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आन का मान का सारांश (हरि कृष्ण प्रेमी)
प्रश्न- आन का मान नाटक का मूल स्वर है विश्व बंधुत्व और मानवतावाद इस कथन की समीक्षा कीजिए|
अथवा
आन का मान नाटक की कथावस्तु कथा कथानक संक्षेप में लिखिए|
अथवा
आन का मान नाटक का कथासार सारांश लिखिए|
उत्तर -हरि कृष्ण प्रेमी द्वारा रचित आन का मान नाटक पूर्णतया एक भावना प्रधान नाटक है उन्होंने संपूर्ण नाटक में भावात्मक को व्यवहारिकता के धरातल पर उसके आदर्श रूप में प्रस्तुत किया है| नाटक के भावात्मक आदर्श को यहां दिए जा रहे कथा साल में सोदाहरण स्पष्ट किया गया है नाटक की कथावस्तु संक्षेप में यहां प्रस्तुत है_
प्रथम अंक का कथासार
नाटक का आरंभ रेगिस्तान के एक रेतीले मैदान से हुआ है अकबर तूती का पुत्र बुलंद अख्तर और पुत्री सफीयतुननसा बात करते हुए प्रवेश करते हैं| दोनों की बातचीत से मुगलों के अत्याचार एवं राज्य सत्ता के लिए चलते हुए संघर्ष का पता चलता है उसी समय वीर दुर्गादास राठौर प्रवेश करता है|
इन सभी के पारस्परिक वार्तालाप से यह इस बात की जानकारी मिलती है कि अपने पिता औरंगजेब की राष्ट्र विरोधी नीतियों का विरोध करते हुए उसका बेटा अकबर द्वितीय उससे अलग हो गया और उसकी मित्रता दुर्गादास राठौर से हो गई| अकबर द्वितीय दुर्गा दास ने सम्राट घोषित कर दिया था औरंगजेब की एक चाल से यह सपना अधूरा रह गया राजपूतों ने उसकी सहायता बंद कर दी और उसे ईरान चले जाना पड़ा|
सफीयत और बुलंद अख्तर अकबर की संताने हैं जिनके पालन पोषण का भार दुर्गादास ने अपने ऊपर लिया था|
बुलंद अख्तर और सफीयतुननसा युवा हो जाते हैं जोधपुर का शिशु शासक अजीत सिंह भी युवा होकर राज्य का शासन बार संभाल लेता है| राजकुमार अजीत सिंह सफीयतुननसा के प्रति आसक्त हो जाता है और उस से प्रेम करने लगता है| तबियत उसे डालती है क्योंकि उन दिनों हिंदू युवक और मुसलमान युवती का विवाह होना संभव नहीं था सफीयत के प्रति अजीत सिंह का प्रेम प्रवाह देखकर दुर्गा दास नाराज होता है| वह उसे राजपूती आन और मान का ध्यान दिलाता है_
" मान रखना राजपूत की आन होती है और इस बात का मान रखना उनके जीवन का व्रत होता है"
द्वितीय अंक का कथासार
इस नाटक के सर्वाधिक मार्मिक स्थलों से संबंधित दूसरे अंक की कथा भीम नदी के तट पर स्थित ब्रह्मा पुरी से प्रारंभ होती है| औरंगजेब ने इस नगरी का नाम इस्लाम पूरी रख दिया है औरंगजेब की दो पुत्रियां मेहरून्निसा व जीनतुननिसा आती हैं|
जिस समय वसीयत लिखी जा रही होती है तभी ईश्वरदास दुर्गादास को बंदी बनाकर औरंगजेब के पास लाता है औरंगजेब क्रोधित होकर दुर्गादास को मारने की धमकी देता है ईश्वर दास विरोध करता है और तलवार खींच लेता है अपने बेटे अकबर द्वितीय के पुत्र बुलंद एवं सफीयतुननसा पाने के लिए औरंगजेब दुर्गादास से सौदेबाजी करता है परंतु दुर्गादास अस्वीकार कर देता है|
तृतीय अंक का कथा सार
