Up board live class class- 10th (hindi) -पद्य खंड chapter-1(सूरदास) -- सूरसागर
-पद्य खंड-
लेखक संबंधी प्रश्न-
(1)- सूरदास जी का परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए|
(2)-सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएं और कृतियों पर प्रकाश डालिए|
(3)-सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृति और भाषा शैली पर प्रकाश डालिए|
(4) -सूरदास जी का साहित्य परिचय दीजिए|
(5) -सूरदास जी की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए|
जीवन परिचय-
भक्तिकालीन महाकवि सूरदास का जन्म स्थान नामक ग्राम में 1478 ई० में पंडित रामदास जी के घर हुआ था| पंडित राम दास सारस्वत ब्राह्मण थे| कुछ विद्वान सीही नामक स्थान को सूरदास का जन्म स्थल मानते हैं| सूरदास जन्म से अंधे थे ,या नहीं इस संबंध में भी विद्वानों में मतभेद है विद्वानों का कहना है| कि बाल मनोवृत्ति एवं संस्थाओं का जैसा सोच में वर्णन सूरदास जी ने किया है| वैसा वर्णन कोई जन्मांध व्यक्ति कर ही नहीं सकता इसलिए ऐसा प्रतीत होता है| कि वह संभवत बाद में अंधे हुए होंगे| हिंदी भक्त कवियों में शिरोमणि माने जाते हैं|
सूरदास जी एक बार बल्ब आचार्य जी के दर्शन के लिए मथुरा के गांऊघाट आए और उन्हें सवचरित एक पद गाकर सुनाया बलवा जाने तभी उन्हें अपना शिष्य बना लिया| सूरदास की सच्ची भक्ति और पद रचना की निपुणता देख वल्लभाचार्य ने उन्हें श्रीनाथ मंदिर की कीर्तन का भार सौंप दिया तभी से वह मंदिर उनका निवास स्थान पर गए सूरदास जी विवाह थे| तथा विरक्त होने से पहले भी अपने परिवार के साथ ही रहते थे| वल्लभाचार्य जी के संपर्क में आने से पहले सूरदास जी देवता के पद गाया करते थे| तथा बाद में अपने गुरु के कहने पर कृष्ण लीला का गाना करने लगे| सूरदास जी की मृत्यु 1583 ई०मे गोवर्धन के पास पारसोली नामक ग्राम में हुई थी|
साहित्यिक परिचय-
सूरदास जी ने महान काव्यात्मक प्रतिभा से संपन्न कवि थे| कृष्ण भक्ति को ही इन्होंने काव्य का मुख्य विषय बनाया उन्होंने श्री कृष्ण के सगुण रूप के प्रति सखा भाव की भक्ति का निर्माण किया है| उन्होंने मानव हृदय की कोमल भावनाओं का प्रभावपूर्ण चित्रण किया है| अपने काम में भावात्मक पर और कलात्मक पर दोनों पर इन्होंने अपने विशिष्ट छाप छोड़ी है|
कृतियां-
भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी| जिनमें से केवल आठ से 10,000 पद ही प्राप्त हो पाए हैं काशी नगरी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय में यह रचना सुरक्षित है| पुस्तकालय में सुरक्षित रचनाओं के आधार पर सूरदास जी के ग्रंथों की संख्या 25 मानी जाती है किंतु इनके तीन ग्रंथि उपलब्ध हुए हैं- सूरसागर ,सूरसारावली ,साहित्य -लहरी|
(1 )- सूरसागर- यह सूरदास जी की एकमात्र प्रामाणिक कृति है है एक गीतिकाव्य है| जो 'श्रीमद्भागवत' ग्रंथ से प्रभावित है| इनमें कृष्ण की बाल -लीलाओं को भी गोपी- प्रेम ,गोपी -विरह, उद्धव -गोपी संवाद, का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है|
