Up board live class- 10th hindi पद्द खण्ड solution पाठ = 3 सवैये कवित्त ( रसखान)

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Up board live class- 10th hindi पद्द खण्ड solution पाठ = 3 सवैये कवित्त ( रसखान)

Up board liveclass -10th hindi पद्द खण्ड solution  पाठ  = 3  सवैये  कवित्त  ( रसखान)            

(पद्य खंड) 


पाठ  = 3  सवैये  कवित्त  ( रसखान) 


प्रश्न = लेखक संबंधी प्रश्न


1= रसखान का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए|


2= रसखान का जीवन परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएं और कृतियों पर प्रकाश डालिए|


3= रसखान का साहित्यिक परिचय दीजिए|


4= रसखान की भाषा शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए|


जीवन परिचय -  रसखान दिल्ली के पठान सरदार थे इनका पूरा नाम सैयद इब्राहिम रसखान था इनके द्वारा रचित प्रेम वाटिका ग्रंथ से यह संकेत प्राप्त होता है कि यह दिल्ली के राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचनाकाल जहांगीर का राजा कौन था इनका जन्म सन 1558ई०(स० 1615 लिए) के लगभग दिल्ली में हुआ था हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास के अनुसार उनका जन्म सन 1533 ई० में पिहानी जिला हरदोई उत्तर प्रदेश में हुआ था हरदोई में सैयदों की बस्ती भी है | डॉक्टर नागेंद्र ने भी अपने हिंदी साहित्य के इतिहास में इनका जन्म सन 1533 ईसवी के आसपास ही स्वीकार किया है | ऐसा माना जाता है कि इन्होंने दिल्ली में कोई विप्लव होता देखा जिससे व्यथित होकर ये गोवर्धन चले आए और यहां आकर श्रीनाथ की शरणागत हुए इनकी रचनाओं से यह प्रमाणित होता है | कि यह पहले रसिक प्रेमी थे बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट हुए और कृष्ण भक्त बन गए गोस्वामी विट्ठलनाथ में पोस्ट मार्ग में इन्हें दीक्षा प्रदान की थी | इनका अधिकार जीवन ब्रजभूमि में व्यतीत हुआ| यही कारण है कि यह कंचन धाम को भी वृंदावन के करील कुंजो पर न्योछावर करने और अपने अगले जन्मों में  ब्रज में शरीर धारण करने की कामना करते थे| कृष्ण भक्त कवि रसखान की मृत्यु सन 1618 ई० (स०1675 वि ०)के लगभग हुई |


रचनाएं- रसखान की निम्नलिखित दो रचनाएं प्रसिद्ध है|

1- सुजान रसखान- इसकी रचना कवित्त और सवैया छंदों में की गई है| यह भक्ति और प्रेम विषयक मुक्तक काव्य है |इसमें 139 भावपूर्ण छंद है|


(2) - प्रेम वाटिका - इसमें 25 दोहो  में प्रेम के त्याग में और निष्काम स्वरूप का काव्यात्मक और वर्णन है तथा प्रेम का पूर्ण  पारिवारिक हुआ है|


साहित्य में स्थान-  रसखान का स्थान भक्त कवियों में विशेष महत्वपूर्ण है| इनके बारे में डॉक्टर विजयेंद्र स्नातक में लिखा है| कि इनकी  भक्ति ह्रदय की मुक्त साधना है और इनका सिंगार वर्णन भावुक हृदय की उन्मुक्त अभिव्यक्ति है |उनके काव्य इनके स्वच्छंद मन के सहज उदगार हैं| यही कारण है कि इन्हें स्वच्छंद  काव्य धारा का प्रवर्तक भी कहा जाता है इन के काव्य में भावनाओं की तीव्रता गहनता और तन्मय  को देखकर भारतेंदु जी ने कहा था इन मुसलमान हरि जनन को कोटिन हिंदू वारिये|


1- मानुष हो तो वही रसखानि' बसौ ब्रज गोकुल गांव के गवरन|

जो पसु हौ तो कहा बस मेरौ' चरौ   नित नंद की धेनु मझारन||

पाहन हौ तो वही गिरि ' को जो धरयौ कर छत्र पुरदर धारन |

जो खग हौ तो बसेरो करौ मिलि कालिद कूल कंजर की डारने |


संदर्भ -प्रस्तुत  पद रसखान कवि द्वारा रचित सुजान रसखान से हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के काव्य खंड में संकलित सवैय शीर्षक से अवतरित है|

विशेष- इस पाठ के शेष सभी पदाशो  के लिए भी यही संदर्भ प्रयुक्त होगा|


प्रसंग- इस पद मैं रसखान ने पुनर्जन्म में विश्वास व्यक्त किया है और अगले जन्म में श्री कृष्ण की जन्मभूमि ब्रज में जन्म लेने एवं उनके समीप ही रहने की कामना की है|


व्याख्या- रसखान कवि कहते हैं कि हे भगवान ! मैं मृत्यु के बाद अगले जन्म में यदि मनुष्य के रूप में जन्म प्राप्त करूं तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रजभूमि में गोकुल के गवालों के मध्य निवास करूं यदि मैं पशु योनि में जन्म ग्रहण करूं जिसमें मेरा कोई वश नहीं है फिर भी मेरी इच्छा है कि मैं नंद जी की गायों के बीच विचरण करता रहूं यदि मैं अगले जन्म में पत्थर ही बना तो भी मेरी इच्छा है कि मैं उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूं जैसे आपने इंद्र का घमंड चूर करने के लिए और जलमग्न होने से गोकुल ग्राम की रक्षा करने के लिए अपनी आंगुली पर छाते के समान उठा लिया था |यदि मुझे पक्षी योनि में  भी जन्म लेना पड़ा तो भी मेरी इच्छा है| कि मैं जमुना नदी के किनारे स्थित कदंब वृक्ष की शाखाओं पर ही निवास करूं|


काव्यगत सौन्दर्य-( 1) रसखान कवि की कृष्ण के प्रीत हैंअसीम भक्तों को प्रदर्शित किया गया है| उनकी बात इतनी उत्कट है कि वह अगले जन्म में भी श्री कृष्ण के समीप ही रहना चाहते हैं|

(2) भाषा- ब्रज|3) शैली- मुक्तक( 4) - रस शांत एवं भक्ति (5) छंद - सवैया (6) अलंकार- कालिंदी कूल कदम की दरार में अनु प्रयास (7) गुण प्रसाद|

 

Writer Name- roshani kushwaha


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