Up board live hindi class 12th (नाटक) कुहासा और किरण

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Up board live hindi class 12th (नाटक) कुहासा और किरण

 Up board live hindi class 12th(नाटक)कुहासा और किरण



नाटक 


कुहासा और किरण


नाटक की कथावस्तु एवं पात्रों का चरित्र चित्रण-


1. कुहासा और किरण का सारांश लिखते हुए उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

                अथवा

कुहासा और किरण नाटक में आधुनिक भारतीय सामाजिक विसंगतियों का यथार्थ रूप देखने को मिलता है सोदाहरण लिखिए।

                        अथवा

कुहासा और किरण कथा सार अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर= विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित कुहासा और किरण नाटक की कथावस्तु कृष्ण चैतन्य नामक एक तथाकथित आडंबरी स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजसेवी की सामाजिक प्रतिष्ठा का चित्रण करते हुए प्रारंभ होती है। कृष्ण चैतन्य का वास्तविक नाम कृष्णदेव है। और वह मुल्तान में हुए सन 1942 ईस्वी के आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध मुखबिरी करता था। वह अपने पाखंड से स्वयं को कृष्ण चैतन्य नाम से स्वतंत्रता सेनानी एवं राष्ट्र प्रेमी के रूप में प्रतिष्ठित कर लेता है।

                    प्रथम अंक

कुहासा और किरण नाटक के प्रथम अंक की कहानी कृष्ण चैतन्य के निवास पर उनकी सीक्रेटरी सुनंदा एवं अमूल्य के वार्तालाप से प्रारंभ होती है। अमूल एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी का पुत्र है वह गरीबी एवं बेकारी से ग्रस्त है। सुनंदा उसे सिफारिश के बल पर कृष्ण चैतन्य के यहां काम पर रखवा देती है ।दोनों कृष्ण चैतन्य की षष्टिपूर्ति के अवसर पर हो रहे स्वागत की तैयारियों में व्यस्त है ।इसी समय कृष्ण चेतन के आने पर दोनों उन्हें बधाई देते हैं। अमूल्य को अपने अनिष्ट का कारण मानकर कृष्ण चैतन्य संकेत रहते हैं उन्होंने अमूल्य को बिपिन बिहारी के यहां संपादक नियुक्त करवा दिया है। कृष्ण चेतन को सरकार सरकार से ₹250 की पेंशन मिलती है और वह सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दर्शकों के समक्ष आते हैं। वह अपने उपन्यास की कथा सुनाने के लिए कृष्ण चेतन के पास आए उसी समय देशभक्त डॉक्टर चंद्रशेखर की विधवा भी अपने पेंशन के कागजों पर हस्ताक्षर करने आई और तभी उसने मुल्तान में सन 1942 ईस्वी के आंदोलन तथा घटना का विवरण सुनाया जिसे सुनकर कृष्ण चैतन्य घबरा उठे प्रवाह और मालती में वाक युद्ध होने लगा इस संघर्ष में कृष्ण चैतन्य अपना मानसिक संतुलन खो बैठे भी प्राचीन घटनाओं को याद करके मानसिक रूप से व्यतीत भी उन्हें हुआ।कि कहीं उनकी कलई न खुल जाए ।उनकी पत्नी गायत्री अपने पति के व्यवहार एवं कपटी आचरण से विरक्त होकर अपने भाई के पास।


