Up board live class-10th hindi solution पद्य खंड chapter- 4 भक्ति नीति (बिहारी लाल

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Up board live class-10th hindi solution पद्य खंड chapter- 4 भक्ति नीति (बिहारी लाल

 Up board live class-10th hindi solution पद्य खंड chapter- 4 भक्ति नीति  (बिहारी लाल) 


पाठ-4  भक्ति नीति    (बिहारी लाल) 


(पद्य खंड


प्रश्न- लेखक संबंधी प्रश्न


1- कवि बिहारी जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए|


2- कवि बिहारी जी की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए|


3- कवि बिहारी जी की रचना शैली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए|


4- कवि बिहारी जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी  साहित्यिक विशेषताओं और  भाषा शैली पर प्रकाश डालिए|


जीवन परिचय- कवि बिहारी जी का जन्म 1603 ईस्वी में ग्वालियर के पास बसुवा गोविंदपुर गांव में माना जाता है |इनके पिता का नाम पंडित केशवराय चौबे था| बचपन में ही यह अपने पिता के साथ ग्वालियर से ओरछा नगर आ गए थे |यहीं पर आचार्य केशवदास से इन्होंने काव्यशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की और काव्यशास्त्र में पारंगत हो गए| बिहारी जी को अपने जीवन में अन्य कवियों की उपेक्षा बहुत ही कटु अनुभवों से गुजरना पड़ा फिर भी हिंदी साहित्य को इन्होंने

युवावस्था अपने ससुराल मथुरा में बिताई थी मुगल बादशाह शाहजहां के निमंत्रण पर यह आगरा चले गए और उसके बाद जयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि हो गए राजा जैसे अपनी नवविवाहिता पत्नी के प्रेम भेजा पाश में फस कर जब राज्य कार्य को चौपट कर बैठे थे तब बिहारी ने राजा की मोह निद्रा भंग करने के लिए निम्नलिखित  अन्योक्ति पूर्ण दोहा लिखकर उनके पास भेजा


नहिं पराग नहिं मधुर मधुर नहिं बिकासु इहिं काल |

अली कली ही सौं बध्यो आगै कौन हवाल| 


जिसमें प्रभावित होकर उन्होंने राजकाज में फिर से रुचि लेना शुरू कर दिया और राज दरबार में आने के पश्चात उन्होंने बिहारी को सम्मानित भी किया आगरा आने पर बिहारी जी की भेंट रहीम से हुई |1662  ई० में बिहारी जी ने बिहारी सतसई की रचना की| इसके पश्चात बिहारी  जी का मन काव्य रचना से भर गया और यह भगवान की भक्ति में लग गए| 1663 ई० में यह रसीद कभी पंचतत्व में विलीन हो गए|



साहित्यिक परिचय -

बिहारी जी ने 700 से अधिक दोहों की रचना की जो कि विभिन्न विषयों और भावों पर आधारित है| इन्होंने अपने  एक - एक दोहे में ग्रहण भावों को भरकर उत्कृष्ट कोटि की अभिव्यक्ति की है|

बिहारी जी ने सिंगार ,भक्ति ,नीति, ज्योतिष ,गणित, इतिहास आयुर्वेद आदि विषयों में दोहों की रचना की है| इनके सिंगार संबंधी दोहे अपनी असफल एवं सशक्त भावा व्यक्ति के लिए विशिष्ट समझ जाते हैं| इन दोनों में सहयोग एवं योग के स्पर्शी चित्र प्रस्तुत किए गए हैं| बिहारी जी के दोनों में नायिका भेद भाव है, भाव ,अनुभव, रस ,अलंकार आदि सभी दृष्टि से विषमयाजनक अभिव्यक्ति देखने को मिलती है| इनकी कविताओं में श्रृंगार रस का अधिक अधिकाधिक प्रयोग देखने को मिलता है|



कृतियां -

बिहारी सतसई मुक्तक शैली में रचित बिहारी जी की एक एकमात्र कृति है जिसमें 723 दोहे हैं| बिहारी सतसई को गंगा में सागर की संज्ञा दी जाती है ऐसे तो बिहारी जी ने रचनाएं बहुत कम लिखी हैं| फिर भी विलक्षण प्रतिभा के कारण इन्हें महाकवि के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है|


भाषा शैली -

बिहारी जी ने साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है| इनकी भाषा साहित्य होने के साथ-साथ मुहावरेदार भी है| इन्होंने अपनी रचनाओं में मुक्तक शैली का प्रयोग किया है| इस शैली के अंतर्गत इन्होंने समाज से अली का विलक्षण प्रयोग भी किया है| इस रैली के माध्यम से ही इन्होंने दोहे जैसे चांद को भी सशक्त भावों से भर दिया है|



साहित्य में स्थान - बिहारी जी राजनीति काल के अतिथि कवि हैं| परिस्थितियों में प्रेरित होकर इन्होंने साइट का श्रेजल किया है| वह साहित्य की अमूल्य निधि है| यह हिंदी साहित्य की महान विभूति है| जिन्होंने अपने एकमात्र रचना के आधार पर हिंदी साहित्य जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है|


प्रांशु की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या एवं उनका काव्य सौंदर्य-


जप, माला ,छापा ,तिलक सरै न एकौ कामु|

मन -कांचै नाचै  व्रथा,साचै  राचेल रामु  ||


संदर्भ - पूर्ववत् ||


प्रसंग- कविवर बिहारी द्वारा रचित प्रस्तुत दोहे में ब्राह्मणों की निर्भरता बता कर भगवान की सच्ची भक्ति पर बल दिया गया है|


व्याख्या - कवि का कथन है| कि जाप करने माला फेरने चंदन का तिलक लगाने आदि ब्राह्मण क्रियाओं से कोई काम पूरा नहीं होता इन बिरहा अर्चना चरणों से सच्ची भक्ति नहीं होती है| जिनका मन ईश्वर की भक्ति करने से कतरा आता है भक्ति करने में कच्चा है\ वह व्यर्थ ही इधर उधर की क्रियाओं से मारा मारा फिरता है |इस पर तो केवल सच्चे मन की भक्ति से प्रसन्न होते हैं|


काव्यगत सौंदर्य -(1) कवीश्वर की सच्ची भक्ति पर बल देता है तथा स्पष्ट करता है| कि ब्राह्मण चरणों में वक्त की सच्चा स्वरूप नहीं है| (2) भाषा - साहित्यिक ब्रिज (3)  शैली- मुक्तक (4) छंद- दोहा  (5) अलंकार- अनुप्रास (6) गुण- प्रसाद  (7) रस- शांत



Writer Name- roshani kushwaha




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