तीसरे आंटी की कथा सफियत के गाने से प्रारंभ होती है सफीयत गाते समय अजीत सिंह भी वहां आ जाता है| वह सफीयत को अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता है परंतु सफियत अपने को विधवा बताकर अजीत सिंह के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती| यद्यपि अजीत अनेक प्रमाण प्रस्तुत करता है परंतु सफियत अजीत सिंह को लोक हित के लिए आत्मिहत करने की सलाह देती है_
"महाराज प्रेम केवल भोग की ही मांग नहीं करता वह त्याग और बलिदान भी चाहता है"
प्रश्न- नायक दुर्गादास का चरित्र चित्रण
हरि कृष्ण प्रेमी द्वारा रचित आन का मान नाटक का प्रमुख पात्र वीर दुर्गादास राठौर है| नाटक का सारा घटनाक्रम उसके चारों ओर ही घूमता है नाटककार ने वीर दुर्गादास को उच्चतम मानवीय गुणों से अलंकृत किया है|
दुर्गादास की चारित्रिक विशेषताओं को हम इस प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं_
1- राजपूती शान का समर्थक- दुर्गा दास राजपूती शान का सदैव समर्थक रहा है वह कहता है राजपूतों की तलवार सदा सत्य न्याय स्वाभिमान और स्वदेशी रक्षक हो कर रही है|
2 स्वामी भक्त -दुर्गा दास अपने जीवन की तनिक भी परवाह नहीं करता है वह अपने प्राणों को दांव पर लगाकर औरंगजेब के क्रोध की भी परवाह ना कर जसवंत सिंह के एकलौता पुत्र कुंवर अजीत सिंह की रक्षा करता है और उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देता है| कासिम खां दुर्गादास के विषय में कहता है संसार भर में हार में दीपक लेकर घूम आएंगे तब भी दुर्गादास जैसा शुभचिंतक और वीर स्वामी भक्त और निश्चल व्यक्ति ना पाएंगे|
3- निर्भीक- दुर्गा दास में निर्भीकता कूट का कूट कूट कर भरी हुई है वह किसी भी अनुचित बात को स्वीकार नहीं करता वह सफीयत को लेकर अकबर द्वितीय को ही सौंपना चाहता है दुर्गादास की निर्भीकता के संबंध में औरंगजेब कहता है_
देखो यह दुर्गादास हमारे सामने कैसा निशंक और निर्भय खड़ा है ध्रुव तारे की तरह स्थिर और पर्वत की भांति अडिग|
4 - मानवतावादी दृष्टिकोण
5- हिंदू मुस्लिम एकता का प्रवल पोशक
6- राष्ट्रीय भावना से प्रेरित
7- सच्चा मित्र
8- सुशासन का समर्थक
9- कर्तव्य परायण
दुर्गा दास कर्तव्य परायण व्यक्ति है वह सदैव कर्तव्य को प्रधानता देता है अजीत और सफियत के विवाह को वह अनुचित मानता है| अजीत के नाराज होने पर उसके देश त्याग के आदेश को शिरोधार्य करके कर्तव्य भावना के कारण ही वह मारवाड़ छोड़ देता है|
संक्षेप में दुर्गादास उच्चतम मानवीय गुणों से युक्त स्वामी भक्त राष्ट्रवादी कर्तव्य परायण निश्चल सरल हृदय अपनी जाति के गौरव को महत्व देने वाला सच्चा मित्र हिंदू मुस्लिम एकता का समर्थन निर्भीक एवं स्वाभिमानी | तथा वह इस नाटक का नायक है |उसकी चारित्रिक विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है |कि वह एक और तलवार का धनी था तो साथ ही उसको उच्च कोटि का मानव भी था|
Writer dipaka kushwaha
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