                द्वितीय अंक


प्रश्न= कुहासा और किरण नाटक के सर्वाधिक आकर्षक स्थल का वर्णन कीजिए।

उत्तर=  कुहासा और किरण नाटक के सर्वाधिक आकर्षक स्थल पर आधारित द्वितीय अंक की घटना का प्रारंभ विपिन बिहारी के निजी कक्ष में हुआ है। विपिन बिहारी 5-5 पत्रिकाओं का प्रकाशक है। उसकी पत्रिका हेतु 2-2 हजार प्रतियों का कागज का कोठा स्वीकृत है। किंतु पत्रिकाओं की प्रतियां  बहुत कम छपती हैं शेष कागज ब्लैक में बेच दिया जाता है ।कृष्ण चेतन इस विषय में बिपिन बिहारी व उमेश चंद्र अग्रवाल की रक्षा करते रहते हैं। विपिन बिहारी अमूल्य से संपादन कार्य करने की बात कहता है। और उसे उनके अन्य कार्यों में बांधना डालने के लिए सचेत करता है। अमूल्य ने बिपिन बिहारी को मुल्तान षड्यंत्र केस का परिचय देते हुए बताया कि उसके पिता उस केस में 5 अभियुक्तों में से एक थे। उनमें से कृष्णदेव नामक व्यक्ति ने मुखबिरी करके सरकार को सारा भेज दे दिया था ।दल के नेता डॉक्टर चंद्रशेखर थे मालती उनकी ही पत्नी है जो पेंशन ना मिल पाने के कारण विक्षिप्त सी हो गई है इस घटना में कृष्ण चैतन्य की सेक्रेटरी सुनंदा भी परिचित हो जाती है वह इस सत्य घटना को समाचार पत्रों में छपवा ना चाहती है परंतु बिपिन बिहारी उस घटना को प्रकाशित करने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हैं प्रभावी वहां आती है अपने उपन्यास के माध्यम से वह देश में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं मुख्य वीरों का पर्दाफाश करना चाहती है किंतु बिपिन बिहारी किसी भी मोड़ पर कृष्ण चैतन्य का विरोध करने का साहस नहीं करता तभी पुलिस इंस्पेक्टर अमूल्य को 50 कागज ब्लैक में बेचने की अपराध में गिरफ्तार करके ले जाता है। कृष्ण चैतन्य की इस दुर्दशा पर प्रभाव और सुनंदा क्रोधित होते हैं उसी समय आता आता है। और अमूल्य द्वारा आत्महत्या के असफल प्रयास की सूचना देता है ।सुनंदा के माध्यम से इस घटना की जानकारी गायत्री को भी हो जाती है ।बिपिन बिहारी अपनी अंतरात्मा की आवाज से उठता है वह अपने काले कारनामों से अलग होना चाहता है। इस पर कृष्ण चैतन्य करो क्रोधित होता है। विपिन बिहारी एवं उमेश चंद्र अग्रवाल को चेतावनी देता है।

         "तरेंगे हम तीनों ,डूबेंगे हम तीनों"

इसी बीच प्रभा ने सूचना दी कि कार दुर्घटना में गायत्री की मृत्यु हो गई है ।तीनों घटनास्थल पर पहुंचते हैं कृष्ण चेतन घबराकर कह उठता है।

           "नहीं, नहीं, यह नहीं होगा भगवान इतने निर्दयी नहीं हो सकते हैं"।

वहां पहुंचकर एक आम आदमी कहता है।

         "आखिर इन्हें भगवान की याद आई दर्द का पता लगा क्या होता है।"

यही पर दूसरा अंक समाप्त हो जाता है।


                तृतीय अंक

कुहासा और किरण नाटक का तीसरा अंक कृष्ण चैतन्य के निवास से प्रारंभ होता है। इसमें नाटक के सबसे मार्मिक प्रसंग को प्रस्तुत किया गया है। कृष्ण चेतन अपनी पत्नी गायत्री के चित्र के सम्मुख बैठे हुए अपने अपराध एवं उसके बलिदान की महत्ता को स्वीकार करते हैं । सभी लोग गायत्री की मृत्यु को आत्महत्या मानते हैं। सुनंदा इसकी सूचना पुलिस को देकर भ्रष्ट व्यक्तियों का भंडाफोड़ करना चाहती हैं।उसी समय गुप्तचर विभाग के अध्यक्ष कृष्ण मोहन टम्टा आ जाते हैं। सुनंदा अमूल्य का परिचय देकर कहती है। कि अमूल्य निर्दोष है। विपिन बिहारी भी अपनी बचाओ की युक्ति करता है। कृष्ण चैतन्य स्पष्ट बता देते हैं कि कागज की चोरी की कहानी झूठी है। अमूल्य को झूठे जाल में फंस  गया है। वह विपिन बिहारी और उमेश चंद्र के सभी कुकर्त्यो को प्रकट कर देता है। टमटा साहब उन्हें साथ चलने के लिए कहते हैं। 

                      तभी मालती आ जाती है वह अपनी पेंशन के लिए कहती है। चेतन उसे क्षमा याचना करते हैं और अपना सब कुछ दे देते हैं अपनी पत्नी को प्रणाम करके उनके साथ देते हैं।निकलना चाहते हैं किंतु उनकी गिरफ्तार होने की सूचना जनता को देता है। उन दोनों का सामाजिक बहिष्कार किया जाता है। अमूल निर्दोष होने के कारण छोड़ दिया जाता है उसकी इस कथन के साथ की "बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता" नाटक समाप्त हो जाता है।

            प्रस्तुत नाटक में नाटक का ने तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त पाखंड एवं भ्रष्टाचार को चित्रित कर उसे दूर करने का उपाय बताया है भ्रष्टाचार व्याप्त है पक्का विश्वास है कि सामाजिक जागृति के आधार पर ही इस भ्रष्टाचार को दूर किया जा सकता है नाटक के पात्र आत्म जागृति के फल स्वरुप जागृत हो जाते हैं इसके लिए अमूल एवं गायत्री को प प्रयत्न करना पड़ता है।

