Up board live class-10th hindi पद्य खंड solution पाठ- 7 स्वदेश प्रेम (रामनरेश त्रिपाठी)

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Up board live class-10th hindi पद्य खंड solution पाठ- 7 स्वदेश प्रेम (रामनरेश त्रिपाठी)

Up board live class-10th hindi पद्य खंड  solution  पाठ- 7  स्वदेश प्रेम  (रामनरेश त्रिपाठी) 



  पद्य खंड



पाठ- 7  स्वदेश प्रेम  (रामनरेश त्रिपाठी) 


प्रश्न - लेखक संबंधी प्रश्न


1- रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए|


2- रामनरेश त्रिपाठी का साहित्यिक परिचय दीजिए|


3- रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों और भाषा शैली पर प्रकाश डालिए|


4- रामनरेश त्रिपाठी की भाषा शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए|


जीवन परिचय - राष्ट्रीय भावना से ओत -प्रोत  काव्य का सृजन करने वाले कवी रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 18 89ई० में जिला जयपुर के अंतर्गत कोइरीपुर ग्राम के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था| इनके पिता पंडित रामदत्त त्रिपाठी ईशवर में आस्था रखने वाले ब्राह्मण थे |केवल नवी कक्षा तक पढ़ने के पश्चात इनकी पढ़ाई छूट गई बाद में उन्होंने स्वतंत्र रूप से हिंदी अंग्रेजी संस्कृत बांग्ला तथा  गुजराती का गहन अध्ययन किया तथा साहित्य सेवा को अपना लक्ष्य बनाया हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के प्रचार मंत्री भी रहे उन्होंने दक्षिणी राज्यों में हिंदी के प्रचार हेतु सराहनीय कार्य किया साहित्य की विविध विधाओं पर इनका पूर्ण अधिकार था 1962 ई० में कविता के आदर्श और सूक्षम सौन्दर्य को चित्रित करने वाला यह कवि पंचतत्व में विलीन हो गया|


साहित्यिक परिचय - त्रिपाठी जी मननशील विद्वान और परिश्रमी थे हिंदी के प्रचार प्रसार और साहित्य सेवा की भावना से प्रेरित होकर इन्होंने हिंदी मंदिर की स्थापना की अपनी कृतियों का प्रकाशन भी उन्होंने स्वयं ही किया यह द्विवेदी युग के उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने दिवेदी मंडल के प्रभाव से पृथक रहकर अपनी मौलिक प्रतिभा से साहित्य के क्षेत्र में कई कार्य किए |इन्होंने भावप्रधान काव्य की रचना की| राष्ट्रीयता 'देश प्रेम 'सेवा त्याग 'आदि भावना प्रधान विषयों पर इन्होंने उत्कृष्ट साहित्य की रचना की|


कृतियां - त्रिपाठी जी ने हिंदी साहित्य की अनन्य सेवा की हिंदी की विविध विधाओं पर इन्होंने अपनी लेखिनी  चलाई इन की प्रमुख रचनाएं हैं|


1- खंड काव्य पथिक की मिलन और स्वपन


2- उपन्यास वीरांगना और लक्ष्मी


3- नाटक सुभद्रा जयंत और प्रेम लोक


4- कहानी संग्रह स्वपनो के चित्र


5- आलोचना तुलसीदास और उनकी कविता


6- संपादित रचनाएं कविता कौमुदी और शिवा बावनी


7- संस्मरण तीस दिन मालवीय जी के साथ


8- बाल साहित्य आकाश की बातें बाल कथा कहानी गुपचुप कहानी फुल रानी और बुद्धि विनोद


9- जीवन चरित् महात्मा बुद्व तथा अशोक


10- टीका सहित श्रीरामचरितमानस का टीका


इनके खंडकाव्य मैं मिलन दाम्पत्य प्रेम तथा पथिक और स्वपन राष्ट्रीयता पर  आधारित भावनाओं से ओतप्रोत हैं |मानसी इनकी फुटकर रचनाओं का संग्रह है जिसमें देश प्रेम मानव की सेवा प्रकृति वर्णन तथा बंधुत्व की भावना पर आधारित प्रेरणादायी कविताएं संगीत हैं| कविता को कौमुदी में इनकी स्वरचित कविताओं का संग्रहण है तथा ग्राम गीत में लोक गीतों का संग्रह|


भाषा शैली -  त्रिपाठी जी की भाषा भावानुकूल' प्रभाहपूर्ण सरल खड़ी बोली है| संस्कृत के तत्सम शब्दों एवं सामासिक पदों की भाषा में अधिकता है |शैली सरल स्पष्ट एवं प्रवाह मयी है| मुख्य रूप से इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशत्मक शैली का प्रयोग किया है| इनका प्रकृति चित्रण वर्णनात्मक शैली पर आधारित है| छंद का बंधन इन्होंने स्वीकार नहीं किया है| तथा प्राचीन और आधुनिक दोनों ही छंदों में काव्य रचना की है |उन्होंने श्रंगार 'शांत और करुण रस का प्रयोग किया है| अनुप्रास 'रूपक उपमा' उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग दर्शनीय है|


साहित्य में स्थान -  त्रिपाठी जी एक समर्थ कवि संपादक एवं कुशल पत्रकार थे| राष्ट्रीय भावनाओ पर आधारित इनका काव्य  अत्यंत हृदय स्पर्शी है |उनके निबंध हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है| इस प्रकार के कवि निबंधकार संपादक आदि के रूप में हिंदी में सदैव जाने जाएंगे|


1-   अतुलनीय  में जिसके प्रताप का

साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर|

धूम धूम कर देख चुका है'

जिनकी निर्मल कीर्ति निशा कर||

देख चुके हैं जिनका वैभव'

ये नभ के अनंत तारागढ़|

अगणित बार सुन चुका है नभ'

जिनका विजय - घोष रण गर्जन||


संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के काव्य खडं संकलित श्री रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित स्वदेश प्रेम शीर्षक कविता से अवतरित है| यह कविता त्रिपाठी जी के काव्य संग्रह स्वपन से ली गई है|


प्रसंग- कवि ने इन पंक्तियों में भारत के गौरवपूर्ण अतीत की झांकी प्रस्तुत की है|


व्याख्या - त्रिपाठी जी कहते हैं कि तुम अपने उन पूर्वजों का स्मरण करो जिनके अतुलनीय प्रताप की साक्षी सूर्य आज भी दे रहा है| ये ही तो हमारे पर्व पुरुष थे जिनकी धवल और स्वच्छ  कीर्ति को चंद्रमा भी यत्र तत्र सर्वत्र धूम धूम कर देख चुका है वे हमारे पूर्वज ऐसे थे जिनके हे स्वर  को तारों का अनंत समूह बहुत पहले देख चुका था हमारे पूर्वजों को विजय घोषो   और युद्ध गर्जनाओं को भी आकाश अनगिनत बार सुन चुका है तात्पर्य है कि हमारे पूर्वजों के पवित्र चरित्र प्रताप यश वैभव युद्ध कौशल आदि सभी कुछ अदभुत और अभूतपूर्व था|


काव्यगत सौन्दर्य - (1) कवि ने अपने पूर्वजों का गरिमामय गान किया है|( 2) भाषा - संस्कृत शब्दों से युक्त साहित्यिक खड़ी बोली( 3) शैली -भावात्मकक | (4)  रस - वीर| ( 5) गुण - ओज|  (6) - छंद - प्रत्येक चरण में 16 16 मात्राओ वाला मात्रिक छंद|  (7) अलंकार - अनुप्रास रूपक और पुनरक्ति प्रकाश |


Writer Name- Sandhya kushwaha

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