Up board live hindi class 12th पाठ- 6 मैंने आहुति बनकर देखा (काव्यांजलि) solution
काव्यांजलि
पाठ 6 मैंने आहुति बनकर देखा
1. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए ।
अथवा
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएं और कृतियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर= जीवन परिचय= प्रयोगवाद के जनक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 ईस्वी को पंजाब के करतारपुर नामक ग्राम में हुआ था उनका बचपन अपने विद्यान पिता के साथ कश्मीर बिहार मद्रास में व्यतीत हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा का अधिकांश भाग मद्रास लाहौर में अपने पिता की उपस्थिति में संपन्न हुआ था। पिता की स्थानांतरण के साथ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अग्य को भी जगह-जगह जाना पड़ा और घुमक्कड़ की ओर आकृष्ट हुए बीएससी करने के बाद m.a. की पढ़ाई विवाह के समय देश की स्वतंत्रता की खातिर आगे जी क्रांतिकारी आंदोलन में कूद पड़े। और सन 1930 ईस्वी तक फरार रहे गिरफ्तार होने के बाद भी 4 वर्ष तक कारागार में और 2 वर्ष तक नजरबंद भी रहे उन्होंने सैनिक विशाल भारत सप्ताहिक दिनमान नया प्रतीक और वह नामक पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया मां भारतीय सपूत 4 अप्रैल सन 1987 ईस्वी को चिर निंद्रा में सो गया।
साहित्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व=
आगे जी ने गद्य और पद्य दोनों में ही सशक्त रचनाएं की हैं वे उपन्यास कथाकार पत्रकार समीक्षक निबंध का नाटक कार एवं सशक्त कवि के रूप में प्रसिद्ध दें तार सप्तक के रूप में उन्होंने नवीन एवं प्रयोगवादी काव्यधारा वह आई है वह प्रयोगवाद परंपरा के प्रमुख कवि हैं आगे जी की प्रमुख काव्य रचना इस प्रकार हैं आप आंगन के पार द्वार अरे ओ करुणा प्रभाव में हरी घास पर क्षण भर इंद्रधनुष रोते हुए थे बावरा अहेरी कितनी नावों में कितनी बार चिंता सुनहले शैवाल पहले में सन्नाटा बुनता हूं पूर्वाभाद्र दूध प्रिजन डेज एंड अदर पोयम्स आदि अजय जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे उन्होंने गद्य तथा पद दोनों में लिखा उनकी दोनों प्रकार की रचनाओं पर उनकी व्यापक चिंतनशील का मौलिक अनुभूति नूतन प्रेम प्रेम अभिव्यक्ति तथा स्वतंत्र कल्पना शक्ति का प्रभाव है आगे जी की काव्य में उनका ओजस्वी व्यक्तित्व मुखरित हुआ है उनकी कविता निरंतर विकासशील चिंतन का प्रमाण है जिसमें परिचित भावना सर्वथा नवीन रूप में विद्यमान है।
भाषा= आगे जी की भाषा अनेक रूप बड़ी हैं जो विषय अनुसार परिवर्तित होती रही अतुकांत छंदों में उनकी गंभीर चिंतन और मनन के बोझ से दबी हुई उनकी भाषा कहीं गई इतनी दूर हूं और स्पष्ट हो जाती है कि सुबह के पाठक भी उसे कठिन तब से समझ पाते हैं उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता तथा उसमें अंग्रेजी उर्दू और ग्रामीण शब्दों का भी प्रयोग किया गया है उन्होंने आवश्यकता अनुसार संज्ञा तथा विशेषण ओं का नव निर्माण भी किया है।
शैली=अघेय जी प्रयोगधर्मी साहित्यकार रहे हैं ।उनकी रचनाओं में छायावादी, भावात्मक,व्यंगात्मक और प्रयोगवादी सपाट शैली के संभाविक दर्शन होते हैं ।
हिंदी साहित्य में स्थान= बहुमुखी प्रतिभा के धनी अघेय्य ने हिंदी काव्य को नई दिशा दी है उन्हें युग प्रवर्तक कवि एवं साहित्यकारों का सम्मान प्राप्त है वे इस युग के सर्वश्रेष्ठ मुक्तकार हैं।
2. पद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है_
क्या वह केवल अवसाद मलिन झरते आंसू की माला है?
वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव रस का कटु प्याला है_
वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहनकारी हाला है
मैंने विगद्द दो जान लिया,अंतिम रहस्य पहचान लिया_
मैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है!