       कुहासा और किरण का उद्देश्य

 विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित कुहासा और किरण नाटक का उद्देश्य आधुनिक भारत की सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं का राष्ट्रीय परिवेश में स्पष्ट करना तथा भ्रष्टाचारियों एवं मुखौटाधारियों पर सीधा प्रहार करना है।अमूल्य और मालती की कहानी के माध्यम से वह सच्चे देशभक्तों की दयनीय एवं उपेक्षित अवस्था को पाठकों के समक्ष सरकार करना चाहता है। इसके साथ ही कृष्ण चैतन्य बिपिन बिहारी और उमेशचंद्र जैसे मगरमच्छों से जनसाधारण को परिचित कराना भी नाटक का उद्देश्य है। ऐसे ढोंगी आज देश  सेवा और नेतागिरी की सफेद चादर ओढ़े हुए स्वार्थ साधना में तत्पर हैं। और राष्ट्र का शोषण कर रहे हैं। भ्रष्ट आचरण वाले ऐसे व्यक्तियों के मुखोटे उतार कर रख देना मुखबिरो के रहस्य को खोल देना तथा समाज में व्याप्त चोर दरवाजों को तोड़ देना आदि इस नाटक के मुख्य उद्देश्य हैं।

 

2. कुहासा और किरण नाटक के आधार पर कृष्ण चैतन्य की चारित्रिक विशेषताएं/ चरित्र चित्रण पर प्रकाश डालिए।

 उत्तर- विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित को आशा और किरण नाटक में कृष्ण चेतन एक खलनायक के रूप में उभर कर आया है। अमूल्य के बाद कृष्ण चैतन्य ऐसा पात्र है जो नाटक के कथानक को आगे बढ़ाने में सहायक हुआ हैं।

          

         कृष्ण चैतन्य का चरित्र चित्रण

कृष्ण चैतन्य के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख निम्न प्रकार से किया जा सकता है।


प्रभावशाली व्यक्तित्व= कृष्ण चैतन्य का व्यक्तित्व प्रभावशाली व रौबीला है । उसके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ही सरकार व प्रशासन पर उसका पर्याप्त दबाव है।

भ्रष्टाचारी= वह एक भ्रष्ट नेता है और बिपिन बिहारी एवं उमेश चंद्र के साथ मिलकर ब्लैक मार्केटिंग आदि भ्रष्टाचार में लिप्त रहता है।

 दूरदर्शी = वह एक दूरदर्शी व्यक्ति है अपनी दूरदर्शिता के कारण ही वह अपने वास्तविक नाम कृष्णदेव को बदलकर अपना नाम कृष्ण चैतन्य रख लेता है बिपिन बिहारी के यहां अमूल्य की नियुक्ति उसकी दूरदर्शिता का ही परिणाम है।

कपटी नेता =  उसका चरित्र कीर्तन एवं आडंबर पूर्ण है वह देश भक्ति का चोला पहनकर सरकार व जनता को धोखा देता रहता है।

अनुभवी एवं चतुर= कृष्ण चैतन्य अनुभवी एवं चतुर व्यक्ति है वह अपनी रहस्य को किसी पर प्रकट नहीं होने देता।

  निर्दयी एवं देशद्रोही = कृष्ण चैतन्य एक निर्दई एवं देशद्रोही व्यक्ति है गिड़गिड़ाना वह खुशामद करने पर भी वह डॉक्टर चंद्रशेखर की विधवा पत्नी मालती के पेंशन के कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए नहीं पसीजता वह मुल्तान षड्यंत्र केस का मुखबिर बनकर अपनी रक्षा कर लेता है किंतु अपने साथियों को फसा देता है।

 शंकालु तथा भयातुर= वह अमूल्य से सशंकित रहता है । उसे यह भय बना रहता है कि अमूल कहीं उसका भेद खोल दे।


3. कुहासा और किरण नाटक के प्रमुख पात्र (अमूल्य) का चरित्र चित्रण /चित्रांकन कीजिए।


उत्तर= नाटक के नायक अमूल्य का चरित्र चित्रण=

               

विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित को आशा और किरण नाटक का मुख्य पुरुष पात्र और नायक का मूल है वहीं इस नाटक का केंद्र बिंदु है अमूल की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है।

देशभक्त= अमूल एक देशभक्त नवयुवक है उसकी रंगों में देशभक्त पिता का रक्त संचरित है

उत्साही युवक= अमूल अपने प्रत्येक कार्य को बड़े उत्साह से पूरा करता है भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए वह पूरे उत्साह से जुटा रहता है।

