UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 4 अशोक के फूल


कक्षा 12 हिंदी

पाठ-4 अशोक के फूल (आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी)

 

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म कब हुआ था?

(क)1904

(ख)1905

(ग)1906

(घ)1907

उत्तर- 1907

2. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के पिता का क्या नाम था?

(क) रामदास सहाय

(ख) पंडित दीनानाथ सिंह

(ग) श्री अनमोल द्विवेदी

(घ) पंडित रघु शंकर प्रसाद

उत्तर- श्री अनमोल द्विवेदी

3. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की रचना है:

(क) कला और संस्कृति

(ख) चिंतामणि

(ग) आकाशदीप

(घ)  अर्धनारीश्वर

उत्तर-चिंतामणि

4. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को किस उपाधि से विभूषित किया गया?

(क) पदम भूषण

(ख) पदम विभूषण

(ग) पदम श्री

(घ) इनमें से कोई नहीं

उत्तर-पदम भूषण

5. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की मृत्यु कब हुई?

(क)1974

(ख)1977

(ग)1979

(घ)1980

उत्तर- 1979

2. लेखक संबंधी प्रश्न

(I)आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

(ii) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

(iii) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की भाषा शैली का उल्लेख कीजिए।

(iv) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का साहित्य में स्थान बताइए।

उत्तर-(जीवन परिचय):

हिंदी के श्रेष्ठ निबंधकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन 1907 ईस्वी में बलिया जिले के दुबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता श्री अनमोल द्विवेदी ज्योतिष और संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। अतः इन्हें ज्योतिष और संस्कृत की शिक्षा उत्तराधिकार में प्राप्त हुई। काशी जाकर इन्होंने संस्कृत साहित्य और ज्योतिष का उच्च स्तरीय ज्ञान प्राप्त किया। इनकी प्रतिभा का विशेष विकास विश्व विख्यात संस्था शांतिनिकेतन में हुआ। वहां यह 11 वर्ष तक हिंदी भवन के निर्देशक के रूप में कार्य करते रहें। वहीं इनके विस्तृत अध्ययन और लेखन का कार्य प्रारंभ हुआ।सन 1949 ईस्वी में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी लिट की उपाधि से तथा सन 1957 ईस्वी में भारत सरकार ने पदम भूषण की उपाधि से विभूषित किया। इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया तथा उत्तर प्रदेश सरकार की हिंदी ग्रंथ अकैडमी के अध्यक्ष रहे। तत्पश्चात यह हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के सभापति भी रहे। 19 मई 1979 ईस्वी को यह वयोवृद्ध साहित्यकार रुग्णता के कारण स्वर्ग सिधार गया।

(साहित्यिक परिचय): हजारी प्रसाद द्विवेदी साहित्य के प्रख्यात निबंधकार, इतिहास लेखक, आलोचक, संपादक तथा उपन्यासकार के अतिरिक्त कुशल वक्ता और सफल अध्यापक भी थे। वे मौलिक चिंतक भारतीय संस्कृति और इतिहास के मर्मज्ञ बंगला तथा संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। इन्होंने विश्व भारती और अभिनव भारतीय ग्रंथ माला का संपादन किया। इन्होंने नित्य प्रति के जीवन की गतिविधियों और अनुभूतियों का मार्मिकता के साथ चित्रण किया है। द्विवेदी जी की साहित्य सेवा को डी०लिट्०, पदम भूषण और मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया।

रचनाएं: अशोक के फूल, कुटज, विचार प्रवाह, विचार और वितर्क, आलोक पर्व, कल्प लता आदि इनके निबंध संग्रह हैं।

सूरदास, कालिदास की लालित्य योजना, कबीर, साहित्य का मर्म इनकी आलोचनाएं हैं।

बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्र लेख, पुनर्नवा और अनामदास का पोथा आदि इनके उपन्यास है।

भाषा शैली: द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध परिमार्जित प्रौढ़ एवं संयत खड़ी बोली है।

इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग है। इन्होंने अपने निबंधों में संस्कृत के  उद्धरणों को उद्धृत किया है। इनके वाक्य सुगठित और संचयन विषय वस्तु के अनुरूप हैं। गूढ़ विषयों के प्रतिपादन में भाषा जटिल और गंभीर हो गई है।

द्विवेदी जी ने अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए विविध शैलियों का प्रयोग किया है।

  • विचारात्मक शैली
  • व्यंग्यात्मक शैली
  • चित्रात्मक शैली
  • भावात्मक शैली
  • व्याख्यात्मक शैली
  • आलोचनात्मक शैली
  • अलंकारिक शैली

साहित्य में स्थान: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हिंदी गद्द के प्रतिभाशाली रचनाकार थे। इन्होंने साहित्य के इतिहास लेखन को नवीन दिशा प्रदान की। वे प्रकांड विद्वान, उच्च कोटि के विचारक और समर्थ आलोचक थे। गंभीर आलोचना, विचार प्रधान निबंधों और उत्कृष्ट उपन्यासों की रचना कर द्विवेदी जी ने लिस्ट चाहिए हिंदी साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान पा लिया है।

 

गद्यांश पर आधारित प्रश्न

1. भारतीय साहित्य में, और इसलिए जीवन में भी, इस पुष्प का प्रवेश और निर्गम दोनों ही विचित्र नाटकीय व्यापार हैं। ऐसा तो कोई नहीं कह सकता कि कालिदास के पूर्व भारत वर्ष में इस पुष्प का कोई नाम ही नहीं जानता था। परंतु कालिदास के काव्यों मैं यह जिस शोभा और सौकुमार्य का भार लेकर प्रवेश करता है, वह पहले कहां था। उस प्रवेश में नववधू के गृह प्रवेश की भांति शोभा है, गरिमा है, पवित्रता है और सुकुमारता है।  फिर एकाएक मुसलमानीसल्तनत की प्रतिष्ठा के साथ ही साथ यह मनोहर पुष्पक साहित्य के सिंहासन से चुपचाप उतार दिया गया। नाम तो लोग बाद में भी लेते थे, पर उसी प्रकार जिस प्रकार बुद्ध, विक्रमादित्य का। अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला वह अपूर्व था।

(क) उपयुक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।

(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

(ग) अशोक का पुष्प कालिदास के महाकाव्य में किस भांति शोभा पाता है।

(घ) अशोक के पुष्प को कब साहित्य के सिंहासन से उतार फेंका गया।

(घ) लेखक ने किसे विचित्र नाटकीय व्यापार बताया है।

उत्तर-

(क) प्रस्तुत गद्दावतरण हमारी पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित तथा हिंदी के सुविख्यात निबंधकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित अशोक के फूल नामक ललित निबंध से अवतरित है।

(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या -आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी अशोक के फूल के बारे में बताते हुए कह रहे हैं कि भारतीय साहित्यिक और भारतीय जीवन में अशोक के फूल का प्रवेश और फिर विलुप्त हो जाना विचित्र नाटकीय स्थिति के सदृश है। कालिदास ने इस पुस्तक को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया है। कालिदास के काव्य में यह पुष्पा जी सुंदरता और सुकुमारता के साथ वर्णित होता है, वैसे उनके पूर्ववर्ती किसी काव्य  मैं नहीं होता।

(ग) अशोक का पुष्प कालिदास के महाकाव्य में नववधू के गृह प्रवेश की भांति शोभा पाता है।

(घ) अशोक का पुष्प मुसलमानी सल्तनत की प्रतिष्ठा के साथ साथ ही साहित्य के सिंहासन से चुपचाप उतार फेंका गया।

(ड़) लेखक ने भारतीय साहित्य और भारतीय जीवन में अशोक के पुष्प के प्रवेश और निर्गम को विचित्र  नाटकीय व्यापार बताया है।


