का उल्लेख कीजिए
अथवा
रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों और काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
जीवन परिचय- कविवर रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गांव में 23 सितंबर सन 1908 को हुआ था। इनके पिता श्री रवि सिंह एवं माता मंदिर देवी थी। बचपन में ही पिता की छत्रछाया से ये वंचित हो गए तथा पालन पोषण जी माताजी ने ही किया। इन्होंने मोकामा घाट से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। पटना कॉलेज से इन्होंने सन 1933 में b.a. किया और फिर एक स्कूल में अध्यापक हो गए। उन दिनों भारत में अंग्रेजों का शासन था और अंग्रेजी सरकार का कोई भी कर्मचारी उस सरकार के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता था। तो भी दिन करने राजकीय सेवा के काल में भी स्वदेशानुराग
की भावना से ओतप्रोत, पीड़ितों के प्रति सहानुभूति की भावना से परिपूर्ण और क्रांति की भावना जगाने वाली रचनाएं लिखीं।
सन 1950 में इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। सन 1952 में इन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया और ये दिल्ली आकर रहने लगे। दिनकर की काव्य साधना निरंतर जारी रही। सन 1961 में इनका बहुचर्चित काव्य "उर्वशी" प्रकाशित हुआ और इसी रचना पर इन्हें सन 1972 में एक लाख रुपए का ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने इनको साहित्य सेवा के लिए "पदम भूषण"से गौरवान्वित किया। सन 1964 में केंद्रीय सरकार की हिंदी समिति का परामर्शदाता बनाया गया। इस पद से अवकाश ग्रहण करने के अनंतर ये पटना में रहने लगे। इनके जवान बेटे की मृत्यु ने इस ओजस्वी व्यक्तित्व को सहसा खंडित कर दिया और तिरुपति के देवविग्रह को अपनी व्यथा-कथा समर्पित करते हुए "दिनकर" 24 अप्रैल सन 1974 को मद्रास में अस्त हो गए।
साहित्यिक परिचय एवं व्यक्तित्व- दिनकर जी प्रारंभ से लोक के प्रति निष्ठावान, सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति सजग और जनसाधारण के प्रति समर्पित कवि रहे हैं। तभी तो इन्होंने छायावादी कवियों की भांति काव्य-रचना न करके "रेणुका" का आलोक छिटकाया। फिर "रसवंती" के प्रणयी गायक के रूप में इनका कुसुम कोमल व्यक्तित्व प्रकट हुआ। लेकिन देश की विषम परिस्थितियों की पुकार ने कवि को भावुकता, कल्पना और स्वप्न की रंगीन लोक से खींचकर ऊबड़-खाबड़ धरती पर लाकर खड़ा कर दिया तथा शोषण की चक्की में पिसते हुए जनसाधारण और उनके भूखे-नंगे बच्चों का प्रबल समर्थक बना दिया; फिर देश के मुक्ति राग के ओजस्वी गायक के रूप में इनका व्यक्तित्व निखर उठा।
रचनाएं- दिनकर जी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-
कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, प्राण भंग, उर्वशी, बारदोली-विजय, धूप छांव, बापू, इतिहास के आंसू , मिर्च का मजा, दिल्ली, रेणुका हुंकार, रसवंती, द्वंद गीत, सामधेनी, धूप और धुंआ, नीम के पत्ते, नील कुसुम, आत्मा की आंखें, रेती के फूल, अर्धनारीश्वर, मिट्टी की ओर, भारतीय संस्कृति के चार अध्याय आदि गद्द रचनाएं हैं।
पद्यांशों के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर-