 ईमानदार एवं सत्यवादी= ईमानदारी एवं सत्य वार्ता अमूल के चरित्र की मुख्य विशेषता है भ्रष्टाचारी कृष्ण चैतन्य के संपर्क में रहकर भी वह ईमानदार और सत्यवादी बना रहता है उसकी सत्य बादशाह के कारण इस देश में चेतन उससे संकेत रहता है।

 निर्भीक एवं साहसी= अमूल्य निर्भीक एवं साहसी युवक है पुलिस इंस्पेक्टर के सामने वैसा पूर्वक कहता है।

            "-यह षड्यंत्र है आप सदा ब्लैक से कागज बेचते हैं और मुझे फसाना चाहते हैं आप .….आप ….सब नीच हैं, आप देश भक्तों की पोशाक पहने देशद्रोही है, भेड़िए हैं...।" 

कर्तव्यनिष्ठ= अमूल कर्तव्य परायण युवक है वह अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि मानता है पेंशन की अधिकारी होते हुए भी वह नौकरी की तलाश करता है।

आत्मविश्वासी एवं स्वाभिमानी= अमूल्य आत्मविश्वास ही एवं स्वाभिमानी युवक है संयंत्र में फंसकर पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर भी उसे पूर्ण विश्वास है कि निर्दोष होने के कारण वह अवश्य छूट जाएगा आत्मसम्मान के कारण ही वह कृष्ण चेतन की जमानत के प्रस्ताव को ठुकरा देता है हवालात में आत्महत्या का प्रयास भी वह अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए ही करता है।

 सरल स्वभाव वाला= अमूल सरल स्वभाव वाला स्वामी भक्त युवक है उपर्युक्त विवेचना के आधार पर निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि अमोल चरित्रवान मर्म सिविल दूरदर्शी उत्साह ए स्वाभिमान ईमानदार सायसी कर्तव्य परायण एवं निश्चल स्वभाव वाला नवयुवक है जो देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत है।


4. कुहासा और किरण नाटक के आधार पर सुनंदा का चरित्र चित्रण कीजिए।


उत्तर= नाटक की नायिका सुनंदा का चरित्र चित्रण= 

सुनंदा विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित को आशा और किरण नाटक की प्रमुख स्त्री पात्र हैं सुनंदा की चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

आधुनिक नारी वर्ग की प्रतिनिधि=सुनंदा आधुनिक युग के सर्जक सजीव एवं शिक्षित नारी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं उसका चरित्र एक आदर्श आधुनिक महिला का चरित्र है वह आज की उन्नाव युक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है जिनमें जागरूकता एवं सजगता है।

शष्टि एवं सभ्य= सुनंदा शिष्ट तथा सभ्य है उसकी आयु लगभग 25 वर्ष है कृष्ण चेतन के यहां सेक्रेटरी के रूप में काम करती है तथा उनके षष्टिपूर्ति मात्रक और बड़े उत्साह का परिचय देती है


बुद्धि मती एवं जागरूक= सुनंदा का सीधेपन से चिढ़ है क्योंकि आज के युग में सीधा पन एक घोड़े नहीं वर्न दोष है। यही कारण है कि वह अमूल्य को भी सीधा पन छोड़कर बुद्धिमान एवं जागरूक बनने की प्रेरणा देती है।

प्रशंसा करने की कला में दक्ष एवं व्यवहार कुशल= सुनंदा प्रशंसा करने की कला भी खूब जानती है वह कृष्ण चैतन्य के मित्रों विपिन बिहारी तथा उमेश चंद्र अग्रवाल को प्रशंसा द्वारा प्रभावित कर लेती है वह व्यवहार कुशल है तथा परिस्थिति के अनुसार आचरण करना भी जानती है।

मुखौटा धारियों की विरोधनी= अवसर आने पर सुनंदा मुखौटा धारियों का प्रबल विरोध करती है यहां तक कि वह चाहती है कि गायत्री द्वारा लिखा गया पत्र पुलिस के हवाले कर दिया जाए पुलिस के हाथ में पत्र पहुंचाने पर किसने चेतन की उलझन और भी बढ़ सकती थी।

देशद्रोहियों की प्रबल विरोधनी= सुनंदा मुखौटा धारी देशद्रोहियों का प्रबल विरोध करती है वह बिपिन बिहारी को भी खरी-खोटी सुनाती है। इस प्रकार उपयुक्त वर्णन से स्पष्ट है कि सुनंदा एक सदस्य तथा दूरदर्शी युवती है वह साहस की प्रतिमूर्ति है वह सारे नाटक में अपनी जागरूकता का परिचय देती है वास्तव में  वह इस नाटक की नायिका है।

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