2. अशोक का वृक्ष जितना भी मनोहर हो, जितना भी रहस्यमय हो, जितना भी अलंकारमय हो, परंतु है वह उस विशाल सामंत सभ्यता की परिष्कृत रूचि का ही प्रतीक, जो साधारण प्रजा के परिश्रमों पर पली थी, उसके रक्त के संसार कणों को खाकर बड़ी हुई थी और लाखों करोड़ों की उपेक्षा से जो समृद्धि हुई थी। वे सामंत उखड़ गए, समाज ढह गये और मदनोत्सव की धूमधाम भी मिट गई। संतान कामिनियों को गंधर्व से अधिक शक्तिशाली देवताओं को वरदान मिलने लगा-पीरों ने भूत-भैरवों ने, काली दुर्गा ने यक्षों की इज्जत घटा दी। दुनिया अपने रास्ते चली गई ,अशोक पीछे छूट गया।

(क) उपयुक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।

(ख) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।

(ग) अशोक क्यों पीछे छूट गया?

(घ) संतान कामिनियों को किसका शक्तिशाली वरदान मिलने लगा?

(ड़) यक्षों की इज्जत किसने घटा दी?

(च) अशोक के वृक्ष की क्या विशेषताएं होती हैं।

(छ) सामंत सभ्यता से क्या तात्पर्य है।

उत्तर-

(क) पूर्ववत

(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या- अशोक का वृक्ष वास्तव में अत्यधिक सुंदर होने के कारण मन को हरने वाला होता है, उसके विषय में अनेक रहस्यमई बातें भी जन सम्मान में प्रचलित हैं, उसकी सुंदरता के लिए भले ही कितने उपमान दिए जाते हो अथवा उसको दूसरी वस्तुओं की सुंदरता के लिए उपमान के रूप में प्रयुक्त किया जाता है अथवा सुंदरियों ने भले ही उसके पुष्पों को अलंकार के रूप में ग्रहण किया हो, फिर भी उसे उस सामंती सभ्यता का ही शोधित प्रतीक माना जाता है, जो सदैव से जनसाधारण के परिश्रम पर फूली फली हैं।

(ग) क्योंकि वही गंधर्वों का सर्वे प्रिय पुष्प था और गंधर्व उस समय संतान सुख प्रदान करने वाले देव तुल्य अलौकिक पद पर प्रतिष्ठित थे। सामंतों के पतन के साथ-साथ उनकी मान प्रतिष्ठा के प्रतीकों का भी समाज से पतन होने लगा, इसीलिए संतान सुख का वरदान देने वाले गंधर्व का स्थान भी अब पीरों, भूत भैरव काली दुर्गा आदि देवी-देवताओं ने ग्रहण करना शुरू कर दिया। अब लोग संतान प्राप्ति की कामना के लिए गंधर्व की शरण में ना जाकर, भूत भैरव, काली दुर्गा आदि देवी देवता की शरण में जाने लगे और अंतता आज यक्षों का नाम लेने वाला भी कोई नहीं बचा है। इस प्रकार यक्षों के साथ लोगों ने अशोक को भी बुला दिया  अर्थात अशोक वृक्ष पीछे छूट गया।

(घ) संतान कामिनीयों को अशोक के वृक्ष व गंधर्व के स्थान पर शक्तिशाली पीर पैगंबर, शिव, दुर्गा आदि का वरदान प्राप्त होने लगा।

(ड़) यक्षों की इज्जत पीर पैगंबर, शिव दुर्गा आदि देवी-देवताओं ने घटा दी।

(च) अशोक के वृक्ष की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार हैं-

(i) अशोक का वृक्ष अत्यधिक सुंदर और मन को हरने वाला है।

(ii) यह वृक्ष सामंती सभ्यता का शोधित प्रतीक माना गया है।

(iii) यह वृक्ष संतान सुख प्रदान करने वाला माना गया है क्योंकि यह गंधर्व का सर्वप्रिय पुष्प है।

(iv) यह वृक्ष मनोहर, रहस्यमय और अलंकारमय है।

(छ) सामंती सभ्यता से तात्पर्य है कि सुंदरियों ने भले ही अशोक के पुष्पों को अलंकार के रूप में ग्रहण किया हो, फिर भी उसे सामंती सभ्यता का है शोधित प्रतीक माना जाता है, जो सदैव से जनसाधारण के परिश्रम पर फूली फली है।

 

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