UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 1 राष्ट्र का स्वरूप
कक्षा 12 (हिंदी)।
पाठ-1 राष्ट्र का स्वरुप (डॉo वासुदेव शरण अग्रवाल)
(क)
बहुविकल्पी प्रश्न-
1.
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म कब हुआ था।
(क)
1904ईo मे
(ख)
1911ईoमे
(ग)
1928ईoमे
(घ)
1924ईoमे
उत्तर-
(क) 1904ईoमे
2.
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का लेखन युग है।
(क)भारतेंदु
युग
(ख)द्विवेदी
युग
(ग)शुक्ल
युग
(घ)शुक्लोत्तर
युग
उत्तर-(क)भारतेंदु
युग।
3.
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित निबंध है -
(क)शिक्षा
का उद्देश्य
(ख)राष्ट्र
का स्वरूप
(ग)भाग्य
और पुरुषार्थ
(घ)भाषा
और आधुनिकता
उत्तर-(ख)
राष्ट्र का स्वरूप ।
4.
"पृथ्वी पुत्र "के रचनाकार हैं-
(क)
डॉ रामकुमार वर्मा
(ख)
डॉक्टर संपूर्णानंद
(ग)
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल
(घ)
डॉ धर्मवीर भारती
उत्तर-(ग)डॉ
वासुदेव शरण अग्रवाल
(ख)
लेखक संबंधी प्रश्न -
1.
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
2.
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएं और कृतियों
पर प्रकाश डालिए।
3.
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों और भाषा शैली पर प्रकाश
डालिए।
उत्तर-(जीवन परिचय)-डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल हिंदी साहित्य में
प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व के विद्वान थे।उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ
जनपद के खेड़ा नामक ग्राम के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन 1904 ईसवी में हुआ था।
उनके माता पिता लखनऊ में रहते थे आता इनका बाल्यकाल लखनऊ में ही बीता ।उन्होंने अपनी
शिक्षा वही प्राप्त की ।उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीoएo तथा लखनऊ विश्वविद्यालय
से m.a. की परीक्षा उत्तीर्ण की ।इसी विश्वविद्यालय में उन्होंने "पाणिनीकालीन
भारत" नामक शोध -प्रबंध प्रस्तुत किया ।उनकी रूचि वास्तव में अध्ययन और पुरातत्व
में थी ।और उन्होंने इसी में पी -एचoडी की उपाधि प्राप्त की बाद में उन्होंने डीo लिटoकी
उपाधि भी लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की
।बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के 'पुरातत्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग के' अध्यक्ष
एवं आचार्य रहे। पाली ,संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा उनके साहित्य का गहन अध्ययन
किया ।उन्होंने लखनऊ तथा मथुरा के पुरातत्व संग्रहालय में निरीक्षक के पद पर कार्य
किया है ।केंद्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग के संचालक तथा दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय
के अध्यक्ष भी रहे ।वैदिक साहित्य दर्शन पुराण के अन्वेषक हिंदी साहित्य एवं पुरातत्व
के ज्ञाता इस विद्वान ने 1967 ईस्वी में इस संसार को छोड़ दिया ।अग्रवाल ने अपने ज्ञान
एवं श्रम से हिंदी साहित्य को समृद्धि प्रदान
की।
साहित्यिक परिचय,
डॉ
अग्रवाल ने मुख्य रूप से पुरातत्व को ही अपना विषय बनाया । प्रागैतिहासिक वैदिक तथा
पौराणिक साहित्य के मर्म का उद्घाटन किया और अपनी रचना में संस्कृति और प्राचीन भारतीय
इतिहास का प्रमाणिक रूप प्रस्तुत किया वे अनुसार निर्धनता निबंधकार और संपादक के रूप
में प्रतिष्ठित रहे।
निबंध संग्रह,
भारत
की एकता, पृथ्वी पुत्र, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष ,कल्पलता, माता भूमि, उत्तर ज्योति,
वेद विद्या , वागधारा आदि।
ऐतिहासिक एवं पौराणिक निबंध,
महापुरुष
श्री कृष्ण, महर्षि वाल्मीकि और मनु।
आलोचना,
