Up board live solution for class 12th sahityik hindi पध chapter 4 - सुमित्रानंदन पंत
कक्षा 12 हिंदी
पाठ- 4- नौका- विहार
लेखक का नाम- सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न - कवि कर सुमित्रा नंदन पंत का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए
अथवा
सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए
जीवन परिचय - प्रकृति चित्रण के अमर गायक कविता सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई सन् 1900(संवत 1957) को अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था! जन्म के 6 घंटे के बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया !पिता तथा दादी के वात्सल्य की छाया में इनका प्रारंभिक लालन-पालन हुआ! पंत जी ने 7 वर्ष की अवस्था से ही काम रचना आरंभ कर दी थी! पंत जी की शिक्षा का पहला चरण अल्मोड़ा में पूरा हुआ यहीं पर उन्होंने अपना नाम गुसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन रख लिया!
सन 1919 ई० में पंत जी अपने मझले भाई के साथ बनारस चले !आए यहां पर उन्होंने क्वींस कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की! सन 1950ई० में वे ' ऑल इंडिया रेडियो' के परामर्शदाता के पद पर नियुक्त हुए और सन 1957 ईस्वी तक में प्रत्यक्ष रुप से रेडियो से समृद्ध रहे!
सरस्वती के इस पुजारी ने 28 दिसम्बर, सन् 1977ई० (2034) को इस भौतिक संसार से सदैव के लिए विदा ले ली!
साहित्यिक व्यक्तित्व -छायावादी योग के ख्याति प्राप्त कवि सुमित्रानंदन पंत 7 वर्ष की अल्पायु में ही कविताओं की रचना करने लगे थे! उनकी प्रथम रचना सन 1916 ईस्वी में सामने आई! 'गिरजे का घंटा 'नामक इस रचना के पश्चात वे निरंतर काव्य साधना में तल्लीन रहॆ! 1919 ई०
मैं इलाहाबाद के म्यॊर कॉलेज में प्रवेश लेने के पश्चात उनकी काव्यात्मक रुचि और भी अधिक विकसित हुई! सन 1920 ई० उनकी रचनाएं 'उच्छवास' एवं ' ग्रंथि' प्रकाशित हुई! ,, सन 1921 ईस्वी मैं उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर कॉलेज छोड़ दिया! और राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में सम्मिलित हो गए परंतु अपने कोमल प्रकृति के कारण सत्याग्रह में सक्रिय रुप से सहयोग नहीं कर पाये! और सत्याग्रह छोड़कर पुन:काव्य साधना में तल्लीन हो गए
सुमित्रानंदन पंत के काल में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं! इन्होंने प्रकृति एवं मानवीय भावों के चित्रण में विक्रेता तथा कठोर भावों की स्थान नहीं दिया है! इनकी छायावादी कविताएं अत्यंत कोमल एवं मृदुल भावों को अभिव्यक्त करती हैं इन्हीं कारणों से पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है!
कृतियाँ - पंत जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे! अपने विस्तृत साहित्यिक जीवन में उन्होंने विविध विधाओं में साहित्य रचना की!
उनकी प्रमुख कृतियां का विवरण इस प्रकार है_
1 - (लोकायतन-) इस महाकाव्य में कवि की सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारधारा व्यक्त हुई है इस रचना में कवि ने ग्राम जीवन और जन भावना को छंदों बंद किया है!
2 - (वीणा-) इस रचना में पंत जी के प्रारंभिक प्रकृति के अलौकिक सौंदर्य से पूर्ण संगृहित हैं!
3 -( पल्लव) - इस संग्रह में प्रेम प्रकृति और सुंदर के व्यापक चित्र प्रस्तुत किए गए हैं!
4 -( गुंजन) - इसमें प्रकृति प्रेम और सौंदर्य से संबंधित गंभीर एवं , रचनाएं संकलित की गई हैं!
5-( ग्रंथि) इस काव्य संग्रह में वियोग का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित हुआ है प्रकृति हां अभी कब की सहचरी रहीं हैं!
6-( अन्य कृतियां) स्वर्ण धूल ,स्वर्ण किरण, युगपथ,उज्जवल तथा अतिमा, आदि में पंत जी महा ऋषि अरविंद के नव चेतना वाद से प्रभावित युगांत युगवाणी और गांव या में कभी समाजवाद और भौतिक दर्शन ओर उन्मुख हुआ है! इन रचनाओं में कब ने दीन हीन और शोषित वर्ग के अपने काव्य का आधार बनाया है!
हिंदी साहित्य में स्थान- पंत जी असाधारण प्रतिभा से संपन्न साहित्यकार थे काव्य के भाव एवं कला दोनों ही क्षेत्रों में वे एक महान कवि सिद्ध हुए! युग दृष्टा ही थे! छायावाद के युग प्रवर्तक कवि के रूप में उन्हें अपार ख्याति प्राप्त हुई है!
उन्हें प्रकृति चित्रण एवं महरिशी अरविंद के अध्यात्मिक दर्शन पर आधारित रचनाओं का श्रेष्ठ कवि माना जाता है!
डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने पंत काव्य का विवेचन करते हुए लिखा है "पंत केवल शब्द शिल्पी ही नहीं महान भाव शिल्पी भी है वह सौन्दर्य के निरंतर निखरते सूक्ष्म में रूप को वाणी देने वाले और संपूर्ण युग को प्रेरणा देने वाले प्रभाव शिल्पी भी है! "
संदर्भ सहित व्याख्या
प्रश्न - इस धारा शाही जल का क्रम सास्वत इस जीवन का उद्गम!
अथवा
हे जगजीवन के कर्णधार!
चिर जन्म मरण के आर पार!
सास्वत जीवन नौका विहार!
संदर्भ - प्रस्तुत सूक्ति पंक्ति प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखित का गुंजन से हमारी पाठ पुस्तक के काव्य खंड में संकलित नौका विहार का काव्यांश से उद्धृत है!
प्रसंग- इस सुख में जीवन और जगत का उद्गम एवं क्रम गंगा की धारा के समान बताया गया है!
व्याख्या - जिस प्रकार गंगा की धारा अनादिकाल से प्रवाहित हो रही है! उसी प्रकार एक जगत की अनादि काल से चला आ रहा है जैसे गंगा का उद्गम स्थल चिरंतन सदा से है! वैसे ही इस जीवन का उद्गम ही शाश्वत है जिस प्रकार गंगा में नाव कभी इस ओर से उस ओर जाती है तथा उस ओर से इस ओर आती है वैसे ही मनुष्य का जीवन भी मनुष्य जीवन रूपी नौका में बैठकर उस लोक परलोक में चला जाता है! और फिर इस लोक में जन्म लेता है उसकी है आवा जायी आई नौका विहार की भांति निर्बाध रूप से चलती रहती है!
Writer-Dipaka kushwaha
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