मैं कहता हूं मैं बढ़ता हूं मैं नव की चोटी चढ़ता हूं,
कुचला जा कर भी धूली सा आंधी सा और उमड़ता हूं
मेरा जीवन ललकार बने, असफलता की असी धार बने
इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने!
भव सारा तुझको है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने
तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरज प्यार बने!
उत्तर=
संदर्भ= प्रस्तुत प्रस्तुत पद्यांश आधुनिक काल के प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा रचित काव्य पुरवा से हमारी पाठ पुस्तक के काव्य खंड में संकलित मैंने आहुति बनकर देखा शीर्षक कविता से उद्धृत है।
प्रसंग= यहां कवि का दृष्टिकोण है कि जीवन केवल सुखों का संचय यह नहीं अपितु उसकी वास्तविक शक्ति कष्टों विघ्न बाधाओं तथा विरोधी परिस्थितियों के साथ संघर्ष करने से विकसित होती है।
व्याख्या= अपने जीवन का रक्त देकर जिसको मैंने बड़े प्रयाग से पाला पोसा है वह केवल विषाद से सामान लेने गिरते हुए आंसू की लड़ी नहीं है प्रेम जिन व्यक्तियों को जीवन के अनुभव का कड़वा प्याला लगता है वह अवश्य रोगी होंगे। प्रेम जिनके लिए चेतना लुप्त करने वाली मद्रा बन जाता है ।यह अवश्य ही चेतना निर्जीव होंगे मैंने कठिनाइयों और बाधाओं को आग में जलकर जीवन के अंतिम रहस्य को पहचान लिया है। जब मैं स्वयं आहुति बन गया तब मुझे प्रेम की यज्ञ की ज्वाला दिखाई दी घटनाओं और बाधाओं के मार्ग को पार करके ही मैं विकास के शिखर पर पहुंचा हूं। मैं इस बात के स्पष्ट घोषणा करता हूं ।मैं बताना चाहता हूं कि मैं संघर्षों के बीच कुछ ला जाकर भी आधी के सामान और ऊंचा उठा रहा हूं जिस प्रकार धूल पैरों से कुचली जाती है किंतु कुचलने वाले के सिर पर सवार हो जाती है। उसी प्रकार मैंने भी बाधाओं से हार नहीं मानी।
मेरी यह तीव्र इच्छा है कि मेरा जीवन ललकार बन जाए और असफलता तलवार की धार बन जाए ।जिससे मैं असफलताओं को काट सकूं इस जीवन रूपी कठोर संग्राम में पल-पल रुकना ही मेरा आघात और प्रहार बन जाए तेरे लिए सब कुछ अर्पित करने के उपरांत अंगारे के समान मेरा जीवन निर्मल हो जाए मेरी कामना है कि मेरा यह मौन प्रेम तेरी पुकार के समान शक्तिशाली बन उठे।
काव्य सौंदर्य= कवि का मत है कि कठिनाइयों और बाधाएं व्यक्ति को विकास और प्रगति का मार्ग दिखाते हैं अतः उनसे भयभीत होना उचित नहीं है। ,व्यक्ति को हंसते-हंसते संघर्ष करना चाहिए संघर्ष से कभी विचलित नहीं होना चाहिए।
भाषा = साहित्यक खड़ी बोली।
शैली= प्रतीकात्मक।
अलंकार=अनुप्रास एवं उपमा।
शब्द शक्ति= लक्षणा
गुण= ओज।
3. सूक्ति की संदर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।
वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हे सम्मोहनकारी हाला है।
उत्तर= संदर्भ= प्रस्तुत सूक्ति सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा रचित काव्य "पुरवा" से हमारी पाठ पुस्तक के काव्य खंड में संकलित कविता "मैंने आहुति बनकर देखा" से उधरत है।
प्रसंग= इस सूक्ति में सच्चे प्रेम के स्वरूप और उसकी प्राप्ति के उपाय का उल्लेख किया गया है।
व्याख्या= कभी कहता है। कि वे लोग जो जीवित होते हुए भी मूर्ति के समान ही है। जो प्रेम को वशीभूत अथवा मोहग्रस्त करने वाले मदिरा पात्र से अधिक नहीं मानते जीवन का वास्तविक रस तो खोने में है ना कि पानी में इस दृष्टि से प्रेम तो यज्ञ की अग्नि के समान है। जिसमें अपनी आहुति देकर अर्थात प्रेम में डूब कर या स्वयं को उसमें खोकर ही प्रेम के महत्व को समझा जा सकता है।
Writer-Ritu kushwaha
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