मलिक
मोहम्मद जायसी,पद्मावत तथा कालिदास कृत मेघदूत की संजीवनी व्याख्या आदि।
शोध ग्रंथ,
पाणिनि
कालीन भारत।
सांस्कृतिक,
भारत
की मौलिक एकता, हर्षचरित का सांस्कृतिक अध्ययन आदि।
संपादन,
जायसी
कृत पद्मावत संजीवनी व्याख्या ,इसके अतिरिक्त उन्होंने पालि और संस्कृत के अनेक ग्रंथो
का भी संपादन किया।
भाषा
शैली,
अग्रवाल
की भाषा शुद्ध और खड़ी बोली है जिसमें व्यवहारिकता शुद्धता स्पष्टता सर्वत्र विद्यमान
है इन्होंने अपनी भाषा में शब्दों का प्रयोग किया। जिसमे भाषा में सरलता और सुभोद्ता
की भाषा उत्पन्न हुई हैं।
साहित्य में स्थान,
पुरातत्व
अनुसंधान के क्षेत्र में उनकी क्षमता कर पाना अत्यंत कठिन है उन्हें एक विद्वान की कार्य एवं साहित्य ग्रंथों के कुशल संपादक के रूप
में भी जाना जाता है अपनी विवेचन पद्धति की मौलिकता एवं विचार शीलता के कारण वे सदैव
स्मरणीय रहेंगे।
(ग) गद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के
उत्तर दीजिए।
1. भूमि का निर्माण देवों ने किया है,वह अनंत
काल से है ।उसके भौतिक रूप ,सुंदर और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा आवश्यक कर्तव्य
है । भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे उतना उतनी ही हमारी
राष्ट्रीयता बलवती हो सकेगी। यह पृथ्वी सच्चे अर्थों में समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं
की जननी है। जो राष्ट्रीयता पृथ्वी के साथ नहीं जुड़े वह निर्मूल होती है। राष्ट्रीयता
की जड़े पृथ्वी में जितनी गहरी होंगी उतना ही राष्ट्रीय भावों का अंकुर पल्लवित होगा
।इसलिए पृथ्वी के भौतिक स्वरूप की आधोपांत जानकारी प्राप्त करना उसकी सुंदरता उपयोगिता
और महिमा को पहचानना आवश्यक धर्म है।
भूमि का निर्माण…………... पल्लवित होगा।
भूमि के पार्थिव स्वरूप……….. पल्लवित होगा।
उत्तर -
संदर्भ-प्रस्तुत गद्दावतरण सुविदित डॉ वासुदेव शरण
अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से उद्धृत है यह निबंध हमारी पाठ्यपुस्तक
के गद्द खंड में संकलित है।
प्रसंग- इन पंक्तियों में लेखक ने राष्ट्रीयता के
विकास हेतु राष्ट्र के प्रथम महत्वपूर्ण तत्व भूमि के रूप उपयोगिता एवं महिमा के प्रति
सचेत रहने तथा भूमि को समृद्ध बनाने पर बल दिया है।
व्याख्या-भूमि
का निर्माण देवताओं के द्वारा किया गया है और इसका अस्तित्व अनंत काल से है मानव जाति
का यह कर्तव्य है कि वह इस भूमि के सुंदर के प्रति सचेत रहें और इसका रूप वितरित ना
होने दें साथ ही प्रत्येक मनुष्य का यह भी कर्तव्य है कि वह भूमि को विभिन्न प्रकार
से संबंधित बनाने की दिशा में सचेत रहें ।ऐसा करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि पृथ्वी
ही समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी है जो राष्ट्रीय विचारधारा पृथ्वी से संबंध
नहीं होती वह आधार भिन्न होती हैं। और इसका अस्तित्व अल्प समय में समाप्त हो जाता है
।वस्तुत: हम पृथ्वी के गौरवपूर्ण अस्तित्व के प्रति जितना अधिक सचेत रहें उतनी ही अधिक
राष्ट्रीयता की बलवती होने की संभावना रहती है ।राष्ट्रीयता का आधार जितना सशक्त होगा
राष्ट्रीय भावना उतनी ही अधिक विकसित होंगी प्रारंभ से अंत तक पृथ्वी के भौतिक रूप
की जानकारी रखना तथा उसकी उपयोगिता एवं महिमा को पहचानना प्रत्येक मनुष्य का ना केवल
परम कर्तव्य है इसका धर्म भी है।
साहित्यिक सौंदर्य,
1.
लेखक ने भावपूर्ण ढंग से पृथ्वी की महिमा एवं उपयोगिता को स्पष्ट किया है।
2.
पृथ्वी कोई समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी मानकर उसके गौरवपूर्ण अस्तित्व को
बनाए रखने के लिए सफेद किया गया।
3.
भाषा- सरल, सुबोध एवं परिमार्जित।
4. शैली-गंभीर विवेचनात्मक ।
एक टिप्पणी भेजें