1. मर्त्य मानव…………. उसे मुस्कान से।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश राष्ट्रकवि "रामधारी सिंह दिनकर" विरचित महाकाव्य "उर्वशी" के "पुरुरवा" शीर्षक, जो हमारी पाठ्यपुस्तक पर काव्य खंड में संकलित है, से लिया गया है।
प्रसंग- इस पद्यांश में उर्वशी नामक अप्सरा स्वर्ग से एक सरोवर पर उतरती है। उसकी भेंट पुरुरवा से होती है। पुरुरवा उस पर मोहित होकर उसके समक्ष अपनी शक्ति का परिचय देते हैं।
व्याख्या- पुरुरवा उर्वशी के सामने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए कहता है कि हे उर्वशी! मैं मरणशील मनुष्य की विजय का शंखनाद हूं अर्थात मेरी शक्ति इस संसार में मानव की वीरता का परिचय देने वाली है। मैं समय को आलोकित करने वाला सूर्य हूं। मैं अंधकार के मस्तक पर अग्निशिखा प्रज्वलित कर उसका सर्वनाश करने में समर्थ हूं। मैं बालों के ऊपर अपना रथ चलाता हूं अर्थात मैं हर जगह निर्बाध रूप से गमन कर सकता हूं।
पूरूरवा कहता है कि हे उर्वशी! न जाने क्या विचित्र बात है कि जो पुरुष इंद्र के वज्र का प्रहार भी झेल सकता है। जो सिंह के साथ बाहें मिलाकर खेल सकता है अर्थात सिंह के साथ कुश्ती लड़ सकता है, वही बलशाली पुरुष एक फूल के समान कोमल नारी के सामने असहाय हो जाता है। वह शक्ति के होते हुए भी उपायहीन हो जाता है। उसकी सारी शक्ति धरी रह जाती है। नारी की चितवन के एक ही बाण से उसका हृदय बिंध जाता है। एक रूपवती सुंदरी केवल मुस्कान से ही उसे जीत लेती है।
काव्यगत सौंदर्य -
1. पुरुष के शारीरिक बल से नारी का रूप बल बड़ा है। नारी अपनी चितवन से कठोर से कठोर पुरुष को भी अपने वशीभूत कर लेती है।
2. अलंकार- रूपक तथा अनुप्रास
3.रस- वीर तथा श्रंगार
4. भाषा- सशक्त एवं खड़ी बोली
5.शैली- प्रभावोत्पादक प्रबंध शैली
6. गुण- ओज गुण
7. शब्दशक्ति- लक्षणा
2.आज की दुनिया…………. एक समान।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के काव्यखंड में संकलित "अभिनव-मनुष्य" नामक कविता से लिया गया इसके रचयिता श्री रामधारी सिंह दिनकर जी हैं।
प्रसंग- इस पद्यांश में कवि ने बताया है कि आज मनुष्य ने प्रकृति की समस्त शक्तियों को अपने वश में कर लिया है।
व्याख्या- आज का यह संसार बहुत अनोखा है और बिल्कुल ही नवीनता को प्राप्त हो गया है। आज मनुष्य सब जगह प्रकृति पर विजय प्राप्त किए हुए बैठा है। पानी, बिजली और भाप भी मनुष्य के हाथों में बने हुए हैं। वायु की गर्मी भी मनुष्य के आदेश अनुसार ही चढ़ती या उतरती है। मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार प्रकृति की समस्त शक्तियों को वश में किए हुए है और उनसे समस्त प्रकार की भौतिक सुख सुविधाओं को प्राप्त कर रहा है। उनके मार्ग में कहीं कोई भी रुकावट नहीं है। आज वह नदी, पर्वत और सागर को समान रूप से सरलता से पार कर सकता है।
काव्यगत सौंदर्य-
1. मनुष्य की अपार एवं अबाध भौतिक उन्नति का दिग्दर्शन कराया गया है।
2. अलंकार- अनुप्रास अलंकार
3.रस- वीर रस
4. भाषा- शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली
5. शैली- वर्णनात्मक, सरल एवं प्रबंध
6. गुण- ओज
7. शब्दशक्ति- अभिधा- व्यंजना
Writer- Nitya Kushwaha
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