(2)- सुरसारावली यह है ग्रंथ 'सूरसागर' का सारभाग है, जो अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किंतु यह भी सूरदास जी की एक प्रमाणित करती है| इसमें 1107 पद है|
(3) - साहित्य लहरी साहित्य लहरी में 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है तथा इसमें मुख्य रूप से नए गांव एवं अलंकारों की विवेचना की गई है| कहीं-कहीं श्री कृष्ण की बाल- लीलाओं का वर्णन तथा एक दो स्थलों पर महाभारत की कथा के अंशों की झलक भी है|
भाषा -शैली
सूरदास जी ने अपने पदों में ब्रजभाषा का प्रयोग किया है| तथा उनके सभी पद गीतआत्मक है, जिस कारण इसमें माधवगुण की प्रधानता है| इन्होंने सरल एवं प्रभाव पूर्व शैली का प्रयोग किया है| उनका काल तक शैली पर आधारित है| व्यंग्य -वक्रता और वादी दत्ता सूर्य की भाषा की प्रमुख विशेषताएं कथा कथा -वर्णन विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है| दृष्टि कूट पदों में कुछ विलासिता अवश्य आ गई है|
साहित्य में स्थान-
सूरदास जी हिंदी साहित्य के महान काव्यात्मक प्रतिभासंपन्न कवि थे| इन्होंने श्री कृष्ण की बाल -लीला और प्रेम लीलाओं का जो मनोरम चित्रण किया है वह साहित्य में अदिति है| हिंदी साहित्य में वात्सल्य वर्णन का एकमात्र कवि सूरदास जी को ही माना जाता है साथ ही इन्होंने विरह वर्णन का भी अपनी रचनाओं में बड़ा मनोरम चित्रण किया है|
चरण कमल बंदों हरि राइ|
जाकी कृपा पंगु गिरी लगै ,अंधे को सब कुछ दर्शाए||
भहिरौ, सुनै,गूग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई|
सूरदास स्वामी करुणानामय ,में बार-बार बंदौ तिहि पाई|
संदर्भ- यह पद श्री सूरदास द्वारा रचित सूरसागर नामक ग्रंथ से हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिंदी' काव्य- खंड में संकलित पद शीर्षक से उद्धृत है|
प्प्रसंग- इस पद में भक्त कवि सूरदास जी ने श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन करते हुए उनके चरणों की वंदना की है|
व्याख्या- भक्त शिरोमणि सूरदास श्री कृष्ण के कमल रूपी चरणों की वंदना करते हुए कहते हैं कि इन चरणों का प्रभाव बहुत व्यापक है| इनकी कृपा हो जाने पर लंगड़ा व्यक्ति भी पर्वतों को लांग लेता है| और अंधे को सब कुछ दिखाई देने लगता है इन चरणों के अनोखे प्रभाव के कारण बहरा व्यक्ति सुनने लगता है और गूंगा पुन्हा बोलने लगता है किसी दरिद्र व्यक्ति पर श्री कृष्ण के चरणों की कृपा हो जाने पर वह राजा बनकर अपने सिर पर राज्य छात्र धारण कर लेता है सूरदास जी कहते हैं कि ऐसे दयालु प्रभु श्री विष्णु के चरणों की मैं बार- बार वंदना करता हूं|
काव्यगत सौंद्रय-(1) श्री कृष्ण के चरणों का असीम प्रभाव व्यंजन है| कवि का भक्ति -भाव अनुकरणीय है| (2) भाषा- साहित्यिक ब्रिज (3)- शैली मुक्तक (4) - छंद गेय पद (5) - रस भक्ति (6)- शब्दशक्ति लक्षणा (7) - गुण- प्रसाद (8) - अलंकार- चरण कमल मुनि पुनरुक्ति प्रकाश का अंत अनु प्रयास
यह भी पढ़ें
पद्य खंड पाठ -6 महादेवी वर्मा सॉल्व
Writer Name-Roshani kushwaha
एक टिप्पणी भेजें